जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक

जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक

जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक

सन् 1881 में पहली बार भारत में जनगणना की गयी जिसके अनुसार जनसंख्या 25 करोड़ थी। तत्पश्चात् प्रति दशाब्दी में जनगणना होती रही है। वर्ष 1991 मे कुल जनसंख्या 84.63 करोड़ थी जो सन् 1921 की तुलना में लगभग 3.4 गुना अधिक हो गयी थी।

वर्ष 1921 से 1951 के मध्य यह वृद्धि 11 करोड़ रही, वहीं स्वतन्त्रता के पश्चात् वर्ष 1951 से होने वाली वृद्धि दर ने पूर्व सभी अनुमानों को पीछे छोड़ दिया। वर्ष 1951 और वर्ष 1961 के बीच 7.8 करोड़ की वृद्धि हुई। वर्ष 1961 से 1971 के बीच वृद्धि की मात्रा 10.8 करोड़ एवं वर्ष 1971 से 1981 के मध्य 13.7 करोड़ एवं वर्ष 1981-91 के बीच यह वृद्धि 16.66 करोड़ हुई जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। सन् 2011 में देश की जनसंख्या 121.02 करोड़ हो गयी। इस प्रकार वर्ष 2001-2011 में दशकीय वृद्धि 17.64% रही।

सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या का औसत घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है, परन्तु विभिन्न क्षेत्रों में इसमें भारी भिन्नता पायी जाती है। एक ओर दिल्ली राज्य में जनसंख्या का घनत्व 11297 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है, वहीं दूसरी ओर अरुणाचल प्रदेश में मात्र 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी निवास करते हैं ।

जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक

भारत में जनसंख्या वितरण को प्रभावित , करने वाले भौगोलिक कारक निम्नलिखित हैं।

  • धरातल या भू-आकृति
  • स्वास्थ्यप्रद जलवायु
  • तापमान
  • वर्षा की मात्रा
  • उपजाऊ भूमि
  • यातायात के साधन
  • उद्योग-धन्धे
  • खनिज पदार्थ
  • शान्ति एवं सुरक्षा
  1. धरातल या भू-आकृति

धरातल की प्रकृति या भू-आकृति जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। समतल मैदानी भागों में मनुष्य के लिए आजीविका के साधन (विशेषत: कृषि) तथा परिवहन के साधन आदि पर्याप्त विकसित होते हैं। इसलिए भारत में सर्वाधिक जनसंख्या मैदानों (नदी-घाटियों तथा डेल्टाओं) में निवास करती है। गंगा घाटी तथा डेल्टा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी के डेल्टा प्रदेश इसीलिए घने आबाद हैं। इसके विपरीत पठारी, पहाड़ी तथा मरुस्थलीय क्षेत्रों में कम आबादी मिलती है। हिमालय के उच्च पर्वतीय क्षेत्र तथा थार मरुस्थल विरल आबाद हैं। प्रायद्वीप के पठारी क्षेत्रों में मध्यम सघन आबादी मिलती है।

  1. स्वास्थ्यप्रद जलवायु

अनुकूल जलवायु मानव को क्षेत्र विशेष में रहने को आकर्षित करती है। भाबर, तराई, गंगा का निम्न डेल्टा आदि क्षेत्रों में दलदल व वनों की अधिकता तथा आर्द्र जलवायु के कारण विषैले कीड़े-मकोड़े तथा जंगली जीवों एवं बीमारी के कारण बहुत कम घने बसे हैं, जबकि भारत के मैदानी क्षेत्रों में अच्छी जलवायु के कारण सर्वत्र अधिक जनसंख्या पायी जाती है।

  1. तापमान

अधिक ऊँचे तापमान जनसंख्या के जमाव में बाधा डालते हैं, जबकि सामान्य तापमान इसको आकर्षित करते हैं। बहुत ही नीचे तापमान, जैसे ऊँचे हिमालय प्रदेश शीत के कारण जनसंख्या से शून्य होते हैं, किन्तु निचले पहाड़ी ढाल ग्रीष्म ऋतु में मैदानी भागों की अपेक्षा ठण्डे रहते हैं। अत: शिमला, नैनीताल, मसूरी, आदि की ग्रीष्म ऋतु में जनसंख्या बढ़ जाती है, किन्तु शीत ऋतु में ठण्ड के कारण फिर से घट जाती है।

  1. वर्षा की मात्रा

भारत जैसे कृषि-प्रधान देश में जनसंख्या का वितरण एवं घनत्व वर्षा की मात्रा अथवा जल उपलब्धता से विशेष रूप से प्रभावित है। 100 सेन्टीमीटर वर्षा रेखा के पश्चिमी भाग, वर्षा की कमी के कारण कम घने हैं, जबकि इसके पूर्व्वी भागों में घनत्व अधिक पाया जाता कम वर्षा वाले भागों में भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, आदि राज्यों में सिंचित क्षेत्रों के कारण जनसंख्या अधिक पायी जाती है। इसके विपरीत, असोम तथा हिमाचल प्रदेश में जल का निकास ठीक न होने से अधिक वर्षा होने पर भी जनसंख्या कम पायी जाती है।

जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले कारक तथा जनसंख्या घनत्व का अर्थ

  1. उपजाऊ भूमि

भारत में सबसे अधिक जनसंख्या उपजाऊ समतल मैदानों, नदियों की घाटियों, तटीय मैदानों या डेल्टाओं में निवास करती है, क्योंकि इन क्षेत्रों की उपजाऊ भूमि उन्हें पर्याप्त खाद्यान्न एवं जीविकोपार्जन के साधन प्रदान करती है। यही कारण है कि भारत में जनसंख्या का घनत्व उत्तर के विशाल मैदान और पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय मैदानों में अधिक पाया जाता है, जबकि दकन के पठार तथा थार केमरुस्थल में जनसंख्या कम निवास करती है।

  1. यातायात के साधन

यातायात के साधन मानव-जीवन में उपयोगी पदार्थों की आपूर्ति करते हैं। व्यापार, उद्योग, कृषि आदि सभी यातायात साधनों से प्रभावित होते हैं। पर्वतीय वनों जनसंख्या वितरण को प्रभावित से ढके हुए तथा मरुस्थलीय प्रदेशों में, जहाँ परिवहन के साधनों का विकास नहीं हो पाया है, अपेक्षाकृत कम जनसंख्या निवास करती है। गंगा-यमुना के विशाल मैदानों में रेलों एवं सड़कों का जाल बिछा होने के कारण जनसंख्या का जमघट पाया जाता है।

  1. उद्योग-धन्धे

उद्योग धन्धे जनसंख्या के वितरण को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं। मानव प्राचीन काल से ही जीवन-यापन के विविध साधनों की ओर आकर्षित होता रहा है। औद्योगिक क्षेत्रों में लोग रोजी-रोटी कमाने के उद्देश्य से दूर-दूर से आकर बस जाते हैं। फलतः इन क्षेत्रों में जनसंख्या का अत्यधिक केन्द्रीकरण हो जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, कर्नाटक, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु राज्य उद्योग -धन्धों के कारण ही घने बसे हुए हैं।

  1. खनिज पदार्थ

जिन राज्यों में कोयला, लौह-अयस्क, ताबा, सोना, खनिज तेल आदि उपयोगी एवं बहुमूल्य खनिज पदार्थ निकाले जाते हैं, वहाँ जनसंख्या का घनत्व भी अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है। भारत में छोटा नागपुर का पठार, बिहार, ओरडिशा तथा तमिलनाडु राज्यों में जैसे-जैसे खनिज पदार्थों का खनन होता गया, वैसे-वैसे जनसंख्या के घनत्व में निरन्तर वृद्धि होती गयी। इसी प्रकार असोम और गुजरात के खनिज तेल क्षेत्रों में भी धीरे-धीरे जनसंख्या घनत्व में वृद्धि हो रही है।

  1. शान्ति एवं सुरक्षा

मानव स्वभाव से उन्हीं क्षेत्रों में बसना चाहता है जहाँ उसे चोर-डाकुओं का भय नहीं रहता तथा उसे अपनी जान-माल को सुरक्षित रखने में कोई कठिनाई नहीं होती। चम्बल घाटी में डाकुओं के भय से लोग अन्य स्थानों पर बस गये हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों में पड़ोसी देशों द्वारा सदैव घुसपैठ करते रहने के कारण शान्ति एवं सुरक्षा भंग होती रहती है; अत: इन क्षेत्रों में सामान्यतः जनसंख्या कम पायी जाती है अथवा अस्थायी रूप से निवास करती है; जैसे-जम्मू-कश्मीर राज्यों में दरास एवं कारगिल क्षेत्र।

उपर्युक्त कारणों के आधार पर भारत में औद्योगिक केन्द्रों, पत्तनों के समीप, नदियों की घाटियों, समतल मैदानों एवं खनन क्षेत्रों के समीप जहाँ जीवन-यापन एवं आवागमन के साधनों की पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हैं, जनसंख्या अधिक निवास करती है। इसके विपरीत पहाड़ी, पठारी एवं मरुस्थलीय क्षेत्रों, जहाँ प्रतिकूल जलवायु एवं जल का अभाव पाया जाता है, जनसंख्या कम निवास करती है। भारत के कृषि- क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व सघन पाया जाता है। यह कृषि-क्षेत्र पंजाब के सिंचित क्षेत्र से आरम्भ होकर उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल होते हुए पूर्वी घाट के ओडिशा, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु राज्यों से पश्चिमी घाट, केरल, गोआ, महाराष्ट्र एवं गुजरात तक विस्तृत है।

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