राजनीति विज्ञान / Political Science

सन्त टामस एक्विनास की जीवनी । सन्त टामस एक्विनास की रचनायें | Biography of Saint Thomas Aquinas in Hindi | Compositions of Saint Thomas Aquinas in Hindi

सन्त टामस एक्विनास की जीवनी । सन्त टामस एक्विनास की रचनायें | Biography of Saint Thomas Aquinas in Hindi | Compositions of Saint Thomas Aquinas in Hindi

सन्त टामस एक्विनास की जीवनी

टामस एक्विनास का जन्म कब हुआ इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद सा है। कुछ विचारकों का अभिमत है कि उनका जन्म 1225 ई० में हुआ था और कुछ कहते हैं कि उनका जन्म सन् 1226 ई० में हुआ था। परन्तु 1225 ई० में टामस की जन्मतिथि अधिक तर्कसंगत भासित होती है और अधिकांश विद्वान इसी तिथि की ही संपुष्टि करते हैं। उन दिनों नेपल्स नाम की एक रियासत थी जिनमें एक्वीनास नाम का नगर था। यही नगर टामस का जन्म-स्थान बतलाया जाता है। टामस के पिता उक्त नगर के काउन्ट थे। टामस के सात भाई-बहन थे। टामस की माता का नाम थ्योडरा था जो जर्मन जाति के राजवंश की कन्या थीं। बाल्यकाल से ही टामस ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। टामस की स्मरण-शक्ति बहुत अच्छी थी। टामस के माता-पिता अभिजात्य (Aristocrat) वर्ग के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उन लोगों की इच्छा थी कि उनका पुत्र कोई उच्च राज्याधिकारी बने। परन्तु टामस ने डोमनीकन सम्प्रदाय का अनुयायी बनने का निश्चय किया। डोमनीकन सम्प्रदाय की आचरण सम्बन्धी शुद्धता और नैतिकता ने टामस को बड़ा प्रभावित किया और 1244 ई० में वह इस संप्रदाय का सदस्य हो गया।

टामस के माता-पिता उसके इस कार्य से बहुत दुःखी हुए। उन्होंने टामस को समझाने की कोशिश की। परन्तु उनका प्रयास असफल रहा; अतः इससे टामस के पिता अत्यन्त क्रुद्ध हो गये और उन्होंने सेना में अधिकारी पदों पर काम करने वाले अपने बड़े पुत्रों की आज्ञा दी कि वे बल-प्रयोग द्वारा टामस को पकड़ कर घर पर ले आवें। टामस के दोनों भाइयों ने यही किया। इस पर भी जब टामस नहीं माना तो उसे कमरे में ताला लगाकर बन्द कर दिया गया।

वह लगभग एक वर्ष तक इसी प्रकार बन्द रहा। इसी बीच उसने ईसाई ग्रन्थों का व्यापक और गहरा अध्ययन किया। अवसर पाकर वह घर से भाग निकला और सीधा मठ में पहुँचा। परन्तु उसका वही रहना सुरक्षित न था, इसलिए वह मठ से पेरिस चला गया, और वहाँ उसने विश्वविद्यालय में अपना नाम लिखाया। शीघ्र ही उसकी ख्याति चारों ओर फैल गई। पेरिस से वह जर्मनी गया। वहाँ बोल्सटाङ के अलबर्ट की शिष्यता स्वीकार कर उसने अरस्तू के तर्क शास्त्र और राजनीति सम्बन्धी ग्र्थों का अत्यन्त गहन अध्ययन किया। अपनी मौलिकता, आध्यात्मिकता, श्रेष्ठता और सत्यनिष्ठा के कारण वह बड़ा प्रसिद्ध हो गया। पेरिस विश्वविद्यालय, ने उसे धर्म के प्राचार्य ( Master of Theology) की उपाधि से विभूषित किया। उपाधि प्राप्त करने के बाद 12 वर्षों तक उसने ईसाई धर्म के प्रचार का कार्य लगन तथा उत्साह के साथ किया।

टामस अपने युग का राजनीतिशास्त्र का सबसे बडा अधिकारी विद्वान समझा जाता था। उसकी राजनीतिक बुद्धि तथा योग्यता का प्रमाण इससे अधिक और क्या हो सकता है कि बड़े- बड़े नरेश उससे शासकों के कर्त्तव्यों को बतलाने की प्रार्थना करते थे। फोरस्टर ने उसके सम्बन्ध में लिखा है-

“St. Thoms Aquinas is one of the greatest systematic philosophers of the world. He represents as no other medieval thinker does, totality of medieval thought.” – Foster.

एक्विनास ने विश्वास और तर्क का प्रतिपादन अपने विचारों द्वारा किया। उसने अरस्तू तथा आगस्टाईन के दर्शनशास्त्र व धर्मशास्त्र के विरोधी सिद्धान्तों में समन्वय स्थापित किया और उसने राजनीति को एक नया मोड़ दिया। डरनिंग के शब्दों में-

“He is the greatest of later scholastics, and perhaps of all scholastics. Through him politics enters once more into the circle of the sciences and assumes a position like that assigned to it by Aristotle.” – Dunnring.

एक्विनास की रचनाएँ-

एक्विनास एक महान् लेखक था। यद्यपि उनकी मृत्यु 47 वर्ष की ही आयु में हो गई थी, किन्तु उसने अपने अल्प जीवन-काल में अनेक ग्रंथों की रचना की। प्रारम्भ में उसके ग्रंथों को लोगों ने संदेह की दृष्टि से देखा और उनके ऊपर प्रतिबन्ध लगा दिया। यह नीति प्रभावहीन सिद्ध हुई, और चर्च ने बुद्धिमत्तापूर्वक ईसाई सिद्धान्तों के अनुसार उसकी व्याख्या करने की सोची। यह उस युग का मुख्य बौद्धिक धन्धा बन गया। एक्विनास की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं-

  • सम्मा ध्योलोजिका (Summa theologica)-

इस ग्रंथ में टामस ने प्लेटो की परम्पराओं तथा अरस्तू के दर्शन का, रोमन कानून, बाइबिल की शिक्षाओं चर्च फादर्स तथा अन्य महान धर्मशा्त्रियों के कथनों का समावेश किया। इसमें टामस ने पाप, अवतार, मृत प्राणियों का पुनः जागरण, तपस्या, श्रद्धा, ऐक्य, अनेक्य, ईश्वर पूर्णता तथा सृष्टि के सदृश विषयों के अतिरिक्त कानून, न्याय तथा सरकार की विवेचना की है। इस विषय-सूची से स्पष्ट हो जाता है कि यह ग्रन्थ मुख्य रूप से एक राजनीतिक ग्रन्थ नहीं है वरनु उसमें टामस की सम्पूर्ण विचारधारा का समावेश है।

(2) कमेण्ट्रीज आन अरिस्टोटल (Commentaries on Aristotle)
(3) डी रेजिमीन प्रिंसिपम (De Ragimine Principum)

टामस के अनुसार समस्त मानव ज्ञान एक इकाई है। इसकी तुलना एक पिरामिड से की जा सकती है, जिसका आधार बहुत से विशिष्ट विज्ञानों से मिलकर बना है, जिसमें से प्रत्येक का अपना एक अध्ययन-विषय है। उनके ऊपर दर्शन है जो उन सार्वभौमिक सिद्धान्तों का निर्माण करता है जो कि विभिन्न विज्ञानों के आधार हैं। यह किसी विशेष विषय जैसे कि पदार्थ तथा उसकी गति, वनस्पति जीवन अथवा मनुष्य अथवा सौर मण्डल इत्यादि का अध्ययन नहीं करता, वरन् यह समस्त विश्व का अध्ययन करता है और उसके विषय में एक संश्लेषणात्मक दृष्टिकोण निर्धारित करता है। विशिष्ट-विवेक विशिष्ट विज्ञानों के जानने का साधन है। दर्शन का साधन सामान्य विवेक है। यूनानी विचारक दर्शन को ज्ञान का शिखर और विशुद्ध विवेक को उसकी सर्वोत्कृष्ट साधन समझता था। टामस उससे आगे बढ़ जाता है और कहता है कि दर्शन के ऊपर भी धर्मशास्त्र है जिसका साधन श्रद्धा और अन्तज्ञान है, विवेक नहीं।

प्रोफेसर सेबाइन के शब्दों में “विज्ञान और दर्शन जिस पद्धति को आरम्भ करते हैं, धर्मशास्त्र उसे पूर्ण करता है श्रद्धा विवेक (Reason) की पूर्णता है। वे दोनों एक साथ मिलकर ज्ञान के मन्दिर का निर्माण करते हैं, परन्तु कहीं भी वे एक दूसरे से टकराते नहीं, एक दूसरे के विरुद्ध कार्य नहीं करते। “

आर्ष धर्मोपदेश वेद शास्त्राविरोधिना ।

यस्तकेणानुसंधत्तेस धर्म वेद नेतरः-मनुस्मृति ।

फोस्टर के अनुसार टामस मध्ययुग की समन्वयवादी विचारधारा का सर्वोत्तम व्याख्याता है। उससे पहले भौतिक क्षेत्र में यूनानी, रोमन और ईसाई सभ्यताओं का मिश्रण हो चुका था, उसने बौद्धिक क्षेत्र में यूनानी बुद्धिवाद और ईसाई श्रद्धा का समन्वय किया।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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