प्लेट विवर्त्तिनिकी संकल्पना | भू-पटल को प्लेटों में विभाजन | भूपटल का प्लेटो में विभाजन तथा प्लेट सीमान्तों के प्रकार | प्लेट सीमायें तथा प्लेट सीमान्त | नवीन भू-पटल का निर्माण | प्लेट निर्माण और स्थानान्तरण की क्रियाविधि

प्लेट विवर्त्तिनिकी संकल्पना | भू-पटल को प्लेटों में विभाजन | भूपटल का प्लेटो में विभाजन तथा प्लेट सीमान्तों के प्रकार | प्लेट सीमायें तथा प्लेट सीमान्त | नवीन भू-पटल का निर्माण | प्लेट निर्माण और स्थानान्तरण की क्रियाविधि | Plate Tectonics Concept in Hindi | The division of the earth’s surface into plates in Hindi | Division of crust into plates and types of plate boundaries in Hindi | Plate boundaries and plate boundaries in Hindi | Construction of new earthworks in Hindi | Mechanism of Plate Formation and Transfer in Hindi

प्लेट विवर्त्तिनिकी संकल्पना

Concept of plate Tectonics

प्लेट टेक्टोनिक्स की संकल्पना समुद्र तल के प्रसार की परिकल्पना का विस्तारित और परिस्कृत रूप है। यह एक ऐसी व्यापक संकल्पना है कि समुद्र तल का प्रसार, महाद्विपीय विस्थापन, भू-पटलीय संरक्षण भू कम्पीय तथा ज्वालामुखीय क्रियाओं का भौगोलिक प्रारूप इन सभी की व्याख्या इसकी सहायता से की जा सकती है। प्लेट (Plate) शब्द का प्रयोग सबसे पहले प्रिंसटन विश्वविद्यालय के मॉरंगन (W.J. Morgan) ने 1967 में किया। मॉरगन के विचारों का आधार विल्सन (J. Tuzo Wilson) द्वारा प्रस्तुत मध्य – सागरीय कटक और ट्रान्सफॉर्म फाल्ट के सम्बन्धों का अध्ययन था। इसी समय कैम्ब्रिज के मैकेंजी (D. P. Mckenzie) तथा अमेरिका के पार्कर स्वतंत्र रूप से भी विल्सन से मिलते-जुलते निष्कर्षों पर पहुंचे थे। इन तीन वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित शोध पत्रों ने नयी विचारधारा को जन्म दिया जो प्रारम्भ में New Global Tectonics के नाम से प्रसिद्ध हुआ और कुछ दिनों के बाद Plate Tectonics के नाम से जाना जाने लगा।

भू-पटल को प्लेटों में विभाजन

इस संकल्पना के अनुसार पृथ्वी का भू-पटल मुख्यतः छः बड़े प्लेटों (Plates) और छः छोटे प्लेटों में विभाजित है, और सभी प्रमुख भू-पटलीय प्रक्रमों की व्याख्या इन प्लेटों के सापेक्षिक स्थानान्तरण (Relative movements) के संदर्भ में की जा सकती है। संसार के लिएअधिकांश भूकम्प मध्य-सागरीय कटकों और प्रशान्त महासागर के दोनों तटों पर होते हैं। सक्रिय भूकम्पीय क्रिया की इन प्रमुख रैखिक पट्टियों (Major linear belts of seismic activity) का आधार लेकर पृथ्वी के भू-पटल को छः प्रमुख प्लेटों और छः अपेक्षाकृत छोटे प्लेटों में  विभाजित किया गया है (चित्र 28)। कुछ विद्वान उत्तरी अमेरिका और दक्षिण अमेरिका को अलग-अलग प्लेट मानते हैं, और ऐसी स्थिति में प्रमुख प्लेटों की संख्या सात हो जाती है।

मुख्य या बड़े प्लेट- 

(1) भारतीय प्लेट (Indian plate)

(2) प्रशान्त प्लेट (Pacific plate)

(3) अमेरिकन प्लेट (American plate)

(4) अफ्रीकी प्लेट (African plate)

(5) यूरेशियन प्लेट (Eurasian plate)

(6) अन्टार्कटिका प्लेट (Antarctic plate)

अपेक्षाकृत छोटे प्लेट-

(1) अरेबियन प्लेट (Arabian plate)

(2) फिलिपीन्स प्लेट (Philippines plate)

(3) कोकौस प्लेट (Cocos plate)

(4) कैरिबीयन प्लेट (Caribbean plate)

(5) नाज्का प्लेट (Nasca plate)

(6) स्कोशिया प्लेट (Scotia plate)

प्रत्येक प्लेट की मोटाई लगभग 70 से 100 कि.मी. है, और इनका आकार (Configuration) स्थल तथा जल के वितरण से सम्बन्धित नहीं है। अधिकांश प्लेट महासागरीय तथा महाद्विपीय भू- पटल दोनों द्वारा निर्मित हैं। प्लेटो का क्षेत्रफल उनकी गहराई (मोटाई) की तुलना में बहुत अधिक और प्लेटों की गहराई महासागरीय भू-पटल के नीचे और बी कम हो जाती है। ये प्लेटें गतिशील हैं, और यह गति मैन्टल की ऊपरी परत के द्रवीय तथा सुघट्य

भूपटल का प्लेटो में विभाजन तथा प्लेट सीमान्तों के प्रकार

(Viscous and plastic) रहने के कारण संभव होता है। इस प्लास्टिक परत को (Asthenosphere) अथवा Low velocity zone कहते हैं।

ये प्लेट एक दूसरे के संदर्भ में तथा पृथ्वी के घूर्णन-अक्ष (Axis of rotation) के संदर्भ में निरन्तर गति में हैं (These plates are continuously in motion both with respect to each other and to the earth’s axis of rotation)। प्लेटों के बीच तीन प्रकार की गतियां  संभव हैं- विलगाव या अपसरण (Separation or divergence), अभिसरण (Closing together or convergence) तथा घर्षण (Friction or shearing)।

प्लेट सीमायें तथा प्लेट सीमान्त

(Plate boundaries and plate margins)

लगभगी सभी भूकम्पीय, ज्वालामुखीय तथा विवर्तनिक क्रियायें प्लेटों के किनारों या सीमान्तों (Plate margins) के निकट केन्द्रित हैं और समीपवर्ती प्लेटों की आपेक्षिक गति Differential motion से सम्बन्धित हैं। अतः विभिन्न प्लेटों के बीच की सीमायें Boundaries विशेष महत्व रखती हैं। प्लेट सीमान्त Plate margins तथा प्लेट सीमा Plate boundaries में अन्तर हैं। प्लेट सीमान्त किसी प्लेट का किनारा या छोर (marginal party of a particular plate) है, और प्लेट सीमा दो प्लेटों के बीच के गति-क्षेत्र का धरातलीय अनुरेख surface trace of the zone of motion between two plates है। दो प्लेट सीमान्त Plate margins एक उभयनिष्ठ (common) प्लेट सीमा plate boundary पर मिलते हैं।

प्लेट सीमान्त plate margins तीन प्रकार के है:- (i) रचनात्मक प्लेट सीमान्त (Constructive plate margins), (ii) विनाशी प्लेट सीमान्त (Destructive plate margins) तथा (iii) संरक्षी प्लेट सीमान्त (Conservative or passive plate margins)। मध्य सागरीय कटकों पर नेय भू-पटल का निर्माण होता रहता है, इसे रचनात्मक प्लेट सीमान्त कहते हैं। यहाँ प्लेटों का विलगाव या अपसरण Divergence होता है। कटक के दोनों ओर दूर हटता हुआ भू-पटल गहरे समुद्री ट्रेन्चों (Trenches) में जाकर मैन्टल में फिर प्रवेश कर जाता है। अतः इन ट्रेन्चों को विनाशी प्लेट सीमान्त कहते हैं। यहाँ प्लेटों का मिलन अथवा अभिसरण (Convergence) होता है। कटाकों पर दो प्लेटों की गति विपरीत दिशाओं में होती है, किन्तु फिर भी वे एक दूसरे  से अलग नहीं होते, क्योंकि दोनों के किनारों पर निरन्तर नया भू-पटल जुड़ता रहता है। ऐसी सीमायें (Boundarics) जहाँ गति का शुद्ध प्रतिफल (Net effect) नेय धरातल का निर्माण है, स्त्रोत (Sources) कहलाती हैं। ट्रेन्चों पर दो प्लेट एक दूसरे के निकट आते हैं, और एक प्लेट दूसरे प्लेट के सीमान्त के नीचे लगभग 45° कोण पर घुस जाता है। इस प्रकार की प्लेट सीमायें जहाँ कि गतियों का शुद्ध प्रतिफल धरातल का विनाश है, सिंग (Sink) या प्रत्यावर्तन क्षेत्र (Subduction zones) कहलाती हैं। एक तीसरे प्रकार का प्लेट सीमान्त संरक्षी प्लेट सीमान्त (Conservative plate margins) कहलाता है जहाँ दो प्लेट केवल एक दूसरे के पास से होते हुए गुजरते हैं और न नये धरातल का निर्माण होता है और न विनाश। यह प्लेटों की घर्षण (Friction) गति से सम्बन्धित है। ट्रान्सफॉर्म फाल्ट इस प्रकार के सीमान्त का उदाहरण है।

Asthenosphere से तरल पदार्थ मध्य सागरीय कटक पर ऊपर उठता है जिससे नये समुद्र तल का निर्माण होता है। यहाँ प्लेटों का विलगाय Divergence होता है। पश्चिम की ओर दक्षिण अमेरिका तथा दक्षिणी अटलांटिक का पश्चिम भाग एक प्लेट बनाते हैं और पूरब की ओर अफ्रीका तथा दक्षिणी अटलांटिक का पूर्वी भाग दूसरा प्लेट बनाते हैं। कटक से दोनों ओर दूर हटता हुआ भू-पटल गहरे समुद्री ट्रेन्चों में फिर Asthenosphere में प्रवेश कर जाता है।

नवीन भू-पटल का निर्माण

एक और महत्वपूर्ण बात ध्यान देने की यह है कि तीन प्लेटों को छोड़कर, अर्थात दाक्षिण अमेरिका के पश्चिम स्थित नाज्का Nasca or Nazca प्लेट, प्रशान्त प्लेट, तथा कोकोस प्लेट को छोड़कर बाकी सभी प्लेटों में स्थलीय तथा सागरीय भाग दोनों सम्मिलित हैं। कन्तु प्लेटों के वे  ही भाग जिन पर सागरीय भू-पटल मिलता है, प्लेट निर्माण और विनाश के प्रक्रमों में मुख्य रूप से भाग लेते हैं। कटकों पर जो नये भू-पटल के निर्माण तथा प्रसार की प्रक्रिया हम देखते हैं, उससे केवल पतले सागरीय भू-पटल (Thin layered oceanic crust) का निर्माण होता है, न कि मोटे महाद्विपीय भू-पटल (Continental crust) का महाद्विपीय भू-पटल की भू – रासायनिक संरचना भिन्न हैं और यह अपेक्षाकृत कम घनत्व की चट्टानों द्वारा निर्मित है।

प्लेट टेक्टौनिक्स की मूलभूत मान्यतायें

(Basic Assumptions of plate Tectonics)

प्लेट टेक्टॉनिक्स संकल्पना के पीछे तीन प्रमुख मान्यतायें (Assumptions) निहित है।

(1) सागरीय तल का प्रसार होता है, और नवीन सागरीय भू-पटल का सक्रिय महासागरीय कटकों पर निरन्तर निर्माण होता है तथा ट्रेन्वों में इसका विनाश होता है।

(2) पृथ्वी के धरातल का क्षेत्रफल स्थिर है, और गत 600 मिलियन वर्षों में पृथ्वी की त्रिज्या (Redius) 5% से अधिक नहीं बढ़ी है। अर्थात् नवीन भू-पटल के निर्माण तथा विनाश की दर लगभग बराबर है।

(3) नवीन भू-पटल बनने के बाद वह एक दृढ़ प्लेट में समाविष्ट हो जाता है जो सामान्यतः महाद्विपीय तथा सागरीय भू-पटल दोनों द्वारा निर्मित है यद्यपि कुछ ऐसे प्लेट हैं जिन में केवल सागरीय भू-पटल ही पाया जाता है। इस प्रक्रम को जिसके द्वारा एक प्लेट दूसरे प्वलेट में समाविष्ट हो जाता है अर्थात् एक प्लेट दूसरे के नीचे घुस जाता है प्रत्यावर्तन (Subduction) कहते हैं।

भूकम्पीय अध्ययनों से यह निश्चित रूप से पता चलता है कि महाद्विपीय भू – पटल मोटा और अस्तरित अथवा अनियमित रूप से स्तरित (Unlayered or irregularly layered) है, और इसके विपरीत महासागरीय भू-पटल, स्तरित और एकसमान है। सागरीय तल से लगभग 7 कि.मी. नीचे मोहो (Moho or M-discontinuity) है, और इस 7 कि.मी. की मोटाई मे तीन क्षैतिज तथा लगभग अबिक्षुब्ध परत (Horizontal and virtually undisturbed layers) वर्तमान हैं। सबसे ऊपरी परत में तलछटें हैं जिनकी अधिकतम गहराई लगभग 1 कि.मी. है, और जो कटक शीर्षों पर अनुपस्थित हैं। इसके नीचे परतों की मोटाई क्रमशः लगभग 1 और 4 कि.मी. है।

यदि हम सक्रिय महासागरीय कटकों और ट्रेन्चों की रेखाओं को महादेशों की ओर बढ़ा कर देखें तो हम पाते हैं कि सभी रेखायें महाद्विपीय विवर्तनिक क्रियाओं के क्षेत्रों (Zones of continental tectonic activity) में जाकर मिलती है। सभी रेखायें महाद्विपीय विवर्तनिक क्रियाओं के क्षेत्र या तो उपरोक्त रेखाओं के विस्तार (Continuation) पर स्थित हैं या प्लेट सीमान्तों अर्थात् स्त्रोत या सिंक (Sources or sinks) के सहारे स्थित हैं। महासागरीय सिंक और स्त्रोंतो (Oceanic sinks and sources) के महादेशीय विस्तार को प्लेट सीमाओं का विस्तार (Continuation of plate boundaries) माना जाए तो एक संसार व्यापी प्लेट प्रणाली की कल्पना की जा सकती है जिसमें महादेश तथा महासागर दोनों सम्मिलित हैं।

हमने देखा कि विभिन्न प्लेट एक दूसरे के संदर्भ में निरंतर गतिशील है। साथ – साथ वे‌गोलाकार पृथ्वी के धरातल पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसका मतलब यह है कि सभी प्लेटों‌की गति कुछ हद तक अन्यान्याश्रित (Inter-dependent) हैं, और किसी एक प्लेट की गति दिशा या वेग में परिवर्तन बिना दूसरे प्लेट में सहगामी परिवर्तन के संभव नहीं है। मॉरगन ने  बतलाया है कि न गतियों और उनकी दर को गोलीय ज्यामिति (Spherical geometry) के  नियमों द्वारा परिशुद्धता से परीक्षण किया जा सकता है। सापेक्षिक प्रसार की दिशा कटक शीर्ष की दिशा अथवा चुम्बकीय विसंगति की रेखा व्यवस्था के लम्ब नहीं होती है बल्कि ट्रान्सफॉर्म फॉल्ट (Transform faults) के समानान्तर होती है। अफ्रीकन प्लेट की पश्चिमी सीमा मध्य-अटलांटिक कटक और पूर्वी सीमा हिन्द महासागर कटक है। दोनों प्रसार के सक्रिय केन्द्र हैं और दोनों के ट्रान्सफार्म फॉल्ट की दिशा लगभग पूरब-पश्चिम है। दोनं कटकों के बीच कोई ट्रेन्च नहीं है। अतः अफ्रीकन प्लेट के दो विपरीत रचनात्मक सीमान्त (Opposed Constructive margins ) हैं, और इसलिए पूरब-पश्चिम दिशा में इसका विस्तार होना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि यदि कुछ प्लेटों के क्षेत्रफल में वृद्धि होती है तो अन्य प्लेटों के क्षेत्रफल में कमी होनी चाहिए। अन्यथा पृथ्वी का धरातलीय क्षेत्रफल स्थिर नहीं रह सकता। अतः सैद्धान्तिक रूप से कुछ प्लेटों का विनाश हो सकता है, और मध्य-सागरीय कटक तथा गहरे सागरीय ट्रेन्चों का एक दूसरे के संदर्भ में अथवा पृथ्वी की संरक्षी आकृतियों (Conservative features) के संदर्भ में स्थानान्तरण संभव है। किन्तु हम जानते हैं कि भौतिक कारणों से उस प्लेट का जिसमें महादेशीय भूपटल सम्मिलित है, कभी पूर्ण विनाश संभव नहीं है। अतः जब भी किसी प्लेट का महादेशीय अंश ट्रेन्च या सिंक (SINK) के निकट आता है तो संभवतः सीमा गति (Boundary motion) में परिवर्तन होता है अथवा दो प्लेटों के बीच सापेक्षिक गति समाप्त हो जाती है। दूसरी संभावना की स्थिति में दोनों प्लेटों की अन्य सीमाओं पर गति में समायोजन (Adjustment) आवश्यक है, और दो प्लेटों के सम्मिलन से एक प्लेट का निर्माण संभव होता है।

भूकम्पीय तथा ज्वालामुखीय क्षेत्रो का वितरण और प्लेट टेक्टोनिक्स

(Distribution of Seismic and volcanic zones and Plate Tectonics)

संसार के अधिकांश भूकम्प और ज्वालामुखी संकीर्ण, अर्द्ध-अविच्छित्र (Semi-continuous) तथा सुनिश्चित पट्टियों में पाये जाते हैं। ये पट्टियाँ मुख्य रूप प्लेट सीमाओं (Plate boundaries) में केन्द्रित हैं। वास्तव में प्लेटों के सीमांकन में भूकम्पीय क्रिया की पट्टियों का सहारा लिया गया है। भूकम्पनीयता (Seismicity) महासागरी कटकों, ट्रेन्च-चाप प्रणालियों (Trench-arc systems) प्रमुख विभंग क्षेत्रों (Major fracture zones) तथा नवीन पर्वतन पट्टियों (Young orogenic belts) तक ही सीमित है, और ये सभी आकृतियाँ प्लेट सीमाओं के परिचायक है। सभी प्लेट सीमाओं पर, और विशेष रूप से मध्य- सागरीय कटकों पर, छिछले-केन्द्रीय भूकम्प (Shallow focus earthquakes) पाये जाते हैं, किन्तु माध्यमिक तथा गहरे भूकम्प जिनका उत्पत्ति केन्द्र (Focus) 200 कि. मी. से अधिक गहरा है केवल समुद्री- ट्रेन्च क्षेत्रों में ही मुख्यताः सीमित है। यह वह क्षेत्र है जहाँ प्लेटें मैन्टल में नीचे की ओर उतरती हैं। यहाँ पर भूकम्प केन्द्र ट्रेन्च के धरातल से शुरू होकर एक तिरछे झुके हुए क्षेत्र में प्रायः300 से 400 कि. मी. की गहराई तक पाये जाते हैं, और कहीं- कहीं यह गहराई 700 कि. मी. तक पाई गयी है। इनका झुकाव स्थल की ओर होता है और झुकाव का कोण 30° से 80° होता है, यद्यपि अधिकांश में यह कोण 45° से 60° पाया गया है इस प्रकार के तिरछे झुके हुए भूकम्प उत्पत्ति क्षेत्र प्रशान्त महासागर के सभी तटों के निकट पाये जाते हैं। इन्हें बेनिऑफ क्षेत्र (Banioff zones) कहते हैं, क्योंकि भूकम्पवेत्ता ह्यूगो बेनिऔफ (Hugo Benioff) ने पहले-पहल इसका पता चलाया था सामान्य रूप से यह कहा जा सकता है कि बेनिऔफ क्षेत्र की भूकम्पीयता सम्बन्ध भू-पटल के नीचे की ओर गिनने की गति (Dow-ward motion of the iitho sphere) से है।

चित्र में चीली-पेरू ट्रेन्च के निकट बेनिऔफ क्षेत्र को दिखलाया गया है। ट्रेन्च से 350 कि० मी० पूरब ऐन्डिज पर्वत माला की शिखर रेखा है जो ट्रेन्च से लगभग 15 कि0 मी0 ऊंची है। भूकम्पों के उत्पत्ति केन्द्र एक संकीर्ण पट्टी में पाये जाते हैं। यह पट्टी महादेशीय तट की ओर 60 कोण पर झुकी हुई है और स्थलखण्ड के नीचे लगभग 300 कि0मी0 की गहराई तक चली गयी है और धरातल पर ट्रेन्च में प्रकट होती है। समुद्री-तल के प्रसार (Sea-specific rise) सिद्धान्त के अनुसार प्रशान्त महासागर पूर्वी पैसिफिक कटक (East-floor spreading) से दक्षिण अमेरिका की ओर खिसक रहा है, किन्तु दखिण अमेरिका मध्य-अटलांटिक कटक से पश्चिम की ओर हट रहा है। अतः दोनों प्लेटों के संधि-स्थल पर एक ‘स्थायी-दशा सतत टकराव, (Steady-state continuous collision) की स्थिति पायी जाती है, और टकराव के स्थान परऐन्डीज में सक्रिय ज्वालामी क्रिया का एक महान क्षेत्र (a major belt of active volcanism) मिलता है जो प्रशान्त महासागर की अग्नि-श्रृंखला का एक अंश है।

किन्तु विनाशी प्लेट मार्जिन और रचनात्म प्लेट मार्जिन ज्वालामुखियों में एक महत्वूर्ण अन्तर है। विनाशी प्लेट मार्जिन के ज्वालामुखी महाद्वीपीय (continental) हैं और रचनात्मक प्लेट मार्जिन के ज्वालामुखी महासागरीय (oceanic) हैं महासागरीय ज्वालामुखी बेसाल्ट चट्टानों द्वारा निर्मित हैं, जबकि महाद्वीपीय ज्वामुखियों में एन्डिसाइट (Andesite) चट्टानें मिलती हैं। पृथ्वी का सम्पूर्ण सागरीय भू-पटल बेसाल्ट द्वारा निर्मित है और यह सभी बेसाल्ट, महासागरीय कटक (oceanic ridges) के नीचे स्थित मैन्टल के ऊपरी भाग में पाई आने वाली परिडोटाइट चट्टानों (Periodontitis) पिघलने से बना है।

विभ्रश घाटियाँ (Rift Valleys)

प्लैट टेक्टौनिक्स द्वारा कुछ अन्य आकृतियों को भी समझने में मदद मिलती है। कुछ ऐसे ज्वालामुखी हैं जो रचनात्मक अथवा विनाशी प्लेट मार्जिन से सम्बन्धित नहीं है। इनमे सबसे उल्लेखनीय पूर्वी अफ्रीका के ज्वालामुखी है, जिनका सम्बन्ध पूर्वी अफ्रीका विभ्रंश प्रणाली ( east african rift system) से है। एक विशाल विभ्रंश घाटी पूर्वी अफ्रीका में पाई जाती है जो उत्तर में इथोपितया और लाल सागर तक फैली हुई है। पूर्वी अफ्रीका विभ्रश प्रणाली के पूरे क्षेत्र में ज्वालामुखी की एक श्रृंखला मिलती हैं इन विभ्रंश घाटी ज्वालामुख्यिों द्वारा उत्खित चट्टानें एक विशिष्ट प्रकार की बेसाल्ट चट्टाने हैं जिन्हें एलकली बेसाल्ट (Alkali basalts) कहते हैं जिनमें सोडियम और पोटाशियम की मात्रा अधिक रहती है।

प्लेट- मध्यस्थ ज्वालामुखी (Mid-Plate volcanoes)

विभ्रंश घाटी ज्वालामुखियों के अतिरिक्त कुछ ज्वालामुखी हैं जो प्लेटों के मध्य में स्थित हैं। इन्हें हम प्लेट-मध्यस्थ ज्वालामुखी (Mid-Plate volcanoes) कह सकते हैं। इस प्रकार के ज्वालामुखी मध्य सहारा में मिलते हैं, किन्तु इसके सबसे अच्छे उदाहरण प्रशान्त महासागर में स्थित हवाई द्वीप हैं। प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धान्त के संदर्भ में इन ज्वालामुखियों की स्थिति की व्याख्या मुश्किल है। ऐसा समझा जाता है कि ये एकांकी ज्वालामुखी (Isolated volcanoes) मैन्टल में ‘गर्म स्थल’ (Hot spots) के ऊपर स्थित हैं मैन्टल का ‘गर्म स्थल’ स्थिर है, किन्तु सागरीय प्लेट गतिशील है, और यही कारण है कि ज्वालामुखी एक रैखिक श्रृंखला में मिलते हैं। जिसके एक छोर पर सबसे पुराने और दूसरे छोर पर सबसे नये ज्वालामुखी अवस्थित हैं।

मादेशीय संघात अथवा टक्कर

(Continental Collisions)

प्लेट टेक्टोनिक्स माहद्वपीय विस्थापन के प्रक्रम की एक स्वीकारणीय व्याख्या प्रस्तुत करता है। एक सामान्य मतैक्य है कि महाद्वीपीय विस्थापन से पूर्व सभी महादेश दक्षिण ध्रुव के चारों ओर एक स्थलखण्ड में एकत्रित थे, और भारत एशिया के मुख्या स्थल खण्ड से सटा हुआ नहीं था। भारत अफ्रीका और अंटार्कटिका के बीच अवस्थित था, और मुख एशियाई स्थलखण्ड जिसे लौरेशिया (Lauretia) कहा गया है, और भारत के बीच समुद्र था। जब लगभग 200 मिलियन वर्ष पहले महाद्वीपीय प्रवाह प्रारंभ हुआ और विशाल पैतृक महादेश टूटने लगा, भारत तेजी से उत्तर की ओर गतिशील हुआ और अन्तता; एशियाई स्थलखण्ड से लगभग 60 मिलियन वर्ष पहले जुड गया। लगभग इसी समय अफ्रीका भी उत्तर की ओर खिसक गया, और यूरोप और अफ्रीका के बीच स्थित सागर छोटा होकर वर्तमान भूमध्यसागर की चौड़ाई का हो गया। इस महान महादेशीय संघटन या टकराव (Continental collision) के फलस्वरूप अल्पाइन- हिमालय पर्वत मेखला का निर्माण हुआ।

प्लेट निर्माण और स्थानान्तरण की क्रियाविधि

1948 में कैलिफोर्नियों के बेनो गुटेनबर्ग (Beno Gutenberg) ने प्रस्तावित किया था कि पृथ्वी के ऊपरी मैन्टल में धरातल सेलगभग 80 कि0मी0 की गहराई पर एक ‘निम्न वेग प्रदेश’ (Low velocity zone) है जाँ भूकम्पीय तरंगों का वेग बहुत कम होजाता है। उस समय लोगों ने इसे स्वीकार नहीं किया था, किन्तु 1960-70 के बीच हुए अनुसंधानों से इस बात की पुष्टि हुई है, और लोग अब इसे स्वीकार करने लगे हैं। यह ‘निम्नवेग प्रदेश’ (LVZ) संसार-व्यापी हैं, और संसार के विभिन्न भागों मे भू-पटल की विशेषताओं के अनुसार इसकी विशेषताओं में अन्तर  पाया जाता है। किन्तु सामान्य रूप से कहा जा सकता है कि यह 50 से अधिकतम 250 कि0मी0 की गहराई के बीच मिलता है और प्रायः 50 कि0 मी0 मोटा है। चूँकि तापमान में वृद्धि के साथ तरंग-वेग कम हो जाता है।

अतः यहाँ चट्टाने बहुत कमजोर हैं (The rocks have a very low shear strength) संभवतः यही वह प्रदेश है जहाँ लगभग 100 150 कि० मी० मोटा प्लेट नीचे मैन्टल से असंलग्न (Decoupled from the deeper mantic) होता है। पृथ्वी के इस अपेक्षाकृत गर्म और कमजोर परत को जो ऊपर से लगभ 100 कि0मी0 अपेक्षाकृत मजबूत प्रस्तरीय मंडल (Lithosphere) के नीचे स्थित हैं, Asthenosphere अर्थात् दुर्बलमंडल कहते हैं।

प्लेटों की मोटाई के बारे में हमारा ज्ञान बहुत अधूरा है। किन्तु अनुमान है कि समुद्रतल के नीचे यह कम-से-कम 5 से 7 कि० मी0 मोटा है। जहाँ तक महादेशीय भू-पटल प्लेटों की गति से सम्बन्धित है, महादेशों के नीचे इनकी मोटाई 40 से 100 कि0 मी0 समझी जाती है। संभाव्य क्रिया-विधि की इन्हीं सीमाओं और दशाओं के अन्दर काम करना होगा।

(1) सक्रिय कटकों पर उच्च ताप-प्रवाह (High heat flow) पाया जाता है, और कटकों से दूरी के साथ यह कम होता जाता हैं। सागरीय ट्रेन्चों में इसके विपरीत अत्यन्त निम्न ताप-प्रवाह पाया जाता है, किन्तु इसके निकट द्वीप-चापों (Island-arcs) में गहराई में फिर ऊँचा ताप- प्रवाह मिलता है।

(2) सागरी कटकों के पास सममित रूप से (Symmetrically) प्रसार होता है, और प्रसार की दर प्रतिवर्ष । सेन्टिमीटर से कम और 6 सेन्टिमीटर के बीच है। सागरीय ट्रेन्चों में भू- पटल के विनाश की दर 5 से 15 सेन्टिमीटर प्रतिवर्ष है।

(3) मध्य-सागरीय कटकों पर भू-पटल के निर्माण का जो भी प्रक्रम हो, प्रसार की दर में भिन्नता रहने पर भी नवनिर्मित भू-पटल की मोटाई लगभग एक ही पायी गयी है।

(4) प्रसार के केन्द्र में, कटक समुद्र तल से 2 से 4 कि0 मी0 ऊँचे हैं, और शीर्ष के दोनों ओर सममित रूप से ढाल नीचा होता जाता है।

कटकों के पास उच्च ताप-प्रवाह के कारण बहुत लोगों ने यह सुझाव दिया है कि धरातल पर गति का सम्बन्ध पृथ्वी के अन्दर किसी प्राकर के तापीय संवहन (Thermal convection) से है। हाल में टरकोट (D.T. Turcotte) तथा ऑक्सबर्ग (E.R. Oxurgh) ने तापीय संवहन पर आधारित ‘तापीय सीमा स्तर’ की संकल्पना (Concept of thermal boundary layers) का प्रतिपादन किया है (Plume flow) क्षैतिज हो जाता है। यह गर्म तरल पदार्थ जब ठंडे धरातल पर  चलता है, और पार्टिवक गति के साथ ठंडा होता जाता है, और उत्तरोत्तर मोठा होता हुआ एक ‘ठंडे सीमा स्तर (Cold boundary layer) का निर्माण होता है।

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