कुम्भ - निष्कर्ष एवं सुझाव

कुम्भ – निष्कर्ष एवं सुझाव

कुम्भ – निष्कर्ष एवं सुझाव

            प्रस्तुत लघु शोध के अंतर्गत हमारे द्वारा कुम्भ की स्थित, विस्तार तथा लगातार उसकी बढ़ती भव्यता का ज्ञान एकत्रित करने का प्रयास किया गया है तथा यह निष्कर्ष प्राप्त किया गया है कि कुम्भ का भौगोलिक वितरण कुछ इस प्रकार का है कि प्रत्येक जगह जो चार स्थान पर कुम्भ लगता है सभी किसी ना किसी नदी के किनारे स्थित हैं हरिद्वार गंगा नदी के किनारे, प्रयाग गंगा, यमुना तथा अदृश्य सरस्वती नदी के संगम के किनारे , उज्जैन शिप्रा नदी और नासिक गोदावरि नदी के किनारे पर स्थित है| प्रयागराज का कुम्भ ज्यादा प्रसिद्ध है क्योकि यह गंगा यमुना तथा सरस्वती नदी के किनारे पर तथा यहाँ पर कुम्भ, अर्द्ध कुम्भ तथा इसके अलावा यहाँ पर प्रत्येक वर्ष माघ मेले का आयोजन होता है जिसमें कि कुम्भ या अर्द्ध कुम्भ जौसा ही आयोजन किया जाता है लोग आते हैं स्नान करते है तथा कल्पवास की भी सुविधा होती है परंतु इस मेले में नागा साधू लोग सम्मिलित नहीं होते हैं तथा नहीं ये मेला इतना भव्य तथा विस्तृत होता है | कुम्भ हो अर्द्ध कुम्भ हो या माघ मेला हो यहाँ विदेशी लोगो का इस मेले को लेके उत्साह उतना ही होता है |

            कुम्भ मेले और प्रयागराज जिले के बीच के संस्कृति सम्बंध की  बात करें तो यह ज्ञात होता है कि प्रयागराज एक ऐतिहासिक भूमि के रूप में तो प्रसिद्ध है ही साथ ही साथ ये कुम्भ की भव्यता से भी बहुत प्रभावित होता है यह प्राप्त किया गया है कि जब जब कुम्भ या अर्द्ध कुम्भ होता है प्रयागराज में पर्यटन के लिए लोगो कि संख्या में वृद्धि हो जाती है तथा ये पर्यटक को सिर्फ कुम्भ दर्शन के लिए ही नहीं प्रयागराज के भी दर्शन या भ्रमण के लिए भी आते हैं | प्रत्येक वर्ष दर वर्ष कुम्भ के लिए आने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है |

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            इतिहास की माने तो कुम्भ को मनाने का कारण है कि अमृत कलश के लिए हो रहे युद्ध के दौरान चार स्थानों पर अमृत की बुँदे गिरी जिसके कारण की ये स्थान पवित्र हो गए या ये कह सकते हैं कि यहाँ की धरती में अमृत है इस कारण यहाँ पर कुम्भ का आयोजन किया जाता है | कुम्भ के प्रत्येक बारह वर्ष बाद मनाने का कारण है कि हिन्दू जो की भगवान में मान्यता रखते हैं उनके द्वरा यह माना जाता है कि भगवान जहां स्वर्ग में निवास करते हैं उनका एक दिन हमारे पृथ्वी के एक वर्ष के बराबर होता है तथा ये अमृत कलश को पाने के लिए इस किए गए युद्ध में देवताओं तथा दानवों को बारह दिन का समय लगा था जिस कारण से ये कुम्भ का आयोजन बारह वर्ष बाद किया जाता है | यह पर्व पृथ्वीलोक में भारत के चार स्थानों प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में हर बारह वर्ष पर महाकुंभ के रुप में और प्रयाग व हरिद्वार में दो महाकुंभ के बीच में छठवें वर्ष अर्द्ध कुम्भ के रुप में मनाया जाता है |

            कुम्भ एक ऐसा पर्व है जहां समस्त मानव जाति के बीच वंश, वर्ण, धर्म का भेद मिट जाता है | सबके मन में ईश्वर में लीन होने और मोक्ष की कामना होती है | यहाँ विश्व के हर कोने से आने वाले करोड़ों तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों को देखना अपने आप में अद्भुत, जीवंत और अनूठा होता है | यह पर्व विश्व का सर्वाधिक श्रेष्ठ और विशालतम धार्मिक समागम वाला होता है, जहां विश्व के कोने-कोने से अलग अलग मान्यताओं वाले, भाषाओं वाले, परम्पराओं वाले, संप्रदायों वाले लोग आते हैं और पवित्र नदियों के संगम के जल में स्नान कर मोक्ष के भागीदार बनते हैं |

            कुम्भ हमारे संस्कृति में कई दृष्टि से महत्वपूर्ण है | पूर्णता को प्राप्त करना ही हमारी संस्कृति का लक्ष्य है| प्रयागराज का कुम्भ अन्य कुम्भ  से सबसे अधिक महत्वपूर्ण है क्योकि यह प्रकाश की ओर ले जाता है | यह ऐसा स्थान है जहां बुद्धिमत्ता का प्रतीक सूर्य का उदय होता है | इस स्थान को ब्रह्मांड का उद्गम और पृथ्वी का केंद्र माना जाता है | एसी मान्यता है कि ब्रह्मांड की रचना से पहले ब्रह्मा जी से यहाँ अश्वमेध यज्ञ किया था | द्श्वमेध घाट और ब्राम्हेश्व्र मंदिर इस यज्ञ के प्रतीक स्वरूप अभी भी यहाँ मौजूद हैं | इस यज्ञ के कारण भी कुम्भ का विशेष है | ऐसा माना जाता है कि कुम्भ और प्रयाग एक दूसरे के पर्यायवाची हैं |

            कुम्भ की घटना के समय मानव द्वारा जो सांस्कृतिक गतिविधियां होती हैं उनमे से स्नान तथा शाही स्नान होता है जो की एक महत्वपूर्ण संस्कृति होती है इस मेले में नागा साधुओं तथा साधुओं के द्वारा प्रवचन भी दिया जाता है जो की यह बताता है की जीवन में किस प्रकार से किसी कार्य को करना है तथा साथ ही साथ ये भी की जीवन जीने का तरीका कैसा होना चाहिए | प्रवचनकर्ता भक्ति, शास्त्रीय गायन के साथ कृष्ण के आख्यानों की व्याख्या भी करते हैं। भीड़ में कई लोग शामिल हैं, जो ब्रिंदावन में स्थित कृष्ण भक्ति के इस रूप के अनुयायी हैं, साथ ही पूरे भारत के भक्त हैं। इसके साथ ही साथ यहाँ पर कल्पवास की भी सुविधा होती है तथा बहुत सारे लोग यहाँ कल्पवास के लिए आते हैं | यहाँ प्रयागराज में पंचकोशी परिक्रमा भी होती है जो की बहुत वर्षों के उपरांत इस वर्ष 2019 में पुनः प्रारम्भ हुई है | कुम्भ के दौरान हर कुम्भ या अर्द्ध कुम्भ में कोई एक उद्देश्य को लेके इस कुम्भ को पूरा किया जाता है | इसमें इस वर्ष 2019 में कुम्भ का उद्देश्य नेत्र कुम्भ रखा गाय था | 50 दिनों तक चलने वाले इस नेत्र कुम्भ के मध्याम से 10 लाख लोगो कि आँखों कि जांच के साथ 1 लाख लोगों को निःशुल्क चश्में भी प्रदान करने का तथा 10 हजार लोगों का आपरेशन कर ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाभ पहुंचाने का प्रयास किया गया है |

प्रथम अध्याय – प्रस्तावना

द्वितीय अध्याय – प्रयागराज की भौगोलिक तथा सामाजिक स्थिति

तृतीय अध्याय – प्रयागराज के सांस्कृतिक विकास का कुम्भ मेले से संबंध

चतुर्थ अध्याय – कुम्भ की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

पंचम अध्याय – गंगा नदी का पर्यावरणीय प्रवाह और कुम्भ मेले के बीच का सम्बंध

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