प्रथम विश्वयुद्ध के कारण | प्रथम विश्वयुद्ध के परिणाम | प्रथम विश्वयुद्ध की प्रमुख घटनाएँ
प्रथम विश्वयुद्ध के कारण | प्रथम विश्वयुद्ध के परिणाम | प्रथम विश्वयुद्ध की प्रमुख घटनाएँ
प्रथम विश्वयुद्ध मानव इतिहास की एक भयानक और विनाशकारी घटना थी। यूरोप के शक्तिशाली राष्ट्रों की स्वार्थपरता तथा साम्राज्यवादी भूख ने मानव जाति को युद्ध की भयानक आग में जलने के लिए विवश कर दिया। इस युद्ध में जर्मनी, ऑस्ट्रिया और टर्की एक पक्ष में थे तथा दूसरे पक्ष में इंग्लैण्ड, फ्रांस आदि देश थे।
प्रथम विश्वयुद्ध के कारण
प्रथम विश्वयुद्ध के लिए निम्न कारण प्रमुख रूप से उत्तरदायी थे-
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उग्र राष्ट्रीयता
प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व यूरोप में उग्र राष्ट्रीयता की भावनाएँ प्रबल हो चुकी थीं । इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि यूरोप के विभिन्न राष्ट्र अपने स्वार्थ और हित में इतने अन्धे हो गये कि वे एक-दूसरे से झगड़ने लगे। उन्होंने दूसरे देशों को लूटना, उन्हें परतन्त्र बनाना तथा उनका शोषण करना प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार की उम्र राष्ट्रीयता इंग्लैण्ड, स्पेन, पुर्तगाल, जर्मनी, इटली, बेल्जियम, हॉलैण्ड, फ्रांस आदि देशों में विकसित हुई। इसके परिणामस्वरूप विभिन्न राष्ट्रों के मध्य उत्पन्न पारस्परिक घृणा, तनाव, स्पर्द्धा, संघर्ष और द्वेष ने युद्ध की स्थिति उत्पन्न कर दी।
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आर्थिक साम्राज्यवाद
1890 ईo के बाद ब्रिटेन और जर्मनी के मध्य विकसित वैमनस्य का प्रमुख कारण आर्थिक साम्राज्यवाद था। जर्मनी की बनी हुई वस्तुएँ विदेशी व्यापार और मण्डियों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर रही थीं। इससे ब्रिटेन के व्यापार में बाधा उत्पन्न हुई। इस प्रकार इन देशों की औद्योगिक और व्यावसायिक उन्नति एक-दूसरे के लिए प्रतिस्पर्धा का कारण बन गयी। फलस्वरूप ब्रिटेन एवं जर्मनी के मध्य युद्ध भड़क उठा।
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राष्ट्रों की पारस्परिक शत्रुता
प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व जर्मनी अपनी मित्रता तुर्की से स्थापित कर रहा था और तुर्की की शत्रुता रूस से थी, अतः जर्मनी और रूस परस्पर शत्रु बन गये। इसी प्रकार रूस की शत्रुता ऑस्ट्रिया व हंगरी से भी थी। इन राष्ट्रों की इस पारस्परिक शत्रुता ने भी प्रथम विश्वयुद्ध को जन्म दिया।
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सैनिक गुटबन्दी
प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व जर्मनी ने ऑस्ट्रिया-हंगरी के साथ एक प्रतिरक्षात्मक सन्धि की थी। बाद में इंटली भी इसमें सम्मिलित हो गया । यह सन्धि ‘त्रिगुट सन्धि’ के नाम से प्रसिद्ध है। इन तीन राष्ट्रों का गुट बनने के परिणामस्वरूप ब्रिटेन, फ्रांस तथा रूस ने भी अपने मतभेदों को भुलाकर गुट का निर्माण किया। इस प्रकार यूरोप दो सैनिक गुटों में बँट गया। इन दोनों गुटों के बीच ही पहला विश्वयुद्ध हुआ।
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मोरक्को संकट
1905 ई0 में फ्रांस और जर्मनी के मध्य मोरक्को के प्रश्न पर युद्ध की सम्भावना हो गयी, किन्तु अल्जीसिराज सम्मेलन (1906 ई0) में इस प्रश्न को हल कर लेने से युद्ध रुक गया। 1907 ई0 और में पुनः भोरक्को संकट उत्पन्न हुआ। इंग्लैण्ड के हस्तक्षेप से युद्ध तो रुक गया, किन्तु जर्मनी और फ्रांस भावी युद्ध की तैयारियों में जुट गये।
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बाल्कन समस्या
बर्लिन की सन्धि (1878 ईo) के बाद जर्मनी का संरक्षण पाकर टर्की का सुल्तान बाल्कन प्रदेशों की ईसाई जनता पर भीषण अत्याचार करने लगा, जिससे बाल्कन की जनता ने संगठित होकर टर्की के शासन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। टर्की की दुर्बलता का लाभ उठाकर इटली ने ट्रिपोली पर अधिकार (1911 ईo) कर लिया। इससे उत्साहित होकर बाल्कन राज्यों ने 1912 ई0 में टकी पर आक्रमण कर दिया और टर्की को हराकर उसके अनेक प्रदेश छीन लिये। बाद में लूट के माल के विभाजन के प्रश्न पर बाल्कन राज्यों में परस्पर युद्ध (1913 ई०) हो गया। इस युद्ध में बल्गेरिया को पराजय का मुँह देखना पड़ा। इस बाल्कन युद्ध से सर्बिया और बल्गेरिया में शत्रुता उत्पन्न हो गयी और ऑस्ट्रिया; सर्बिया का शत्रु बन गया। अन्त में बाल्कन समस्या प्रथम विश्वयुद्ध को लाने में सहायक हुई।
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तात्कालिक कारण : सेराजेवो हत्याकाण्ड
अन्तर्राष्ट्रीय घटना-चक्र ने यूरोप को बारूद के ढेर पर बैठा दिया था। सेराजेवो हत्याकाण्ड ने इस बारूद में चिंगारी लगाकर महायुद्ध का विस्फोट कर दिया। 28 जून, 1914 की रात्रि में बोस्निया की राजधानी सेराजेवो में ऑस्ट्रिया के युवराज आर्क ड्यूक फ्रांसिस फर्डीनेण्ड तथा उसकी पत्नी को सर्बिया के कुछ आतंकवादियों ने बम फेंक कर मार डाला। ऑस्ट्रिया ने इस हत्याकाण्ड के लिए सर्बिया को दोषी ठहरा कर 28 जुलाई, 1914 ई0 को उसके विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। स्लाव जाति की रक्षा के लिए रूस ने सर्बिया का पक्ष लेकर ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध घोषित कर दिया। 1 अगस्त, 1914 ई0 को जर्मनी; ऑस्ट्रिया के पक्ष में और 3 अगस्त, 1914 ईo को फ्रांस तथा इंग्लैण्ड सर्बिया के पक्ष में युद्ध में कूद पड़े। इस प्रकार यूरोप में प्रथम विश्वयुद्ध आरम्भ हो गया।
प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामों का वर्णन
प्रथम विश्वयुद्ध बड़ा ही व्यापक तथा विनाशकारी था। इस युद्ध के निम्न परिणाम हुए-
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जन और धन की क्षति
इस महायुद्ध में जन और धन का अभूतपूर्व विनाश हुआ। इस युद्ध में मित्र राष्ट्रों के लगभग 50 लाख व्यक्ति मारे गये और एक करोड़ दस लाख व्यक्ति बुरी तरह घायल हुए। जर्मनी और उसके मित्र देशों के 80 लाख व्यक्ति मौत के मुँह में चले गये और 60 लाख व्यक्ति गम्भीर रूप से घायल हुए। इस युद्ध में दोनों पक्षों के लगभग 80 लाख व्यक्ति लापता हो गये।
इस युद्ध में इंग्लैण्ड को धन की भारी क्षति उठानी पड़ी। युद्ध के अन्त में इंग्लैण्ड का राष्ट्रीय ऋण 7,080 लाख पौण्ड से बढ़कर 74,350 लाख पौण्ड हो गया| फ्रांस का राष्ट्रीय ऋण 3,41,880 लाख फ्रैंक से बढ़कर 19,74,720 लाख फ्रेंक और जर्मनी का 50,000 लाख मार्क से बढ़कर 16,06,000 लाख मार्क हो गया। इस युद्ध के फलस्वरूप विश्व के लगभग सभी देश अमेरिका के कर्जदार हो गये। धन के अभूतपूर्व विनाश ने युरोपीय देशों के आर्थिक तन्त्र को भंग कर दिया। सम्पूर्ण विश्व में व्यापक आर्थिक मन्दी और मुद्रा अवमूल्यन व्याप्त हो गया। इससे पूर्व विश्व के इतिहास में इतना विनाशकारी युद्ध कभी नहीं हुआ था।
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युद्ध की व्यापकता
प्रथम महायुद्ध विश्वव्यापी था। यह युद्ध यूरोप और एशिया महाद्वीपों में लडा गया और इसमें विश्व के लगभग 36 देशों ने भाग लिया। विश्व की 87% जनता ने इस युद्ध में अप्रत्यक्ष रूप से भाग लिया लगभग 64 करोड़ व्यक्तियों ने इस युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया। इस युद्ध में विशाल टैंकों, विषैली गैसों, भारी मशीनगनों, हवाई जहाजों तथा पनडुब्बियों आदि का बहुतायत से प्रयोग किया गया।
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निरंकुश राज्यों का अन्त
प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व जर्मनी की अनेक छोटी-छोटी रियासतों जो निरंकुश राजाओं के अधिकार में थीं, का अन्त हो गया और वे स्वतन्त्र हो गयीं| ऑस्ट्रिया-हंगरी का प्राचीन राजतन्त्र भी समाप्त हो गया। बल्गेरिया का राजतन्त्र भी भंग हो गया रूस में जारशाही की तानाशाही के स्थान पर साम्यवादी तानाशाही की स्थापना हो गयी
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गणराज्यों की स्थापना
प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप जर्मनी, ऑस्ट्रिया, फिनलैण्ड, पोलैण्ड, टर्की, यूक्रेनिया, यूगोस्लाविया, लिथूआनिया, लैटेविया आदि राज्यों में गणतान्त्रिक शासन की स्थापना हो गयी।
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राष्ट्रीयता की विजय
यूरोप के राजनीतिज्ञों ने अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन द्वारा प्रतिपादित राष्ट्रीयता पर आधारित आत्मनिर्णय सिद्धान्त के आधार पर यूरोप में 8 राष्ट्रीय राज्यों का निर्माण किया, किन्तु इससे चेकोस्लोवाकिया, जर्मनी, आस्ट्रिया व हंगरी में रहने वाली विभिन्न जातियों में भीषण असन्तोष व्याप्त हो गया।
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तानाशाही का उदय
प्रथम विश्वयुद्ध के कारण यूरोप में तानाशाही की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिला, जिसके फलस्वरूप रूस में साम्यवादी, जर्मनी में नाजीवादी और इटली में फाँसीबादी तानाशाही की स्थापना हुई।
- ‘लीग ऑव नेशन्स’ की स्थापना
प्रथम विश्वयुद्ध के भयानक और अपार विनाश को देखकर संसार के सभी देश भयभीत हो गये अतः अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन के 14 सिद्धान्तों के आधार पर भावी युद्धों को रोकने के लिए ‘लीग ऑव नेशन्स’ नामक एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना की गयी
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सामाजिक परिणाम
इस युद्ध के अनेक सामाजिक परिणाम भी निकले । युद्ध काल में अनिवार्य सैनिक सेवा लागू होने के कारण बहुत से व्यक्तियों को युद्ध में भाग लेना पड़ा। अतः उनके स्थान पर महिलाएँ गृहकार्य छोड़कर कल-कारखानों तथा कार्यालयों आदि में कार्य करने लगीं। इससे महिलाओं की स्वतन्त्रता और अधिकारों में वृद्धि हुई। समाज में अनेक कुरीतियों का प्रसार भी हुआ। शिक्षा की प्रगति रुक़ गयी, किन्तु विज्ञान के क्षेत्र में नवीन आविष्कार जारी रहे।
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समाजवाद का विकास
प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप यूरोप में समाजवाद का तेजी के साथ विकास होने लगा सभी देशों की सरकारें उद्योग-धन्धों पर नियन्त्रण लगाने लगीं और श्रमिकों को सुविधाएँ देने लगी। समाजवाद के विकास के कारण कुछ आन्दोलनों का भी प्रादुर्भाव हुआ।
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धार्मिक परिणाम
इस युद्ध के फलस्वरूप यूरोप के ईसाई अपने धर्म में आस्थाहीन हो गये। साथ ही रूस में नास्तिकवाद का विकास हुआ।
प्रथम विश्वयुद्ध की प्रमुख घटनाओं का वर्णन
प्रथम विश्वयुद्ध 1914 ई० में आरम्भ हुआ। ऑस्ट्रिया के राजकुमार आर्क ड्यूक फर्डीनेण्ड की बोस्निया की राजधानी सिराजेवो में हत्या कर दी गयी थी। आर्क ड्यूक फ्रांसिस फर्डीनेण्ड ऑस्ट्रिया- हंगरी के राजसिंहासन का उत्तराधिकारी था। ऑस्ट्रिया ने इस हत्या के लिए सर्बिया को उत्तरदायी ठहराया और उसे युद्ध का अल्टीमेटम दे दिया। सर्बिया ने अल्टीमेटम की माँगो में से एक को न माना, क्योंकि वह माँग सर्विया की पूर्ण स्वतन्त्रता के विरुद्ध थी। अतः ऑस्ट्रिया ने 28 जुलाई , 1914 को सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। रूस ने सर्बिया को अपना पूर्ण समर्थन देने का वचन दिया। इसी बीच जर्मनी ने 1 अगस्त को रूस के विरुद्ध तथा 3 अगस्त को फ्रांस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। जर्मन सैनिक फ्रांस पर दबाव डालने के उद्देश्य से 4 अगस्त को बेल्जियम में दाखिल हो गये। उसी दिन ब्रिटेन ने जर्मनी के विरुद्ध लड़ाई की घोषणा कर दी। कई अन्य देश भी लड़ाई के मैदान में उतर आये। सुदूर पूर्व स्थित जर्मन उपनिवेशों पर अधिकार जमाने के उद्देश्य से जापान ने जर्मनी के विरुद्ध लड़ाई छेड़ दी। तुकी और बुल्गारिया जर्मनी की ओर से लड़ाई में शामिल हो गये। त्रिगुट का सदस्य होते हुए भी इटली कुछ समय तक तटस्थ रहा, परन्तु सन् 1915 ई० में वह भी जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी के विरुद्ध लड़ाई में सम्मिलित हो गया| इस प्रकार एक छोटी-सी घटना ने विश्वयुद्ध का रूप धारण कर लिया।
घटनाएँ- प्रथम विश्वयुद्ध की प्रमुख घटनाएँ निम्न थीं-
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जर्मनी का फ्रांस तथा रूस के विरुद्ध संघर्ष
जर्मनी को आशा थी कि वह बेल्जियम के मार्ग से फ्रांस पर अचानक आक्रमण करके उसे कुछ ही समय में पराजित कर देगा और फिर रूस से निपट लेगा। कुछ समय तक उसकी यह योजना सफल होती हुई दिखाई दी। जर्मन सैनिक पेरिस से केवल 20 किमी दूर ही रह गये थे कि रूस ने जर्मनी और ऑस्ट्रिया पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिये। इसलिए कुछ जर्मन सैनिकों को पूर्वी मोर्चे पर भेजना पड़ा। परिणामस्वरूप जर्मनी का फ्रांस की ओर विस्तार रुक गया और युद्ध में एक लम्बे समय के लिए गतिरोध पैदा हो गया; परन्तु इसी बीच युद्ध संसार के कई अन्य भागों में फैल गया। परिणामस्वरूप पश्चिम एशिया, अफ्रीका और सुदूर पूर्व में लड़ाइयाँ आरम्भ हो गयीं।
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नये युद्ध शस्त्रों का प्रयोग
अब एक नये प्रकार का युद्ध आरम्भ हुआ। युद्धरत सेनाओं ने खाइयाँ खोदीं जिनकी सहायता से वे एक-दूसरे पर धावा बोलने लगीं। इससे पहले सेनाएँ खुले मैदान में लड़ती थीं। अनेक प्रकार के नये हथियार भी प्रयोग में लाये गये। इसी तरह के दो हथियार मशीनगन और तरल-अग्नि (liquid fire) थे। युद्ध में गैर-सैनिक जनता को मारने के लिए पहली बार हवाई जहाजों का प्रयोग भी किया गया। अंग्रेजों ने टैंक का प्रयोग आरम्भ किया। बाद में यह एक प्रमुख हथियार बन गया। जर्मनी ने यू-नौका (U-boats) नामक पनडुब्बियों का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया। इन पनडुब्बियों की सहायता से उसने न केवल शत्रु जहाजों को, बल्कि ब्रिटिश बन्दरगाहों की ओर जा रहे तटस्थ देशों के जहाजों को भी नष्ट कर दिया। युद्ध में जहरीली गैस का प्रयोग भी किया गया।
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युद्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका का सम्मिलित होना
संयुक्त राज्य अमेरिका त्रिदेशीय सन्धि के देशों को हथियार तथा अन्य आवश्यक सामान दे रहा था। अमेरिकी जनता ब्रिटेन, फ्रांस और रूस के प्रति सहानुभूति रखती थी, परन्तु देश के आर्थिक हितों को देखते हुए अमेरिका युद्ध से तटस्थ रहा। 1915ई0 में जब जर्मनी की यू-नौकाओं ने अमेरिकी जहाजों को डुबो दिया, जिनमें नागरिकों को ले जाने वाले जहाज भी शामिल थे तब अमेरिका को जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करनी पड़ो। 6 अप्रैल, 1917 ईo को वह भी युद्ध में कूद पड़ा।
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रूस का युद्ध से हटना
1917 ई० में ही युद्ध की स्थिति में एक और महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। यह था रूस का युद्ध से हट जाना। रूसी क्रान्तिकारी आरम्भ से ही लड़ाई का विरोध करते आ रहे थे। लेनिन के नेतृत्व में उन्होंने युद्ध को क्रान्तिकारी युद्ध में बदलने का निर्णय लिया था। रूसी साम्राज्य को युद्ध में कई बार मुँह की खानी पड़ी थी। 6 लाख से भी अधिक रूसी सैनिक मारे जा चुके थे। अतः रूसी क्रान्ति के अगले ही दिन बोल्शेविक सरकार ने शान्ति-सम्बन्धी अज्ञाप्ति (Decree of Peace) जारी की। मार्च, 1918 ई० में रूस ने जर्मनी के साथ शान्ति सन्धि पर हस्ताक्षर किये। जर्मनी की सरकार को लगा कि रूसी सरकार युद्ध को जारी रखने की स्थिति में नहीं है। इसलिए जर्मनी ने रूस पर कठोर शर्त लाद दी, परन्तु रूस ने उन्हें स्वीकार कर लिया। त्रिदेशीय सन्धि में शामिल शक्तियाँ रूसी क्रान्ति और रूस के युद्ध से अलग होने के निर्णय के विरुद्ध थी। वे रूसी क्रान्ति के विरोधी तत्वों को पुनः उभारने का प्रयत्न करने लगीं। फलस्वरूप रूस में गृह युद्ध छिड़ गया, जो तीन वर्षों तक चलता रहा, परन्तु अन्त नहीं विदेशी शक्तियों तथा क्रान्तिकारी सरकार के विरुद्ध हथियार उठाने वाले रूसियों की पराजय हुई और गृह युद्ध समाप्त हो गया।
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