भूमण्डलीय ऊष्मन( Global Warming)| समस्याएँ, भूमंडलीय ऊष्मन के कारक

भूमण्डलीय ऊष्मन | Global Warming in Hindi | भूमंडलीय ऊष्मन द्वारा उत्पन्न समस्याएँ | भूमंडलीय ऊष्मन के कारक

भूमण्डलीय ऊष्मन( Global Warming)| समस्याएँ, भूमंडलीय ऊष्मन के कारक
भूमण्डलीय ऊष्मन( Global Warming)| समस्याएँ, भूमंडलीय ऊष्मन के कारक

भूमण्डलीय ऊष्मन | Global Warming in Hindi | भूमंडलीय ऊष्मन द्वारा उत्पन्न समस्याएँ | भूमंडलीय ऊष्मन के कारक

भूमण्डलीय ऊष्मन

वैश्विक स्तर पर धरातलीय सतह तथा वायुमंडल के तापमान मे मन्द गति से वृद्धि तथा भूमण्डलीय विकरण (ऊष्मा) संतुलन मे परिवर्तन को भूमण्डलीय ऊष्मन कहते हैं।

भूमण्डलीय ऊष्मन प्रकृतिक तथा मानव जनित कारकों , दोनों तरह से होता है , परन्तु प्राकृतिक कारकों द्वारा भूमण्डलीय ऊष्मन और शीतलन बहुत मन्द गति से लम्बे समय मे होते है तथा ऊष्मन एवं शीतलन की ये प्राकृतिक प्रक्रियाये उत्क्रमणीय होती हैं , अर्थात ऊष्मन होने बाद शीतलन तथा शीतलन होने ले बाद ऊष्मान होता रेहता है , परन्तु मानव जनित भूमण्डलीय ऊष्मन तेजी से होता है तथा उत्क्रमणीय नहीं होता है अर्थात एक निश्चित सीमा की प्राप्ति के बाद वह दुबारा नहीं हो पता है।

1750 से 2000 ई० तक भूमण्डलीय ऊष्मान या भूमण्डलीय स्तर पर तापमान मे वृद्धि की प्रवित्ति तथा प्रतिरूप का कोई वैज्ञानिक संगठन तथा संस्थाओं ने अध्ययन किया है। इस संदर्भ मे कई प्रतिमान भी तैयार किए गए हैं।

वैज्ञानिकों ने वायुमंडलीय तापमान मे वृद्धि की प्रवित्ति के निर्धारण के लिए विश्वसनीय सक्षों के संकलन के लिए सार्थक प्रयास किया है। ज्ञातव्य है कि विश्व स्तर मे विभिन मौसम केंद्र मे वायुमंडलीय तापमान तथा धरतलीय सतह के तापमान का विधिवत मापन और अभिलेख 1880 से प्रारम्भ हुआ ,अंत: इसके पहले के तापमान का अनुमान किया जाता था।तापमान की वृद्धि के निर्धारण मे केवल वही साक्ष्य उपयोगी हो सकते हैं जो तापमान आधारित हों ऐसे कुछ साक्ष्यों को निम्नलिखित किया गया है –

  1. तापमान का अभिलेख
  2. पर्वतीय एवं महाद्वीपीय हिमनदों का पिघलना
  3. भूमण्डलीय स्तर पर सागरीय जल का ऊष्मन
  4. सागर तल मे उभार
  5. परमाफ्रास्ट क्षेत्रों मे हिमद्रवण के कारण संकुचन
  6. उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधी पर्वतों की हिमरेखा का स्थानांतरण
  7. उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधी रोगों का शीतोष्ण एवं ध्रुवीय क्षेत्रों मे प्रसरण
  8. ऋत्विक मौसम की परिघटनाओं मे कालिक स्थानांतरण तथा वर्षा के प्रतिरूप मे परिवर्तन
  9. उष्ण कटिबन्ध क्षेत्र मे ध्रुवों की ओर विस्तार।

वायु तापमान मे वृद्धि

20वी शताब्दी मे 0.5° से 0.7°C तक की तापमान वृद्धि दर्ज की गयी थी।IPCC के द्वारा 2001 मे जो रिपोर्ट आई उसके अनुसार 20वी सदी मे भूमण्डल स्तर पर धरातलीय सतह के तापमान मे 0.6°C की वृद्धि हुई है।1750 से ही तापमान मे वृद्धि की प्रवित्ति चलती रही है।IPCC की 2001 की रिपोर्ट मे 1950 से धरातलीय सतह तथा इसके ऊपर स्थित 8 किमी तक की उचाई मे वायुमंडल के भूमंडलीय तापमान मे प्रति दशक मे 0.1° C कीदर से तापमान मे वृद्धि हुई थी।

विश्व स्तर पर तापमान परिवर्तन ही भूमंडलीय ऊष्मन के संकेत करता है जबविश्व स्तर का तापमान सूचकांक मे वृद्धि होती है तो भूमंडलीय ऊष्मन की स्थिति पैदा हो जाती है।

भूमंडलीय ऊष्मन द्वारा उत्पन्न समस्याएँ कुछ इस प्रकार से हैं –

  • वैश्विक स्तर पर तापमान वृद्धि
  • सागर ताल का ऊपर उठना
  • बर्फ का पिघलना
  • सूखे की समस्या का हो जाना
  • गर्म पवनों की समय सीमा का विस्तार होना
  • समुद्र मे अम्लियता का बढ़ना
  • थन्डे क्षेत्रों मे निवास तथा उत्पन्न प्रजातियों की विलुप्त होने की समस्या तथा संभावना
  • खादय पदार्थों के क्षेत्र मे समस्या उत्पन्न होना
  • प्रवालों का रंग श्वेत होना इत्यादि।

IPCC की 2007 की रिपोर्ट के अनुसार 1850 से 2007 तक भूमंडलीय सतह की वायु के लिखित तापमान के इतिहास मे 1998 तथा 2005 सर्वाधिक गर्म वर्ष रहे थे।

इस रिपोर्ट की निम्नलिखिन तापमान वृद्धि की प्रवृत्तियाँ हैं-

  1. 1906 से 2005 के बीच मे भूमंडलीय सतहीय तापमान मे 0.74°C± 0.18°C की वृद्धि को मापा गया।
  2. 1850 से 1899 तथा 2001 से 2005 तक कुल तापमान मे 0.76°C± 0.19°C की वृद्धि हुई।
  3. तापमान प्रतिरूपों के अनुसार भूमंडलीय तापमान मे लगातार वृद्धि के संकेत मिलते आ रहे हैं।
  4. भूमंडलीय तापमान की वृद्धि मे नगरीकरण तथा भूमि उपयोग परिवर्तन के प्रभाव नगण्य रहे हैं।
  5. महासागरीय सतह की तुलना मे स्थलीय क्षेत्रों के तापमान मे बहुत अधिक वृद्धि दर्ज की गयी है।

20वी शताब्दी (1920 से 2000 तक या वर्तमान तक) मे तापमान परिवर्तन को 6 भागों मे बांटा गया है जो कुछ इस प्रकार हैं –

  1. 1920 से पहले – तापमान थंडा था।
  2. 1920 से 1940 – अचानक तापमान वृद्धि।
  3. 1940 से 1970 – फिर थोड़ा थंडा तापमान।
  4. 1970 से 1985 – फिर से तापमान मे अचानक वृद्धि।
  5. 1985 से 1997 – तापमान धीरे – धीरे तापमान मे वृद्धि।
  6. 1997 से वर्तमान – तापमान मे पहले से तीव्र वृद्धि।

स्रोत :- क्लाइमेट नासा . गवरमेंट

भूमंडलीय ऊष्मन के संकेत निम्नलिख तथ्यों तथा कारकों द्वारा पता चलते हैं-

  1. हिमचादरों एवं हिमनदियों का पिघलना –विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर हमे ये पता चलता है कि ग्रीनलैंड एवं अंटार्कटिका की हिमचादरें टूट रही हैं तथा उनका पिघलाव हो रहा है। अंटार्कटिका की हिंचादरों की नियम से जांच करने के अनुसार ज्ञात होता है कि इनमें 100 मीटर प्रतिवर्ष की दर से संकुचन हो रहा है। 1950 के बाद से पश्चिम अंटार्कटिका मे 4°C तक कि वृद्धि तापमान मे प्राप्त की गयी है। और यही पर हम अंटार्कटिका का औसत तापमान देखे तो ज्ञात होता है कि यहाँ पर 2°C की वृद्धि हुई है।रूस की काकेसस पर्वत पे जमी हिंनदियों मे 1960 मे पहले की अपेक्षा 50% हा हास्य हुआ है। इसी प्रकार चीन मे भी 1960 के पहले अब के व्यानशान पर्वत मे 25% की हानी प्राप्त होती है।माउंट किलिमंजारो जो तंजानिया मे स्थित है उसके हिमावरण लगभग अब समाप्त हो चुके हैं।
  2. परमाफास्ट का पिघलना – साइबेरिया मे परमाफास्ट पिघलने से वह पे दबी मीथेन का विमोचन हो रहा है। इस कारणवश भूमंडलीय तापमान मे और अधिक तीव्रता से वृद्धि हो रही है|
  3. उष्ण तथा उपोषण कटिबन्ध के रोगों जैसे कि मलेरिया , कालरा इत्यादि का मध्य तथा उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों मे फैलाव हो रहा है।
  4. पेंगविन्स की संख्या मे भी निरंतर कमी देखने को प्राप्त हो रही है अंतिम के तीन दशकों मे ही यहाँ पर 40% की लगभग कमी देखने को मिलती है।
  5. समुद्री प्रवालों का भी विनाश हो रहा है उनके संख्या मे भी कमी आ रही है। 1997 से 1998 मे लगभग 60 देशों तथा द्वीप के प्रवाल अत्यधिक तीव्र गति से नष्ट हुए हैं। अंडमान सागर मे तो 2°C तक की तापमान मे वृद्धि दर्ज की गयी है।
  6. 20वी शताब्दी मे सम्पूर्ण पृथ्वी के सागरों का औसत तापमान बढ़ के अधिक हो गया है यहाँ पर लगभग 0.6°C की वृद्धि दर्ज की गयी है। इस कारण से सागर का तल भी लगभग 15 से 25 सेमी तक ऊपर आ गया है।
  7. जेट स्ट्रीम जो की थन्डे प्रदेशों मे चलती है उनका भी लगातार ध्रुवों की ओर खिसकना इस बात का संकेत है कि भूमंडलीय ऊष्मन बढ़ रहा है।

 

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