भूगोल / Geography

पर्यावरणीय संकट को कम करने हेतु जन-संचार माध्यमों की भूमिका

पर्यावरणीय संकट को कम करने हेतु जन-संचार माध्यमों की भूमिका

पर्यावरणीय संकट (समस्या) को कम करने हेतु जन-संचार माध्यमों एवं शिक्षा की भूमिका

(Role of mass Communication Media and Education for reducing the Environmental Crisis)-

जनसाधारण एवं शिक्षा जगत से सम्बन्धित व्यक्तियों को पर्यावरणीय संकट को समझने तथा उसे कम करने हेतु निम्नलिखित साधनों को प्रयोग में लाना पड़ेगा। यह कार्य शिक्षा विभाग एवं पर्यावरणीय शिक्षा द्वारा राज्य एवं केन्द्रीय सरकार द्वारा किया जा रहा है। ये जन संचार के माध्यम निम्नलिखित रूप में उपयोगी हैं-

  1. इकोलोजी क्लब (Ecology Club) – इस क्लब के अन्दर पारिस्थितिकी से सम्बन्धित चार्ट्स, मॉडल्स, आशुरचित उपकरण, प्रदर्शन की अन्य सामग्री, साहित्य, फिल्म स्ट्रिप्स, समाचार-पत्र, पत्र/पत्रिकाएँ पूरक पुस्तकें आदि होती हैं।

यह क्लब पर्यावरण शिक्षा से जुड़े शिक्षक द्वारा चलाया जाता है। यह पर्यावरण तथा पर्यावरणीय शिक्षा से सम्बन्धित चार्ट्स, मॉडल्स छात्रों को दिखाते हैं। पर्यावरण विभाग तथा शिक्षा विभाग से सम्बद्ध पर्यावरण की प्रतियोगिताएँ भी शाला स्तर पर आयोजित करवाते हैं। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएँ भी पर्यावरण के सम्बन्ध में वार्ता संगोष्ठी तथा प्रतियोगिताएँ करती हैं। पोस्टर्स तथा निबन्ध भी लिखवाये जाते हैं।

  1. इकोलोजी प्रयोगशाला (Ecology Lab)-पारिस्थितिकी प्रयोगशाला पर्यावरणीय शिक्षा का प्रमुख स्रोत है। यह पर्यावरण से सम्बन्धित वस्तुओं का स्थल होता है। पर्यावरण के चार्ट्स, पोस्टर्स तथा अन्य प्रदर्शन सामग्री होती है। इस सामग्री द्वारा पर्यावरण प्रदूषण, उसके संरक्षण, स्वच्छता, पोषण एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी मिलती है।

प्रयोगशाला में विभिन्न पौधों (वनस्पतियों), जीव-जन्तुओं, मिट्टी, चट्टान, विभिन्न प्रकार के पत्थर, भूमि को कटाव से बचाने के उपाय, खाद्य श्रृंखला, पोषण आहार व्यवस्था, संतुलित आहार, पर्यावरणीय संतुलन (मानव, पशु तथा पक्षी) आदि का संकलन होता है। पत्तियों का संकलन, प्लास्टिक की थैलियों में किया जा सकता है। इन्हें कार्ड-बोर्ड शीट पर फिक्स किया जा सकता है। इस संबंध में नवाचार को भी प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये ताकि पर्यावरण संबंधित सामग्री तथा उपकरण आदि निर्मित किय जा सकें।

प्रयोगशाला में प्रकाशित साहित्य, रिपोर्टस, संदर्भ साहित्य चार्ट्स होते है। छात्रों के सहयोग से पानी तथा जमीन में रहने वाले जीव-जन्तु, पत्तियाँ, पुष्प आदि जलाशय तथा विज्ञान वाटिका से संकलित कर वहाँ रखे जा सकते हैं।

फिल्म स्ट्रिप्स तथा फिल्म का भी यहाँ प्रबन्ध किया जा सकता है, ताकि किसी भी प्रकरण के बारे में क्रमबद्ध जानकारी मिल सके। इस प्रयोगशाला को बनाने में पर्यावरणीय शिक्षा के शिक्षक तथा सामान्य विज्ञान के शिक्षक मिलकर कार्य करते हैं। यदि विद्यालय में हरबेरियम, टरटेरियम, वाइबेरियम, एक्वेरियम तथा विज्ञान वाटिका हो तो बहुत सी जानकारी छात्र वहाँ से ग्रहण कर सकेंगे।

  1. पुस्तकालय तथा प्रकाशन (Library and Publication)- पर्यावरणीय शिक्षा से सम्बन्धित पुस्तकालय यदि विद्यालय में हो तो अच्छा है अन्यथा प्रकाशित साहित्य पारिस्थितिकी क्लब या प्रयोगशाला में उपलब्ध होना चाहिये।

(i) प्रसारण या प्रस्तुताकरण समय की क्रियाएँ (Presentation Activities)- विद्यार्थियों द्वारा ध्यान से प्रस्तुत कार्यक्रम सनने, देखने एवं उसे नोट करने सम्बन्धी क्रियाए।

(ii) प्रसारण पश्चात् क्रियाएँ (Past broadcast or Telecast Activities)- कार्यक्रम सन्वत्र होने के बाद भी क्रियाएँ जिससे पाठ्यवस्त का सदृढीकरण एवं पृष्ठ-पोषण किया जा सक।

एन. सी. ई. आर. टी. एवं एस. सी. ई. आर. टी. ने यूनिसेफ की प्रयोजनाओं के अन्तर्गत बाल-पोषण एवं स्वास्थ्य तथा स्वच्छता नामक प्रोजेक्ट्स तैयार किये हैं। इनमें पर्यावरण का प्रदूषण से बचाने, अपने स्वास्थ्य को अच्छा बनाने, संतुलित आहार की विद्यालय में व्यवस्था करने सम्बन्धी बातें सम्मिलित हैं। प्रत्येक विद्यालय में पर्यावरण शिक्षा की किट या चार्ट्स भेजे जाते हैं और इसके साथ पर्यावरण से संबंधित संदर्भ साहित्य भी भेजा जाता है।

जीव-विज्ञान अथवा सामान्य विज्ञान के जो भी अध्यापक होते हैं, उन्हें राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (परिषद) प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। जिला स्तर पर भी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में प्रधानाचार्य स्तर का एक पद पर्यावरण शिक्षा को विस्तार करने के लिये (हर विद्यालय में) सृजित किया गया है।

पर्यावरण शिक्षा को पाठ्यक्रम का एक अनिवार्य अंग माना गया है तथा प्रत्येक विद्यालय में इससे सम्बन्धित कई कार्यक्रम हाथ में लिये गये हैं। औपचारिक, अनौपचारिक तथा प्रौढ़-शिक्षा में पर्यावरण शिक्षा की अलग पुस्तकें हैं। इसमें 9 इकाइयाँ समाविष्ट की गयी हैं।

खेल द्वारा पुनर्बलन (Reinforcement Through Game)- बालकों की अभिवृत्ति तथा विषय वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करने के लिये खेल अच्छा साधन है। तनसे 1971 के अनुसार, “जो कुछ भी होता है वह शिक्षक या छात्र के सम्बन्धों में परिवर्तन हेतु इस प्रकार करते रहने से विभिन्न शिक्षा के ढंग का अवसर प्राप्त होता है।”

खेल विशेष तौर से वैयक्तिक मूल्य, निर्णय तथा प्रवृत्ति निर्माण के विकास में सहायक एवं उपयोगी होते हैं। इसके लाभ के कारण ही उनसे अभिप्रेरणा हेतु ऊर्जा एवं शक्ति मिलती है।

ट्रस्ट तथा एल्टमेन (Troost and Altman) ने 1972 में उपरोक्त संदर्भ में कहा है कि-

(1) खेल विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी एवं आवश्यकता होते हैं।

(2) खिलाड़ी शीघ्र पृष्ठपोषण प्राप्त करते हैं।

(3) शैक्षिक खेलों के कुछ विशिष्ट उद्देश्य होते हैं और वे इन उद्देश्यों के अनुरूप ही बनाये जाते हैं।

(4) अधिकतर समस्त शैक्षिक खेलों में खिलाड़ी तथा शारीरिक प्रक्रिया के मध्य अन्तःक्रिया (Intcraction) होती है।

(5) शैक्षिक खेल कक्षा के नायकों के अतिरिक्त दूसरों को भी अवसर प्रदान करते हैं।

(6) बालकों को खेलों द्वारा रुचिकर सूचनाएँ मिलती हैं तथा बालक इन्हें सरलता से सीख जाते हैं।

(7) खेलों की गतिविधियों द्वारा सूचना का विश्लेषण किया जाता है। एक उच्च संज्ञात्मक स्तर यहाँ से प्राप्त करना तथा प्रयोग करना आसान है।

इसके लाभ हैं परन्तु कुछ छात्र ऐसे भी होते हैं जो खेलों में रुचि नहीं रखते तथा प्रत्येक दिन उनके दृष्टिकोण तथा व्यवहार को परिवर्तित नहीं किया जा सकता। कभी-कभी बालक इससे ऊब भी जाते हैं। कुछ खेल ऐसे है जो कम छात्रों में नहीं खेले जाते। कुछ विज्ञान के प्रोजेक्ट हैं जो खेल के रूप में प्रयोग किये जाते हैं एवं अवबोध हेतु उपयुक्त हैं।

अभिनय (Role-Play)- अभिनय छात्रों द्वारा अभिनीत हो अथवा अन्य किन्हीं अभिनेताओं द्वारा उन्हें पर्यावरण अध्ययन शिक्षण की उद्योतन सामग्री के रूप में प्रभावी विधि से प्रयुक्त किया जा सकता है। ऐतिहासिक प्रकरणों तथा कठिन पर्यावरणीय अध्ययन के सम्प्रत्ययों को अभिनय के रूप में बोधगम्य एवं सरल बनाया जा सकता है।

छोटी कक्षाओं में इन्हें वार्तालाप या कथोपकथन के रूप में प्रस्तुत करना उपयुक्त रहता है। पर्यावरण बचाओ या पर्यावरण का सुख स्वरूप अभिनीत अभिनय शाला में कराये जा सकते हैं।

चल-चित्र (Film)- शैक्षिक दृष्टि से मनोरंजन के साथ-साथ चलचित्र शैक्षिक प्रक्रिया की संपूर्ति का अपूर्व साधन है। इसके माध्यम से अनुरंजनात्मक वातावरण में कठिन-से-कठिन ज्ञान को बड़ी सरलता से शीघ्रता से तथा स्थायी रूप में दिया जा सकता है। इसके माध्यम से दूरस्थ परिस्थितियों को भी उसी स्वरूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। मूर्त विचार, वस्तु, वस्तु स्थिति, घटना आदि से सम्बद्ध विषय-वस्तु को चलचित्र के माध्यम से बड़ी सरलतापूर्वक पढ़ाया जा सकता है, यदि तत्सम्बन्धी चलचित्र उपलब्ध हो। आजकल बालको में अच्छी आदतों के निर्माण तथा नैतिकता, चारित्रिक विकास तथा इसी प्रकार नागरिकता के गुणों से सम्बद्ध कई चलचित्र बनाये जाते हैं। उनका भी सफल उपयोग पर्यावरणीय अध्ययन के सदर्भ में किया जा सकता है। किन्तु इसके अध्ययन उद्देश्यों की पूर्ति के प्रसंग में उपयोग के समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रदर्शित किया जा रहा चलचित्र बालकों के ज्ञान में वृद्धि कर रहा हैं, मात्र उसका मनोरंजन नहीं।

लोक संचार परिषद, नई दिल्ली द्वारा कई अभिनयात्मक फिल्म ऐसी तैयार की गयी है जो पर्यावरणीय बोध, उसके स्वरूप तथा संरक्षण द्वारा उसके रचनात्मक स्वरूप का दिग्दर्शन कराती है। संसद, विधान सभा अथवा संयुक्त राष्टर संघ की सुरक्षा परिषद के कृत्रिम ‘मोकसेशन’ का प्रदर्शन, किसी महापुरुष के कृतित्व के बारे में प्रदर्शन आदि चलचित्र में पूर्व नाटकीकरण कर उसकी टेपिंग कर फिल्मांकन किया जा सकता है।

पर्यावरणीय जागरूकता पैदा करने में फिल्मी गीत भी सहायक हो सकते हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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