रेल परिवहन का महत्त्व | विश्व के प्रमुख रेलमार्गों का वर्णन
रेल परिवहन का महत्त्व | विश्व के प्रमुख रेलमार्गों का वर्णन
रेल परिवहन का महत्त्व
(Significance of Railways)
भारी सामानों तथा बड़ी संख्या में व्यक्तियों के परिवहन के लिए रेल परिवहन का उपयोग किया जाता है। स्थलीय भागों पर वर्तमान में माल की ढुलाई करने में रेल परिवहन अग्रणी रहा है। यह सड़क परिवहन की तुलना में सस्ता होता है तथा इसके द्वारा विभिन्न वस्तुओं व भारी सामान का पर्याप्त दूरी तक सुगमता से परिवहन कर लिया जाता है। सड़कों और नहरों के प्रयोग से उत्पन्न अनेक समस्याओं का निराकरण रेल परिवहन के माध्यम से किया जा सकता है। वर्तमान समय में चलने वाली आधुनिक रेलों की गति इतनी अधिक होती है कि उनमें सामान के परिवहन तथा मानव के आवागमन में सड़कमार्ग की तुलना में कम समय लगता है। रेलमार्गों के विद्युतीकरण ने रेल परिवहन को पूर्व की तुलना में और अधिक प्रभावी व आरामदायक बना दिया है। वर्तमान में शीघ्र खराब होने वाली विभिन्न वस्तुओं को बाजारों तक सड़कमार्गों की तुलना के माध्यम से भेजने को वरीयता प्रदान की जाती है। लम्बी-लम्बी दूरियों के स्थानों को जोड़ने में रेलमार्ग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। रेलमार्गों के विकास से किसी देश के औद्योगिकी विकास को पर्याप्त प्रोत्साहन मिलता है। सड़कमार्गों की तुलना में रेलमार्गों के रख-रखाव पर होने वाला व्यय कम होता है, लेकिन रेलमार्गों का विकास विषय उच्चावच वाले क्षेत्रों में बहुत कठिन होता है। यही कारण है कि विश्व के वलित पर्वतीय भागों में रेलमार्गों का सीमित विकास ही हो पाया है। भूतल परिवहन में रेलों का सर्वाधिक महत्त्व है। रेलमार्गों के वितरण में प्रत्येक महाद्वीप के देशों में बहुत अधिक विभिन्नता मिलती है। पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका तथा पश्चिमी यूरोपीय देशों में रेलमागों का सर्वाधिक घनत्व पाया जाता है। एशिया, अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया के अधिकांश भागों में रेलमार्गों का विकास नहीं हुआ है।
विश्व के प्रमुख रेलमार्ग
(Principal Railway Rotes of the World)
(1) कैनोडियन पैसिफिक रेलमार्ग- यह रेलमार्ग उत्तरी अमेरिका महाद्वीप में कनाडा के पूर्वी तट को पश्चिमी तट से जोड़ना है। यह रेलमार्ग 5600 किमी. लम्बा है। यह 1882 से 1886 की अवधि में बनकर तैयार हुआ। शीत ऋतु में जब कनाडा के जलीय मार्ग बर्फ से जम जाते हैं तो इसी रेलमार्ग द्वारा यातायात होता है। यह रेलमार्ग पूर्व में अटलांटिक तट के हैलीफैक्स नगर से प्रारम्भ होकर सेन्टजान, मांट्रियल, ओटावा, सडवरी, पोर्ट आर्थर, विनीपेग, रेगिना कैलनेरी, वान्फ होता हुआ किंकिंगहार्स दरें को पार करके प्रशान्त तट के वैंकूवर नगर तक जाता है। इस रेलमार्ग का कनाडा में वैसा ही महत्त्व है जैसा कि साइबेरिया में ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग का। इस रेलमार्ग ने कनाडा के आर्थिक विकास में विशेष योगदान दिया है। इसके निर्माण के पश्चात् ही कनाडा में सघन जनसंख्या बसी हैं राजनीतिक दृष्टि से विभिन्न राज्यों के शासन कार्यों में भी इस रेलमार्ग का अत्यधिक महत्त्व है। इसके द्वारा कनाडा के आन्तरिक भागों में सीधा सम्वन्ध स्थापित हो सका है। इस रेलमार्ग से लकड़ी तथा गेहूँ ढोया जाता है।
कैनेडियन पैसिफिक रेलमार्ग के माध्यम से लिवरपूल से चीन तथा जापान तट का मार्ग लगभग 1,800 किमी. कम ही आता है। कनाडा के प्रेयरी प्रदेश का गेहूँ पूर्वी तट पर स्थित बन्दरगाहों तक इसी मार्ग द्वारा लाया जाता है। विनीपेग नगर गेहूं की सबसे बड़ी मंडी है। यह रेलमार्ग पश्चिमी, मध्यवर्ती तथा पूर्वी क्षेत्रों के मध्य व्यापारिक सन्तुलन उत्पन्न करने में सक्षम है। यह रेलमार्ग कनाडा के उपजा कृषि क्षेत्रों, खनिज क्षेत्रों व औद्योगिक प्रदेशों से होकर गुजरता है।
(2) ट्रांस-साइबेरियन रेलमार्ग (Trans-Siberian Railway)- यह संसार का सबसे बड़ा पार-महाद्वीपीय रेलमार्ग है। यह पूर्व में ब्लाडीबोस्क से प्रारम्भ होकर रूस के लेलिनग्राड तक जाता है। ब्लाडीवोस्टक, खैवरोवस्क, चीता, उलान-उदे, इर्कुटस्क, क्रास्नोयार्स्क, ओमस्क, नोवोसिबिर्स्क, स्वर्डलोवस्क, कजान, मास्को तथा लेलिनग्राड ट्रांस साइवेरियन रेलमार्ग के प्रमुख स्टेशन हैं। लेलिनग्राड से ब्लाडीवोस्टक तक इस रेलमार्ग की लम्बाई 9,560 किमी है। इस रेलमार्ग का कार्य 1891 में प्रारम्भ हुआ जो 1905 में पूरा हुआ। इस रेलमार्ग की दो-तिहाई लम्बाई एशिया महाद्वीप में तथा एक-तिहाई लम्बाई यूरोप महाद्वीप में पड़ती है। जार शासनकाल में साइबेरिया अत्यन्त पिछड़ा हुआ था, परन्तु ट्रांस साइवेरियन रेलमार्ग के बन जाने से साइबेरियन में तेजी से आर्थिक प्रगति हुई। इस रेलमार्ग ने रूस के साइबेरियन क्षेत्र के वन, पशु व कृषि सम्पत्ति तथा खनिजों के विदोहन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। साइबेरियन में कोयला, लौह-अयस्क मैंगनीज, वाक्साइट, कोबाल्ट, क्रोमियम, निकिल, टगंस्टन, ताँबा, टिन, जस्ता, सीसा, अभ्रक, गन्धक, पोटाश, सोना, प्लेटिनम, यूरेनियम आदि के भण्डार मिलते हैं। इन खनिजों का दोहन इसी रेलमार्ग के द्वारा सम्भव हो सका है। इस रेल मार्ग द्वारा साइबेरियन के वन पदार्थ गेहूं, मक्खन, मांस, खालें, ऊन, समूर तथा खनिज यूरोपीय रूस में पहुँचाये जाते हैं।
ट्रांस साइवेरियन रेलमार्ग पर शाखा रेल लाइनों का भी निर्माण किया गया है। यूराल खण्ड में स्वर्डलोवस्क चिलियाबिन्स्क, मैगनीटोगोर्स्क आदि केन्द्रों को मिलाने वाली शाखा लाइनें विछायी गई है। पश्चिमी साइबेरिया में कुजबास प्रदेश के नोवोसिविर्स्क, बरनौल, पेट्रोपावोस्क, नोवोकुजनेत्स्क, केमरोवो, टोमस्क आदि बड़े विनिर्माण केन्द्र हैं। मध्य साइबेरिया में ट्रांस साइबेरियन रेलवे की एक शाखा कुईबाईशेव से इर्कुटस्क तक जाती है। इस खण्ड में क्रास्नोयार्स्क ब्रात्स्क, इर्कुटस्क, उलान-उदे, चीता आदि केन्द्रों का विकास हुआ है। सुदूर पूर्व में खैबरोवस्क, ब्लाडीवोस्टक आदि केन्द्र विकसित हुए हैं। इस रेलमार्ग द्वारा प्रशान्त तटीय एशियाई बन्दगाहों से पश्चिमी यूरोप तटीय बन्दरगाहों को कम समय में पहुंचा जा सकता है। यह रेलमार्ग यूक्रेन में ओडेसा, काकेशस में बाकू, रूसी मुर्किस्तान में ताशकंद, मंगोलिया में उलानबटोर, मंचूरिया में मुकडेन तथा चीन में बीजिंग से जुड़ा है।
(3) केप-काहिरा रेलमार्ग (Cape-Cairo Railway)- अफ्रीका महाद्वीप में काहिरा से केपटाउन तक की 14,000 किमी. लम्बी यात्रा तय करने के लिये स्टीमरों, नावों, सड़कों व रेलों का प्रयोग होता है। इसमें अधिकांश दूरी रेलमार्गों द्वारा ही तय की जाती है। दक्षिणी अफ्रीका के केपटाउन नगर से प्रारम्भ होकर केप-काहिरा रेलमार्ग किम्बर्ल नगर पहुँचता है जो हीरे की खानों के लिए विश्व-विख्यात है। किम्बर्ले से नैटाल तथा ट्रांसवाल के लिये शाखा रेल मार्ग निकलते हैं। इन शाखाओं पर ब्लोमफाउन्टेन, जोहंसबर्ग तथा प्रिटोरिया नगर पड़ते हैं। किम्बर्लें से उत्तर की ओर यह रेलमार्ग मेफेकिंग नगर होती हुई वेचुआनालैंड के शुष्क क्षेत्र से होकर गुजरता है। तत्पश्चात् यह रोडेशिया के बुलावाये नगर पहुँचता है। यहाँ से इसकी एक शाखा सैलिसबरी से होती हुई मोजाम्बिक के वेयरा पत्तन तक जाती है। बुलावायें से प्रधान शाखा उत्तर-पश्चिम की ओर जेम्बजी नदी पार करती है। वहाँ से यह रेलमार्ग जेम्बजी नदी के उत्तरी किनारे पर विक्टोरिया जलप्रपात पर स्थित लिबिगस्टन नगर पहुँचता है। उसके बाद ब्रोकेनहिल स्टेशन आता है यह ताँबा, सीसा, जस्ता, एम्बेस्टॉस व कोबाल्ट धातुओं का प्रमुख बाजार है। उसके बाद यह रेलमार्ग कांगों के एलिजाबेथविले नगर पहुँचता है।
एलिजावेथविले से काहिरा जाने के लिए रेलमार्ग बीच में भंग हो जाता है। टैगानिका व विक्टोरिया झीलों को नावों व स्टीमरों द्वारा पार करके पर्याप्त दूरी तक सड़क मार्ग से चलकर नील नदी के किनारे स्थित कोस्टी नगर पहुँच जाता है। कोस्टी नगर से पुनः रेलमार्ग प्रारम्भ होकर नील नदी के समानान्तर चलता है। सेनार, खारतूम, एतवारा व वादीहफा तक रेलमार्ग चलने के बाद खत्म हो जाता है। वादीहाफा से अस्वान तक की यात्रा नावों द्वारा तय करनी पड़ती है। अस्वान से पुनः रेलमार्ग प्रारम्भ होकर काहिरा तक जाता है। इस रेलमार्ग के द्वारा रोडेशिया के खनिज अयस्क-ताँवा, सीसा, जस्ता व एस्वेस्टॉस ढोये जाते हैं।
(4) यूनियन एण्ड सेन्ट्रल पैसिफिक रेलमार्ग (Union and Central Public Railway) – यह संयुक्त राज्य अमेरिका का सबसे बड़ा रेलमार्ग है। इसकी लम्बाई 6,100 किमी. है। यह 1869 में बनकर तैयार हुआ था। यह न्यूयार्क से प्रारम्भ होकर क्रमशः पश्चिम की ओर पिट्सबर्ग, शिकागो, चेनी, ओग्डेन होता हुआ सैनफ्रांसिस्को नगर में समाप्त होता है। इस रेल मार्ग द्वारा पश्चिम से पूर्व की ओर फल, लकड़ी और रेशम तथा पूर्व से पश्चिम की ओर प्रसंस्कृत पदार्थों (Processed Goods) की ढुलाई होती है।
(5) ओरियन्ट एक्सप्रेस रेलमार्ग (Orient Express Railway) – यह यूरोप का सबसे महत्त्वपूर्ण रेलमार्ग है। इसकी गणना विश्व के अधिक लम्बे रेलमार्गों में होती है। यह यूरोप के आठ बड़े देशों से होकर गुजरता है जिनमें से 6 देशों की राजधानियाँ इसी मार्ग पर स्थित है। यह पेरिस को यूरोपीय टर्की की राजधानी कुस्तुन्तुनिया से मिलाता है। पेरिस से प्रारम्भ होकर यह रेलमार्ग राइन नदी की घाटी में स्ट्रासबर्ग पहुंचता है उसके बाद जर्मनी के औद्योगिक नगर कार्ल्स रुहे व स्टुटगार्ट नगर आते हैं। आगे यह रेलमार्ग आग्सबर्ग होता हुआ म्यूनिख पहुँचता है। तत्पश्चात् आस्ट्रिया में प्रवेश करके साल्जबर्ग लिंज व वियना नगर पहुंचता है। उसके बाद यह हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट, यूगोस्लाविया की राजधानी बेलग्रेड व बुल्गारिया की राजधानी सोफिया को जोड़ता है। यह यूरोपीय टर्की की राजधानी कुस्तुन्तुनिया पर समाप्त होता है।
(6) कैनेडियन नेशनल रेलमार्ग (Canadian National Railway)- कैनेडियन पैसिफिक रेलमार्ग पर अतिशय बढ़ते यातायात भार को कम करने के उद्देश्य से यह रेलमार्ग कैनेडियन पैसिफिक रेलमार्ग के समानान्तर ही बनाया गया है। यह पूर्व में हैलीफैक्स से प्रारम्भ होकर पश्चिम में प्रिंसरुपर्ट तक जाता है। हैलीफैक्स के बाद यह क्यूबेक नगर पहुंचता है जो सेन्टलारेंस नदी पर स्थित प्रमुख बन्दरगाह है। क्यूबेक नगर से पश्चिम की ओर चलकर कोक्रेन तथा हियर्स्ट नगरों से होता हुआ विपीपेग नगर पहुंचता है। यहीं पर कैनेडियन पैसिफिक रेलमार्ग भी मिलता है। आगे चलकर कैनेडियन नेशनल रेलमार्ग, यार्कटन, सरकेटून और एडमंटन नगरों का जोड़ता हुआ प्रशान्त तट पर प्रिन्सरुपर्ट बन्दरगाह पर समाप्त होता है। इस रेलमार्ग ने कनाडा के आर्थिक विकास में बहुत अधिक सहयोग किया है।
(7) ट्रांस एण्डियन रेलमार्ग (Trans Andean Railway)- दक्षिणी अमेरिका में यह रेलमार्ग अर्जेन्टाइना के ब्यूनस आयर्स से प्रारम्भ होकर पम्पा प्रदेश होता हुआ चिली के बालपरैजो तक जाता है। यह 1,440 किमी० लम्बा है। यह 1910 में बनकर तैयार हुआ था। अर्जेन्टाइना का गेहूँ, मांस, ऊन व खालें निर्यात के लिए इसी रेलमार्ग द्वारा एकत्रित की जाती है। सानलुईस व मेण्डोजा इस रेलमार्ग के मध्यवर्ती स्टेशन है। बालपरैजो से पूर्व यह रेलमार्ग दो शाखाओं में बँट जाता हैं इसकी मुख्य शाखा के अलावा दक्षिणावर्ती शाखा राजधानी सेन्टियागो तक गई है। इस प्रकार दूसरे रेलमार्ग की एक उत्तरी शाखा ब्यूनस आयर्स से रोसारियो एवं मारिया होकर सानलुईस से आकर मिल जाती है।
ट्रांस एण्डियन रेलमार्ग की सम्पूर्ण लम्बाई में रेलों की गेज प्रणालियाँ भिन्न-भिन्न चौड़ाई की हैं। एण्डीज पर्वत को पार करने के लिए इसे अनेक सुरंगों (Tunnels) से होकर गुजरना पड़ता है। हिमपात व भू-स्खलन से रेलमार्ग को खतरा रहता है। इस रेलमार्ग द्वारा पम्पा प्रदेश के कृषि व पशु पदार्थ, पश्चिमी तट के फल, डाक व यात्रियों का परिवहन किया जाता है।
(8) आस्ट्रेलिया पार-महाद्वीपीय रेलमार्ग (Australian Trans-Continental Railway)- आस्ट्रेलिया महाद्वीप में रेलमार्गों की लम्बाई 35,486 किमी. है। तीन दक्षिणी महाद्वीपों में रेलमार्गों की लम्बाई की दृष्टि से आस्ट्रेलिया का प्रथम स्थान है। आस्ट्रेलिया के दक्षिणी-पूर्वी भाग में रेलों का अच्छा विकास हुआ है। यहाँ का सबसे लम्बा पार-महाद्वीपीय रेलमार्ग मेलबोर्न से पर्थ तक जाता है। यह विश्व का सबसे लम्बा एक सीध में वना रेलमार्ग है। इस मार्ग पर पर्थ, कालगूर्ली, कूलगार्डी, एडीलेड, मेलबोर्न, कैनबरा व सिडनी प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं। आस्ट्रेलिया के सभी महानगर इसी रेलमार्ग द्वारा सम्बद्ध हैं। मरुस्थली भाग से होकर गुजरने वाला इतना बड़ा रेलमार्ग विश्व में दूसरी जगह नहीं है।
(9) भारतीय रेलमार्ग- भारत में विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेल परिवहन जाल है। भारतीय रेलवे देश का सबसे बड़ा सरकारी प्रतिष्ठान है। वर्तमान में भारतीय रेलमार्गों की कुल लम्बाई 63,974 किमी. है। भारतीय रेलवे के पास 8,593 लोकोमोटिव इंजन, 51,030 यात्री सेवायान, 6,505 अन्य डिब्बे तथा 2,19,931 वैगन या माल डिब्बे हैं। यहाँ रेलवे स्टेशनों की कुल संख्या 7,068 हैं। भारतीय रेल लाइनों में 54,257 किमी. बड़ी लाइनें, 7,180 किमी. मीटर गेज लाइनें तथा 2,537 किमी. छोटी लाइनें हैं। इसमें 21,434 किमी. रेलमार्गों का विद्युतीकरण हो चुका है। रेलवे में लगभग 42 लाख कर्मचारी नियोजित हैं।
भारतीय रेलवे का परिवहन जाल 17 क्षेत्रों में विभक्त है जिनकी लम्बाई व मुख्यालय निम्न प्रकार है-
भारतीय रेलवे के जोन-2011-12
जोन | मुख्यालय | कार्य प्रारम्भ करने का वर्ष |
1. मध्य रेलवे (CR) | मुम्बई (वी.टी.) | 5 नवम्बर, 1951 |
2. पूर्वी रेलवे (ER) | कोलकाता | 1 अगस्त, 1955 |
3. उत्तरी रेवले (NR) | नई दिल्ली | 4 अप्रैल, 1952 |
4. उत्तरी-पूर्वी रेलवे (NER) | गोरखपुर | 4 अप्रैल, 1952 |
5. उत्तरी-पूर्वी सीमा प्रांत रेलवे (NEFR) | मालेगांव गुवाहाटी | 15 जनवरी, 1958 |
6. दक्षिणी रेलवे (SR) | चेन्नई | 14 अप्रैल, 1951 |
7. दक्षिण मध्य रेलवे (SCR) | सिकंदराबाद | 2 अक्टूबर, 1966 |
8. दक्षिणी-पूर्वी रेलवे (SER) | कोलकाता | 1 अगस्त, 1955 |
9. पश्चिम रेलवे (WR) | मुंबई चर्चगेट | 5 नवंबर, 1951 |
10. पूर्वी मध्य रेलवे (ECR) | हाजीपुर | 1 अक्टूबर, 2002 |
11. उत्तर-पश्चिमी रेलवे (NWR) | जयपुर | 1 अक्टूबर, 2002 |
12. पूर्वी तटवर्ती (East Coast) रेलवे (ECR) | भुवनेश्वर | 1 अप्रैल, 2003 |
13. उत्तर मध्य रेलवे (NCR) | इलाहाबाद | 1 अप्रैल, 2003 |
14. दक्षिणी-पश्चिमी रेलवे (SWR) | हुबली | 1 अप्रैल, 2003 |
15. पश्चिम मध्य रेलवे (ECR) | जबलपुर | 1 अप्रैल, 2003 |
16. दक्षिण-पूर्व मध्य रेलवे (SECR) | बिलासपुर | 5 अप्रैल, 2003 |
17. कोलकाता मेट्रो रेलवे (KMR) | कोलकाता | 25 दिसंबर, 2010 |
भूगोल – महत्वपूर्ण लिंक
- थारू जनजाति | थारू जनजाति के आर्थिक तथा सामाजिक संगठन की प्रकृति का वर्णन
- जापान का मत्स्य व्यवसाय | जापान के मछली उत्पादक क्षेत्र | जापान में मत्स्योत्पादन के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाएँ
- सूती वस्त्र उद्योग | सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के कारक | संयुक्त राज्य अमेरिका का सूती वस्त्र उद्योग | चीन में सूती वस्त्र उद्योग का स्थानिक वितरण | सूती वस्त्र उद्योग की अवस्थिति
- जापान का सूती वस्त्र उद्योग | जापान में सूती वस्त्र उद्योग का वितरण प्रतिरूप | जापान में सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के लिए उत्तरदायी कारक | जापान के सूती वस्त्र उद्योग का भौगोलिक वर्णन
- संयुक्त राज्य अमेरिका में लोहा-इस्पात उद्योग | संयुक्त राज्य अमेरिका में लौह इस्पात उद्योग की अवस्थिति एवं विअथव का विवरण
- यू० के० में लोहा और इस्पात उद्योग | यू० के० में लोहा और इस्पात उद्योग के विकास एवं क्षेत्र
- लौह-अयस्क | विश्व में लौह-अयस्क की संचित राशि | विश्व में लौह-अयस्क उत्पादन क्षेत्र का विवरण
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