स्विट्जरलैण्ड के प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के तीन मुख्य साधन | स्विस प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की विधियों का वर्णन करते हुए जनमत संग्रह आरम्भक की व्याख्या
स्विट्जरलैण्ड के प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के तीन मुख्य साधन | स्विस प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की विधियों का वर्णन करते हुए जनमत संग्रह आरम्भक की व्याख्या
स्विट्जरलैण्ड के प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के तीन मुख्य साधन
स्विट्जरलैण्ड के निवासियों ने प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के तीन मुख्य साधनों को लगभग पूर्ण रूप से अपनाया है-
(1) प्रारम्भिक सभाएँ (Primary Assemblies), (2) जनमत संग्रह (Referendum), एवं (3) आरम्भक (Initiative)|
प्रारम्भिक सभाओं का अभिप्राय यह है कि निर्धारित समय पर देश के सभी वयस्क नागरिक एक स्थान पर एकत्रित होकर कानूनों का निर्माण और नीतियों का निर्धारण करेंगे। इस प्रक्रिया में नागरिक अपनी प्रभुसत्ता का प्रत्यक्ष रूप से प्रयोग करते हैं। यह प्रजातन्त्र का सबसे विशुद्ध और सबसे प्राचीन रूप है।
प्रारम्भिक सभाओं की व्यवस्था स्विट्जरलैण्ड के 4 अर्द्ध-कैंटनों तथा । पूर्ण कैंटन में प्रचलित है। इन लोकसभाओं को लैंड्सजीमाइंड (Landsgemeinde) कहते हैं। ये लोकसभाएं जिन कैंटनों में हैं, वहाँ कैंटनों के सब स्वतन्त्र नागरिक इन सभाओं के सदस्य होते हैं। प्रतिवर्ष कैंटनों के सभी वयस्क पुरुष नागरिक एक खुले मैदान में एकत्रित होकर संविधन में संशोधन, सामान्य कानूनों का निर्धारण, करारोपण, मताधिकार, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के अधिकारों के निर्वाचन आदि कार्यों को पूरा करते हैं।
जनमत-संग्रह का सामान्य अर्थ यह है कि विधान-मण्डल द्वारा पारित अधिनियों अथवा प्रस्तावित कानूनों पर जनता का मत जाना जाए। इस तरह जनमत-संग्रह की विधि के माध्यम से लोग अप्रत्यक्ष रूप से देश के सांविधानिक एवं साधारण कानूनों पर अपना मत प्रकट करके शासन-कार्य में भाग लेते हैं। यदि जनमत पक्ष में हो तो कानून पारित समझा जाता है और यदि विपक्ष में हो तो अस्वीकृत। स्विट्जरलैण्ड में जनमत संग्रह का प्रयोग केन्द्र व कैंटनों दोनों में ही होता है।
आरम्भक वह साधन है जिसमें नागरिकों की कुछ संख्या स्वयं कानूनों को प्रस्तुत कर सकती है अर्थात् व्यवस्थापिका के कानूनों के लिए सुझाव प्रस्तुत कर सकती है। इसका प्रयोग भी केन्द्र व कैंटनों दोनों में होता है।
केन्द्र में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र
केन्द्र में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की जनमत संग्रह और आरम्भ की दो विधियाँ ही प्रयुक्त होती है.
जनमत संग्रह अथवा लोक-निर्णय (Referendum)-
जनमत-संग्रह से हमारा तात्पर्य व्यवस्थापिका द्वारा पास किए गए कानूनों को जनता के समक्ष अपनी स्वीकृति अथवा अस्वीकृति के लिए रखने से है। स्विटजरलैण्ड में जनमत दो प्रकार का है-
(क) अनिवार्य जनमत-संग्रह (Compulsory Referendum)
(ख) ऐच्छिक अथवा वैकल्पिक जनमत-संग्रह (Optional Referendum)
(क) अनिवार्य जनमत संग्रह- जब व्यवस्थापिका द्वारा पास किया हुआ प्रत्येक अनिवार्य जनता की स्वीकृति के लिए रखा जाता है तो वह अनिवार्य जनमत संग्रह कहलाता है। यह अनिवार्य जनमत-संग्रह 1848 के संविधान द्वारा प्रचलित किया गया था। संविधान की धारा 123 में इस विषय में यह व्यवस्था है कि “संघ का संशोधित संविधान या उसका कोई संशोधित अंश तभी क्रियान्वित हो सकेगा जब स्विस मतदाताओं का बहुमत तथा राज्यों का बहुमत उसे स्वीकार कर ले।’ संविधान में दी गई इस व्यवस्था से स्पष्ट है कि-
- जनमत-संग्रह का रूप अनिवार्य जनमत-संग्रह का है।
- यह व्यवस्था केवल संविधान के संशोधन सम्बन्धी कानून के विषय में है।
- संशोधन तभी पारित समझा जाता है जबकि उसे स्विट्जरलैण्ड के उन नागरिकों के बहुमत द्वारा स्वीकार कर लिया जाए जो उससे सम्बन्धित जनमत-संग्रह में मतदान करें तथा इसके अतिरिक्त उसे कैण्टनों के बहुमत द्वारा भी स्वीकार कर लिया जाए।
- जनमत-संग्रह पूरे संविधान के विषय में भी हो सकता है और उसके किसी अंश के विषय में भी।
चूंकि, उपर्युक्त जनमत-संग्रह अनिवार्य है और इसका सम्बन्ध संविधान से है, अतः इसे अनिवार्य जनमत-संग्रह (Compulsory Constitutional Referendum) कहा जाता है।
(ख) ऐच्छिक या वैकल्पिक जनमत-संग्रह- ऐच्छिक जनमत संग्रह वह है जब व्यवस्थापिका द्वारा पास किया हुआ कानून उसी अवस्था में जनता के समक्ष उसकी स्वीकृति हेतु रखा जाता है जब नागरिकों की एक निश्चित संख्या इस सम्बन्ध में प्रार्थना करे। ऐच्छिक जनमत-संग्रह की व्यवस्था संघीय कानूनों के लिए सन् 1874 में की गई थी। संविधान की 89वीं धारा के अन्तर्गत यह व्यवस्था है कि संघ के सभी कानूनों और सभी पर लागू होने वाले सभी अध्यादेशों को जनमत संग्रह के लिए प्रस्तुत किया जाय यदि मताधिकार रखने वाले हजार नागरिक अथवा कैण्टनों के 30 हजार स्विस नागरिक उसके विषय में ऐसी मांग करें। ऐसी मांग के लिए 90 दिन का समय नियत है। किसी कानून अथवा आदेश के प्रकाशन के लिए 90 दिन के अन्दर यदि ऐसी मांग कर दी जाए तो उस कानून अथवा अध्यादेश पर जनमत-संग्रह लेना आवश्यक समझा जाता है।
सामान्यतः सभी कानूनों को, जिनके विषय में जनमत-संग्रह की माँग की जाती है, जनमत- संग्रह के लिए प्रस्तुत करना होता है। केवल अध्यादेशों के विषय में एक अपवाद है और वह यह कि यदि किसी अध्यादेश की व्यवस्थापिका द्वारा ‘आवश्यक’ (Urgent) अथवा ‘सभी पर लागू न होने वाला’ (Not Universally Binding) घोषित कर दिया जाए तो उस पर जनमत- संग्रह की माँग नहीं की जा लकती। लेकिन वर्तमान में होता यह है कि जनमत-संग्रह.की माँग से बचत के लिए व्यवस्थापिका प्रायः उन सब कानूनों को अध्यादेशों का रूप देती है जिनका सम्बन्ध बजट आदि महत्त्वपूर्ण बातों से होता है और अध्यादेशों को आवश्यक’ अथवा ‘सब पर लागू न होने वाला’ घोषित कर देती है। कार्यपालिका और व्यवस्थापिका इस ढंग से अपनी शक्ति का स्थायी रूप से दरुपयोग न करने लगें, इसके लिए 1949 के एक संशोधन द्वारा यह व्यवस्था कर दी गई है कि ‘आवश्यक’ व ‘सब पर लागू न होने वाले’ आदेश (Arretes) एक वर्ष बाद स्वयं समाप्त समझे जाएंगे, यदि उनके विषय में वैकल्पिक जनमत संग्रह की मांग न की जाए और उन्हें उनके द्वारा स्वीकार न किया जाए। ऐसे अध्यादेश के विषय में जिनमें संविधान की किसी व्यवस्था का उल्लंघन होता हो, यह प्रावधान है कि उनके प्रकाशन के एक वर्ष के भीतर जनता एवं कैंटनों की स्वीकृति अवश्यमेव प्राप्त करनी चाहिए, अन्यथा एक वर्ष व्यतीत हो जाने पर वे स्वयं ही समाप्त हो जाएंगे।
ऐच्छिक अथवा वैकल्पिक जनमत संग्रह की व्यवस्था उन अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों पर भी लागू होती है जो अनिश्चित काल के लिए की जाएँ या जो 15 वर्ष से अधिक की अवधि के लिए हों। यदि 30 हजार सक्रिय नागरिक अथवा 8 कैण्टन माँग करें तो उन पर जनमत संग्रह कर लेना आवश्यक होता है।
यह स्मरणीय है कि वैकल्पिक जनमत-संग्रह के लिए जो भी कानून या अध्यादेश या सन्धि अथवा समझौता प्रस्तुत होता है, वह कार्यान्वित तभी किया जा सकता है जब उसे स्विट्जरलैण्ड के उन मतदाताओं के बहुमत द्वारा स्वीकार कर लिया गया हो. जो मतदान में भाग लें।
आरम्भक (Initiative)-
आरम्भ वह साधन है जिससे नागरिकों की कुछ संख्या एवं कानूनों को प्रस्तुत कर सकती है अर्थात् कानूनों के सुझाव रख सकती है। संघीय शासन-व्यवस्था के अन्तर्गत केवल संविधान के संशोधन अथवा पुनर्निरीक्षण (Revision) के सम्बन्ध में आरम्भक की व्यवस्था की गई है, सारे कानूनों के सम्बन्ध में नहीं। दूसरे शब्दों में, नागरिकों को केवल संविधान में संशोधन की मांग का अधिकार है, समस्त विषयों पर कानून बनाए जाने की मांग का उन्हें कोई अधिकार नहीं है। चूँकि आरम्भक के प्रयोग की व्यवस्था केवल सांविधानिक संशोधनों के विषय में की गई है, अतः इसे साँविधानिक आरम्भक भी कहा जाता है। वर्तमान व्यवस्था के अनुसार संविधान के पूरे संशोधन (Total Revision) अथवा आंशिक संशोधन (Partial Revision) दोनों के ही विषय में आरम्भक का प्रयोग किया जा सकता है। इस अवसर पर आरम्भक का रूप दो प्रकार का हो जाता है-पूर्ण संशोधन सम्बन्धी आरम्भक (Initiative for Total Revision) एवं आंशिक संशोधन सम्बन्धी आरम्भक (Initiative for Partial Revision)। दोनों ही प्रकार के आरम्भर का प्रयोग 50 हजार मतदाताओं द्वारा किया जा सकता है। यदि उपर्युक्त संख्या में स्विस नागरिक पूर्ण अथवा आंशिक संशोधन के लिए याचिका प्रस्तुत करें तो उस पर जनमत आवश्यक होता है।
यदि जनता के आरम्भक द्वारा संविधान के पूर्ण संशोधन या पुनर्निरीक्षण (Total Revision) की मांग की है अथवा पूर्ण संशोधन सम्बन्धी प्रस्ताव का आरम्भ व्यवस्थापिका के किसी एक सदन से किया है, लेकिन दूसरा सदन उससे सहमत नहीं है, तो इन दो दशाओं में निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाने की व्यवस्था है-
प्रस्तावित संशोधन स्विस मतदाताओं के जनमत संग्रह के लिए प्रस्तुत किया जाए कि संशोधन की आवश्यकता है अथवा नहीं।
पुनर्निर्वाचन के पश्चात् नई संघीय व्यवस्थापिका के दोनों सदन उक्त प्रस्तावित संशोधन पर विचार करेंगे और उनके बहुमत द्वारा पारित होने पर वह संशोधन प्रस्ताव सर्वसाधारण और कैंटनों के जनमत संग्रह के लिए प्रस्तुत किया जाएगा तथा लोक-निर्माण के पक्ष में होने पर वह संशोधन प्रस्ताव क्रियान्वित होगा।
आँशिक संशोधन (Partial Revision) के लिए प्रस्तुत आरम्भक के विषय में यह व्यवस्था है कि वह प्रस्ताव पूर्ण विधेयक के रूप में (Formulated) भी दिया जा सकता है और मोटे सुझावों के रूप में (Unformulated) भी दिया जा सकता है।
यदि आँशिक संशोधन का आरम्भक मोटे सझावों के रूप में (Unformulated) होता है तो निम्नलिखित दो व्यवस्थाएँ हैं-
(i) संघीय व्यवस्थापिका द्वारा स्वीकृत होने पर उसका विधेयक तैयार होगा और उस विधेयक को सर्वसाधारण तथा कैण्टनों की स्वीकृति (Ratification) मिलने के बाद क्रियान्वित किया जायेगा।
(ii) यदि संघीय व्यवस्थापिका संशोधन प्रस्ताव के विपक्ष में है तो वह संशोधन प्रस्ताव को सर्वसाधारण के निर्णय के लिए भेज देगी। यहाँ पर कैंटनों के मत जानने की आवश्यकता नहीं होगी। यदि बहुमत संशोधन के पक्ष में होगा तो संघीय व्यवस्थापिका प्रस्ताव के अनुरूप विधेयक तैयार करेगी और उसे सर्वसाधारण तथा कैंटनों के जनमत संग्रह के लिए प्रस्तुत करेगी।
यदि आंशिक संशोधन की याचिका पूर्ण विधेयक के रूप में (Formulated) प्रस्तुत की जाती है, तो इस सम्बन्ध में निम्न व्यवस्था है-
(i) पक्ष में होने पर संघीय व्यवस्थापिका उस विधेयक को सर्वसाधारण एवं कैंटनों के जनमत-संग्रह के लिए प्रस्तुत करेगी।
(ii) विपक्ष में होने पर संघीय व्यवस्थापिका दो मार्ग अपना सकती है प्रथम वह सिफारिश कर सकती है कि प्रस्तावित संशोधन स्वीकृत कर दिया जाए अथवा द्वितीय, वह जनता द्वारा प्रस्तावित प्रारूप के साथ अपने द्वारा बनाया हुआ प्रारूप भी जनमत-संग्रह के लिए प्रस्तुत कर सकती है। संशोधन प्रस्ताव को जनमत संग्रह में जनता और कैंटनों दोनों के बहुमत का समर्थन मिलना आवश्यक है।
उपर्युक्त प्रसंग में यह स्मरणीय है कि साधारण कानूनों के विषय में स्विट्जरलैण्ड में आरम्भक (Initiative) की व्यवस्था नहीं है। फिर भी स्विस लोग सांविधानिक संशोधनों के नाम साधारण कानूनों से भी सम्बन्धित प्रस्ताव प्रस्तुत कर देते हैं। वृद्धावस्था का बीमा, जानवरों का काटा जाना, गेहूँ की पैदावार में वृद्धि आदि से सम्बन्धित अनेक प्रस्ताव सांविधानिय संशोधन के नाम से प्रस्तुत किए गए हैं और उनमें से अनेक संविधान का अंग बन चुके हैं।
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