भूगोल / Geography

ज्वालामुखी | ज्वालामुखी की प्रकृति | ज्वालामुखी के उद्गार द्वारा उत्पन्न पदार्थ | ज्वालामुखीय उद्गार के प्रकार | ज्वालामुखीय शंकु की आकृतियाँ और प्रकार

ज्वालामुखी | ज्वालामुखी की प्रकृति | ज्वालामुखी के उद्गार द्वारा उत्पन्न पदार्थ | ज्वालामुखीय उद्गार के प्रकार | ज्वालामुखीय शंकु की आकृतियाँ और प्रकार | Volcano in Hindi | Nature of Volcanoes in Hindi | Substance produced by the eruption of a volcano in Hindi | Types of Volcanic Eruptions in Hindi | Shapes and Types of Volcanic Cones in Hindi

ज्वालामुखी

सागरीय भूपटल और माहदेशीय भूपटल भी आंशिक रूप में ज्वालामुखीय क्रिया से उत्पन्न चट्टानों द्वारा निर्मित है। पृथ्वी का सम्पूर्ण सागरीय भूपटल मध्य सागरीय कटकों से निस्सरित बेसाल्ट द्वारा निर्मित है। इसके अतिरिक्त अनेक ज्वालामुखी द्वीप तथा हजारों अपरदित ज्वालामुखीय समुद्री सतह से नीचे सी-माउन्ट (Seamount) के रूप में छिपे हुए है। महाद्वीपों पर भी बेसाल्ट लावा द्वारा निर्मित कई विशाल पठार मिलते हैं जिनमें भारत का दक्कन पठार और संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलम्बिया पठार सम्मिलित हैं। लगभग पूरी पृथ्वी पर जवालामुखीय राख और धूल की पतली या गहरी परत वर्तमान है।

ज्वालामुखीय प्रक्रिया द्वारा ही पृथ्वी के धारातलं का जल प्राप्त हुआ हैं, क्योंकि पृथ्वी के आंतरिक भागों से ज्वालामुखी क्रिया द्वारा उपलब्ध जल से ही जलमण्डल तथा वायुमण्डल की रचना संभव हुई है।

ज्वालामुखी की प्रकृति

ज्वालामुखी भू-पटल के उस गहरे छिद्र या निकास-नली (Vent) का नाम है जिसका संबंध पृथ्वी के आन्तरिक भाग से होता है और जिससे होकर पृथ्वी के भीतरी भाग से पिघली हुई चट्टानें अथवा गर्म लावा, राख और गर्म गैसें धरातल पर निकलती हैं। ज्वालामुखी द्वारा पिघले हुए पदार्थों को बाहर फिंकने की क्रिया को उद्गार (Eruption) कहते हैं। जब पिघली हुई चट्टाने धरातल को तोड़कर बाहर निकलती हैं, जो प्राय; बहुत जोरों का विस्फोट होता है, और अक्सर इसके पहले भूकम्प होने लगता हैं। विस्फोट के स्थान पर धरातल की ठोस चट्टानें टूट-फूट कर हवा में काफी ऊँचाई तक फिंक जाती हैं। जल-वाष्प तथा अन्य गैंसों के विशाल बादल निकलते हैं, वायुमण्डल राख, धुआँ तथा बादलों से भर जाता है, और तुब फिर अति उष्ण पिघला हुआ लावा बाहर निकलता है।

ज्वालामुखी और क्रेटर

भू-पटल समान रूप से दृढ़ नहीं है। इसमें कुछ कमजोर स्थान तथा दरारें हैं। जब भू- संचलन (Earth movement) के कारण भू-पटल के पदार्थ एक जगह से दूसरी जगह हट जाते हैं, और इनके हटने से वहाँ का दबाव कम हो जाता है, तो पृथ्वी की भीतरी चट्टानें, पिघल कर गतिशील हो जाती हैं। पिघलने से उनका आयतन (Volume) बढ़ जाता है जिससे कमजोर स्थानों अथवा दरारो द्वारा वह बाहर निकलने की कोशिश करती हैं। इन्हीं पिघले पदार्थों अथवा मैग्मा (Magma) के बाहर (प्रयस्त निष्कासन) निकलने के फलस्वरूप ज्वालामुखी का निर्माण होता है। भू-संचलन द्वारा उत्पन्न दवाब की कमी मैग्मा अथवा द्रवित पदार्थ (Molten material) के बाहर निकलने का एक मुख्य कारण हैं इस बात की पुष्टि से होती है कि ज्वालामुखी अधिकांशतः भू- संचलन के क्षेत्रों में पाई जाती है। मैग्मा जो पृथ्वी के आन्तरिक भागों से ज्वालामुखी द्वारा ऊपर उठ कर धरातल पर आता केवल पिघली हुई चट्टानों का बना हुआ नहीं होता है, और इसमें गर्म तरल पदार्थ गैस तथा ठोस पदार्थ विभिन्न मिश्रण और अनुपात में पाये जाते हैं। जब मैग्मा दवाब के अन्दर कैद रहता है, तो इसमें बड़ी मात्रा में गैस और जलवाष्प पाये जाये हैं। जैसे-जैसे गैस से भरा मैग्मा घरातल की ओर ऊपर उठता है, और इसके ऊपर का दवाब कम होता जाता है, गैसें अलग हो जाती हैं, और धरातल के अवरोध को तोड़कर धमाके के साथ बाहर निकलती है, और एक विस्फोटक उद्गार (Explosive Eruption) होता है। यह भी संभव है कि भू-पटल में प्रवेश किया हुआ जल गर्म गलित चट्टानों के सम्पर्क में आता है, जिससे जल अचानक भाप के रूप में परिवर्तित हो जाता है और लावा को ऊपर आने के लिए बाध्य करता है, और इस प्रकार ज्वालामुखी का विस्फोट होता है

उद्गार के साथ निकले हुए लावा तथा अन्य पदार्थ गहरे छिद्र (Vent) के चारों ओर जमा हो जाते हैं। यह जमाव छिद्र के पास सबसे अधिक अधिक होता है और दूरी पर कम, और इस प्रकार एक कोण के आकार की पहाड़ी (Cncial Hill) का निर्माण होता है। अतः एक सामान्य ज्वालामुखी का आकार एक कोणाकार पहाड़ी होता है, जिसके शीर्ष से समय-समय पर उद्गार होता है। किन्तु पहाड़ी उद्गार की उपज है और स्वयं ज्वालामुखी वास्तव में वह केन्द्रीय छिद्र है। जिससे लावा निकला है। अधिकाँश ज्वालामुखी में शॅकु या कोण के शीर्ष पर टिप्पी के आकार (Funnel-shaped) का एक गड्डा रहता है जिससे क्रेटर (Crater) कहते हैं। इस टिप्पी का तल उस नली में मिला होता है जिसके द्वारा लावा की ओर आता है, किन्तु जब लावा का निकलना बन्द हो जाता है, तो प्रायः वह नली जमे हुए लावा के कारण बन्द हो जाती है। क्रेटर का निर्माण प्रायः विस्फोट या धँसाव (Explosive activity or Subsidene) के कारण होता है, किन्तु कभी-कभी छिद्र से निकले हुए पदार्थ, छिद्र के चारों ओर जमा होकर एक घेरा बना डालते हैं। जिसके कारण भी क्रेटर बन जाते हैं।

उद्गार की आकृति (Frequency of Eruption)

कुछ ज्वालामुखी में उद्गार बहुत समय तक लगातार होता रहता है; किन्तु अधिकांश जवालामुखी में उद्गार रूक-रूक कर होता हैं कुछ ज्वालवमुखी में विराम या विश्राम की अवधि बहुत लम्बी होती है और ये बहुत खतरनाक होते हैं। उद्गार की बांरबारता या आवृत्ति के आधार पर ज्वालामुखी के तीन भेद किये जाते हैं-मृत, निद्रित, तथा सक्रिय। जिस ज्वालामुखी में उद्गार बिल्कुल बन्द हो गया है उसे मृत ज्वालामुखी (Extinct Volcano) कहते हैं। इसके उदाहरण बर्मा में पोपा पर्वत तथा अफ्रिका में किलिमंजारो हैं। हिन्द महासागर के मौरिशस, मालागसी (मैडागास्कर) तथा अन्य कई द्वीपों में मृत ज्वालामुखी के उदाहरण मिलते हैं। जो ज्वालामुखी बहुत समय से शांत है

ज्वालामुखी के उद्गार द्वारा उत्पन्न पदार्थ

(Products of Valeanic Eruption)

ज्वालामुखी के उद्गार से निकले पदार्थ ठोस, द्रव या गैसीय हो सकते हैं। जो ठोस चट्टानी ट्टकडे, ज्वालामुखी के उद्गार के साथ निकलते हैं उन विभिन्न खँडमय पदार्थों (Fragmental materials) को सामूहित रूप से पायरोक्लास्ट (Pyroclasts) कहते हैं। जब ज्वालामुखी से उद्गार विस्फोट के साथ होता है, चट्टानों के टुकड़े बड़ी मात्रा में हवा में फिंकते हैं. छिद्र के पास तथा निकटवर्ती क्षेत्रों में गिरते हैं। सबसे पहले चट्टानों के वे टुकड़े होते हैं जो उद्गार की नली में वर्तमान रहते हैं। सुसुप्त ज्वालामुखी में यह नली जमे हुए लावा (Solidified lava) से बन्द रहती है, और लावा निकलने से पहले ये टूट-टूट कर अधिकॉश उद्गारों में बड़ी मात्रा में ठोस खंडमय पदार्थ बाहर निकलते है, और आस-पास के क्षेत्रों में धूल और पत्थर के टुकड़ों की वर्षा जैसी होती है ठोस चट्टानों के टूटे हुए अंशों के अतिरिक्त गैसों के साथ तेजी से निकलते हुए लावा के अंश भी पृथ्वी पर गिरने से पहले जम जाते है और इसप्राकर बरसत हैं जैस बम वर्षा हो रही हो

पायरोक्लास्ट पदार्थ विभिन्न आकार के होते है, और इनमें बारीक धूल से लेकर बड़े कोणीय टूकड़े तक पाये जाते हैं। इनके आकार के अनुसार इनके विभिन्न नाम हैं। सबसे बड़े और नुकीले चट्टानी टूकड़ो को ब्लॉक (Block) अथवा ब्रेसिया (Breccia) कहा जाता हैं जब पिघला हुआ लावा हवा में फिंकता है और इसकी बड़ी-कड़ी बूदें जमीन पर गिरने से पहले जम जाती हैं तो वे गोल, अंडाकार अथ्वा नाश्पातीनुमा आकार में परिवर्तित होती हैं। इन ठोस गोलाकार पदार्थों को ज्वालामुखीय बम (Volcanic bombs) कहते हैं जब इनका आकार मटर के दानों अथवा कांच की गोलियों की तरह छोटा होता है तो इन्हें लैपिली (Lapilli) कहा जाता है जब इनका गठन छिद्रिल (Vesicular) होता है तो इन्हें प्यूमाइस, स्कोरिया अथवा सिन्डर (Pumice, Scoriae, or Cinders) के नाम से पुकारा जाता है। जब ज्वालामुखी से निकला हुआ पदार्थ बारीक राख की तरह छोटे कणों का होता है तो उसे ज्वालामुखी राख (Volcanic ash) कहते हैं, और जब कण और भी अधिक बारीक होते है, तो उन्हें ज्वालामुखीय धूल (Volcanic dust) कहा जाता है। प्रचंड वर्षा के कारण, जो कभी-कभी उद्गारों के साथ हुआ करती है, ज्वालामुखीय धूल कीच की गर्म धारा के रूप में बहने लगता है, और इससे उतना ही विनाश होता है जितना कि लावा के प्रवाह से ।

अपेक्षाकृत बड़े टुकड़े (लैपिली, सिन्डर इत्यादि तथा बम और ब्लॉक ) ज्वालामुखी के पास वाले क्षेत्रों में गिर कर जमा होते हैं किन्तु ज्वालामुखीय राख तथा धूल दूरी तक भ्रमण करते  है। ज्वालामुखीय धूल तथा राख और लैपिली, सिन्डर इत्यादि के जमा होने से जो चट्टान बनती है उसे टफ (Tufis) कहते हैं। इसमें कभी-कभी विशेषकर ज्वालामुखी पहाड़ी की ढाल पर, बम तथा ब्लॉक भी मिले रहते है।

ज्वालामुखीय उद्गार से निकलने वाले पदार्थों में सबसे अधिक महत्वूर्ण द्रव पदार्थ हैं जो लावा की शक्ल में निस्सृत होते हैं। इनका तापमान प्राय: 900° से 1,200° के बीच होता है। कुछ लावा में सिलिका (Silica) का अनुपात अधिक होता है, इसे ऐसिड (Acid) या अम्लीय लावा कहते हैं किन्तु कुछ लावा में सिलिका का अनुपात कम होता और इसे बेसिक (Basic) लावा कहते हैं। एसिड लावा का गलनाँक ऊँचा (high melting point) होता है और वे प्रायः चिपचिपे रहते है।

बेसिक लावा के ठंडा होने पर बेसाल्ट चट्टान का निर्माण होता है। एसिड और बेसिक दोनों लावा में निकलती हुई गैसें बहतें हुए लावा की ऊपरी सतह को छिद्रिल (Vesciular) बना देती है और उसमें छोटे-छोटे छेद हो जाते हैं। इसके अलावा, लावा की ऊपरी सतह पहले डंडी होती है, जिससे ऊपर पपड़ी जम जाती हैं, किन्तु नीचे लावा का बहाव जारी रहता है जिसके कारण ऊपर की पपड़ी बराबर टूटती रहती है और साथ-साथ ये टूटे हुए भाग नीचे की ओर खिसकते जाते हैं। पपड़ी के इन छिद्रिल टुकड़ो को स्कोरिकया (Scorine) कहते हैं। फलतः लावा द्वारा निर्मित प्रायः रूखड़ी और अनियमित (irregular) होती है।

ज्वालामुखी गैसों में सबसे प्रमुख भाप (Steam) है। उद्गार के साथ बड़ी मात्रा में भाप बाहर निकलते हैं, और वाष्प के द्रवीभवन (Condensation) से प्रायः भारी वर्षा होती हैं। किन्तु यह याद रखना आवश्यक है कि अन्दर से निकले वाष्प के अलावा, वायुमण्डल में वर्तमान वाष्प भी इस वर्षा का कारण है भाप (60 से 90 प्रतिशत तक) के अतिरिक्त ज्वालामुखी द्वारा निष्कासित अन्य गैसें कार्बन डायक्साइड, नाइट्रोजन और सल्फरडायक्साइड हैं, और साथ-साथ हाईडाजन, कार्बन मौनोक्साइड, सल्फर तथा क्लोरिन भी थोड़ी मात्रा में वर्तमान रहते हैं। ज्वालामुखी से निकलने के बाद गैसें वायुमण्डल में विलीन हो जाती हैं, अतः ज्वालामुखी पर उनका कोई खास  प्रभाव नहीं पड़ता है। किन्तु ये गैसें अत्यन्त क्रियाशील और ऊर्जापूर्ण होती हैं और इनका तापमान ऊँचा होता है, और संभव है कि पृथ्वी के आन्तरिक भागों (mantle) से इन अति ऊर्जापूर्ण गैसों का ऊपर उठना ज्वालामुखी उद्गार का एक मुख्य कारण है।

ज्वालामुखीय उद्गार के प्रकार

(Types of Volcanic Eruption)

लावा के बाहर निकलने की विधि के अनुसार ज्वालामुखीय उद्गारों के दो प्रधान भेद किय जाते हैं-(क) केन्द्रीय उद्गार (Central Eruption) तथा (ख) विदर उद्गार (Fissure Eruption)।

केन्द्रीय उद्गार (Central Eruption)

इसमें उद्गार एक कनद्रीय दिद्र या मुखद्वारा होता है। केन्द्रीय मुख से चट्टानी टुकड़े, राख, लैपिली तथा तरल लावा कम या अधिक विस्फोट के साथ निकलते हैं और मुख के चारों ओर जमा हो जाते हैं। इसमें ज्वालामुखीय उद्गार की क्रिया एक पाइपनुमा नली में केन्द्रत रहती है, और उद्गार के पश्चात ‘शंकु और क्रेटर संरचना’ (Cone and Crater Structure) देखने को मिलती है। इसका एक उत्तम उदाहरण इक्वेडर स्थित कोटोपैक्सी ज्वालामुखी है।

केन्द्रीय उद्गार के प्रकार (Types of Central Eruption)

उद्गार की प्रकृति और तीव्रता एंव निस्सृत पदार्थों की विभिन्नता के आधार पर, केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी के निम्नलिखित पाँच प्रकार के हैं।

(क) हवायन प्रकार के ज्वालामुखी (Hawaiian Type)- इसमें विस्फोटक क्रिया कम होती है और उद्गार शान्त ढंग से होता है गैसों की तीव्रता कम हाती है और लावा बेसाल्ट प्रकार का पतला होता है। इस कारण गैसें लावा से अलग होकर करीब-करीब शान्तिपूर्वक निकलती हैं, और लावा शांतिपूर्ण ढंग से क्रेटर से अथवा पार्श्वीय दरारों से निकलता है।

ये लावा अंश खिँच कर लम्बे चमकीले धागे की तरह हो जाते हैं जिन्हें लोग हवाई द्वीप में ‘पेले के बाल’ (Pele’s hair) की संज्ञा देते हैं, क्योंकि हवाई द्वीप की अग्निदेवी का नाम पेले है। इस प्रकार का उद्गार विशेष रूप से हवाई द्वीप में होता हैं इसे लिए इसे हवायन प्रकार के ज्वालामुखी कहा जाता है।

(ख) स्ट्रौमबोलियन प्रकार के ज्वालामुखी (Strombolian Type)- इस प्रकार के ज्वालाखी में हवायन प्रकार की तुलना में बेसाल्टिक लावा कम पतला होता है, और गैसें मामूली विस्फोटक क्रिया द्वारा लगातार या रूक-रूक कर निकलती हैं। अतः विस्फोट साधारण होता है, और तरल लावा के अतिरिक्त कुछ विखंडित पदार्थ भी निकलते हैं, और अवस्कर (Scoriae) तथा बम का भी निर्माण होता है। न हवायन और न स्ट्रॉमबोलियन प्रकार के ज्वालामुखी में काले धुँआ के बादल पाये जाते हैं। भूमध्यसागर में सिसलीद्वीप के उत्तर स्थित लिपरी द्वीप समूह में स्ट्रॉमबोली (Stromboli) एक द्वीप है जहाँ इस प्रकार का उद्गार पाया गया है। इसमें अक्सर रूक-रूक कर कुछ मिनटों से एक घंटे तक के अन्तर पर उद्गार होता है।

(ग) बलकेनियन प्रकार के ज्वालामुखी (Vulcanian Type)- इस प्रकार के ज्वालामुखी का भी नामकरण लिपरी द्वीप समूह स्थित वलकैनो (Vulcano) नामक ज्वालामुखी के आधार पर किया गया है। इसमें लावा इतना गाढ़ा और चिपचिपा (Viscous) होता है कि हवा के सम्पर्क में आने पर यह तरल नहीं पाता है और दो उद्गारों के बीच यह क्रेटर में जम कर उसके मुंह को बन्द कर देता है। इससे गैसों का मार्ग रूक जाता है, और फिर जब गैसें अधिक मात्रा में जमा हो जाती हैं तो वे तीव्रता से जमे हुए लावा के अवरोध को तोड़कर विस्फोट के साथ निकलती हैं। इसमें सभी आकार के विखंडित पदार्थ निकलते हैं जिसमें बड़ी मात्रा में ज्वालामुखीय राख और धूल पाये जाते हैं। राख और धूल से भरे गैस विशाल काले बादलों के रूप में ऊँचाई तक उठते हैं जो देखने में फूलगोभी की शक्ल के लगते हैं। उद्गार से निकली राखें दूरी तक हवा द्वारा फैल जाती हैं। इनडोनिशिया स्थित क्राकातोआ द्वीप में 1883 ई0 में पहले इसी प्रकार का उद्भेदन हुआ था और बाद में वेसुवियन प्रकार का।

(घ) वेसुवियन प्रकार के ज्वालामुखी (Vesuvian Type)- इन प्रकार के ज्वालामुखी में गैसों की तीव्रता के कारण लावा भयानक विस्फोट के साथ बड़े आवेग से निकलता है। इसमें पहले लावा पाश्चीयय दरारो से निकलता है, किन्तु गैसें मुख्य दरार में जमा होती रहती हैं। थोड़ा लावा निकल जाने के कारण ऊपर का दबाव कम हो जाता है, और तब तीव्र गैसों के प्रभाव से लावा विस्फोट के साथ वेग से और फुलगोभीनुमा बादल बनाते हुए निकलता है। ये बादल बहुत ऊँचाई तक जाते हैं, और रात में बहुत ही चमकीले और ज्यातिर्मय होते हैं और उनसे दूर तक राखों की वर्षा होती है। क्राकातोआ के सन् 1883 उद्भेदन में इस प्रकार का बादल वायुमण्डल में 50 मील की ऊंचाई तक उठ गया था।

(ड) पेलियन प्रकार के ज्वलामुखी (Pelean Type)- इस प्रकार के ज्वालामुखी में लावा अत्ययन्त चिपचिपा (Viscous) और उद्गार अति विस्फोटक होता है। उद्गार के समय क्रेटर सघन लावा के जम जाने से बन्द हो जाता है और वहाँ डोम का निर्माण होता है। फिर कुछ देर बाद अत्यन्त दबाव वाली गैसें अवरोध के नीच से या पर्वतीय ढाल से तोड़ कर निकलती हैं और गैस युक्त अत्यन्त गर्म और सघन लावा, विखंडित पदार्थ और राख सभी मिश्रित रूप में ढाल के सहारे एक एवलान्च (avalanche) की तरह नीचे बहने लगते हैं जिसे ‘nuees ardentes’ अर्थात् जलते बादल (glowing clouds) कहते हैं।’ या बहुत ही गतिशील होता है,

ज्वालामुखीय शंकु की आकृतियाँ और प्रकार

(Forms and types of Volcanic Cones)

ज्वालामुखी द्वारा निर्तित शँकु (Cone) की रचना और आकृति उससे निकले हुए पदार्थों पर निर्भर हैं। शंकु ठोस चट्टानों की टुकड़ों, लावा अथवा दोनों द्वारा निर्मित हो सकता है लावा एसिड अथवा बेसिक हो सकता है, और इसके अनुसार शंकु की आकृति में भिन्नता होती है। शंकु की आकृति में भिन्नता के आधार पर चार प्रकार की ज्वालामुखी आकृतियाँ से पहचानी जा सकती हैं:- (क) एसिड डोम्स (Acid Domes), (ख) बेसाल्ट डोम अथवा शील्ड ज्वालामुखी (Basalt domes or Shield Volcanoes), (ग) राख या सिनडर शंकु (Ash or Cinder cones) और (घ) मिश्रित या स्तरित ज्वालामुखी (Composite or Strato-Volcanoes)

ज्वालामुखी आकृतियाँ किस प्रकार की होंगी यह मुख्यताः लावा या मैग्मा की चिपचिपाहट या श्यानता (Viscosity of lava) पर निर्भर करता है क्योंकि श्यानता उद्गार के प्रकार तथा उद्गार से उत्पन्न पदार्थों दोनों को निर्धारित करती है। सबसे पहले हम बेसाल्ट लावा द्वारा निर्मित  आकृतियों का अध्ययन करेंगे जो सबसे कम चिपचिपा है और आसानी से दूर तक बह जाता हैं इसे बाद ऐन्डिसाइट लावा द्वारा निर्मित आकृतिया का अध्ययन करेंगे। ऐन्डिसाइट लावा अपेक्षाकृत अधिक चिपचिपा है और इससे सिलिका की मात्रा बीच की और मुख्यतः विस्फोटक उद्गारों में मिलता हैं अन्त में हम अत्यन्त अम्लीय लावा (Extremely acid), इग्निमब्राडट (lgnimibrite) से बनी आकृतियों को लेंगे। इग्निमब्राइट सबसे अधिक चिपचिपा लावा है। जिसमे सिलिका की मात्रा अधिक होती है।

चित्र: कुछ ज्वालामुखीय आकृतियाँ 1. क्रेटर में स्थित शंकु, 2. मिश्रित जलामुखी . 3. काल्डेरा 4. क्रेटर झील।

बेसाल्ट लावा द्वारा निर्मित आकृतियाँ :

गुम्बद शील्ड ज्वालामुखी तथा लावा पठार

(Basaltic Lava forms: Doms shield volcanoes and Lava Plateous)

बेसाल्ट गुम्बद अथवा शील्ड ज्वालामुखी (Basaltic Domes or Shield Volcanoes) – बेसाल्ट बेसिक लावा है जो अत्यन्त तरल होता है। यह तेजी से बहता है और जमने से पहले बहुत दूर तक वह कर फैल जाता है। इससे गैस इतनी तेजी से निकलती है कि विस्फोट कार्य गौण हो जाता है। विस्फोटक नहीं होने के कारण इसमें चट्टानों के टुकड़े तथा राख नहीं पाये जाते है। ऐसी दशा में ज्वालामुखीय निक्षेप पूर्णतः लावा का होता है जो धारातल को पतली चादर की तरह ढक लेता है। इस तरह के बार-बार जमाव से विस्तृत और चपटे गुम्बद का निर्माण होता है जिसकी ढाल बहुत धीमी और ऊँचाई कम होती है और जो लगभग पूर्णतः लावा से बना होता है। इन्हें बेसाल्ट डोम अथवा शील्ड ज्वालामुखी कहते हैं। बेसाल्ट डोम और शील्ड ज्वालामुखी में केवल आकार का अन्तर होता है। छोटे आकार की आकृति को बेसाल्ट गुम्बद और बड़े आकार की आकृति को शील्ड ज्वालामुखी कहते हैं। इनका निर्माण स्थानिक निकास नली (localize Vents) से उत्तरोतर लावा प्रवाह के बार-बार जमाव से होता है।

बेसाल्ट पठार और मैदान : हवाई द्वीप के बेसाल्ट गुम्बदों से बहुत मिलता-जुलता बेसाल्ट पठार हैं। विदर उदगारों में बेसाल्ट लावा एक केन्द्रीय छिद्र से नहीं निकल कर, दरारों से होकर बिना विस्फोट क्रिया के शांतिपूर्वक निकलता है। कभी- कभी लावा पूरे दरारों से नहीं निकलकर, दरार पर कई स्थानों से विभिन्न स्त्रोतों से निकलता है। उद्गार बड़ी मात्रा में होता है और लावा बड़े क्षेत्र में फैलकर हजारों फीट मोटे तह में जमा होकर पठार बनाता है।

एन्डिसाइट ज्वालामुखी आकृतियाँ 

जहाँ बेसाल्ट लावा बेसाल्ट पठारों और उनके साहचर्य में गुम्बदों तथा टीलों का निर्माण करता है जो लगभग पूर्णतः लावा द्वारा निर्मित है और जिनमें चट्टानी ढुकड़ों का अभाव होता है, वहाँ एन्डिसाइट द्वारा निर्मित भूदृश्य में विशाल शंकुओं और शंकु समूहों (Great cones and cone clusters) का निर्माण होता है संसार के विशाल ज्वालामुखीय पर्वत मुख्यतः एन्डिसाइट से बने शंकु हैं जो या तो राख शंकु हैं या स्तरित ज्वालामुखी।

(1) राख या लिन्डर शँकु (Ash or Cinder cones) : इस प्रकार के शंकु का निर्माण विस्फोटक उद्गार की दशा में ज्वालामुखी से निकले लावा के साथ चट्टानी टुकड़ों, लैपिली और राख के जमा होने से होता है। छिद्र के ठीक चारों ओर ये पाइरोक्लास्टिक पदार्थ जमा होते हैं, और बाहर की ओर इनका जमाव कम होता जाता है। इस प्रकार से बना हुआ ज्वालामुखी पर्वत शंकु-रूप (conical) होता है। उत्तरोत्तर होने वाले उद्गारों से शंकु के पाश्वों पर राख का निक्षेप तह पर तह होता जाता है और ये तहें बाहर की ओर ढालुआं होती जाती हैं। किन्तु क्रेटर में राख अन्दर की ओर गिरती है इसलिए यहाँ निक्षेप की तहें अन्दर की ओर ढालुआँ होती हैं। इस प्रकार निर्मित राख या सिन्डर शंकु आकार में पूर्ण शँकु होता है।

(2) मिश्रित या स्तरित ज्वालामुखी (Composite or Streto Volcanice) : संसार के अधिकांश बड़े ज्वालामुखी पर्वत मिश्रित ज्वालामुखी हैं, जैसे, जापान में फ्पूजीयामा, इटली में वेसुवियन, मेक्सिको में पोपोकटेपटल, संयुक्त राज्य अमेरिका में शास्ता, युक्वेडर में कोटोपैक्सी, फिलीपीन में मेयोन इत्यादि । इस प्रकार के ज्वालामुखी पर्वत में लावा तथा पायरोक्लास्टिक पदार्थ बारी-बारी से अनियमित तहों में पाये जाते हैं। इससे यह पता चलता है कि ज्वालामुखी कुछ समय तक विस्फोटक थे और दूसरे समय में लावा शान्तिपूर्वक प्रवाहित हुआ था। विकास की प्रारम्भिक अवस्था में इनकी आकृति लगभग शंकु के आकार की होती है जैसा कि साधारण राख ज्वालामुखी में होता किन्तु ज्यों-ज्यों ज्वालामुखी की ऊँचाई बढ़ती जाती है, लावा को केन्द्रीय नील के मुँह तक पहुँचने में कठिनाई होती है, औश्र क्रेटर के मुँह तक पहुँचने की अपेक्षा पहाड़ी के पावों से होकर उसके लिए निकलना अधिक आसान होता है। इसलिए बड़े-बड़े ज्वालामुखी में लावा पावय दरारों या छिद्रों से निकलता है और इस प्रकार सहायक शंकुओं (Subsidiary cones of Satellite or Parasitic Cones) का निर्माण होता है।

(3) अम्लीय गुम्बद (Acid Doms) : कभी-कभी जब ज्वालामुखी उद्गार विस्फोटक नहीं होता है और लावा शान्तिपूर्वक बाहर निकलता है, लावा बेसिक न होकर अम्लीय (Acid) हो सकता है।

यदि लावा अम्लीय (Acid) रहता हैं जिसमें सिलिका की मात्रा अधिक होती है, तो यह चिपचिपा (Viscous) और पेस्ट (Paste) की तरह होता है, और छिद्र से  अधिक दूरी तक नहीं बह सकता है। इसलिए गुम्बद बहुत उत्तल (Convex) होता है, इसके पार्श्व खड़े होते हैं और इसमें क्रेटर का कोई चिन्ह प्रायः नहीं रहता है। इसका आकार उल्टे हुए कटोरे की तरह होता है और इसे कपासी गुम्बद (Cosmodromes) कहते हैं (चित्र 46)। इसके उदाहरण मैडागास्कर के उत्तर रीयुनियन द्वीप (हिन्द महासागर) में तथा फ्राँस के ऑवर्न (Auvergne) में मिलते हैं। कभी-कभी यह लावा नली से बाहर निकलते ही क्रेटर में जम जाता है और तब क्रेटर में ही खड़ी ढाल के डोम का निर्माण होता है जिसे थोल्याड (Tholoids) या प्लग डोम (Plug Domes or Volcanic Necks) कहा जाता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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