परियोजना का अर्थ एवं परिभाषायें

परियोजना का अर्थ एवं परिभाषायें | परियोजना निर्माण के चरण अथवा अवस्थायें | Meaning and Definitions of Project in Hindi | Stages or stages of project construction in Hindi

परियोजना का अर्थ एवं परिभाषायें | परियोजना निर्माण के चरण अथवा अवस्थायें | Meaning and Definitions of Project in Hindi | Stages or stages of project construction in Hindi

परियोजना का अर्थ एवं परिभाषायें

(Meaning and Definitions of Project)

परियोजना एक साधारण शब्द है जिसका उपयोग हम लगभग प्रतिदिन किसी न किसी रूप में करते हैं। एक परियोजना एक मशीन या पूर्ण संयन्त्र से सम्बन्धित हो सकती है। नये उपक्रम की स्थापना में योजना बनाना उद्यमी का एक महत्वपूर्ण कार्य है। उद्यमी अपनी योग्यता, दूरदर्शिता तथा सृजनशीलता के आधार पर किसी कठिन परियोजना की कल्पना करता है तथा उसके विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुये उसकी एक निर्धारित योजना बनाता है। इस प्रकार परियोजना उद्यमी के लिये नवीन विनियोग का एक अवसर है, जिसमें लाभ की सम्भावनाओं का पूर्व मूल्यांकन कर लिया जाता है। अतः किसी परियोजना की अनुमानित लागत तथा सम्भावित आय की तुलनात्मक समीक्षा करके इसे प्रारम्भ करने या न करने का निर्णय लेने की प्रक्रिया को ‘परियोजना नियोजन’ कहा जाता है, जिसमें परियोजना की विचार उत्पत्ति से लेकर उसे क्रियान्वित करने तक के सभी कार्य सम्मिलित किये जाते हैं।

क्लिण्टन एवं फिफे के अनुसार, “परियोजना से आशय किसी नवीन उद्यम की स्थापना करने या वर्तमान उत्पाद मिश्रण में किसी नये उत्पाद को जोड़ने से है।”

लिटिल एवं मिररली के अनुसार, “परियोजना संसाधनों के विनियोजन के लिये बनायी गयी योजना है जिसका एक महत्वपूर्ण इकाई के रूप में उचित रूप में विश्लेषण एवं मूल्यांकन किया जा सकता है।

परियोजना निर्माण के चरण अथवा अवस्थायें

(Stages or Phases of Project Preparation)

किसी नवीन परियोजना के निर्माण में अनेक क्रियायें सम्मिलित होती हैं, जिन्हें क्रमबद्ध रूप से पूरा करना होता है। इन विभिन्न चरणों के पूरा होने के पश्चात् ही परियोजना निर्माण का कार्य पूरा होता है। परियोजना निर्माण के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं-

(1) विनियोजन पूर्व की अवस्था (Pre-Investment Phase) – यह अवस्था विनियोग के लाभदायक अवसरों की खोज, मूल्यांकन तथा तैयारी से सम्बन्धित होती है। यह अवस्था परियोजना के अभिज्ञान (Identification) से शुरू होकर निरूपण (Formulation) तथा मूल्यांकन (Appraisal) के क्रमों से गुजरती हुई परियोजना के चयन के निर्णय पर जाकर समाप्त होती है। इस अवस्था का मुख्य उद्देश्य व्यावसायिक विचारों की खोज तथा मूल्यांकन करके यह निर्धारण करना होता है कि क्रियान्वित होने पर ऐसी परियोजना आर्थिक-जीव्यता (Economic Viability) की दृष्टि से व्यावसायिक स्तर पर सक्षम हो सकेगी या नहीं। इस चरण में परियोजना की व्यवहारिकता का अध्ययन करके उसके चयन के विषय में अन्तिम निर्णय लिया जाता इसमें सम्पूर्ण व्यावसायिक वातावरण का अध्ययन किया जाता है। इस चरण में निम्नलिखित उपचरण शामिल होते हैं-

(i) विनियोग अवसरों का अभिज्ञान,

(ii) प्रारम्भिक परियोजना विश्लेषण,

(iii) व्यवहार्यता (Feasibility) अध्ययन,

(iv) निर्णयन।

(2) क्रियान्वयन अवस्था (Implementation Phase)- पर्याप्त छानबीन तथा विनियोग निर्णय लेने के पश्चात् परियोजना के क्रियान्वयन के लिये एक विस्तृत कार्य-योजना तैयार की जाती है। आवश्यक वित्तीय तथा अन्य साधनों का आवंटन उच्च स्तर पर प्रबन्धकों द्वारा कर दिया जाता है। परियोजना के क्रियान्वन के लिये आवश्यक उपकरण, साज-सज्जा इत्यादि की पूर्ति तथा व्यवस्था करने के लिये परियोजना नियन्त्रण प्रणाली तथा सूचना प्रणाली को स्थापित किया जाता है, जिससे कि उपलब्ध साधनों से परियोजना का यथा समय क्रियान्वयन तथा प्रारम्भ किया जा सके। इस अवस्था में उत्पादन सुविधाओं की स्थापना की जाती है। क्रियान्वयन अवस्था में निम्नलिखित क्रियायें सम्पन्न की जाती हैं-

(i) परियोजना की आवश्यकता के अनुसार श्रमिकों, तकनीशियनों, इंजीनियरों तथा प्रबन्ध वर्ग की भर्ती तथा चयन करना उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करना।

(ii) परियोजना के अनुरूप भवन, संयन्त्रों, यन्त्रों, कार्यालय इत्यादि की स्थापना करना जिससे कि निर्माणी प्रक्रिया प्रारम्भ की जा सके।

(iii) परियोजना का कार्य सम्पन्न कराने के लिये विभिन्न पक्षकारों से समझौते तथा अनुबन्ध कराना।

(iv) परियोजना तथा इंजीनियरिंग डिजाइन तैयार किया जाना ।

(v) परियोजना के क्रियान्वयन के अन्त में संयन्त्र की स्थापना करना तथा उत्पादन प्रारम्भ करने की तैयारी करना।

(3) परियोजना समारम्भ या प्रबन्ध अवसा (Project Commencement or management Stage)- परियोजना नियोजन का यह अन्तिम महत्वपूर्ण चरण है जिसमें उत्पाद अथवा सेवा का वास्तव में उत्पादन प्रारम्भ किया जाता है जिसके लिये परियोजना का निर्माण किया गया था। इस चरण का सम्बन्ध परियोजना के आउटएर तथा उत्पादन से होता है जिसमें यह देखा जाता है कि उत्पादन कार्य निश्चित लक्ष्यों तथा योजनाओं के अनुसार किया जा रहा है अथवा नहीं। परियोजना नियोजन का यह सबसे लम्बा चरण है जो संयन्त्र के प्रारम्भ से लेकर परियोजना के समाप्त होने तक चलता रहता है। समय व्यतीत होने के साथ परियोजना उपक्रम का एक सामान्य हिस्सा बन जाती है। इस चरण में उत्पादन के निर्बाध संचालन की व्यवस्था तथा मशीनों के अनुरक्षण की उचित व्यवस्था की जाती है, उत्पादकता एवं किस्म प्रमापों का निर्धारण किया जाता है तथा विक्रय, लाभ, लाभदायकता इत्यादि के सम्बन्ध में सतत् सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है।

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