समाजशास्त्र की परिभाषा

समाजशास्त्र की परिभाषा | प्राचीनकाल में समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास | आधुनिक काल में समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास

समाजशास्त्र की परिभाषा | प्राचीनकाल में समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास | आधुनिक काल में समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास | Definition of sociology in Hindi | Origin and development of sociology in ancient times in Hindi | Origin and development of sociology in modern times in Hindi

समाजशास्त्र की परिभाषा

समाजशास्त्र मानवीय संबंधों व मानवीय अंतःक्रियाओं का अध्ययन करता है समाजशास्त्र का संबंध समाज से है समाजशास्त्र की परिभाषा के संदर्भ में अनेक विद्वानों में मतैक्य नहीं है, इसका प्रमुख कारण समाजशास्त्र का नवीन विषय होना है क्योंकि अभी इसका निर्माणकाल है और नित नए विकास के दौर में इसकी परिभाषा में हेरफेर होना स्वाभाविक है। समाजशास्त्री की परिभाषा को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

(1) समाजशास्त्र समाज का अध्ययन है- इसके अनुसार, समाजशास्त्र समाज के सभी पक्षों का व्यवस्थित और क्रमबद्ध अध्ययन है इस मान्यता को मानने वाले प्रमुख समाजशास्त्र गिडिंग्स तथा वार्ड हैं। गिडिंग्स (Giddings) के अनुसार- समाजशास्त्र समग्र रूप से समाज का क्रमबद्ध वर्णन और व्याख्या है।

Sociology in the systematic description and explanation of society viewed as a whole. Giddings.

वार्ड के अनुसार समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है।

Sociology is a scientific study of society. – L.F. Ward

(2) समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों का अध्ययन है इस मान्यता को मानने वाले समाजशास्त्रियों की संख्या बहुत अधिक है।

मैकाइवर के अनुसार- समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विषय में है, सामाजिक संबंधों के जाल को ही हम समाज कहते हैं।

Sociology is about social relationship, the network of relationship we call society. – Maciver and Page.

दुर्खीम के अनुसार- समाजशास्त्र सामूहिक प्रतिनिधानों का वैज्ञानिक अध्ययन है।

Sociology is the science of Collective representation. – Emile Durkheim.

(3) समाजशास्त्र सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन है- अनेक समाजशास्त्रियों ने समाज के निर्माण में सामाजिक संबंधों की अपेक्षा सामाजिक क्रियाओं (Social actions) का स्थान अधिक महत्वपूर्ण माना है।

इस प्रक्रिया में उन सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन मानना चाहिये जो जागरूक दशा में व्यक्तियों द्वारा सोच-समझकर कही जाती हैं।

मैक्स वेबर के अनुसार- समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो सामाजिक क्रियाओं का व्याख्यात्मक बोध कराने का प्रयत्न करता है।

Sociology is the science which attempts the interpretative understanding of social action.

गिलिन और गिलिन ने अपनी पुस्तक कल्चरल सोशियोलोजी में लिखा- व्यक्तियों के एक दूसरे के संपर्क में आने के फलस्वरूप उनके बीच जो अंतःक्रियाएँ होती हैं, उन्हीं के अध्ययन को समाजशास्त्र कहा जाता है।

Sociology in its broadest sense may be said to be the study of interaction arising from the association of living being.

अतः यह कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र सामाजिक संबंध और समाज का अध्ययन है।

प्राचीनकाल में समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास

भारत का समाजशास्त्रीय अध्ययन बहुत पुराना है इसकी नींव बहुत पुरानी है। भारत में प्राचीन समाजशास्त्रीय मनु, याज्ञवल्क्य, भृगु, चाणक्य आदि आते हैं। इन्होंने अपने विचारों को ग्रंथ में संजोकर प्रस्तुत किया। मनु द्वारा लिखित मनु स्मृति, चाणक्य द्वारा लिखित अर्थशास्त्र इसकी पुष्टि करता है।

इसी मत की पुष्टि वेद, उपनिषद धर्मसूत्र, रामायण, महाभारत, गीता आदि ने की है। इसके आधार पर पारिवारिक अर्थव्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, धर्म, गाँव पंचायत आदि विषयों पर अध्ययन किया जाता है।

प्राचीन भारत में सामाजिक संगठन का प्रमुख आधार वर्ण-व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था के आधार पर व्यक्तियों का कार्य विभाजित किया जाता था। प्राचीनकाल में परिवार को समाज की प्रमुख संस्था के रूप में माना जाता था। प्राचीन काल में धर्म के साथ-साथ भगवान की महत्ता को माना गया तथा भाग्य को भी महत्व दिया गया। मनु ने यह माना कि सब एक-दूसरे के सहारे जीते हैं तथा सब व्यक्ति भाग्य कर्म से जीवन धारण करते हैं। इस समय व्यक्ति के कार्यों को निम्न चरणों में बंटवारा किया जाता है जैसे गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम, संन्यास आश्रम आदि।

वैदिक साहित्य के अध्ययन से पता चलता है कि उस समय स्त्री तथा पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त थे। पत्नी के रूप में उनकी स्थिति बहुत ऊची थी तथा विवाह का उद्देश्य पुत्र/ संतान  की प्राप्ति है, संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि प्राचीनकाल में समाजशास्त्र का अध्ययन किया जाता है लेकिन उसका रूप वेदों, उपनिषेधों आदि में मिलता है तथा उसी आधार पर समाज का अध्ययन किया जाता है।

आधुनिक काल में समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास

भारत में समाजशास्त्र की स्थापना, सर्वप्रथम सन् 1917 कोलकाता विश्वविद्यालय में हुई इसकी स्थापना प्रो. बृजेंद्रनाथ शील ने की।

चूँकि समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है, इसलिए हम अति सरलता से यह कह सकते हैं, कि समाजशास्त्र की अध्ययन-वस्तु सामाजिक संबंध ही हैं क्योंकि सामाजिक संबंधों से ही समाज का निर्माण होता है। सामाजिक संबंध अनेक प्रकार के हो सकते हैं, जैसे पारिवारिक संबंध, शिक्षा संबंधी संबंध, आर्थिक और राजनीतिक संबंध। ये सभी संबंध धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि होते हुए भी सामाजिक हैं, क्योंकि इस प्रकार के संबंध को दो मनुष्यों के बीच ही उत्पन्न होते हैं और यह मनुष्य स्वभाव से ही एक सामाजिक प्राणी है। समाजशास्त्र इन्हीं सामाजिक संबंधों का अध्ययन करता है। और भी स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि मानव जीवन के विविध पक्ष-आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक आदि-एक- दूसरे से सामाजिक संबंधों के द्वारा परस्पर गूंथे हैं। इस दृष्टिकोण से प्रत्येक सामाजिक प्राणी का जीवन विभिन्न प्रकार के संबंधों से घिरा हुआ है। यही संबंधों का जाल है। इसी को मैकाइवर ने समाजशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र माना है।

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