भूगोल / Geography

एल्सवर्थ हंटिंगटन – अमेरिकी भूगोलवेत्ता (Ellsworth Huntington – American geographer)

एल्सवर्थ हंटिंगटन
एल्सवर्थ हंटिंगटन

एल्सवर्थ हंटिंगटन – अमेरिकी भूगोलवेत्ता (Ellsworth Huntington American geographer)

एल्सवर्थ हंटिंगटन (1876-1947) एक भूवैज्ञानिक, भूगोलवेत्ता और जलवायु विज्ञानी के रूप में प्रसिद्ध हैं। हंटिंगटन संयुक्त राज्य के बेलोइट कालेज (Beloit College) से स्नातक उपाथि प्राप्त करने के पश्चात् टर्की चले गये जहाँ उनकी नियुक्ति एक कालेज में भूगोल के प्राध्यापक के रूप में हो गयी। वहाँ हंरटिंगटन ने 1901 तक कार्य किया इस अवधि में उन्होंने टर्की के विभिन्न भागों की यात्रा और अध्ययन किया इसी बीच उन्होंने ईराक की फरात (यूफ्रेट्स) नदी के प्रवाह मार्ग का निरीक्षाण किया और विस्तृत शोघ सामग्री एकत्रित की। 1901 में वे स्वदेश लौट आये और हारवर्ड विश्वविद्यालय में डेविस के निर्देशन में स्नात्कोत्तर पाठ्यक्रम पूरा किया।

1903-04 में हंटिंगटन मध्य एशिया की खोज यात्रा पर चले गये उन्होंने 1905-06 में उत्तरी भारत की यात्रा की थी। भारत से तारीम बेसिन होते हुए उन्होंने साइबेरिया के सुदूरपूर्व तक की यात्रा और सर्वेक्षण किया था। हंटिंगटन 1907 में खोज यात्रा से स्वदेश लौट आये और येल विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रशिक्षक (Instructor) नियुक्त हुए। उन्होंने 1909 में अपने प्रकाशित कार्यों के आधार पर एल विश्वविद्यालय से डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त किया और अगले वर्ष यहीं पर सहायक प्रोफेसर पद पर नियुक्त कर लिए गये जहाँ उन्होंने 1915 तक कार्य किया। उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध के अंतिम वर्ष में संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना में गुप्तचर विभाग में भी कार्य किया था। पाँच वर्ष पश्चात् 1920 में उनकी नियुक्ति एल विश्वविद्यालय में ही भूगोल विभाग में शोध निर्देशक (Research Director) के पद पर हुई जहाँ वे अपनी सेवानिवृत्ति (1945) तक कार्य करते रहे।

हंटिंगटन की रचनाएं

हंटिंगटन एक महान विचारक, लेखक और खोजयात्री थे। वे बहु-आयामी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने दो दर्जन से अधिक (28) पुस्तकें अकेले लिखा था और लगभग 30 पुस्तकों में वे सहलेखक थे। हंटिंगटन ने अपने जीवन-काल में 175 से अधिक शोध लेख प्रकाशित किये थे । उनकी अधिकांश रचनाओं के मुख्य विषय थे- जलवायु और उसका प्रभाव, मानव सभ्यता का विकास, भौमिकी तथा भूआकृति विज्ञान, प्रादेशिक भूगोल, मानव जाति आदि। हंटिंगटन की कुछ प्रमुख पुस्तकें निम्नांकित हैं-

  1. The Pulse of Asia (एशिया की नाड़ी), 1907,
  2. Civilization and Climate, 1915 (सभ्यता और जलवायु),
  3. Palestine and Its Transformation, 1911 (फिलिस्तीन और इसका रूपांतरण),
  4. Principles of Human Geography, 1920 (मानव भूगोल के सिद्धान्त),
  5. Climatic Change; Its Nature and Factors, 1922 (जलवायविक परिवर्तन : उसकी प्रकृति एवं कारक),
  6. Earth and Sun, 1923 (पृथ्वी और सूर्य),
  7. Character of Races, 1924 (प्रजातियों के लक्षण),
  8. Human Habitat, 1927 (मानवीय आवास),
  9. Economic and Social Geography, I933 (आर्थिक एवं सामाजिक भूगोल),
  10. Principles of Economic Geography), 1940 (आर्थिक भूगोल के सिद्धान्त),
  11. Main Springs of Civilization, 1945 (सभ्यता के मुख्य स्रोत)।

हंटिंगटन की विचारधारा

हंटिंगटन भूगोल को मानव जीवन पर प्राकृतिक पर्यावरण के प्रभाव के विश्लेषण पर केन्द्रित अध्ययन मानते थे। वे प्राकृतिक पर्यावरण के तत्वों में जलवायु को सर्वशक्तिमान और प्रभावशाली मानते थे। उन्होंने मानव भूगोल के विषय क्षेत्र की तार्किक व्याख्या की थी और वे नियतिवाद के पन्के समर्थक थे। हांटिंगटन के मौलिक विचार निम्नांकित हैं-

(1) मानव भूगोल के तत्व

हंटिंगटन ने मानव भूगोल के तत्वों को एक चार्ट द्वारा प्रदर्शित किया है और उन्हें तीन प्रधान श्रेणियों में विभक्त किया है जो इस प्रकार हैं-(1) भौतिक दशाएं (Physical conditions), (ii) जीवन के प्रकार (Forms of life), और (iii) मानव प्रतिक्रियाएं (Human responses)। उन्होंने इन तीनों प्रकार के तत्वों के पारस्परिक सम्बंधों की विस्तृत व्याख्या की है। उन्होंने सर्वप्रथम यह दश्शाया है कि भौतिक तत्व किस प्रकार एक-दूसरे को प्रभावित करते हुए अंतर्संबंधित हैं। इनका सामूहिक प्रभाव जैविक रूपों (वनस्पति, जीव-जन्तु और मनुष्य) पर होता है जबकि विभिन्न जैविक रूप भी आपस में एक-दूसरे से सम्बंधित हैं। भौतिक दशाओं, पौधों तथा पंशुओं से मानव की क्रिया-प्रतिक्रिया होती है जिसके परिणामस्वरूप मानव प्रतिक्रियाओं की उत्पत्ति होती है हंटिंगटन के अनुसार मानव प्रतिक्रियाएं मानव भूगोल के प्रमुख तत्व हैं। उन्होंने समस्त मानव प्रतिक्रियाओं को निम्नांकित चार वर्गों और 22 उपवर्गों में विभक्त किया है-

(अ) भौतिक आवश्यकताएं (Material Needs)- (1) भोजन, (2) वस्त्र, (3) आश्रय, (4) औजार, और (5) यातायात के साधन।

(ब) मौलिक व्यवसाय (Fundamental 0ccupations)- (6) आखेट, (7) मत्स्याखेट, (8) पशुचारण, (9) कृषि, (10) वनोद्योग, (:1) खनन, (12) विनिर्माण, और (13) वाणिज्य।

(स) कार्यकुशलता (Efficiency)- (14) स्वास्थ्य, (15) सांस्कृतिक प्रेरणा, और ( 16) मनोरंजन।

(द) उच्चतर आवश्यकताएं (Higher Needs)- (17) प्रशासन या सरकार, (18) शिक्षा, (19) विज्ञान, (20) धर्म, (21) कला, और (22) साहित्य।

हंटिंगटन से पूर्ववर्ती भूगोलवेत्ता मानव प्रतिक्रियाओं के प्रथम दो वर्गों भौतिक आवश्यकताओं और मौलिक व्यवसायों को ही मानव भूगोल का तत्व मानते थे। हंटिंगटन ने इसमें कार्यकुशलता और उच्चतर आवश्यकताओं से सम्बंधित तत्वों को सम्मिलित करके मानव भूगोल के क्षेत्र को अधिक पूर्ण और व्यापक बना दिया है। इस प्रकार हंटिंगटन द्वारा किया गया मानव भूगोल के तत्वों का वर्गकरण निश्चितरूप से सुबोध, सार्थक तथा तार्किक है यद्यपि इससे मानव भूगोल का विषय-क्षेत्र अपरिमित ही जाता है।

नियतिवादी विचार

हंटिंगटन पर्यावरण नियतिवाद के प्रबल समर्थक थे। उनके अनुसार किसी प्रदेश के मानव समूह के क्रिया-कलापों, गुण एवं सांस्कृतिक विकास के निर्धारण में प्राकृतिक तत्वों की प्रमुख भूमिका होती है। वे प्राकृतिक तत्वों में जलवायु को सर्वोपर मानते थे। उन्होंने अपनी पुस्तक सभ्यता और जलवायु (Civilization and Climate, 1915) में उत्तरी-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, पश्चिमी यूरोप और पूर्वी एशिया की समशीतोष्ण जलवायु को मानवीय प्रगति के लिए सर्वोत्तम और सर्वाधिक उपयुक्त बताया था। उन्होंने ‘मानव भूगोल के सिद्धान्त’ (1920) में लिखा है कि ‘मानव का भौगोलिक वितरण किसी अन्य तत्व की तुलना में जलवायु और मौसम पर अधिक निर्भर होता है। (The geographical distribution of man depends on climate and weather more than any other factor) I

हटिंगटन ने मानव इतिहास और मानव सभ्यता के विकास पर भौतिक तत्वों विशेषतः जलवायु के प्रभावों की विस्तृत विवेचना की है। उन्होंने लिखा है कि उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में अधिक गर्मी पड़ने के कारण वहाँ के मनुष्यों की कार्यक्षमता कम हो जाती है जिससे वहाँ के लोग सामान्यतः निर्धनता में निम्न जीवन यापन करते हैं जबकि शीतोण्ण कटिबंधीय प्रदेशों की जलवायु मनुष्य की कार्यक्षमता एवं क्रियाशीलता में वृद्धि करती है जिसके परिणामर्वरूप वहाँ के निवासी सामान्यतः सम्पन्न होते हैं और उच्च जीवन व्यतीत करते हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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