नगर नियोजन क्या है

नगर नियोजन क्या है? | भारत में नगर नियोजन की प्रमुख समस्याओं की विवेचना

नगर नियोजन क्या है? | भारत में नगर नियोजन की प्रमुख समस्याओं की विवेचना | What is town planning in Hindi | Discussion of major problems of town planning in India in Hindi

नगर नियोजन क्या है?

नगर नियोजन की विचारधारा नगर के जन-समुदाय हेतु स्वास्थ्यप्रद आर्थिक, सामाजिक और नैतिक परिस्थितियों के पुनर्निर्माण से है। नगरों की विघटनात्मक परिस्थिति का पुर्ननिर्माण करने के लिए नगरीय समूहों की गतिशीलता घनत्व, मानसिक दशा, मनोरंजन के साधन, बालोत्थान, निवास स्थान, श्रमिकों की आधुनिकतम बस्तियों और राजमार्गों आदि क्षेत्रों में सुधार करने से सम्बन्धित विचार कार्य नगरीय आयोजन कहलाता है। नगरों में उचित बाजारों का निर्माण, कार्यालयों की स्थापना और मनोरंजन के संस्थाओं की व्यवस्था आदि से सम्बोधित एवं परिभाषित किया जाता है।

नगर नियोजन, कस्बों, नगरों और प्रादेशिक एवं नगर क्षेत्रों और राष्ट्रीय इकाइयों के आयोजन से सम्बन्धित है। कस्बों, नगरों तथा नगर क्षेत्रों के आयोजन में जहाँ कठिनाइयाँ उपस्थित होती हैं वहाँ प्रादेशिक आयोजन करना होता है। नगर नियोजन क्षेत्र के आयोजन से तात्पर्य यह है कि महानगरों को विभिन्न छोटे-छोटे उपनगरों में विभाजित करना और विभिन्न नगरों को एक प्रमुख नगर के नेतृत्व में विकसित करना है क्योंकि नगरों और कस्बों के पुनर्निर्माण में न्यायिक, सीमा सम्बन्धी एवं सामाजिक समस्याएँ नहीं आती हैं। एक नगर क्षेत्र का विकास एवं सीमाएँ भिन्न-भिन्न राज्यों में भिन्न हो सकती हैं।

नगर नियोजन के कार्यक्रम में नगर की भौतिक व्यवस्था का प्रावधान प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है। इसमें प्रमुख रूप से नगर की प्रशासनिक व्यवस्था के पुर्ननिर्माण के कार्य को स्थान दिया जाता है। द्वितीय नगर के आयोजन में औद्योगिक संस्थाओं की व्यवस्थित अविस्थापना का कार्य महत्वपूर्ण है। तृतीय विभिन्न संस्थाओं के संगठन के माध्यम से निवासी क्षेत्रों तथा मकानों का आयोजन किया जाता है। सहकारी समितियों को इसमें लगाया जाता है। इन समितियों को राज्य योजना बनाकर देता है और जनता के सहयोग से इन्हें पूरा किया जाता है। भारत में अनेक मकान योजनाएं इस प्रकार कार्यान्वित की गयी हैं। इन आयोजनों में भूमि का उपयोग, यातायात की व्यवस्था, नागरिक आवश्यकताएं, सामुदायिक सुविधायें, जनकल्याण, गन्दी बस्तियों का निवारण आदि दृष्टियों से कार्य किया जाता है।

बंगाल में नगर नियोजन के प्रमुख स्वरूप बताये गये हैं। प्रथम नगर का भौतिक आयोजन है। इसमें निवास अवस्थापना के प्रतिमान, भूमि का उपयोग, यातायात और संचार वाहनों की योजनायें आदि सम्मिलित की जाती हैं। द्वितीय सामाजिक आयोजन है। इसमें नगरीय सामुदायिक संगठन की प्रक्रिया को संचालित करने का प्रयास किया जाता है।

रीमर के अनुसार- “नगर जीवन की एक पद्धति है। इसके नियोजन विकास से प्रकार्यात्मक अव्यवस्था का विकास होता है। नगर के एक उचित नियोजन के अन्तर्गत जनसंख्यात्मक और सामाजिक आयामों को सदा ध्यान में रखना आवश्यक है।”

रीमर के अनुसार- “आधुनिक नगर के नियोजन के अधिकांश प्रयास सुधारात्मक और उपचारात्मक हैं।”

उपर्युक्त नगर नियोजन की अवधारणा से इसके निम्न उद्देश्य स्पष्ट होते हैं-

(1) यातायात का नियन्त्रण और नियोजन,

(2) भूमि के प्रयोग का नियमन,

(3) गन्दी बस्तियों का निराकरण,

(4) कम किराये के मकानों की व्यवस्था,

(5) मकान निर्माण के कार्यक्रमों का निर्माण,

(6) मनोरंजन, बाल उद्यान, खेल के मैदान और स्वास्थ्य शिक्षा सुविधाओं की व्यवस्था,

(7) नगर क्षेत्रों तथा महानगरों का विकास एवं आयोजन,

(8) प्रादेशिक और राष्ट्रीय नगर नियोजन,

(9) कल-कारखानों का नगर से बाहर, पृथक्करण

(10) बिजली, पानी, गैस आदि आवश्यक वस्तुओं की सुविधाओं का विकास

(11) पड़ोसी समुदायों का आयोजन एवं विकास

(12) गाड़ी, ताँगा, कारों आदि के ठहरने की व्यवस्था,

(13) दुकानों तथा बाजारों का आयोजन।

इस प्रकार नगर नियोजन का प्रमुख लक्ष्य नगर की समस्याओं का निवारण करना है।

भारत में नगर नियोजन की समस्याएँ-

भारत में नगर नियोजन की समस्याएँ प्रमुख हैं-

(1) नगरों की गतिशीलता की प्रकृति के कारण नगर नियोजन के कार्यक्रम दीर्घकाल के लिए स्थगित हो जाते हैं। नगरों में जनाधिक्य के कारण नगरों का विकास बड़ी त्वरित गति से होता है। नगरों में अधिकांशतः जनसंख्या रोजगार ढूंढ़ने आती है। वह रोजगार की तलाश में एक नगर से दूसरे नगर को आते जाते रहते हैं, इससे नगर की जनसंख्या के शीघ्र और सही आँकड़े प्राप्त नहीं किये जा सकते हैं, इससे नगर नियोजन के कार्यक्रम में बड़ी दुविधाओं का सामना करना पड़ता है, नगरों से देशागमन भी अधिक होता है। इससे नई-नई बस्तियों का विकास एवं निवास व्यवस्था की समस्या जटिल बन जाती है। देशागमन के नियन्त्रण की न्यायिक व्यवस्था नगरों में नहीं होती है। देशागमन में आये हुए व्यक्तियों में पृथक्करण की भावना भी प्रमुख स्थान रखती है।

(2) नगर नियोजन के आयोजनों के कार्यक्रमों में प्रभावशाली समूह भी बाधाएँ उत्पन्न करते हैं। उच्च श्रेणी के लोग सुरक्षित स्थानों पर रहने की इच्छा प्रकट करते हैं। नगर के श्रेष्ठ सुन्दर क्षेत्रों को ये लोग रहने के लिए चुनते हैं। नगर के मध्य केन्द्रीय स्थानों पर अपने व्यापक और उद्योगों की स्थापना करते हैं। इससे नगर आयोजन में दुविधायें खड़ी हो जाती हैं। कभी- कभी ये लोग अपने मकानों के आस-पास गुजरते हुए मुख्य राजमार्गों के निर्माण, स्कूलों के निर्माण एवं औषधालयों के निर्माण का भी विरोध करते हैं। ये लोग नगर के निम्न श्रेणी के लोगों के समीप रहना पसन्द नहीं करते हैं ये लोग नहीं चाहते कि नगर में वृद्धि हो तथा पृथक्करण की सीमाओं को भी तोड़ने का विरोध करते हैं। जनसेवा, पानी, बिजली, कार, पार्किंग, बाल-उद्यान आदि योजनाओं में भी रोड़ा अटकाते हैं।

(3) भारत में नगर नियोजन की सबसे बड़ी कठिनाई आर्थिक संकट की है। नगरों की आय-व्यय का ब्यौरा असन्तुलित होता है। यहाँ आय के साधन अत्यन्त सीमित होते हैं और व्यय विभिन्न मदों में करना पड़ता है। नगर आयोजनों में विभिन्न मकानों को तोड़ना और उनकी क्षतिपूर्ति देना बड़ी मुश्किल बात है। भारत में नगर आयोजन के कार्यक्रमों को स्वायत्त प्रशासनों को दिया गया है। इनके पास आर्थिक संकट सदा बना रहता है। नगर आयोजन के भीषण भार को सहन करने में संस्थाएं असमर्थ रहती हैं। राज्य और केन्द्र सरकारों से सहायता प्राप्त करने के लिए इन्हें अपनी सेवाओं में वृद्धि करनी पड़ती है। इस प्रकार स्वायत शासन कभी भी नगर आयोजन के विस्तृत व्यय को वहन करने में असमर्थ नहीं होता है।

(4) इन प्रमुख कठिनाइयों के अतिरिक्त नगर आयोजन के कार्यक्रम के सम्मुख अन्य कहिनाइयाँ भी उपस्थित होती हैं। नगर की जनसंख्या में अधिकांशतया लोग श्रमिक वर्ग और निम्न श्रेणी के होते हैं। उनकी आर्थिक दशा इतनी सोचनीय होती है कि निवास व्यवस्था के लिए सदा राज्य का मुँह ताकते रहते हैं। इनकी व्यवस्था का भार भी नगर आयोजन के विभागों को वहन करना पड़ता है। परम्परागत नगर-निर्माण के अन्तर्गत विशाल भवनों को आसानी से हटाया नहीं जा सकता है। चाहे वह मार्ग, निवास क्षेत्र, उद्योग तथा संयोग कार्यालयों के पास क्यों न हो। उनको हटाकर नई बस्तियाँ बनाना, मनोरंजनालय की स्थापना करना आदि में भी अनेक कठिनाइयाँ उपस्थित होती हैं। यातायात सम्बन्धी दुर्घटनाओं के लिए रोक लगाना भी व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों का प्रश्न सामने उपस्थित करता है।

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