सामाजिक परिवर्तन का अर्थ एवं परिभाषा | सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें | सामाजिक परिवर्तन और सांस्कृतिक परिवर्तन के भेद
सामाजिक परिवर्तन का अर्थ एवं परिभाषा | सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें | सामाजिक परिवर्तन और सांस्कृतिक परिवर्तन के भेद | Meaning and definition of social change in Hindi | Features of social change in Hindi | Distinction between social change and cultural change in Hindi
सामाजिक परिवर्तन का अर्थ एवं परिभाषा
सामाजिक परिवर्तन का अर्थ (Meaning of Social Change) –
परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। विश्व की प्रत्येक वस्तु प्रति क्षण परिवर्तित हुआ करती है। बीज से अंकुर तथा अंकुर से पौधे के निर्माण का क्रम चला करता है। ऋतुयें अपने क्रम में आती और चली जाती हैं। रात और दिन का क्रम अबाध गति से चला करता है। ये सभी परिवर्तन प्रकृति के क्षेत्र में सदैव घटित होने के पश्चात् वृद्धावस्था में पहुंचता है। और फिर मृत्यु का अलिंगन कर चिर निद्रा में सो जाता है। इसी प्रकार सम्पूर्ण सामाजिक जीवन, सामाजिक व्यवस्था, सामाजिक संरचना से निरन्तर परिवर्तन का क्रम चला करता है। पुरानी व्यवस्था, संस्थाओं एवं व्यवहार प्रतिमान के स्थान पर नित नये मूल पनपते दिखलाई पड़ते हैं। कहने का आशय यह है कि एक ओर सम्पूर्णाकृतिक व्यवस्था में परिवर्तन होता दिखलाई पड़ता है तो दूसरी ओर सम्पूर्ण मानव में होने वाले प्रत्येक परिवर्तनों को सामाजिक परिवर्तनों की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। केवल उन्हीं परिवर्तनों का सामाजिक सम्बन्धों सामाजिक व्यवस्था और सामाजिक संरचना से सम्बन्ध वस्तुतः सामाजिक परिवर्तन का सम्बन्ध सामाजिक जीवन के किसी भी पक्ष में होने वाले परिवर्तनों से है चाहे वह सामाजिक व्यवस्था में हो अथवा व्यक्तियों के विचारों अथवा कार्य में कुछ विद्वान सामाजिक परिवर्तन एवं सांस्कृतिक परिवर्तन में कोई भेद नहीं करते। डासन और गेटिस तो यहाँ तक लिखते हैं कि सांस्कृतिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन है क्योंकि सम्पूर्ण संस्कृति अपनी उत्पत्ति, अर्थ और प्रयोग में सामाजिक है किन्तु मेरिल और मैकाइवर इस सच को स्वीकार नहीं करते क्योंकि उनका मत है कि सामाजिक परिवर्तन सामाजिक सम्बन्धों में होने वाले परिवर्तन से सम्बन्धित है अर्थात् अमूर्त है जबकि भौतिक संस्कृति में होने वाले परिवर्तन मूर्त होते हैं।
सामाजिक परिवर्तन संस्कृति परिवर्तन का एक अंग मात्र है। क्योंकि संस्कृति से तात्पर्य जीवन के सम्पूर्ण तरीकों से है। इसके अलावा सामाजिक परिवर्तनों का प्रभाव सांस्कृतिक परिवर्तनों से अधिक महत्वपूर्ण होता है।
सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा
(Definition of Social Change)-
(1) गिलिन और गिलिन- ‘सामाजिक परिवर्तन जीवन की मानी हुई रीति-रिवाजों में आये हुये परिवर्तन को कहते हैं चाहे यह परिवर्तन भौगोलिक दशाओं में हुये परिवर्तन के कारण हुये हों या सांस्कृतिक साधनों, जनसंख्या की रचना या सिद्धान्तों के परितर्वन से या प्रसार से अथवा समूह के अन्दर ही आविष्कारों के फलस्वरूप हुये हो।
‘Social changes are variations from the accepted modes of life, whether due alteration in geographical conditions or idelogies and whether brouht about by diffiusion or invention within the group.”-Gillin and Gillin, Sociology-
(2) मैकाइवर और पेज का मत है कि, “समाजशास्त्री होने के नाते हमारा सीधा सम्बन्ध सामाजिक सम्बन्धों से है। केवल इन सामाजिक सम्बन्धों में होने वाले परिवर्तनों को ही हम सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।”
“……..Our direct concern as sociologist is with social relationship. It is the changes in this relationship which shall regard as social changes.
-Maciver and C.H. Page, Society-
(3) जेन्सन का मत है कि, “व्यक्तियों के कार्य करने और विचार करने के तरीकों में होने वाले संशोधनों को सामाजिक परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”
‘Social change may be difined as modification in ways of doing and thinking of people.’ -Jenson, Introduction to Sociology and Social problems
सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें
(Characteristics of Social Changes)
विभिन्न समाजशास्त्रियों के द्वारा दी गयी सामाजिक परिवर्तन की परिभाषाओं के आधार पर हम सामाजिक परिवर्तन की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख कर सकते हैं-
- सामाजिक परिवर्तन का सम्बन्ध किसी व्यक्ति या समूह से नहीं होता है। बल्कि सम्पूर्ण समाज के सामान्य जीवन में होता है।
- सामाजिक परिवर्तन एक सार्वभौमिक घटना है अर्थात यह हर समय और प्रत्येक समाज के सामान्य जीवन में होता है।
- परिवर्तन की गति और दिशा भिन्न-भिन्न समाजों तथा भिन्न-भिन्न समयों से अलग-अलग एवं असमान होती है। एक समाज भौतिकता में आगे बढ़ता है तो दूसरा अभौतिकता में। एक ही समाज के भिन्न-भिन्न भाग भी आसमान गति से परिवर्तित हो सकते हैं, जैसे भारतवर्ष में ग्रामीण समाज की तुलना में नगरीय क्षेत्रों में परिवर्तन की गति कहीं अधिक तीव्र है।”
- सामाजिक परिवर्तन का सम्बन्ध ‘सामाजिक संगठन, सामाजिक संरचना एवं सामाजिक सम्बन्धों में होने वाले परिवर्तनों से होता है।
- सामाजिक परिवर्तन अनिश्चित होता है। अर्थात इसके बारे में पहले से भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।
- सामाजिक परिवर्तन को नापा नहीं जा सकता है, जैसे कि भौतिक पदार्थों में होने वाले परिवर्तनों को विभिन्न पैमानों की सहायता से नापा जा सकता है। सामाजिक घटनाओं जिसका स्वरूप अमूर्त होता है, परिवर्तन को नापा नहीं जा सकता है। मैकाइवर के आधार पर सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन में विभेदीकरण हुआ है।
- सामाजिक परिवर्तन समाज के लिए लाभकारी हो सकता है। अथवा विघटनकारी भी एक ओर यह आदि समाज को आधुनिक सभ्यता के उच्त शिवर पर आसीन कर सकता है तो दूसरी ओर सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था को ध्वस्त कर समाज को पतन की ओर भी ले जा सकता है।
- सामाजिक परिवर्तन चक्रीय एवं एकरेखीय दोनों ही प्रकार का हो सकता है। फैशन के वशीभूत वस्त्रों में होने वाले परिवर्तन चक्रीय कहे जायेंगे क्योंकि एक ही फैशन के कपड़े पुनः कुछ समय बाद प्रचलित हो जाते हैं। जैसे पहले चुस्त कपड़ों का रिवाज था अब ढीले कपड़ों का फिर चुस्त और फिर ढीले। इसको विपरीत एकरेखीय परिवर्तन की पुनरावृत्ति नहीं होती। जैसे सवारी के प्रयोग के रूप में बैलगाड़ी के स्थान पर अब द्रुतगामी सावरियों का प्रयोग। अब आधुनिक युग में पुनः लोग बैलगाड़ी को सवारी के रूप में कदाचित ही स्वीकार करें।
सामाजिक परिवर्तन और सांस्कृतिक परिवर्तन के भेद
(Distinction Between Social Change and Cultural Change)
(अ) सामाजिक परिवर्तन एवं सांस्कृतिक परिवर्तन दोनों एक हैं- सामाजिक परिवर्तन एवं सांस्कृतिक परिवर्तन के पारस्परिक सम्बन्ध को लेकर विद्वानों में बड़ा मतभेद है। एक ओर अधिकतर विद्वान ऐसे हैं जो सामाजिक परिवर्तन एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों में कोई भेदभाव नहीं मानते। उनका कहना है कि सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन एक ही घटना से सम्बन्धित विभिन्न पक्षों में होने वाले परिवर्तन की ओर संकेत करते थे। डासन और गेटिस का कथन है कि ‘सामाजिक परिवर्तन सांस्कृतिक परिवर्तन है क्योंकि संस्कृति अपनी उत्पत्ति अर्थ और प्रयोग में सामाजिक है।’
‘Cultural change is Social change since all culture in social in its origin, meaning & usage.”
-Dawson & Gettyes
गिलिन और गिलिन भी सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन में कोई स्पष्ट विभेद नहीं मानते। आपने जीवन के स्वीकृत तरीकों में होने वाले परिवर्तनों को सामाजिक परिवर्तनों की कोटि में रखा है क्योंकि संस्कृति के अन्तर्गत भी जीवन के सभी तरीके आ जाते हैं तथा इसी को हम प्रयोग संस्कृति के नाम से सम्बोधित करते हैं।
(ब) सामाजिक परिवर्तन एवं सांस्कृतिक परिवर्तन दोनों एक नहीं है- दूसरी ओर कुछ ऐसे विचारक भी हैं जो कि सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों में स्पष्ट भेद स्वीकार करते हैं। मैकाइवर और पेज सामाजिक सम्बन्धों में होने वाले परिवर्तनों को ही सामाजिक परिवर्तनों की श्रेणी में रखते हैं। आपके अनुसार सनाज रीति-रिवाजों, कार्य प्रणालियों, अधिकार, पारस्परिक सहयोग, विभिन्न भागों और उपविभागों, सामाजिक नियन्त्रणों के साधनों एवं स्वाधीनताओं की समस्या है और जब इनमें परिवर्तन होने लगते हैं तो हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन घटित हो रहा है। यह परिवर्तन एक ओर तो व्यक्तियों की परिस्थितियों और अन्तः क्रियाओं में आने वाले अन्तर की ओर संकेत करता है तथा दूसरी ओर व्यक्तियों के कार्यों की ओर इशारा करता है। जानसन तो स्पष्ट शब्दों में कहते हैं, ‘सामाजिक परिवर्तन से हमारा तात्पर्य सामाजिक ढांचे में परिवर्तनों से है।’ डेविस भी केवल उन संशोधनों को ही सामाजिक परिवर्तनों की कोटि में रखते हैं जो सामाजिक संगठन में हुआ करते हैं। वास्तविकता यही है कि संस्कृति शब्द अत्यन्त व्यापक है और सामाजिक व्यवस्था या संरचना उसका एक अंग है। जब हम सामाजिक परिवर्तन शब्द का प्रयोग करते हैं। तो हमारा आशय उन परिवर्तनों को भी सम्मिलित करते हैं जो कि धर्म, कला, साहित्य, प्रथा और परम्परा तथा यन्त्रकला अर्थात प्रविधियों और भौतिक पदार्थों में भी घटित होते हैं। सामाजिक परिवर्तन एक अमूर्त घटना है जबकि सांस्कृतिक परिवर्तन मूर्त है। भौतिक पदार्थ में होने वाले परिवर्तन, जो कि भौतिक अंग माने जाते हैं, देखे जा सकते हैं जबकि सामाजिक ढांचे या सम्बन्धों में होने वाले परिवर्तन अमूर्त रहते हैं। इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक परिवर्तन की तुलना में सामाजिक परिवर्तन की गति अधिक तीव्र होती है क्योंकि सामाजिक सम्बन्धों में होने वाले किसी भी परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन ही माना जाएगा। इसके विपरीत धर्म, कला, न्याय प्रथा एवं परम्पराओं में परिवर्तन इतनी तीव्रता से नहीं होते।
निष्कर्ष-
निष्कर्ष स्वरूप यह कहा जा सकता है कि सांस्कृतिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन से परे नहीं हैं बल्कि दोनों ही एक दूसरे को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं, भले ही उनका सम्बन्ध जीवन के मित्र पक्षों में क्यों न हो।
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