राजनीति विज्ञान / Political Science

ग्राम पंचायत | ग्राम पंचायतों से आशय | ग्राम पंचायत के कार्य

ग्राम पंचायत | ग्राम पंचायतों से आशय | ग्राम पंचायत के कार्य

पंचायत ग्राम

पंचायत ग्राम सभा की कार्यकारी समिति है। उसके अनेक नाम हैं। आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र तथा राजस्थान में उसे पंचायत; बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पंजाब और पश्चिम बंगाल में ग्राम पंचायत तथा असम, गुजरात और उत्तर प्रदेश में उसे गाँव पंचायत कहते हैं। लगभग दो हजार की जनसंख्या पर एक पंचायत होती है। यह सम्भव है कि इतनी कम जनसंख्या में इस प्रकार के नेता उपलब्ध न हो सकें, जो उन कामों को, जिनकी पंचायत से अपेक्षा की जाती है, प्रभावकारी ढंग से सम्पादित कर सकें। इसके अतिरिक्त एक औसत दर्जे की पंचायत के पास वित्तीय साधन बहुत सीमित होते हैं। इन कमियों को देखते हुए यह अधिक यथार्थवादी प्रतीत होता है कि पंचायत को थोड़े महत्वपूर्ण काम ही सौंपे जायें । इस समय जिस क्षेत्र में पंचायत कार्य करती है ह इतना छोटा है कि उसमें उचित योग्यता के नेतृत्व का उपलब्ध होना कठिन है। इस कमी तथा वित्तीय अभाव के कारण पंचायत एक ऐसा संगठन बन गयी है जिसके पास न तो अच्छा नेतृत्व है और न ही समुचित साधन। परिणामतः वह एक प्रभावहीन- सी संस्था है।

पंचायतों की कुल संख्या 1984 में 2,17,319 थी। ये पंचायतें 5.6 लाख गाँवों की 41.5 कोड़ जनसंख्या के लिए हैं पंचायत की सदस्य संख्या पाँच से इकत्तीस तक होती है। पंचायत के सदय पंच कहलाते हैं। उनका चुनाव ग्राम-संभा द्वारा गुप्त मतदान प्रणाली से किया जाता है। असम, जम्मू-कश्मीर तथा उत्तर प्रदेश इसके अपवाद हैं, जहाँ मतदान हाथ उठाकर किया जाता है। चुनाव के लिए ग्राम सभा के सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रादेशिक विभागों में बाँट दिया जाता है। प्रत्येक विभाग में एक पंच चुना जाता है। केवल असम, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा तथा पंजाब इसके अपवाद हैं। बिहार में अध्यक्ष समेत पंचायत में नौ सदस्य होते हैं। अध्यक्ष मुखिया कहलाता है। नौ में से चार सदस्य प्रत्यक्ष प्रणाली से चुने जाते हैं और शेष चार को मुखिया नामित करता है। असम में खण्ड-स्तरीय निकाय का स्थानीय सदस्य, जो प्रत्यक्ष प्रणाली से ग्राम-सभा द्वारा चुना जाता है, पंचायत का पदेन सदस्य होता है।

पंचायत के पीठासीन अधिकारी के भी विभिन्न नाम हैं। आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, जम्मू- कश्मीर, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब और राजस्थान में वह सरपंच कहलाता है; असम, केरल और तमिलनाडु में उसे प्रेसीडेंट कहते हैं; उत्तर प्रदेश में उसका नाम प्रधान है, बिहार और उड़ीसा में उसे मुखिया कहा जाता है, तथा पश्चिम बंगाल में अध्यक्ष। अध्यक्ष के चुनाव की प्रणाली भी सर्वत्र एक-सी नहीं है। उड़ीसा में उसका चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से जनता द्वारा किया जाता है; असम, बिहार, पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल में उसे ग्राम-सभा चुनती है और आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व मैसूर में उसका चुनाव पंच करते हैं। अध्यक्ष को उसके पद से हटाया भी जा सकता है। सभी राज्यों के विधानों में उसे हटाने का प्रावधान है। सामान्यतः उसे हटाने के लिए पंचायत के उपस्थित तथा वोट देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।

अनेक राज्यों में स्त्रियों, परिगणित जातियों तथा परिगणित जनजातियों के लिए निश्चित संख्या में स्थान (सीटें) सुरक्षित होते हैं। किन्तु आन्ध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल में पंचायतों में स्त्रियों के लिए स्थान सुरक्षित नहीं होते। इसी प्रकार बिहार, जम्मू-कश्मीर, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में परिगणित जातियों तथा परिगणित जनजातियों को विशिष्ट प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। बिहार में मुखिया से आशा की जाती है कि वह चार सदस्यों को नामित करते समय स्त्रियों, परिगणित जातियों तथा परिगणित जनजातियों के दावों को भी ध्यान में रखेगा।

विभिन्न राज्यों में पंचायत का कार्यकाल तीन से पांच वर्ष तक है। आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा, और राजस्थान में तीन; असम, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में चार; केरल, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, मैसूर, हरियाणा, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में पाँच वर्ष है।

बिहार में पंचायतों के तीन वर्गों की कल्पना की गयी है- प्रथम र्ग ग्राम-पंचायत, द्वितीय वर्ग ग्राम-पंचायत तथा तृतीय वर्ग ग्राम-पंचायत। प्रत्येक वर्ग की पंचायत का कार्यकाल पृथक्- पृथक् है- तृतीय वर्ग की ग्राम-पंचायत के लिए तीन वर्ष, द्वितीय वर्ग की ग्राम-पंचायत के लिए चार और प्रथम के लिए पाँच।

ग्राम पंचायत के कार्य

पंचायत के कार्यों की गणना करने से पहले उसको जो भूमिका अदा करने के लिए दी गयी है, उसका विश्लेषण करना आवश्यक है। पंचायत के सुपुर्द वे सब कार्य कर दिये गये हैं जिन्हें करने की सामान्यतः एक स्थानीय प्रशासन से अपेक्षा की जाती है। इसके अतिरिक्त उसे सामुदायिक विकास कार्यक्रम को पूरा करने का साधन भी माना जाता है। इसके अलावा पंचायत राज्य सरकार के एक अभिकरण के रूप में उन विशिष्ट कार्यों का भी सम्पादन करती है जो उसके सुपुर्द कर दिये गये हैं। पंचायत के कार्यों को प्रायः दो वर्गों में विभक्त किया जाता है-अनिवार्य तथा ऐच्छिक। अनिवार्य कार्य वे हैं जो पंचायत को करने ही होंगे, और ऐच्छिक वे हैं जिन्हें वह चाहे तो कर सकती है, अथवा जो उसे राज्य के आदेशानुसार करने पड़ते हैं। कार्यों का वर्गीकरण भी सब राज्यों में समान नहीं है। वस्तुतः ऐसा देखने को मिलता है कि एक विशेष कार्य जो एक राज्य में ऐच्छिक है वहीं दूसरे राज्य में अनिवार्य माना जाता है। उदाहरण के लिए, सार्वजनिक वीधियों के प्रकाश की व्यवस्था और प्राथमिक शिक्षा बिहार में ऐच्छिक कार्यों की कोटि में रखे गये हैं, इसके विपरीत मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब आदि में उन्हें अनिवार्य माना जाता है। अनिवार्य कार्यों की एक सामान्य सूची निम्न प्रकार है:

(1) सार्वजनिक कुओं, तालाबों और कुण्डों का निर्माण, मरम्मत व रखरखाव तथा घरेलू उपयोग के लिए जल की व्यवस्था।

(2) स्नान, धुलाई तथा पशुओं के पीने के लिए जत के साधनों का निर्माण तथा रखरखाव और उसकी शुद्धता को बनाये रखना।

(3) सार्वजनिक मार्गों, शौचालयों, नालियों, ग्राम पंचायतों की सड़कों, पुलियों, पुलों, आदि का निर्माण और रखरखाव।

(4) गाँव के मार्ग तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों में प्रकाश की व्यवस्था।

(5) सार्वजनिक सड़कों, नालियों, बाँधों, तालाबों, कुओं व अन्य सार्वजनिक स्थानों तथा इमारतों की सफाई।

(6) सफाई, मलवहन व्यवस्था तथा ऊधम-उत्पात को रोकना व कम करना।

(7) शवों, पशु-शवों तथा अन्य गन्दगीपूर्ण वस्तुओं के निपटान के स्थानों का नियमन तथा लावारिस शो और पशु-शवों का निपटान।

(8) सार्वजनिक भागों अथवा स्थानों में तथा उन स्थानों में जो किसी की निजी सम्पत्ति नहीं हैं और सार्वजनिक उद्योगों के लिए खुले हुए हैं, चाहे वे स्थान पंचायत की सम्पत्ति हो और चाहे राज्य सरकार की-उसमें जो रुकावटें तथा बाहर निकले हुए छज्जे, चबूतरे आदि हों, उन्हें हटाना।

(9) कृषि का विकास।

(10) कुटीर उद्योगों का परिवर्द्धन।

(11) सहकारिता का परिवर्द्धन।

(12) मवेशीखानों का रखरखाव तथा पशुओं से सम्बन्धित अभिलेखों का रखना।

(13) पशुओं तथा उनकी नस्ल का सुधार और पशुओं की सामान्य देखभाल।

(14) कूड़ा-करकट जमा करने के स्थानों को निश्चित करना।

(15) गोबर की खाद का निर्माण।

(16) लघु सिंचाई साधनों का निर्माण तथा परिरक्षण।

(17) जन्म, मृत्यु तथा विवाहों का पंजीकरण।

(18) ग्राम पंचायत की सम्पत्ति का परिरक्षण

(20) आग लगने को रोकना।

(21) इमारतों का नियमन तथा खेल, तमाशे, दुकानों, खानपान तथा मनोरंजन-गृहों, पेय, मिठाइयों, फलों, दूध आदि के विक्रेताओं का नियमन तथा नियन्त्रण।

(22) लावारिस तथा पागल कुत्तों का नाश।

(23) गाँव की पहरेदारी तथा पशुओं व फसलों को होने वाली क्षति को रोकना।

(24) शौचालयों, पेशाबघरों, नालियों तथा जलस्थानों के निर्माण का नियमन।

(25) आपत्तिजनक व्यवसायों का नियन्त्रण।

(26) सार्वजनिक हाटों, मेलों आदि की स्थापना तथा प्रबन्ध।

(27) सार्वजनिक भूमि का प्रबन्ध तथा गाँव के स्थान का प्रबन्ध, प्रसार एवं विकास।

(28) भूराजस्व तथा उसी प्रकार के अन्य देयों (महसूलों) की वसूली, यदि राज्य सरकार द्वारा यह काम उसके सुपुर्द किया गया हो।

(29) जन-गणना के कार्य में सहायता देना।

(30) उन्नत बीजों के वितरण की व्यवस्था।

(31) सामाजिक शिक्षा का परिवर्द्धन।

(32) गाँवों के स्वयंसेवक दल का संगठन।

(33) आँकड़ों का संग्रह तथा संरक्षण।

(34) माँस के परिरक्षण और बिक्री का नियमन।

(35) सार्वजनिक इमारतों का – प्राचीन तथा ऐतिहासिक स्मारकों का -उनके अतिरिक्त जिन्हें संसद द्वारा अथवा संसद के कानून के अन्तर्गत राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर दिया गया हो- तथा उन चरागाहों तथा वनों का जो पंचायत में निहित अथवा उसके नियन्त्रण में हों, रखरखाव।

(36) ऐच्छिक श्रम का संगठन करना।

(37) भूमि-सुधार योजना के कार्यान्वयन में सहायता देना।

(38) सहकारिता के आधार पर भूमि के प्रबन्ध की और कृषि-ऋण समितियों तथा बहुउद्देश्यीय ऋण-समितियों के प्रबन्ध की व्यवस्था करना।

(39) प्रसूति-गृहों का रखरखाव।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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