भूगोल / Geography

शिक्षा के द्वारा पर्यावरण जन जागरूकता की विशेषताएँ | Characteristics of environmental public awareness through education in Hindi

शिक्षा के द्वारा पर्यावरण जन जागरूकता की विशेषताएँ | Characteristics of environmental public awareness through education in Hindi

पर्यावरण जन जागरूकता

प्रकृति मूल है शिक्षा विकास है। प्रकृति एवं विकास दोनों ही सामाजिकता के अभित्र अंग हैं। इसलिए प्रकृति जीवन का मूल तत्व मानी जाती है जबकि शिक्षा जीवन के विकास का रास्ता दिखाती है तथा संस्कृति जीवन की साज-सज्जा के रूप में कार्य करती है। अतः तीनों के मिश्रण द्वारा ही मानव को सम्पूर्ण जीवन यापन का आभास होता है। युगों कल्पों, सदियों से इन तीनों में एक विशेष संतुलन स्थापित रहा है। आज मानवीय कृत्रिमता द्वारा इसको असंतुलन की ओर ढकेल दिया है।

शिक्षा के द्वारा पर्यावरण जनजागरूकता की विशेषताएँ

पर्यावरण हेतु जनचेतना का होना इसलिए आवश्यक है। क्योंकि जब तक पर्यावरण के प्रति प्रत्येक व्यक्ति को सचेतन नही किया जाता तब तक वह पर्यावरण के प्रति अपना ध्यान आकर्षित नहीं कर सकता। डॉ. नर्सीम ए. आजाद के अनुसार, “एक ऐसा कदम जो किसी उद्देश्य के प्रति जनता को सूचना या शिक्षा के उद्देश्य से उठाया जाये। जन जागरूकता कहलाता है।” ये विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) पर्यावरण जागरूकता की विभिन्न क्रियाओं पर बल (Emphasis on Various Activities of Environment Awareness)- पर्यावरण के प्रति जनता जागरूक रहे इस उद्देश्य से विश्व में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया| जैसे ब्राजील के रियो-डि-जेनेरो शहर में संस्था द्वारा पृथ्वी शिखर सम्मेलन जो सन् 1992 में 3 जून से 14 जून तक आयोजित हुआ तथा पर्यावरण जागरूकता के सम्बन्ध में सबसे पहला सम्मेलन 5 जून, 1972 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में आयोजित हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघीय रियो पर्यावरण (United Nations Rio Earth Summit) द्वारा भी जन जागरूकता के उद्देश्य से अनेक पर्यावरणीय क्रियाओं पर बल दिया गया।

  1. जैव विविधता (Bio Diversity) को संरक्षण प्रदान करके जनता को जागरूक करना।
  2. जलीय संसाधनों की सुरक्षा के उपाय करके जनता को जागरूक करना।
  3. खनिज संसाधनों की सुरक्षा के उपाय करके जनता को जागरूक करना।
  4. वन विनाश की समस्या से निबटना, भू-क्षरण, मरुस्थलीय तथा सूखे के बचावों के प्रस्तावो को जनता के समक्ष रखना।
  5. गरीबी निवारण तथा पर्यावरणीय क्षति की रोकथाम करके जनता को जागरूक करना।
  6. पर्यावरण की सुरक्षा के विषय में जनता को मीटिंग करके बतलाना।
  7. समुद्र तथा सागरीय क्षेत्रों की रक्षा करना जैवीय संसाधनों का उचित उपयोग एवं विकास के उपाय बताकर जनता को जागरूकता प्रदान करना।
  8. जैव तकनीकी तथा जहरीले अपशिष्टों (Toxic wastes) के लिए पर्यावरण संतुलन प्रावधान की व्यवस्था करना।

(2) पर्यावरण जागरूकता का वैश्विक रूप (Environmental Awareness in the Form of Globalization)- विश्व स्तर पर पर्यावरण जागरूकता को संयुक्त रा्ट्र संधीय पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme) कहते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजन किया गया है। यह कार्यक्रम जनता को पर्यावरण के प्रति चेतना प्रदान करता है।

(3) पर्यावरण प्रकृति की देन है (Environment is a Gift of Nature)- यह पर्यावरण असन्तुलित है तो इसका जिम्मेदार मानव को ठहराया जाना उचित होगा, क्योंकि आज के मानव ने पर्यावरण के प्रति संकट उत्पन्न कर दिया है। आज का मानव जीव-जन्तुओं, पड़-पौधों को अपने स्वार्थवश नष्ट करता हुआ चला जा रहा है। वह प्रकृति को नुकसान पहुँचा रहा है। आज का मानव चूंकि पर्यावरण की जानकारी से अनभिज्ञ है इसलिए उसे पर्यावरण के प्रति जागरूक रहना पड़ेगा।

पर्यावरण जागरूकता रियो घोषणा-पत्र 21 की घोषणा- 21 वीं शताब्दी में पृथ्वी को एक बार फिर से हरा-भरा बनाने के उद्देश्य से रियो एजेण्डा-21 के नाम से स्वीकृत हुआ। इस एजेण्डे में पर्यावरण की दृष्टि से मजबूत तथा सुरक्षित विकास पर कैसे बल दिया जाये यह बतलाया गया। यह एजेण्डा चार खण्डो में विभक्त हुआ-

  1. पहले खण्ड में जनसंख्या नीति, स्वास्थ्य देखभाल, गरीबी उन्मूलन, शिक्षा एवं अविकसित मानव समुदायों के विकास पर बल दिया गया ।
  2. दूसरे खण्ड में भोजन, सुरक्षा, साफ-सुथरा पीने योग्य पानी प्रयुक्त हुआ।
  3. तीसरे खण्ड में जीवीय संरक्षण सम्बन्धी प्रावधान रखा गया।

4 चौथे खण्ड में वनों का संरक्षण एवं उचित उपयोग तथा भूमि उपयोग से संबंध विधि का वर्णन करने के साथ-साथ ऐरोसाल (Aerosols) के छिड़काव पर रोक लगाई।

(4) गाँव, शहर, जिला प्रदेश, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय सभी स्तरों पर बल (Emphasis by all the Organization)- गढ़वाल, हुमायूँ क्षेत्र में जन्मा चिपको आन्दोलन वृक्षों के प्रति बढ़ती गई चेतना का प्रतीक ही है। किसी गाँव, शहर व जिला, प्रदेश तथा राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण के प्रति सही-सी जानकारी लेने के पश्चात् कुछ ठोस कार्य किये जा सकते हैं जिनसे पर्यावरण में वांछित स्तर तक सुधार लाया जा सकता है।

(5) पर्यावरण प्रदूषण की समस्या विश्वव्यापी है (The Problem of Environmental Pollution is Universal)- यह समस्या स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पाई जाती है। विकसित राष्ट्र तथा विकासशील राष्ट्र द्वारा पर्यावरण प्रदूषण की समस्याओं के संबंध में अनेक अन्तर्राष्ट्रय सम्मेलनों में चिंतन तथा विचार-विमर्श किया गया है जिससे कोई ठोस समाधान निकल सके। सभी ने पर्यावरण शिक्षा की इस समस्या के समाधान हेतु सशक्त यंत्र माना है और इसका शिक्षण सभी शिक्षा के स्तरों पर सभी छात्रों की औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा प्रणाली द्वारा किया गया है जिस से जन समुदाय में पर्यावरण सचेतना का विकास किया जाता है।

(6) शिखा द्वारा जनचेतना पर बल (Emphasis of Awareness through Education)- स्कूल विषयों में पर्यावरण शिक्षा की पाठ्य पुस्तक को सम्मिलित करने से, औपचारिक शिक्षा प्रणाली द्वारा बालकों तथा युवकों में पर्यावरण हेतु चेतना का विकास किया जा सकता है तथा प्रयास करना आरम्भ कर भी दिया है। अध्यापक शिक्षा के कार्यक्रम में पर्यावरण शिक्षा की पाठ्य-वस्तु को सम्मिलित किया जा रहा है जिससे सेवारत तथा पूर्व सेवा के अभ्यर्थियों के शिक्षकों में सचेतना, बोध, कौशल तथा मूल्यों का विकास किया जा सके। अध्यापक शिक्षा में अनिवार्य तथा विशिष्ट पाठ्यक्रम के रूप में सम्मिलित किया जा रहा है। पर्यावरण शिक्षा द्वारा इस प्रकार सचेतना का विकास प्राथमिक स्तर से आरम्भ करके विश्वविद्यालय स्तर तक प्रयास किया जाता है। पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्यों तथा पाठ्य वस्तु में निरन्तरता की प्रवृत्ति है।

(7) पर्यावरण असंतुलन पर बल (Emphasis on Environmental Imbalance)- प्रदूषण पर्यावरण की मूलता को बिगाड़ देता है। प्रकृति को नष्ट कर देता है। मानव को विभिन्न रोगों से ग्रस्त करता है। उदाहरणतः ध्वनि प्रदूषण से उच्च रक्तचाप, कान में दर्द या अन्य बीमरी, मिचली, चमड़ी में जलन, सरदर्द, स्मरण शक्ति का ह्रास आदि कई शारीरिक रोग एवं चिड़चिड़ापन, मानसिक तनाव, जी घबराना, निराशा आदि मानसिक रोग भी उत्पन्न होते हैं। कल कारखानों एवं सड़क दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण ध्वनि प्रदूषण को ही माना जाता है। वैज्ञानिकों द्वारा किये गये परीक्षणों से यह सिद्ध हो चुका है कि 120 डेसीबल से अधिक की ध्वनि गर्भवती महिला, उसके गर्भस्थ शिशु, बीमार व्यक्तियों तथा 10 साल से कम उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य को अपेक्षाकृत अधिक हानि पहुँचाती हैं। आज परिवहनों, रेलगाड़ियों, बसों, ट्रैक्टरों, ट्रकों, वायुयानों से ध्वनि प्रदूषण होता है। इससे मनुष्यों को कई प्रकार की बीमारियाँ होती हैं तथा व्यक्ति कम सुनने लगते हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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