भारतीय त्योहार / Indian Festival

रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है | रक्षाबंधन का महत्व | रक्षाबंधन के दिन क्या करें और क्या न करें

रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है | रक्षाबंधन का महत्व | रक्षाबंधन के दिन क्या करें और क्या न करें

रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है ?

रक्षाबंधन रक्षाबंधन का तात्पर्य है रक्षा के लिए बंधन अर्थात जिसके हाथ पर रक्षा सूत्र (राखी) बांधी जाती है वह बंधन बांधने वाली की रक्षा के लिए वचनबद्ध हो जाता है। रक्षाबंधन एक पारंपरिक त्यौहार है जिसे कि भाई और बहन साथ मिलकर मनाते हैं। रक्षाबंधन हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण त्यौहार त्यौहार ही नहीं बल्कि संपूर्ण देश में एक विश्वास सूत्र के लिए विश्वास सूत्र की प्रथा का भी ज्ञान कराता है। यदि इस पर्व की बात करें तो यह पर्व दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है – रक्षा तथा बंधन अर्थात रक्षा बंधन। संस्कृत भाषा के अनुसार इस शब्द का मतलब है कि एक ऐसा बंधन जो कि बांधने वाले को सुरक्षा तथा या रक्षा प्रदान करता हो। यदि इसे सरल शब्दों में लिया जाए तो रक्षाबंधन का अर्थ है की रक्षा सूत्र जो रक्षा प्रदान करता है अर्थात एक डोर जो रक्षा करती है।

प्राचीन काल से रक्षा सूत्र बांधने की प्रथा के कारण बाद में यह पर्व रक्षाबंधन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह भाई बहनों के प्रेम व सौहार्द का सूचक भी है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बांधती हैं।

रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। त्योहार का आरंभ और प्रचलन अत्यंत प्राचीन है। यह त्यौहार हमारे देश में बड़ी धूमधाम व उल्लास से मनाया जाता है अपितु हिंदुओं की देखा देखी अन्य धर्मों व वर्गों के लोगों ने भी इस त्यौहार को अपनाना शुरू कर दिया है। ऐसा इसलिए है कि यह त्यौहार धर्म और संबंध की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। धर्म की दृष्टि से यह जहां गुरु शिष्य की परंपरा परस्पर नियम सिद्धांतों सहित उनके परस्पर धर्म को प्रतिपादित करने वाला है वही संबंध की दृष्टि से यह त्यौहार भाई-बहन के परस्पर संबंधों की गहराइयों को प्रकट करने वाला एक श्रेष्ठ त्यौहार है।

रक्षाबंधन त्यौहार मनाने का इतिहास

ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी इस त्यौहार की महानता है। मध्यकालीन भारत के मुगल कालीन शासन काल से भी इसका संबंध है।

आइए रक्षाबंधन से संबंधित कुछ कहानियों के बारे में जानते हैं-

रानी कर्णावती और हुमायूं की कहानी

एक ऐतिहासिक गाथा के अनुसार यह माना जाता है कि रानी कर्णावती और मुगल के शासक हुमायूं से संबंधित है यह रक्षाबंधन। ऐसा माना जाता है कि सन 1535 के लगभग रानी कर्णावती को यह लगने लगा कि उनका साम्राज्य गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के द्वारा आक्रमण में नहीं बचाया जा सकता तब उन्होंने हुमायूं को खत लिख कर उसके साथ एक राखी भेजी और एक बहन के नाते मदद मांगी।

ऐसा माना जाता है कि हुमायूं जो कि पहले चित्तौड़ का दुश्मन था वह दुश्मनी भूलकर रानी कर्णावती की मदद के लिए वहां आया। अर्थात इस कहानी के अनुसार भी राखी को रक्षा सूत्र की तरह माना गया।

द्रौपदी तथा कृष्ण की कहानी

महाभारत काल में द्रौपदी कृष्ण को स्वयं का भाई मानती थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार शिशुपाल का वध हो जाने के समय भगवान कृष्ण जी की तर्जनी उंगली कट गई थी जिसके फलस्वरूप द्रौपदी ने अपनी साड़ी के आंचल से उनकी जख्म पर पट्टी बांधी थी । उस दिन कृष्ण जी ने द्रोपदी से खुद के ऋणी होने को कहा और यह कहा कि वक्त आने पर वह यह ऋण स्वयं उतारेंगे।

ऐसा माना जाता है कि जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तब कृष्ण ने एक भाई का फर्ज निभाते हुए उनकी रक्षा की। यह कथा भी रक्षाबंधन के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

सिकंदर तथा राजा पूर्व की कहानी

एक ऐतिहासिक घटना के अनुसार यह माना जाता है कि सिकंदर की पत्नी ने राजा पोरस को एक राखी भेजी तथा उनसे अपने सुहाग की रक्षा के लिए वचन मांगा। वचन देने के फल स्वरुप राजा पोरस में युद्ध भूमि में अपनी कलाई पर बंधी राखी देखने के पश्चात सिकंदर को जान से नहीं मारा।

माता संतोषी की कहानी ऐसा

माना जाता है कि भगवान गणेश के 2 पुत्र शुभ और लाभ हुए। जिनके पास कोई बहन नहीं थी। उन्होने एक बहन को पाने की कमाना से भगवान गणेश से हठ की जिसमें की नारद मुनि ने भी हस्तकक्षेप किया। भगवान गणेश ने अनेकों याचिकाओं के बाद उन्हें माँ संतोषी का सृजन किया।

इस घटना के बाद से माँ संतोषी के साथ शुभ और लाभ ने रक्षाबंधन का त्योहार मानना प्रारम्भ किया।

भगवान विष्णु के वामन अवतार की कहानी

ऐसा माना जाता है की जब भगवान विष्णु अपने वामन अवतार मे थे तब वे असुरों के राजा बलि से उनके दान धर्म के कर्म से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा। राजा बलि ने विष्णु को उनके क्षीर सागर को छोड़ पाताल लोक मे बसने का वरदान मांगा। इससे विष्णु जी पाताललोक को चले गए।

इस पूरी कथा का ज्ञान होने के बाद माता लक्ष्मी बहुत चिंतित हुई तथा उन्होने एक गरीब स्त्री का रूप धारण कर राजा बलि को राखी बंधी तथा विष्णु जी को पाताललोक से वापस साथ ले जाने का वचन मांगा। इसी दिन से रक्षाबंध की शुरुवात मनी जाती है।

रक्षाबंधन कब बनाया जाता है

है। रक्षाबन्धन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनायां जाने के कारण श्रावणी भी कहलाता है। प्राचीन काल में स्वअध्याय के लिए यज्ञ और ऋषि मुनियों के लिए तर्पण कर्म करने के कारण इसका नाम ऋषि तर्पण भी पड़ा।

नवरात्र (Navaratri) शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कुष्माडा, स्कन्द माता, कात्यायनी. कालरात्री, महागौरी एवं सिद्ध दात्री मां भगवती के नौ रूप

रक्षाबंधन का महत्व

रक्षाबंधन का महत्व

रक्षाबंधन का महत्व

यदि संबंध की दृष्टि से देखा जाए तो इसका अनोखा महत्व है यह त्यौहार भाई-बहन के पररपर संबंधों की गहराई को प्रकट करने वाला एक श्रेष्ठ त्यौहार है। इस दिन बहन भाई के लिए मंगल कामना करती हुई उसे राखी (रक्षा-सूत्र) बांधती है। भाई उसे हर स्थिति से रक्षा करने का वचन देता है। इस प्रकार रक्षा-बंधन भाई-बहन के पावन स्नेह का त्यौहार है।

रक्षाबंधन सिर्फ भाई बहन टीके ही सीमित नहीं है भारत के समुद्री क्षेत्रों मेन इस दिन को एक अलग दिन के रूप मे मनाया जाता है है । वह रक्षाबंधन के दिन को नारियल पुर्णिमा भी कहा जाता है तथा वर्षा के देवता इन्द्र एवं समुदार के देवता वरुण की पुजा की जाती है। इस पुजा मे देवताओं की नारियल का भोग लगाया जाता है तथा सभी की शान्ति एवं खुशहाली की मंगल कामना की जाती है।

रक्षाबंधन के दिन क्या करें और क्या न करें

रक्षाबंधन के दिन क्या करें और क्या न करें

रक्षाबंधन के दिन क्या करें

  1. रक्षाबंधन के दिन सर्वप्रथम सूर्योदय से पहले से उठ के स्नान करें तथा साफ वस्त्रों को धारण करें।
  2. इसके पश्चात अपने इष्ट देव की पूजा करें तथा साथ ही साथ राखी की भी पूजा करें।
  3. राखी की पूजा करेने के पश्चात आप अपने किसी भी भगवान को एक राखी पहना दें।
  4. अब सभी बड़ों तथा पितरों का आशीर्वाद ग्रहण करें।
  5. अब नक्षत्र के अनुसार अपने भाई / बहन के साथ राखी बांधने / बँधवाने के लिए बैठ जाएँ।
  6. सर्वप्रथम भाई को तिलक लगाएँ, तिलक हेतु आप रोली , कुमकुम तथा हल्दी का प्रयोग चावल तथा दहि के साथ कर सकते हैं।
  7. अब भाई की आरती उतार ले तथा उसकी दाहिनी कलाई पे राखी बांधें।
  8. राखी बांधने के पश्चात आप भाई को मीठा इत्यादि खिला कर उनका मुख मीठा करें।
  9. अंत में भाई अपने बहनों के पैर छु कर आशीर्वाद लें।

रक्षाबंधन के दिन क्या न करें

  1. इस दिन किसी भी प्रकार का झूठ का न बोलें अपने भाई / बहन से।
  2. किसी भी प्रकार से मांस मदिरा का सेवन न करें।
  3. राखी नहाने के पश्चात ही बांधें तथा बंधवाए।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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