भूगोल / Geography

भारत में चीनी उद्योग | भारत में चीनी उद्योग के स्थानीकरण के कारक | भारत में चीनी उद्योग का ऐतिहासिक विकास | भारतीय चीनी उद्योग की समस्याएँ

भारत में चीनी उद्योग | भारत में चीनी उद्योग के स्थानीकरण के कारक | भारत में चीनी उद्योग का ऐतिहासिक विकास | भारतीय चीनी उद्योग की समस्याएँ | Sugar Industry in India in Hindi | Factors for Localization of Sugar Industry in India in Hindi | Historical Development of Sugar Industry in India in Hindi | Problems of Indian Sugar Industry in Hindi

भारत में चीनी उद्योग

चीनी भारतरीय आहार का एक महत्वपूर्ण मद है। भारत में वैदिक काल से ही गुड़ बनाने का प्रचलन रहा है तथा अथर्ववेद, कौटिल्य के ‘अर्थाशास्त्र’ तथा तथा मेगस्थनीज के लेखों (300 ई०पू०) में चीनी के अनेक विवरण मिलते हैं। खंडसारी उद्योग देश में आज भी प्रचलित है।

वर्तमान समय में भारत विश्व का अग्रणी चीनी उत्पादक देश है। यह उद्योग 3.6 लाख श्रमिकों को रोजगार प्रदान करता है तथा 25 मिलियन गन्ने के कृषकों का भरण-पोषण करता है। शीरा तथा खोई जैसे इसके उपजात पदार्थ अनेक सहायक उद्योगों को प्रश्रय देते हैं।

भारत में चीनी उद्योग का ऐतिहासिक विकास-

यद्यपि भारत गन्ने का जन्म स्थान है तथा घरेलू उपभोग के लिये बहुत प्राचीन काल से गुड़ तथा खंडसारी बनाता आ रहा है, परिष्कृत चीनी उद्योग बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में विकसित हुआ, जब ब्रिटिश उद्यमकर्त्ताओं ने उत्तर पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में चीनी के कारखाने लगाने के सफल प्रयास किये। उद्योग की प्रगति बहुत धीमी रही। 1919-20 में देश में केवल 18 चीनी के कारखाने थे। 1931 में चीनी के आयात पर तटकर शुल्क लगाने कसे उद्योग को प्रोत्साहन मिला। परिणामतः कारखानों की संख्या 1931 में 32 से बढ़कर 1937 में 137 हो गयी तथा उत्पादन 1.6 लाख टन से बढ़कर 10 लाख टन हो गया।

1950-51 में देश में 139 चीनी के कारखाने थे जिनकी उत्पादन क्षमता 11.34 लाख टन थी। नियोजन काल में उद्योग ने तीव्र प्रगति की तथा 1998 में कारखानों की संख्या बढ़कर 435 हो गयी तथा 1998-99 में चीनी का उत्पादन 15.52 लाख टन हो गया।

स्थानीयकरण एवं वितरण-

चीनी उद्योग प्रधानतः कच्चे माल पर आधारित उद्योग है। गन्ना एक भारी, स्थूल तथा भार-हानि वाला पदार्थ है, जिसे काटने के बाद थोड़ी अवधि ही प्रसंस्कृत करने की आवश्यकता होती है। फसल पकने के बाद गन्ने की मिठास घटने लगती है। कच्चे माल का परिवहन भी एक महत्वपूर्ण कारक है। अधिकांश गन्ना कृषकों द्वारा कारखानों तक बैल-गाड़ियों तथा भैंसा बुग्गियों में पहुँचाया जाता है। इसके अतिरिक्त ट्रकों तथा ट्रैक्टर ट्रॉलियों द्वारा भी गन्ने का परिवहन किया जाता है। अतएव गन्ना संग्रहण केंद्र कारखानों से 50 किमी के अंदर अवस्थित होते हैं।

चीनी के कारखाने उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात एवं खबिहार के गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में सघन रूप से संकेंद्रित हैं। ये सात राज्य मिलकर देश की 90 प्रतिशत चीनी का उत्पादन करते हैं।

महाराष्ट्र हाल ही में चीनी का 35.7 प्रतिशत राष्ट्रीय उत्पादन करके देश का वृहत्तम चीनी उत्पादक राज्य बनकर उभरा है। राज्य में चीनी के 104 कारखानें हैं जिनमें से 87 सहकारी क्षेत्र में हैं। राज्य में चीनी की अधिकतम रिकवरी (11 प्रतिशत तक) दर्ज होती है। राज्य में गन्ना पेराई का सत्र देश में सबसे लंबा होता है। अहमद नगर चीनी उत्पादन का अग्रणी जिला है, इसके बाद क्रमशः कोल्हापुर, शोलापुर, पुणे, सतारा, सांगली, नासिक, औरंगाबाद आदि का स्थान है। अधिकांश कारखाने बड़े आकार के हैं तथा पेराई सत्र 140 से अधिक दिनों तक चलता है।

तमिलनाडु में चीनी के 30 कारखाने हैं जो देश का 9.7 प्रतिशत चीनी उत्पादन करते हैं। राज्य में गन्ने की प्रति हैक्टेयर उपज अधिक होती है, गले में मिठास भी अधिक होती है तथा पेराई सत्र भी लंबा होता है जिससे कारखानों में अधिक चीनी उत्पादन होता है। अधिकांश चीनी के कारखाने कोयम्बटूर, तिरूचिरापल्ली, कुद्दलौर, रामनाथपुरम, चिंगलपुर तथा वैल्लोर में अवस्थित हैं।

कर्नाटक में 28 कारखाने तथा देश का 8.7 प्रतिशत चीनी का उत्पादन पाया जाता है, इस प्रकार यह देश का चौथा बड़ा चीनी उत्पादक राज्य है। बेलग्राम, माण्डया, बेलारी, शिमोगा, चित्रदुर्ग तथा बीजापुर चीनी उत्पादन के लिये महत्वपूर्ण हैं।

आंध्र प्रदेश में चीनी के 33 कारखाने हैं जो अधिकांशतः हैदराबाद, विजयवाड़ा, हास्पेट, निजामाबाद, काकीनाड़ा, मेडक, चित्तूर, श्रीकाकुलम आदि में अवस्थित हैं। राज्य में देश का 6.5 प्रतिशत चीनी उत्पादन होता है।

उत्पादन

चीनी एक प्रमुख उपभोक्ता वस्तु है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण इसकी माँग बढ़ने के कारण उत्पादन में भी वृद्धि होती गयी, जैसा कि तालिका में प्रदर्शित है-

तालिका : भारत में चीनी उत्पादन की प्रगति (मिलियन टन)

1950-51

1960-61

1970-71

1980-81

1990-91

1998-99

1.13

3.02

3.74

5.15

12.04

15.52

स्रोत- (Economic Survey) 2004-05

व्यापार

चीनी का आंतरिक व्यापार सरकार की दोहरी मूल्य व्यवस्था द्वारा नियमित होता है। कारखानों के कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत एक निश्चित मूल्य पर ‘लेवी’ के रूप में ले लेती है। तथा शेष 60 प्रतिशत चीनी खुले बाजार में अधिक मूल्य पर बिकती है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान ऐसे राज्य हैं जहाँ अधिशेष (Surplus) उत्पादन होता है।

सामान्य वर्षों में भारत कुछ चीनी संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, इंडोनेशिया, मलेशिया, ईरान, श्रीलंका, मिस्र, केन्या, वियतनाम, सूडान आदि को निर्यात करता है।

चीनी तथा शीरे के निर्यात की उपनतियाँ तालिका में प्रदर्शित हैं-

तालिका : भारत के चीनी तथा शीरे के निर्यात की उपनतियाँ (करोड़ रूपये)

1960-61

1970-71

1980-81

1990-91

2000-01

2001-02

2002-03

2003-04

30.0

29.0

40.0

38.0

511.0

1,782.0

1,814.0

1,2350

स्रोत- (Economic Survey) 2002-05

भारतीय चीनी उद्योग की समस्याएँ-

भारतीय चीनी उद्योग निम्नलिखित समस्याओं से ग्रस्त है-

(i) भारत में गन्ना उत्पादन के लगभग आधे भाग का गुड़ तथा खंडसारी उद्यारेगों में अपवर्तन हो जाता है जिससे चीनी उद्योग के लिये कच्चे माल की कमी हो जाती है। उत्तर प्रदेश में यह समस्या अधिक विकट है।

(ii) भारत में गन्ने की प्रति हैक्टेयर उपज (68 टन), पीरू (171 टन), जिम्बांबे (100 टन) तथा हवाई (173 टन) की अपेक्षा बहुत कम है। देश के अंदर भी प्रति हैक्टेयर उपज प्रायद्वीपीय प्रदेश (जैसे तमिलनाडु में 111 टन/हैक्टेयर) में उत्तरी मैदान (उत्तर प्रदेश 61 टन/हैक्टेयर, पंजाब 57 टन/हैक्टेयर) की अपेक्षा अधिक है।

(iii) अधिकांश कारखाने पुराने हैं जो घिसी-पिटी मशीनरी का प्रयोग करते हैं। प्रबंधन एवं श्रमिकों की समस्याएँ स्थिति को बदतर बनाती है जिससे कारखाने अनार्थिक एवं बीमार हो जाते हैं।

(iv) चीनी उद्योग राजनीति रूप से अति संवेदनशील क्षेत्र है। सरकार की दोषपूर्ण चीनी- नीति जो नियंत्रित मूल्य एवं आवश्यक वसूली पर आधारित हैं, उद्यमकर्ताओं को चीनी उद्योग में धन निवेश करने से इतोत्साहित करती है। इस उद्योग में लाभ की गुंजाइश वैसे भी कम है।

(v) चीनी के कारखानों को खोई, शीरे जैसे उपजात पदार्थों के निस्तारण की भी समस्या झेलनी पड़ती है।

(vi) चीनी प्राविधिकी में चीनी की उत्तमता बढ़ाने, उत्पादन में वृद्धि करने तथा उत्पादन लागत कम करने संबंधी शोधों की कमी है।

संभावनाएँ-

चीनी की वर्तमान दोहरी मूल्य नीति पर पुनर्विचार करने, कारखानों के आधुनिकीकरण, सरकार द्वारा बीमा कारखानों का अधिग्रहण, उत्पादन लागत कम करने, कारखाना मालिकों द्वारा गन्ने की कैप्टिव खेती करने तथा गन्ने के उपजात पदार्थों को कागज, एल्कोहोल तथा रसायन उद्योगों में उपयोग करने वाले समेकित कारखानों की स्थापना करने की आवश्यकता है।  तमिलनाडु में अनेक इकाइयों ने डिस्टिलरी तथा एल्कोहोल आधारित रसायनों के उत्पादन की इकाइयाँ स्थापित की हैं। उत्तर प्रदेश तथा उड़ीसा में भी ऐसे प्रयास किये जा रहे हैं। चीनी उद्योग का भविष्य उत्पादन पर निर्भर करता है। इंडियन शुगर मिल एसोसिएशन (ISMA) ने चीनी के पूर्ण विनियंत्रण की माँग की है। इससे छोटे आकार की अनार्थिक इकाइयाँ हतोत्साहित होंगी तथा पैमाने एवं स्पर्द्धा की अर्थव्यवस्था प्राप्त करने हेतु क्षमता को समेकित करने में सहायता मिलेगी, साथ ही चीनी की मुक्त उपलब्धता भी होगी। सर्वोपरि, इससे गन्ने का गुड़ एवं खंडसारी इकाइयों में अपवर्तन नियंत्रित होगा, जो खोई में 40 प्रतिशत चीनी छोड़ देती है, जिसकी कुल मात्रा लगभग 1.45 मी0 टन होती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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