प्लेटो के साम्यवाद की आधुनिक साम्यवाद से तुलना

प्लेटो के साम्यवाद की आधुनिक साम्यवाद से तुलना | समानताएँ – असमानताएँ

प्लेटो के साम्यवाद की आधुनिक साम्यवाद से तुलना | समानताएँ – असमानताएँ

प्लेटो के साम्यवाद की आधुनिक साम्यवाद से तुलना

प्लेटो का साम्यवाद तथा आधुनिक साम्यवाद मूलभूत रूप से एक दूसरे के विरोधी है। परन्तु दोनों में किसी सीमा तक समानतायें भी पायी जाती हैं। मूलरूप में तो दोनों एक दूसरे के विरोधी हैं परन्तु जहाँ तक उद्देश्य का सम्बन्ध है प्लेटो तथा आधुनिक साम्यवाद में बहुत कुछ समानतायें दृष्टिगत होती हैं। जिस भाँति आधुनिक साम्यवाद समाज एवं राज्य से विभिन्न प्रकार की असमानताओं तथा भेदों को समाप्त कर एकता स्थापित करना चाहता है उसी भाति प्लेटो भी अपने आदर्श राज्य में एकता स्थापित करना चाहता है। प्लेटो के साम्यवाद का लक्ष्य केवल कार्यों के विशिष्टीकरण के लिये मार्ग प्रशस्त करना मात्र ही नहीं है वरन् उसका उद्देश्य राज्य की एकता को भी बनाए रखना है। प्लेटो राज्य की एकता को कार्यों के विशिष्टीकरण के आधार पर बनाये रखने का सुझाव देता है; अतः उगके इन दोनों उद्देश्यों में अधिक सीमा तक समानता है। प्लेटो का तर्क है कि यदि समाज का उच्चवर्ग अपने ही कर्त्तव्यों तथा दायित्वों का पालन करे तथा उसके मार्ग की सभी बाधाये दुर हो जायें तो समाज में पद एवं शक्ति के लिए किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा नहीं होगी। सम्पूर्ण समाज में राजनीतिक एकता स्थापित होगी।

आधुनिक साम्यवाद भी समाज की प्रतिस्पर्धा को समाप्त कर असामनता दूर करना चाहता है। प्रोफेसर बार्कर के शब्दों में, “प्लेटो के साम्यवाद को लाने के साधन आधुनिक साम्यवाद से भिन्न भले ही हो, परन्तु आधुनिक समाजवाद के उद्देश्य मूलभूत रूप से उसी प्रकार के है।“ आधुनिक समाजवाद का उद्देश्य भी समाज में एकता स्थापित करना तथा प्रतिस्पर्धा को समाप्त करना है।

समानताएँ-

प्लेटो के साम्यवाद’ तथा आधुनिक समाजवाद के मध्य निम्नलिखित समानताएँ दृष्टिगत होती हैं-

(1) दोनों का उद्देश्य राजनीतिक एकता तथा राज्य में संतुलन बनाये रखना है।

(2) दोनों में राज्य साध्य है, व्यक्ति साधन है। व्यक्ति राज्य रूपी मशीन का पुजा मात्र है। दोनों ने राज्य को व्यक्ति से अधिक महत्त्व दिया है।

(3) दोनों व्यक्ति के अधिकारों की अपेक्षा कर्त्तव्य पर अधिक जोर देते हैं।

(4) राज्यों की निरंकुशता तथा किसी न किसी प्रकार की तानाशाही में विश्वास करते हैं । यदि प्लेटो के साम्यवाद में दार्शनिक राज्य की निरंकुशता है तो आधुनिक  साम्यवाद में सर्वहारा वर्ग की है।

(5) दोनों समाज में प्रतियोगिता को पसन्द नहीं करते।

(6) दोनों की योजनाएँ काल्पनिक एवं अव्यावहारिक हैं।

(7) दोनों सम्पत्ति के विरोधी हैं। प्लेटो का साम्यवाद दो वर्गों के लिए सम्पत्ति का निषेध करता है और आधुनिक साम्यवाद पूरे समाज के लिए निजी सम्पत्ति का निषेध करता है।

(8) प्लेटो का साम्यवाद अन्याय दूर करने के लिए है और आधुनिक साम्यवाद आर्थिक असमानता दूर करने का साधन है।

(9) मानव की मूल प्रवृत्ति की अवहेलना दोनों साम्यब्राद करते हैं ।

(10) दोनों का लक्ष्य राजनीतिक एकता तथा सांमाजिक एकरूपता बनाकर समाज में शान्ति स्थापित रखने का है।

असमानताएँ-

(1) प्लेटो का साम्यवाद संरक्षक एवं सैनतिक वर्ग के लिये है। समाज के बहुँत बड़े वर्ग अर्थात् उत्पादक वर्ग को यह अछूता छोड़ देता है। इसीलिये बाक्कर ने इसे ‘अर्द्ध-साम्यवाद’ कहा है। इसके विपरीत आधुनिक साम्यवाद पूरे समाज पर लोगू होता है।

(2) प्लेटो के साम्यवाद का क्षेत्र भी सीमित है । यह तत्कालीन यूनानों के नगर राज्यों के लिये है। प्लेटो ने यह कल्पना नहीं की कि उसकी साम्यवादी व्यवस्था सारे संसार में व्याप्त हो जायेगी । मार्क्स की साम्यवादी व्यवस्था का अधार अन्तर्राष्ट्रीय है । वह एक ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय समाज की स्थापना करना चाहता था जिसमें राष्ट्र-राज्यों का अस्तित्त्व समाप्त हो जायेगा और संसार के सभी मजदूर एक होकर पूंजीवादी व्यवस्था का अंत कर डालेंगे।

(3) प्लेटो व्यक्तिगत सम्पत्ति की संस्था का अस्तित्त्व उत्पादक वर्ग के लिये बनाये रहता है जबकि आधुनिक साम्यवाद इस संस्था को आमूल नष्ट कर देने के पक्ष में है।

(4) प्लेटो उपभोक्ता वस्तुओं के सामूहिक प्रयोग की बात तो करता है, परन्तु वह उत्पादन के साधनों पर समाज का नियन्त्रण नहीं स्थापित करता। दूसरी ओर, आधुनिक साम्यवाद इस बात पर बहुत जोर देता है कि उत्पादन के साधनों पर समाज का नियन्त्रण रहे और सभी को उपभोग की वस्तुएँ पर्याप्त मात्रा में मिलती रहें।

(5) प्लेटो के साम्यवाद तथा आधुनिक साम्यवाद के आधार ही एक दूसरे से भिन्न हैं । प्लेटो का साम्यवाद राजनीतिक है जबकि आधुनिक साम्यवाद मुख्यतः आर्थिक है। प्लेटो का अभिमत था कि यदि राजनीतिक तथा आर्थिक शक्तियाँ समाज में एक वर्ग को दी जायें तो समाज में भ्रष्टाचार उत्पन्न होगा; अतः वह शासक वर्ग को केवल राजनीतिक शक्ति प्रदान करने के पक्ष में है। प्रो० बार्कर के शब्दों में, “प्लेटो के साम्यवाद का समाज के आर्थिक ढाँचे से कोई सम्बन्ध नहीं है क्योंकि इसमें व्यक्तिगत उत्पादन की व्यवस्था विद्यमान है तथा यह उत्पादक वर्ग को अछूता छोड़ देता है।” आधुनिक साम्यवाद का उद्देश्य समाज से सब प्रकार के शोषण एवं आर्थिक विषमता का अन्त करना है।

(6) प्लेटो के साम्यवाद का स्वरूप आध्यात्मिक है। यह संरक्षक तथा सैनिक वर्ग को त्याग की ओर उन्मुख करके उनसे सामाजिक हित की अपेक्षा करता है। दूसरी ओर मार्क्स के साम्यवाद का आधार भौतिकवादी है तथा यह समाज के सभी व्गं में राष्ट्रीय सम्पत्ति का समान वितरण करने के पक्ष में है।

(7) दोनों ही विचारधाराओं का जन्म भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में हुआ था। प्लेटो का साम्यवाद एथेन्स में विद्यमान राजनीतिक बुराइयों की प्रतिक्रिया का परिणाम है परन्तु मार्क्स का साम्यवाद 19वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप स्थापित पूँजीवादी व्यवस्था’ के विरुद्ध प्रतिक्रिया है।

निष्कर्ष- उपरोक्त विवरण से यह निष्कर्ष निकलता है कि दोनों साम्यवादी व्यवस्थाओं के आधार, स्वरूप एवं उद्देश्य भिन्न-भिन्न हैं । इसीलिए इनमें समानता कम और भिन्नता अधिक है।

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One Comment

  1. बहुत अच्छा लगा आप की वेबसाइट पर यह पढ़कर मुझे किस तरह से उत्तर लिखना होगा वो समझ आ गया।

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