सांस्कृतिक प्रदेश | सांस्कृतिक परिक्षेत्र से तात्पर्य | विश्व के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रदेश
सांस्कृतिक प्रदेश | सांस्कृतिक परिक्षेत्र से तात्पर्य | विश्व के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रदेश
सांस्कृतिक प्रदेश (Cultural Realms)
विश्व में प्रत्येक मनुष्य विशिष्ट और अद्वितीय है, वह समाज का एक सदस्य है। साथ समाज की अपनी भाषा, पहचान, गुण, धर्म और राष्ट्रीयता होती है जिसे हम दूसरे शब्दों में संस्कृति कहते हैं। सांस्कृतिक प्रदेश से तात्पर्य उस विस्तृत भू-भाग से है कि जिसके निवासियों में महत्त्वपूर्ण गुणों में मौलिक एकता, संकलन, विन्यास-एकीकरण समान रूप से पाया जाता है और इन विशेषताओं के कारण दूसरे सांस्कृतिक प्रदेशों के निवासियों से उनमें भित्रता पायी जाती है।
विश्व के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रदेश
संसार में निम्न छह प्रमुख सांस्कृतिक प्रदेश-1. पाश्चात्य सांस्कृतिक प्रदेश, 2. इस्लामी सांस्कृतिक प्रदेश, 3. भारतीय सांस्कृतिक प्रदेश, 4. पूर्वी एशियन सांस्कृतिक प्रदेश, 5. दक्षिणी- पूर्वी एशिया सांस्कृतिक प्रदेश, 6. मध्य अफ्रीकी सांस्कृतिक प्रदेश।
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पाश्चात्य सांस्कृतिक प्रदेश-
पश्चिमी देशों की सभ्यता का प्रभाव और विस्तार पिछली चार शताब्दियों में मुख्यतः इन देशों के निवासियों के प्रवास अथवा साम्राज्य स्थापना अथवा सांस्कृतिक विसरण के कारण संसार के विभिन्न देशों में हुआ है। यूरोपवासी पिछली चार शताब्दियों में जहाँ-जहाँ गये अपने साथ यूरोपीय सभ्यता साथ लेकर गये और उन देशों में उस संस्कृति को प्रत्यारोपित किया। यूरोपीय जातियों ने इस सांस्कृतिक विसरण में योगदान किया उनमें अंग्रेज, स्पेनिश, पुर्तगाली, जर्मन, डच और रूसी प्रमुख रहे हैं। इन संस्कृतियों ने दूर-दूर जाकर उपनिवेश स्थापित किये। अपनी नई बस्तियाँ स्थापित की और वहाँ की स्थानीय संस्कृतियों को प्रभावित कियां इस प्रकार पश्चिमी सभ्यता का प्रसार यूरोप से प्रारम्भ होकर उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड और एशिया में हुआ। यह सभी प्रदेश संसार के मध्य अक्षांशों और उष्णकटिबन्ध में स्थित है जहाँ यूरोपवासियों ने अपने व्यापार और शासन स्थापित किये। इन सबके अतिरिक्त पश्चिमी सभ्यता ने सांस्कृति विसरण से समस्त संसार की सभ्यता को प्रभावित किया। पश्चिमी यूरोप की तकनीक से निर्मित वस्तुओं का प्रभाव और विस्तार, इन यूरोपीय देशों की सांस्कृतिक मूल्यों को भी प्रभावित किया। इंग्लैण्ड की औद्योगिक क्रान्ति ने सारे संसार के आर्थिक जीवन को प्रभावित किया और अन्ततः संस्कृतियों को प्रभावित किया।
पाश्चात्य सांस्कृतिक प्रसार मुख्यतः तीनों क्षेत्र से हुआ-(अ) भूमध्यसागर के तटीय देशों से प्रसार, (ब) पश्चिमी यूरोप के देशों से प्रसार तथा (स) महाद्वीपीय यूरोप के पूर्वी देशों से प्रसार ।
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इस्लामी सांस्कृतिक प्रदेश-
कुछ नृ-भूगोलविज्ञानी (Anthropogeographer) ने इस सभ्यता प्रदेश को मध्य पूर्व की सभ्यता प्रदेश के नाम से भी सम्बोधित किया है। इस सभ्यता का विस्तार उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका के मोरक्को से पाकिस्तान की पूर्वी सीमा तक है। इस्लाम का विकास ईसा की 7वीं शताब्दी में अरबवासियों के लिए हुआ जिसमें अनेक यहुदी और सेमेटिक सांस्कृतिक गुण और मान्यताओं को स्वीकार कर उनमें परिवर्तन कर नई संस्कृति का विकास किया गया। शीघ्र ही इस्लाम ने अपने प्रसार को सेनाओं की सहायता से पश्चिम में मोरक्को और स्पेन तक, उत्तर-पूर्व में मध्य एशिया और पश्चिमी चीन तक तथा दक्षिण-पूर्व में भारत तक विस्तृत किया। 10वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी तक जहाँ जहाँ इस्लामी सेनाएँ गयीं उन्होंने इस्लामी संस्कृति का प्रसार किया। धर्म परिवर्तन और सांस्कृतिक प्रभाव से वहाँ का जीवन, दर्शन और धर्म सभी प्रभावित हुए। पूर्वी एशिया में मलेशिया, इण्डोनेशिया आदि देशों तक इस्लामी संस्कृति का प्रसार रहा, परन्तु मध्यकाल में यूरोपीय संस्कृति के प्रसार ने इस प्रसार पर अंकुश लगा दिया और यह संस्कृति कुछ भागों तक सीमित रह गयी। इस सभ्यता का विस्तार उत्तरी अफ्रीका (मोरक्को, अल्जीरिया, लीबिया, सूडान मिस्त्र), पश्चिमी एशिया, टर्की, अरब, जोर्डन, इराक, ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान तक है।
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भारतीय सांस्कृतिक प्रदेश-
भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर में हिमालय और दक्षिण में समुद्र के कारण, यह एक प्रमुख भौगोलिक इकाई माना जाता है, केवल उत्तर-पश्चिम में जो प्रदेश है वह मध्य एशिया से प्रभावित रहा है। समय-समय पर मध्य एशिया से आने वाली जातियों ने भारत में साम्राज्य स्थापित किये और जैसे ही उनकी शक्ति क्षीण हुई, उनके साम्राज्य नष्ट हो गये और वे इस देश की महान संस्कृति में आत्मसात् हो गये। मध्य एशिया से हूण, मंगोल आदि जातियाँ आयीं और वे इस देश की संस्कृति में घुल-मिल गयीं। इस्लामी संस्कृति का प्रसार भी शासकों की सहायता से हुआ, परन्तु वे इस देश की संस्कृति जो धर्म और पूजा पद्धति पर आधारित थी, अधिक प्रभावित नहीं कर सकीं। भारतीय में धर्म की प्रधानता है। धर्म, आत्मा आर भाग्य का प्रभाव इस संस्कृति पर अधिक है। पुजारी, महन्त और पुरोहितों का प्रभाव अधिक रहा है और इसी कारण इस प्रदेश की संस्कृति अपना स्वरूप बनाये रख सकी। यद्यपि इस्लाम और ईसाइयों के आने से इस देश के सांस्कृतिक प्रतिरूप में बदलाव आया, परन्तु वह प्रभाव जनजीवन को अधिक प्रभावित नहीं कर सका।
भारत का अन्य देशों में प्रभाव उसकी आध्यात्मिक पद्धति, दार्शनिक सिद्धान्त और धर्म में आस्था के कारण अधिक हुआ। बौद्ध धर्म के प्रसार के माध्यम से भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ और गुण मध्य एशिया, तिब्बत, चीन, कोरिया और जापान, दक्षिण में श्रीलंका में भी पहुँची और भारतीय दार्शनिक और धर्म प्रचारक अपने साथ इस देश की धार्मिक परम्परा को श्रीलंका, मध्य एशिया, चीन, जापान, थाईलैण्ड, ब्रह्मा तथा इण्डोनेशिया तक ले गये। आज भी इन देशों में भारतीय संस्कृति की परम्पराएँ, लक्षण और धार्मिक विश्वास पाये जाते हैं।
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पूर्वी एशियन सांस्कृतिक प्रदेश-
पूर्वी एशिया मुख्यतः चीन की सभ्यता और उसके विभिन्न स्वरूपों कोरिया और जापान की सभ्यता और संस्कृति का क्षेत्र है। चीन अपने ऐतिहासिक काल में मरुस्थल और ऊँचे पर्वतों से घिरे रहने के कारण बाहरी सभ्यता से कम ही प्रभावित रहा है, केवल मध्य एशिया के कुछ मरुद्यानों के माध्यम से इस देश की सीमाओं में प्रवेश पर पश्चिमी एशिया की सभ्यता ने प्रभावित करने का प्रयास किया। ईसा पूर्व की दो शताब्दी से आज तक चीन की सीमाएँ लगभग समान ही रही हैं। चीन की परम्पराएँ और सांस्कृतिक गुण, धर्म की अपेक्षा मानव सम्बन्धों को अधिक महत्व देते हैं। धर्म के स्थान पर चीन में परिवार, समाज और राज्य को प्रमुखता मिलती है। चीन के निवासी दक्षिणी-पूर्वी एशिया में जाकर भी अपने मौलिक गुणों को बनाये रखते हैं।
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दक्षिणी-पूर्वी एशिया सांस्कृतिक प्रदेश-
इस प्रदेश की कोई स्वतन्त्र सांस्कृतिक विरासत नहीं है, यह समस्त प्रदेश अन्य संस्कृतियों के लिए संक्रमणकालीन क्षेत्र रहा है, जहाँ कई संस्कृतियाँ आकर मिल गयी हैं। यहाँ की संस्कृति न तो भारतीय है और न पूर्वी एशियाई, न मुस्लिम है और न पाश्चात्य संस्कृति ही है। यह प्रदेश भारत के पूर्व और चीन के दक्षिण में स्थित है जिसमें समस्त पूर्वी द्वीपसमूह सम्मिलित किये जाते हैं। यहाँ के निवासी दक्षिण मंगोल जाति के हैं। इस दृष्टि से ये पूर्वी एशिया के निवासियों के अधिक निकट है। समस्त प्रदेश पर भारतीय प्रभाव अधिक रहा है जो यहाँ के धार्मिक विश्वास और कला में स्पष्ट दिखायी देता है। राजनीति और व्यापारिक चीन से अधिक रहे है, परन्तु चीन ने केवल वियतनाम को छोड़कर अन्य किसी दक्षिण-पूर्वी देश के निवासियों की संस्कृति को प्रभावित करने का प्रयास नहीं किया। यद्यपि हिन्दू और बौद्ध धर्म का स्थान इस्लाम ने मलेशिया और इण्डोनेशिया में ले लिया, परन्तु उसका भी प्रभाव भारतीय प्रभाव से अधिक नहीं बढ़ सका। फिलीपीन में ईसाई धर्म का प्रसार हुआ है। यह समसत प्रदेश 2000 वर्षों से सांस्कृतिक प्रसार का क्षेत्र रहा है। इस प्रदेश ने किसी अन्य प्रदेश को प्रभावित नहीं किया। यह प्रदेश कई प्रजाति तथा भाषाई क्षेत्रों में विभाजित है, अतः विकास आर सुरक्षा के लिए इस समस्त क्षेत्र को एकता का प्रयास करना होगा।
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मध्य अफ्रीका सांस्कृतिक प्रदेश-
अफ्रीका के अन्य प्रदेशों और मध्यवर्ती भाग के मध्य हमेशा से ही प्राकृतिक अवरोधों के कारण यातायात साधनों का विकास सम्भव नहीं हो सका। इसी कारण इस भाग में सांस्कृतिक पिछड़ापन रहा है। उत्तर में सहारा का मरुस्थल जिसका पूर्व-पश्चिम में लगभग 56,000 किलोमीटर और उत्तर में भूमध्यसागर से दक्षिण में सूडान तक 1,920 किलोमीटर में विस्तार होने पर भी नील घाटी के मार्ग से मध्य अफ्रीका से भूमध्य सागर के तट तक मार्ग बना। अनेक मिस्त्री चरवाहे सूडान के घास के मैदानी भागों में होकर मध्य अफ्रीका के आन्तरिक भागों तक पहुँचे। पूर्वी तट पर अनेक जातियों का सम्पर्क अरब, भारतीय और मलेशियाई व्यापारियों से था। मेडागास्कर के तट पर अनेक अवशेष हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि इस तट पर मलेशियाई बस्तियाँ 1,500 वर्ष पूर्व स्थापित की गयी थीं। इस भाग के निवासियों में धर्म का किसी भी रूप में विकास नहीं हो सका था और न यहाँ कोई भाषा जाती थी। फिर भी यूरोपवासियों के आगमन पर इस महाद्वीप की खोज प्रारम्भ हुई और अनेक देशों में यह महाद्वीप विभाजित हो गया। यूरोपियन धर्म, कानून, शिक्षा, औषधि विज्ञान, उत्पादन और व्यापार की स्थापना से इस महाद्वीप की संस्कृति में तीव्र गति से विस्तार हो रहा है।
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