जीव विज्ञान / Biology

विभिन्न बाह्मस्रावी एवं अंतःस्रावी ग्रन्थियाँ कौन-कौन सी हैं

विभिन्न बाह्मस्रावी एवं अंतःस्रावी ग्रन्थियाँ कौन-कौन सी हैं

बाह्मस्रावी एवं अंतःस्रावी ग्रन्थियाँ कौन-कौन सी हैं? इस विषय के बारे मे यहाँ चर्चा की गयी है तथा आप की सुविधा के लिए यहाँ इस पोस्ट की pdf भी  उपलब्ध कराई गयी है आवश्यकता होने पे pdf भी download करें-

रस ग्रन्थि संस्थान से सम्वन्धित विभिन्न बाह्मसावी एवं अंतःस्रावी ग्रन्थियों का संक्षिप्त  परिचय इस प्रकार है-

1. पिटयूटरी (पीयूप) ग्रन्थि

यह भी शरीर की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रन्थि है। यह अपने आकार में मटर के दाने जितनी होती है। मस्तिष्क के निचले छोर तथा नाक के मूल भाग के पीछे की ओर मस्तिष्क के नीचे एक छोटी-सी प्याली में यह लटकरती रहती है। इसे ´हाइपोफिसिस´ और ‘कायिक मन’ के नाम से भी जाना जाता है।

यदि किसी कारण इस ग्रन्थि में दोष उत्पन्न हो जाए तो शरीर मोटा हो सकता है अथवा व्यक्ति का कद अधिक छोटा या वड़ा हो सकता है। इसके अतिरिक्त अधिक नींद का आना, अधिक थकान होना, वाँझपन, कुरूपता आदि विभिन्न दोष भी इसी ग्रन्थि में विकार आने के परिणामस्वरूप होते हैं।

पिटयूटरी ग्रन्थि के कार्य -पिटयूटरी ग्रन्थि के कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. माता के दुग्ध के स्राव में सहायक होना।
  2. मानव के प्रजनन कोपाणुओं की उत्पत्ति में सहायक होना।
  3. शरीर की वृद्धि करना।
  4. थाइराइड ग्रन्थि तथा उसकी क्रियाओं पर नियंत्रण रखना। साथ ही अन्य ग्रॉथियों की क्षतिपूर्ति में सहायक होना।
  5. यही ग्रन्थि हमारे ज्ञान और इच्छा शक्ति का केन्द्र भी होती है।

2. पीनियल ग्रन्थि

पीनियल ग्रन्थि को ‘नियंत्रण ग्रन्यि’ के नाम से भी जाना जाता है। यह गेहूँ के दाने जितने आकार में पिट्यूटरी ग्रंथी के पीछे की तरफ कुछ ऊपर एक छोटी-सी गुफा वाले आकार के छिट्र में स्थित होती है। इस प्रकार इसका स्थान मस्तिष्क के निचले एवं मध्य भाग में होता है।

पीनियल ग्रन्थि के प्रमुख कार्य- पीनियल ग्रन्थि के प्रमुख कार्य हैं-

  1. यह ग्रन्थि हमारे मास्तिष्क की कोशिकाओं सम्बन्धी विकास को समृचित रूप में सन्तुलित रखने और उन्हें किसी भी प्रकार के विकार से बचाए रखने में सहायक होती है।
  2. इसके द्वारा ही थाइराइड ग्रन्थि का नियंत्रण सम्भव होता है।
  3. शरीर की वृद्धि में इसका विशेष योगदान होता है।
  4. शिशुओं की काम ग्रंथि को नियांत्रित रखने और युवक-युवतियों को व्यस्क बनाने में भी यह विशेष रूप से सहायक होती है।
  5. यह हमारे शरीर की त्वचा के रंग पर होने वाले प्रकाश के प्रभाव को भी नियाँत्रित करता है।

6 एडीनल की उत्तेजित करने वाले पिट्यूटरी के ए० सी० टी० एच० नामक स्ताव पर नियंत्रण करके अप्रत्यक्ष रूप से एड्रीनल क स्रावों को नियंत्रण करना भी इसका एक प्रमुख कार्य है।

3. थायराइड

वह प्रन्थि हमारे स्वास्थ्य और यौवन को बनाए रखने वाली ग्रन्थि है यह स्वर यंत्र के पास श्वास नली के ऊपरी छोर पर स्थित होती है। इसको जोड़ने वाली एक पट्टी टेटुओं के ठीक नीचे होती है। पुरुषों की तुलना में थायराइड ग्रन्थि अपेक्षाकृत अधिक भारी होती है। कुछ विशेष परिस्थितियों, जैसे- मासिक स्राव, कामोत्तेजना, गर्भकाल और जलवायु के परितर्तन आदि के समय इसके आकार में वृद्धि हो जाती है। इस ग्रन्थि की यह एक प्रमुख विशेषता है कि यह आयोडीन नामक भौलिक पदार्थ को ग्रहण करती है।

यदि किसी कारण थायराइड ग्रन्थि असन्तुलित हो जाए तो शरीर में अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इस प्रकार के दोषों में उचित रूप में शरीर का विकास न होना, टाँगे भारी होना, मुख का पीला होना, पेशियाँ हीली होना, शरीर में झर्रिया पड़ना तथा चिड़चिड़ापन आदि प्रमुख हैं।

थायराइड ग्रन्थि के प्रमुख कार्य- इस ग्रन्थि के द्वारा निम्नलिखित कार्य सम्पन्न होते है-

  1. यह हमारे शरीर में एकत्रित घसा को नियंत्रित करती है।
  2. गलगण्ड की बीमारी को नियंत्रित करने में सहायक होती है।
  3. पाचन क्रिया में सहायक होती है।
  4. यह शर्करा बनाने में यक़ृत की सहायक और क्लोम के कार्य की रोधक है ।
  5. इसके द्वारा ही आयोडीनयुक्त हार्मोन का स्वाव होता है ।
  6. मस्तिष्क का संतुलन बनाए रखने की दृष्टि से भी इसका विशेष महत्त्व है।

4. पैराथाइराइड ग्रथि

इन ग्रन्थियों का आकार मटर के दाने के समान होता है। इन गन्धियों से निकलने वाले स्राव को पैराथोरमोन कहते हैं। इस स्त्राव पर पिट्यूटरी ग्रन्थि का कोई नियंत्रण नहीं होता है । इन ग्रन्धियों में दोष उत्पन्न हो जाने के परिणामस्वरूप हमारे शरीर की हड्डियों में कई प्रकार के दोष उत्पन्न हो जाते हैं। यदि वे किसी कारण टूट जाएँ तो उनका जुड़ना कठिन हो जाता है। इसके अतिरिक्त शरीर का कद छोटा रह जाना भी इसके दोषों का ही एक प्रमुख परिणाम होता है।

पैरायाइराइड ग्रंथि के कार्य- इस ग्रन्थि के प्रमुख कार्य हैं-

  1. इसके द्वारा शरीर में कैल्शियम की मात्रा निश्चित होती है।
  2. वसा का संग्रह करने में यह प्रमुख रूप से सहायक होती है।
  3. शरीर में शर्करा के निर्माण में एक प्रकार से योधक का कार्य करती है।
  4. यह अण्डयाशय अथवा पैनक्रियाज की क्रिया में भी सहायक होती है।
  5. यह सुचारू रूप से तभी कार्य करती है, जब इसे विटामिन ‘डी’ प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता रहता है।

5. थाइमस ग्रन्थि

इस ग्रन्थि का रंग भूरा होता है और यह हमारी गर्दन के नीचे वक्षस्थल के बाच और दोनों फेफड़ों के मध्य हदय से काछठ ऊपर की ओर होती है। यह यीवनावस्था तक बढ़ती है। इसके उपरान्त इसमें भीरे-धरे मन्दता आने लगती है और यह अन्ततः सिकुड़ जाती है। यदि लसीका कोशिकाओी की क्षमता क्षीण होने लगे और उपयोगी कोशिकाएँ भी नष्ट होने लगे तो शरीर में कई प्रकार के दोष उ्पन्न हो साते हैं। इन दोषों में व्यक्ति का कद छोटा होना, उसका दुबला होना, रक्त अल्पता और संधिशीघ प्रमुख है।

थाइमस ग्रन्थि के कार्य – इस ग्रन्थि के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं-

  1. थाइमस ग्रन्थि की यह प्रमुख विशेषता है कि यह हमारी काम ग्रन्थियों को सक्रिय नहीं होने देती।
  2. यह आवश्यकतानुसार प्रतिरक्षा के कार्य में सहायक होती है।
  3. यह शैशववास्था में होने वाले शारीरिक विकास को नियंत्रित करती है।
  4. यह शरीर के विजातीय द्रव्यों को बाहर करने में भी सहायक होती है।
  5. लसिका कोशिकाओं के निर्माण में भी इसका प्रमुख योगदान होता है।

6. यकृत ग्रन्थि (लीवर)

 यह ग्रन्थि हमारे दाहिनी ओर पसलियों के नीचे पेट में स्थित होती है। इसे अंग्रेजी भाषा में ‘लीवर’ भी कहते हैं।

यकृत ग्रन्थि के कार्य- इस ग्रन्थि के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं-

  1. यह वात, पित्त और कफ अर्थात शरीर के त्रिदोष को सम रखती है।
  2. समस्त नाड़ियों का मल दूर करके शरीर के सभी अंगों को शुद्ध रखने में सहायक है।
  3. इसके द्वारा सारे शरीर को गर्मी प्राप्त होती है।
  4. इससे पित्त की उत्पत्ति होती है।
  5. इसकी सहायता से ही भोजन के तत्त्वों का उपयुक्त बँटवारा होता है।
  6. यह शरीर में पेट से सम्बन्धित रोगों को नहीं होने देती है।

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7. प्लीहा ग्रन्थि (Spleen)

 यह ग्रॉंथ आमाशय के पास होती है और इसे तिल्ली भी कहा जाता है। इस ग्रन्थि के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं-

  1. अपना कार्यकाल समाप्त कर चुके रक्ताशुओं को देह से बाहर निकालती है।
  2. इसके द्वारा रोगाणुओं से शरीर की रक्षा होती है।
  3. इसके ठीक कार्य करने के परिणामस्वरूप रक्त की शुद्धि होती है।
  4. इसकी सहायता से श्वेत कणों का उत्पादन होता है।
  5. यह हमारे भोजन को पचाने में भी सहायक होती है।

৪. अग्न्याशय अथवा पैनक्रियाज

यह यकृत अथवा लीवर के बाद दूसरे नम्बर की बड़ी ग्रंथि है, जो पक्वाशय से प्लीहा तक फैली होती है। यह आमाशय के ठीक पीछे उदर की पिछली दीवार में सटी हुई होती है। यह पक्वाशय के साथ एक नली से जुड़ी होती है। इसमें से दो प्रकार के स्राव होते हैं-अन्तः एवं बाहूय स्वाव। यदि यह विकारग्रस्त हो जाए तो शरीर की शर्करा मूत्र के साथ ही प्रवाहित होकर बाहर निकल जाती है और शरीर क्षीण होता चला जाता है।

अग्न्याशय अथवा पैनक्रियाज के कार्य- अग्न्याशय के प्रमुख कार्य हैं-

  1. यह जठराग्रि की वृद्धि करता है और शरीर को स्फूर्ति व जीवन शक्ति प्रदान करता है।
  2. यह हमारी स्नायुओं में शर्करा की पूर्ति करता है।
  3. इसके द्वारा आवश्यक पाचन रसों का साव होता है।
  4. यह भोजन के आवश्यक तत्त्वों को शरीर के समस्त भागों में पहुँचाने को कार्य भी करता है।
  5. यह चर्वी और प्रोटीन को पचाकर शर्करा में परिवर्तित कर देता है।
  6. इन्सुलिन बनाकर मधुमेह को दूर करने में भी यह सहायक होता है।

9. एड्रीनल ग्रॉथि

ये ग्रन्थियोँ गु्दे के ऊपरी भाग में स्थित होती हैं और जोडे के रूप में होती हैं। इनका आकार त्रिकोणाकार हाता है। इनमें से प्रत्येक के दो भाग होते हैं। कार्टेक्स इनका बाह्य भाग होता है। जब भय अथवा क्रोध की स्थिति होती है तो ये शरीर में विषाक्त रस छोड़ती है। यह ग्रन्थि लगभग 36 प्रकार के स्रावों को उत्पन्न करती है। इनमें से अनेक प्रकार के स्त्राव हमारे जीवन के लिए अत्वन्त जावश्यक होते हैं।

एड्रीनल ग्रांथि के कार्य- यह ग्रन्थि निम्नलिखित कार्यों में सहायक होती है-

  1. विभिन्न प्रकार के पाचक रसों में वृद्धि करना।
  2. पेट के कब्ज आदि रोगों को दूर करना।
  3. हमारे शरीर में रक्त के प्रवाह को बढ़ाना।
  4. हदय के कार्य को सन्तुलित बनाए रखना।
  5. लीवर अथवा यकृत क्रिया को सक्रिय बनाए रखना।
  6. धर्मनियों की संकुचन शक्ति में वृद्धि करना।
  7. शरीर में स्फूर्ति लाना।
  8. हमारे मस्तिष्क एवं प्रजनन अंगों को स्वस्थ रखन में सहायता करना।
  9. शरीर की मांसपेशियों को स्वस्थ रखना।
  10. किसी भी आकस्मिक अचानक खतरे की स्थिति में शरीर को सचेत करके करके शरीर के अन्दर संग्रहित शक्ति को उसका सामना करने के लिए तैयार करना।

10. गुर्दे अथवा वृक्क

ये वे ग्रॉथियाँ होती हैं, जो सेम के बीज के आकार की होती हैं। ये हमारे पेट में कटि प्रदेश की ओर रीढ़ के दाएँ और बाएँ स्थित होती हैं। गुर्दे को अंग्रेजी भाषा में किडनी के नाम से भी जाना जाता है।

गुर्दे के प्रमुख कार्य- गुर्दे के प्रमुख कार्य निम्नलिखित होते हैं-

1 शरीर में रक्तचाप को सामान्य बनाए रखना।

  1. गुर्दे हमारे रक्त को शुद्ध करके मूत्र बनाते हैं। इसी कारण हमारे शरीर से यूरिया बाहर निकल प्राता है।
  2. शरीर में उत्पन्न नाइट्रोजनीय अवशिष्ट पदार्थों को छानकर उनको शरीर से बाहर विसर्जित करना भी गुर्दों का एक प्रमुख कार्य है।

11. यौन ग्रंथियाँ (गोनइम)

स्त्री और पुरुषों में इन ग्रन्थियों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इन्हें पुरुषों में अण्डकोष कया शक ग्रंथि और स्त्रियों में डिम्ब ग्रंथि कहते हैं! इन्हें काम ग्रंथियों के नाम से भी जाना जाता है।

यौन ग्रन्धियाँ के दो प्रमुख प्रकार- यौन ग्रन्थियाँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं-

  1. शुक्र ग्रन्थि, 2. डिम्ब ग्रन्थि ।

इन दोनों का साक्षिप्त परिचय निम्नवत् है-

(क) शुक्र ग्रन्थि- यह ग्रन्थि पुरुषों में उनके शिश्न के नीचे दोनों तरफ थेली में लटकी रहती है। इनसे उत्पन्न होने वाले हार्मोन को ‘एण्ड्रोजन’ कहते हैं।

शुक्र ग्रन्धि के कार्य- शुक्र ग्रन्थि के प्रमुख कार्य निम्नलिखित है

  1. मानव की जननेन्द्रियों का विकास करना।
  2. वीर्य की उत्पत्ति करना और व्यक्ति को यौन-क्रियाओं के योग्य बनाना।
  3. पुरुष के स्वर में पुरुषत्व लाना।
  4. पुरुषों के चेहरे पर दाढ़ी-मूँछ, छाती पर बाल और वक्षस्थल में कठोरता लाना।

(ख) डिम्ब ग्रन्थि- यह ग्रन्थि स्त्रियों की एक महत्त्वपूर्ण यौन ग्रंथि है, जो डिम्बाशय में स्थित होती है। डिम्बाशय दो छोटी-छोटी ग्रंथियों के रूप में होता है । ये गन्थियाँ स्त्री के गर्भाशय तक पहुँचती हैं। इनसे एस्ट्रोन और प्रोजेस्टेशन नामक हार्मोन उत्पन्न होता है।

डिम्ब ग्रन्थि के कार्य- यह ग्रन्थि निम्नलिखित कार्यों- में सहायक होती है-

  1. प्रजनन कार्य में सहायता करना।
  2. गर्भाशय में वांछित परिवर्तन लाना।
  3. स्तनीय ग्रंथियों की वृद्धि करना।
  4. इस ग्रन्थि के कारण ही बालिकाएँ रजस्वला होती हैं।
  5. यह माताओं के दुग्ध स्राव में भी सहायक होती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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