भूगोल / Geography

सागरीनितल का फैलाव | Dilatation of the seafloor in Hindi

सागरीनितल का फैलाव | Dilatation of the seafloor in Hindi

सागरीनितल का फैलाव

हेस की संकल्पना सागर भूवैज्ञानिकों तथा भूमतिकीविदों के प्रारम्भिक कार्यों पर आधारित थी। 1952 में मैसन ने प्रशान्त महासागर में चुम्बकमापी यंत्र की सहायता से सागर नितल की शैलों के चुम्बकत्व से सम्बन्धित महत्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त की। तदन्तर इन्होंने उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट (मेक्सिको से ब्रिटिश कोलम्बिया तक) के सहारे प्रशान्त महासागर के नितल का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के दौरान चुम्बकीय विसंगति (magnetic anomies) के आंकड़ों को एक चार्ट पर जब प्रदर्शित किया गया तो उत्तर-दक्षिण दिशा में लम्बी पट्टियों (stripes) का

स्पष्ट प्रारूप सामने आया। इन आधारों पर हेस ने प्रतिपादित किया कि मध्य महासागरीय कटक मैण्टिल से उठने वाली संवहन तरंगों के ऊपर स्थित है। इस कटक के सहारे नये पदार्थो (लावा) का निर्माण होता है तथा इस तरह से नवनिर्मित क्रस्ट कटक के दोनों ओर सरकती जाती है। इस प्रकार हेस के अनुसार सागर नितल में प्रसार होता है (मध्य महासागरीय कटक के सहारे) तथा  महासागरीय खड्ड के सहारे क्रस्ट का विनाश होता है।

1963 में वाइन तथा मैथ्यू ने हिन्दमहासागर में कार्ल्सबर्ग कटक के मध्यवर्ती भाग का चुम्बकीय सर्वेक्षण किया तथा सामान्य चुम्बकन की अवधारणा के आधार पर चुम्बकीय परिच्छेदिका का परिकलन किया। जब इस परिच्छेदिका की तुलना सर्वेक्षण के समय प्राप्त विवरण के आधार पर तैयार की गयी चुम्बकीय विसंगति परिच्छेदिका से की गई तो दोनों में पर्याप्त अन्त गया। डीज तथा हेस की सागर नितल प्रसरण की संकल्पना एवं पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में सामयिक उत्क्रमण के साक्ष्यों के आधार पर वाइन तथा मैथ्यू ने बताया कि मध्य महासागरीय कटक के सहारे बेसाल्ट की परत का निर्माण यदि ऊपर उठती संवहन तरंगों के द्वारा होता है तो जिस समय लावा संगठित होता है उसी समय उसका चुम्बकन पृथ्वी के मुख्य चुम्बकत्व क्षेत्र की दिशा में ही होता है और कटक के दोनों ओर चुम्बकीय विसंगति का प्रारूप धारीदार (एकान्तर रूप में) हो जाता है और स्पष्टीकरण के लिये व्यकत किया जा सकता  है कि महासागरीय कटक के सहारे नये लावा का उद्वेलन होता है तो वह प्रारम्भिक बेसाल्ट परत को दो बराबर भागों में विभक्त कर देता है तथा ये दोनों भाग कटक के दोनों ओर क्षैतिज रूप में सरक जाते हैं। काक्स, डोयल, इलरिम्पल के 1964, ओपडाइक (1966) तथा हेरिट्जलर (1966) आदि के द्वारा विभिन्न क्षेत्रों के  अध्ययन के बाद यह सत्यापित हो गया  कि (1) पृथ्वी के मुख्य चुम्बकत्व क्षेत्र में उत्क्रमण होता है, (2) मध्य महासागरीय कटक के दोनों ओर सामान्य एवं उत्क्रमण चुम्बकीय विसंगति एकान्तर (alternate) रूप में पायी जाती है, (3) कटक के दोनों ओर चुम्बकीय विसंगतियों में पूर्ण समरूपता पायी जाती है तथा (4) बेसाल्ट शैल या अवसादी शैल के चुम्बकन के आधार पर 4.5 मिलियन वर्षों के लिए परिकलित पुराचुम्बकीय कल्प एवं घटनाओं के समय अनुक्रम (time sequence of paleomagnetic epochs and events) में सामंजस्य पाया जाता है।

वह दो बराबर भागों में विभक्त होकर महाद्वीपीय किनारों की ओर (कटक से दूर होती जाती है) सरकती जाती है। कटक के दोनों ओर धनात्मक एवं ऋणात्मक चुम्बकीय विसंगतियाँ पायी जाती हैं जो कि चुम्बकीय क्षेत्र में सामयिक परिवर्तन का कारण बनती है। सामान्य भूचुम्बकीय क्षेत्र के समय निर्मित शैलों में धनात्मक चुम्बकीय विसंगति होगी तथा चुम्बकीय क्षेत्र  के उत्क्रमण (reverse polarity) के समय ऋणात्मक विसंगति होगी।

इन तथ्यों के आधार पर चुम्बकीय पट्टियों की आयु का निर्धारण, सागर नितल के प्रसरण की दर तथा विभिन्न महाद्वीपों के प्रवाह का समय परिकलित किया जा सकता है।

4.5 मिलियन वर्षों तक निर्मित चुम्बकीय पट्टियों का तिथि निर्धारण प्रत्यक्ष रूप से (सर्वेक्षण के दौरान प्राप्त विवरणों के आधार पर) कर लिया गया है। Heirtzler ने 1968 में अलग-अलग महासागरीय नितल के स्थिर प्रसरण (अनुमानित) के आधार पर इन चुम्बकीय पट्टियों का 75 मिलियन वर्ष तक का समय मापक तैयार किया। तत्पश्चात सभी महासागरों के लिए समकालिक रेखा (isochrons) – वह रेखा जो समान तिथि के बिन्दुओं को मिलाती है) का निर्माण 10 मिलियन वर्षों के अन्तराल पर किया गया। 10 मिलियन वर्ष की समकालिक रेखा मध्यसागरीय भ्रंश को प्रदर्शित करती हैं। इसी तरह प्रत्येक समकालिक रेखा पर अंकित अंक उतना मिलियन वर्ष पूर्व का समय प्रदर्शित करता है। सागर नितल के प्रसरण की दर का परिकलन दो आधारों पर किया जाता है।

(1) समकालिक रेखा की आयु, तथा

(2) उनके बीच की दूरी।

इस आधार पर गणना करके विभिन्न महासागरों के प्रसरण की दर ज्ञात की गयी है। अटलाण्टिक तथा हिन्द महासागर सबसे मन्द गति (1 से 1.5 सेन्टीमीटर प्रतिवर्ष) से फैलते हैं। जबकि प्रशांत महासागर में प्रसरण की दर (6 सेण्टीमीटर प्रतिवर्ष) सबसे अधिक है।

ज्ञातव्य है कि महासागर के प्रसरण की दर आधी होती है। पूर्व प्रसरण के लिए व्यक्त की गयी दर को दोगुना करना होता है। कटक के दोनों ओर समान दर से प्रसरण होता है। यदि प्ररण की दर एक सेमी प्रतिवर्ष व्यक्त की जाती है तो इसका तात्पर्य कटक के एक ही तरफ का प्रसरण होता है। पूर्व प्रसरण एक + एक = 2 सेण्टीमीटर होगा। अभिनव अध्ययन के आधार पर तीनों महासागरों के प्रसरण की दर पूर्वी प्रशान्त कटक के सहारे भूमध्य रेखा तथा 30° द. अक्षांश के मध्य 6 से 9 सेण्टीमीटर प्रतिवर्ष, दक्षिण अटलाण्टिक कटक के सहारे 2 सेण्टीमीटर प्रतिवर्ष तथा हिन्द महासागर में 1.5 से 3 सेण्टीमीटर प्रतिवर्ष (ये सभी आंकड़े आधे है) है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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