पारितंत्र के प्रकार

पारितंत्र के प्रकार | पारितंत्र के कार्य | Types of ecosystem in Hindi | Ecosystem functions in Hindi

पारितंत्र के प्रकार | पारितंत्र के कार्य | Types of ecosystem in Hindi | Ecosystem functions in Hindi

पारितंत्र के प्रकार

पारितंत्र को मुख्य रूप से अग्रलिखित पाँच भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  1. ऊर्जा के स्त्रोत तथा स्तर के आधार पर वर्गीकरण-

इस आधार पर ओडम में पारितन्त्र के अग्रलिखित चार प्रकार बताए हैं-

(1) असहाय्यित प्राकृतिक सौर ऊर्जा प्रेरित पारितन्त्र- इस प्रकार के तन्त्र का संचालन सौर ऊर्जा द्वारा होता है। खुला समुद्र, विस्तृत क्षेत्र में प्राकृतिक वनस्पति, घास के मैदान तथा अगाध झीलें ऐसे ही पारितन्त्र हैं। ऐसे तन्त्रों में पोषक तत्वों का अभाव हो जाता है।

(2) प्रकृति साहिय्यत ऊर्जा सम्पन्न सौर ऊर्जा प्रेरित पारितन्त्र- यह पारितन्त्र वाले पारितन्त्र से इस अर्थ से भिन्न है कि इसमें सौर ऊर्जा के साथ-साथ अन्य प्राकृतिक तत्व भी पूरक ऊर्जा प्रदान करते हैं। ज्वार-भाटा, वायु, प्रवाही जल या जैव-भू-रासायनिक चक्र ऐसे ही पूरक तत्व हैं। इन पूरक ऊर्जा स्रोतों के कारण प्रति इकाई क्षेत्र में ऊर्जा की सघनता अधिक हो जाती है। इससे पारितन्त्र में प्राथमिक उत्पादकता अधिक हो जाती है।

(3) मानव साहिय्यत ऊर्जा सम्पन्न सौर ऊर्जा प्रेरित पारितन्त्र – मनुष्य प्रकृति में अपने लाभ के लिए अनुपूरक ऊर्जा की आपूर्ति बहुत पहले से करता चला आ रहा है। वह प्रकृति की उत्पादकता में वृद्धि-खेतों में खाद डालकर, अच्छे बीज बोकर तथा सिंचाई करके-भी कर लेता है। इस प्रकार के पारितन्त्र में ऊर्जा का स्रोत केवल सौर ऊर्जा ही नहीं है, वरन मानव निर्मित यन्त्रों (ट्रैक्टरों, जनरेटरों, डायनमों, बैटरियों आदि) से यान्त्रिक ऊर्जा मिलती है।

(4) ईंधन-प्रेरित नगरीय औद्योगिक पारितन्त्र-यह पारितन्त्र पूर्णतया जीवाश्मीय ईंधन जैसे-कोयला, पेट्रोलियम, लकड़ी, प्राकृतिक गैस, जलविद्युत शक्ति या अणु शक्ति से प्राप्त ऊर्जा द्वारा प्रेरित एवं संचालित होता है। इनके अन्तर्गत सौर ऊर्जा पूर्ण रूप से ईधन ऊर्जा से प्रतिस्थापित हो जाती है।

2. निवास-स्थान के आधार पर पारितन्त्र का वर्गीकरण-

इस आधार पर पारिस्थितिकी तन्त्र के दो भेद होते हैं-

(1) पार्थिव पारितन्त्र- इसे स्थलीय पारितन्त्र भी कहते हैं। इसे कई उपविभागों में भी बाँटा जा सकता है, उदाहरणार्थ-उच्चस्थलीय या पर्वतीय पारितन्व्र, उष्ण रेगिस्तानी पारितन्तर आदि।

(2) जलीय पारितन्त्र इसमें सागर, नदी, झील, दलदल व जलाशय आदि आते हैं।

3. इकोक्लाइन के आधार पर पारितन्त्र का वर्गीकरण-

दो विभिन्न परितंत्रों के मध्य संक्रमणीय मण्डल का इकाक्लाइन कहते हैं। ह्वाइटकर ने विश्व स्तर पर चार प्रादप प्रवणता रेखाएँ बताई हैं-

(i) अत्यधिक आर्द्रता वाले पारितन्त्र (उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन)

(ii) अपेक्षाकृत अधिक आर्द्रता वाले पारितन्त्र (प्रेयरी तथा शुष्क घास कषेत्र)

(iii) मानसूनी या पतझड़ी वन पारितन्त्र एवं

(iv) टैगा या बोरियल पारितन्त्र।

4. उपयोग के आधार पर पारितन्त्र का वर्गीकरण-

इस आधार पर पारितन्त्रं को निम्नांकित दो प्रमुख वर्गों में बाँटा जाता है-

(i) कृषित पारितन्त्र तथा

(ii) अकृषित या प्राकृतिक पारितन्त्र।

गेंहूँ चावल, गन्ना या चारा-क्षेत्रों में सम्बन्धित पारितन्त्र कृषित पारितन्त्र हैं, जबकि बंजर भूमि अथवा ऊँची घास अकृषित पारितन्त्र है।

5. पारितन्त्र की विकासावस्था के आधार पर वर्गीकरण-

अनुक्रमण द्वारा परितंत्र का विकास होता है। अवस्थाओं के आधार पर इसे निम्नलिखित चार प्रकारों में बाँटा जा सकता है-

(1) प्रारम्भिक पारितंत्र- इस प्रकार के तंत्र में शुद्ध समुदाय का उत्पादन अधिक होता है, आहार श्रृंखला रेखीय होती है, सकल जैव पूँज कम होता है, जैविक विविधता कम होती है, जीव छोटे आकार वाले होते हैं तथा जीवन-चक्र साधारण होता है।

(2) प्रौढ़ पारितंत्र– इसमें शुद्ध समुदाय की उत्पादकता कम होती है। आहार श्रृंखला जटिल होती है एवं आहार जाल का रूप धारण कर लेती है।

(3) मिश्रित पारितंत्र- इस तंत्र में प्रारम्भिक तथा प्रौढ़ तंत्रों की विशेषताएँ मिली-जुली मिलता है।

(4) अक्रिय पारितंत्र- यह विनष्ट पारितंत्र है। ज्वालामुखीय उद्गार या हिमयुग के आगमन से प्रारम्भिक तथा प्रौढ़ तंत्रों के नष्ट होने से अक्रिय पारितंत्र बनता है।

पारितंत्र के कार्य

पारितंत्र के कार्य निम्नलिखित होते हैं-

  1. जानवर (उपभोक्ता) पौधों और अन्य पशुओं को अपना आहार बना लेते हैं। इस तरह से ऊर्जा का भोजन द्वारा, जानवरों में स्थानांतरण हो जाता है।
  2. हरे पौधों द्वारा वायु से कार्बन डाईआक्साइड जलाशयों और मृदा से जल और खनिज सौर ऊर्जा की सहायता से ग्रहण किया जाता है, जिससे वह उनका भोजन तैयार हो सके। यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है। इसके द्वारा पारित्र एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया बन जाता है।
  3. जब पौधे और जानवर मर जाते हैं तब विघटनकर्ता उनके मृत शरीर का विघटन करके उसे सरल पदार्थों जैसे कि कार्बन डाईऑक्साइड, जल और खनिज में परिवर्तित कर देते हैं। तत्पश्चात् ये पदार्थ वायु, जलीय स्थल और मृदा में प्रवेश कर जाते हैं जहाँ से उन्हें प्राप्त किया गया था।
  4. उत्पादक हरे पौधों, सौर ऊर्जा के साथ खनिज (जैसे कि कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, मैग्नीशियम, जिंक और लौह) जो कि मृदीय या आकाशीय पर्यावरण के साथ मिलकर या उनकी मदद से जटिल कार्बनिक तत्व का निर्माण करते हैं। यह उनका आहार है। इस तरह से सौर ऊर्जा की मदद द्वारा वह भोजन की रसायनिक ऊर्जा को गतिज ऊर्जा और आखिर में ऊष्म ऊर्जा में बदल देते हैं।
भूगोल – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *