राजनीति विज्ञान / Political Science

बुनियादी लोकतंत्र किसे कहते हैं | बुनियादी लोकतंत्र के आधारभूत सिद्धान्त | बुनियादी लोकतंत्र की कार्य-प्रणाली | बुनियादी लोकतंत्र के उद्देश्य | बुनियादी लोकतंत्र की समस्याएँ

बुनियादी लोकतंत्र किसे कहते हैं | बुनियादी लोकतंत्र के आधारभूत सिद्धान्त | बुनियादी लोकतंत्र की कार्य-प्रणाली | बुनियादी लोकतंत्र के उद्देश्य | बुनियादी लोकतंत्र की समस्याएँ

बुनियादी लोकतंत्र किसे कहते हैं

(Basic Democracy)

बुनियादी लोकतंत्र विकेंद्रित लोकतंत्र की तरह ही यह चाहता है कि संप्रभुता का निवास जनता में होना चाहिए, लेकिन विकेंद्रित लोकतंत्र से सिद्धान्त और व्यवहार में यह भिन्न है। विकेंद्रित लोकतंत्र सिद्धान्त और व्यवहार दोनों में यह चाहता है कि सत्ता का प्रयोग जनता की इच्छा के अनुकूल हो। बुनियादी लोकतंत्र भी सिद्धान्ततः विकेंद्रित लोकतंत्र के इस आदर्श को अपनाता है, लेकिन व्यवहारतः बुनियादी लोकतंत्र का रूप दूसरा हो जाता है। बुनियादी लोकतंत्र में भी सत्ता की प्रवृत्ति आधार से शीर्ष की ओर है, अर्थात् सत्ता का आधार जनता तक पहुँचाना है; लेकिन व्यवहार में जब सत्ता शीर्ष पर पहुँच जाती है तब वह जनता के हाथ से खिसक जाती है और जनता को उस शीर्ष-सत्ता के नियंत्रण में कार्य करना पड़ता है। इस प्रकार बुनियादी लोकतंत्र जनतंत्र के आदर्श रूप को अपनाता है; लेकिन व्यवहार में उसे विकृत कर देता है।

बुनियादी लोकतंत्र और पाकिस्तान के सन्दर्भ में- अयूब खाँ के सुझावों से ऐसा प्रतीतह है कि बुनियादी लोकतंत्र की व्यवस्था देश की तत्कालीन परिस्थितियों के अनुकूल होनी चाहिए। सिद्धान्ततः वे प्रजातंत्र के आदर्श में विश्वास करते हैं और किसी भी देश के लिए उसे आवश्यक बताते हैं, लेकिन अयूब खाँ की दृष्टि में यह आवश्यक नहीं है कि प्रजातंत्र का एक ही स्वरूप सभी देशों में लागू किया जाय। उनकी दृष्टि में एक देश का प्रजातंत्र दूसरे देश की नकल कैसे हो सकता है? व्यवहार में वह सैद्धांतिक आदर्श से भिन्न हो सकता है। पाकिस्तान, इण्डोनेशिया, मिस्र इत्यादि देशों में प्रजातंत्र के इस रूप को स्वीकार किया गया है। उनका  लोकतंत्र  नियंत्रित लोकतंत्र कहा जा सकता है। इन देशों के शासकों ने देशी तरीकों से समस्याओं का समाधान करना चाहा है। पाकिस्तान में बुनियादी लोकतंत्र के सम्बन्ध में के०जे० न्यूमेन (K. J. Newmen) ने कहा है-“बुनियादी लोकतंत्र संबंधी राजाज्ञा के परिणामस्वरूप पाकिस्तान एशिया के उन राज्यों के साथ हो गया है जिनके लिए पश्चिम के ढंग  का संसदीय लोकतंत्र एक धोखा सिद्ध हुआ है तथा जो लोग इच्छा या अभिव्यक्ति के लिए किसी देशी ढंग की खोज में लगे हुए है।”

बुनियादी लोकतंत्र के आधारभूत सिद्धान्त

बुनियादी लोकतंत्र के निम्नलिखित तीन आधारभूत सिद्धांत हैं:-

(i) लोकतंत्र में सरकारी तत्वों की प्रधानता (Predominance of Governmental elements in basic Democracy)- जनतंत्र में जनता का सहयोग बुनियादी लोकतंत्र का आधार है। यह सहयोग किस हद तक हो, इसका निर्णय सरकारी तत्त्व द्वारा किया जाता है। यह सरकार का ही उत्तरदायित्व है कि वह जनमत जगाने की जिम्मेदारी ले| जनता के सामने विचार-विमर्श के लिए प्रश्नों को रखने का उत्तरदायित्व भी सरकार का ही है।

(ii) राजनीतिक दलबंदी से स्वतंत्र (Independent from Partisan Politics)-बुनियादी लोकतंत्र अपने को राजनीति से अलग रखना चाहता है। वह राजनीतिक दलों की प्रतियोगिता को बढ़ावा नहीं देता।

(iii) जनतंत्र का स्वरूप जनजागरण के अनुसार (Nature of Democracy in accordance with people’s consciousness)-बुनियादी लोकतंत्र का कहना है कि लोकतंत्र का स्वरूप जनता के बैद्धिक स्तर के अनुरूप होना चाहिए। जनता की शैक्षणिक या बौद्धिक योग्यता के अनुसार देश का जो आर्थिक और सामाजिक स्तर हो, उसी स्तर के अनुरूप प्रजातंत्र के स्वरूप का निर्धारण होना चाहिए।

बुनियादी लोकतंत्र की कार्य-प्रणाली और उद्देश्य

बुनियादी लोकतंत्र की कार्य प्रणाली-

इस प्रकार, बुनियादी लोकतंत्र के व्यावहारिक स्वरूप का जब हम विश्लेषण करते हैं तब यह स्पष्ट होता है कि इसे सफल बनाने के लिए इसका संगठन जनता के बौद्धिक स्तरों में किया जाए। पुनः यह प्रत्येक स्तर के संगठन पर उससे ऊपर के संगठन का नियंत्रण रखता है। यह लोकतंत्र जनमत का प्रभाव शासन पर उसी हद तक देता है जिस हद तक जनता अपनी समस्याओं को समझाने की योग्यता रखती हो, अर्थात् जनता का बौद्धिक स्तर, चूँकि उच्चकोटि का नहीं है, इसलिए यह जनतंत्र उसे प्रादेशिक तथा राष्ट्रीय स्तर की समस्याओं के समाधान और नीतियों में भाग लेने की इजाजत नहीं देता। राष्ट्रीय स्तर की समस्याओं की पूरी जिम्मेदारी यह सरकार को देता है।

बुनियादी लोकतंत्र में प्रत्यक्ष चुनाव का जहाँ तक प्रश्न है, इसकी व्यवस्था केवल नीचे के स्तरों में की जाती है और ऊपर के स्तरों का चुनाव सीढ़ी-दर-सीढ़ी अप्रत्यक्ष होता जाता है। बुनियादी लोकतंत्र का पाकिस्तानी स्वरूप यह स्पष्ट करता है कि चुनाव की व्यवस्था केवल निम्नतर इकाई पर ही की गई थी जिसका आधार वयस्क मताधिकार था।

बुनियादी लोकतंत्र के उद्देश्य

(Objective of Basic Democracy)-

बुनियादी लोकतंत्र जनता को सीमित दायित्व प्रदान कर उसे लोकतंत्र में प्रशिक्षित करने का एक प्रयास है। बुनियादी लोकतंत्र की यह मूल भावना है कि लोकतंत्र में भाग लेने वाली जनता के बौद्धिक स्तर के अनुरूप लोकतंत्र के स्वरूप का निर्धारण होना चाहिए। चूँकि जनता का स्तर निम्नकोटि का होता है, इसलिए प्रारंभ में जनता को लोकतंत्र में भाग लेने के लिए सीमित अधिकार दिया जाता है। जैसे जैसे जनता लोकतंत्र में प्रशिक्षित होती जाएगी, वैसे वैसे जनता की योग्यता लोकतंत्र के लिए बढ़ती जाएगी और तब लोकतंत्र को उच्चतर स्तर की ओर ले जाकर उसे पूर्ण बनाया जा सकेगा। ऐसा करके ही आज के नवोदित देश सच्चे अर्थ में लोकतांत्रिक देश बन सकते हैं। ऐसा करके ही पश्चिमी लोकतंत्र के दोषों से आज के पिछड़े हुए तीसरे विश्व (Third World) के लोकतांत्रिक देश बच सकते हैं। बुनियादी लोकतंत्र का एक अन्य उद्देश्य यह है कि यह जनता के मानस में धीरे-धीरे लोकतंत्र की प्रक्रिया को जागृत करता है।

बुनियादी लोकतंत्र की समस्याएँ

(Problems of Basic Democracy)

बुनियादी लोकतंत्र सम्बन्धी उपर्युक्त मान्यताओं के विश्लेषण के बाद इसकी कुछ उलझनें हमारे सामने उपस्थित हो जाती है। इसकी पहली समस्या यह है कि यह निम्न स्तरों पर वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष चुनाव की व्यवस्था करता है, लेकिन ऊपर के स्तरों में अप्रत्यक्ष चुनाव की व्यवस्था करता है। सचमुच यह एक बहुत बड़ी उलझन है, जिसको सुलझाए बिना बुनियादी लोकतंत्र अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सकता । बुनियादी लोकतंत्र इस उलझन का मूल कारण जनता की योग्यता में कमी बता सकता है। इसका यह अर्थ हुआ कि बुनियादी लोकतंत् जनता में अविश्वास प्रकट करता है, इसलिए हम यह कह सकते हैं कि चूंकि, बुनियादी लोकतंत्र जनता की योग्यता में विश्वास न कर जनता को राष्ट्रीय महत्त्व के मामलों से अलग रखता है, इसलिए इसकी सफलता असंदिग्ध है।

बुनियादी लोकतंत्र की दूसरी समस्या यह है कि इसके अंतर्गत सरकारी तत्त्वों पर विशेष रूप से जोर दिया गया है। चूंकि सरकारी तत्त्व जन-प्रतिनिधियों पर अंकुश का कार्य करते हैं, इसलिए जनता और उसके प्रतिनिधि इस लोकतंत्र से उदासीन हो जाते हैं। इसकी तीसरी उलझन यह है कि यह जनता को सही शिक्षा प्रदान नहीं करता। आम जनता को यह केवल निम्न स्तर की इकाइयों के निर्वाचन में भाग लेने की अनुमति देता है, उच्चस्तरीय इकाइयों के संगठन में जनता को भाग लेने से वंचित कर देता है। इसका परिणाम यह होता है कि जनता राष्ट्रीय या प्रादेशिक स्तर की समस्याओं को नहीं जान पाती जिससे जनता का सही प्रशिक्षण नहीं होता।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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