भारत में नगरीकरण के परिणाम

भारत में नगरीकरण के परिणाम | Consequences of urbanization in India in Hindi

भारत में नगरीकरण के परिणाम | Consequences of urbanization in India in Hindi

भारत में नगरीकरण के परिणाम-

नगरीकरण का तात्पर्य जीवन का ग्रामीण पद्धति से नगरीय पद्धति में परिवर्तन है। इसके लिए जनसंख्या का एक स्थान से दूसरे स्थान में स्थानान्तरण आवश्यक नहीं है। नगरीकरण की प्रक्रिया के परिणामों को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. प्रवास-

नगरीकरण के परिणामस्वरूप प्रवास को प्रोत्साहन मिला है। यह प्रवास एक ओर ग्राम से नगर की ओर हुआ है दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों के अन्तर्गत कम उपजाऊ क्षेत्रों से अधिक उपजाऊ क्षेत्रों की ओर हुआ है। नगरीकरण के प्रभावस्वरूप सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि के कारण जनसंख्या की प्रवासिता में वृद्धि हुई है। इस प्रवासिता में ब्राह्मणों का स्थान सर्वोपरि रहा है। गाँव छोड़कर नगरों में बसने वाले लोगों की सन्तानें अध्यापक, राजकीय अधिकारी, डाक्टर, वकील, आदि बनीं। इस प्रकार गाँवों की भांति नगरों में भी सभी उच्च पदों पर उनका एकाधिकार हो गया।

  1. परम्परागत सामाजिक विभेदीकरण में परिवर्तन-

नगरीय प्रभावों के फलस्वरूप परम्परागत सामाजिक विभेदीकरण में परिवर्तन हुआ है। ये प्रभाव वहाँ स्पष्ट देखे जा सकते हैं जो नगरों के निकट हैं। नगरीय प्रभावों कारण गाँवों के अनेक व्यक्ति नगरों में कार्य करते हैं, उनके परिवार के शेष सदस्य ग्रामों में रहते हैं। वे अपने घरों को नियमित रूपये भेजते हैं। ऐसे ग्रामों में नगरीय रोजगार, उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया है। इसके अतिरिक्त प्रवासी के निवास का नगर तथा उसकी नौकरी की प्रकृति भी गाँव में उसकी स्थिति को निर्धारित करने के लिए अतिरिक्त मापदण्ड बन जाती है।

  1. उद्योग की प्रकृति में परिवर्तन-

नगरीय प्रभाव द्वारा उद्योग की प्रकृति में परिवर्तन उन क्षेत्रों में दृष्टिगोचर होता है जो औद्योगिक केन्द्रों के निकट हैं। ऐसे क्षेत्रों में सर्वप्रथम पारस्परिक सम्बन्धों के व्यवस्थापन की समस्या उत्पन्न होती है। औद्योगिक केन्द्रों में काम करने वाले श्रमिक निकटवर्ती ग्रामों में रहना पसन्द करते हैं। अतः ग्रामवासियों एवं आगन्तुक श्रमिकों के सम्बन्धों में व्यवस्थापन की समस्या उत्पन्न होती है। द्वितीय औद्योगिक नगर के उद्योग की प्रकृति द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के निकटवर्ती उद्योग प्रभावित होने लगते हैं। उदाहरण के लिए जहाँ चीनी उद्योग हैं, उनके निकटवर्ती क्षेत्रों में गन्ने के उत्पादन में वृद्धि होती है।

  1. ग्रामों का विलयन-

नगरीय प्रभाव के कारण ग्रामों से नगरों की ओर प्रवास की दर बढ़ जाती है। फलस्वरूप सामान्य रूप से नगरों और विशेष कर महानगरों का विस्तार होता है। फलस्वरूप निकटवर्ती ग्राम नगर में समा जाते हैं नगरीय प्रसार की प्रक्रिया से ऐसे ग्रामों के निवासी नगरीय, आर्थिक और सामाजिक प्रणाली के अंग बन जाते हैं।

  1. नये आर्थिक अवसर-

नगरीकरण के फलस्वरूप आर्थिक अवसरों में वृद्धि हुई। महानगरों के निकटवर्ती ग्रामों में नगरीय प्रभाव के कारण लोगों की प्रवृत्ति नये उद्योगों की ओर होती है। बिजली, सिंचाई, नगर में उच्च शिक्षा की सुविधा, नगर में आने-जाने की सुविधा तथा नगरीय रोजगार के कारण आर्थिक अवसर बढ़ जाते हैं।

  1. नयी राजनीतिक विशेषताएँ-

आर्थिक विशेषताओं के अतिरिक्त नगर के आंचलिक ग्रामों में नयी राजनीतिक विशेषताओं का उदय होता है। वे नगर की राजनीतिक विशेषताओं को अपना लेते हैं। नगर, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाली राजनीतिक प्रक्रियाओं के साथ ऐसे ग्रामों का प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।

  1. उत्पादन का क्रय विक्रय-

विकासशील नगरों द्वारा उत्पन्न आर्थिक अवसरों से, ग्रामीण क्षेत्रों में नये प्रकार के कार्यों की शुरूआत हुई है। ये आर्थिक क्रियाएँ परम्परागत क्रियाओं से कुछ भिन्न प्रकार की होती हैं। जैसे दुग्ध-उत्पादन, मुर्गीपालन, साग-सब्जी का उत्पादन आदि। इसके फलस्वरूप किसान जो आरम्भ से परम्परागत अर्थतन्त्र के अंग थे, अब नवीन अर्थतन्त्र के अंग बन गये हैं।

  1. व्यावसायिक कार्यों का विभिन्नीकरण-

नगरीय प्रभावों के प्रसार से, नगर के निकटवर्ती भागों ने न केवल नगरीय अर्थतन्त्र में प्रवेश किया है, बल्कि नगरीय रोजगारों को अपनाना भी आरम्भ किया है। नगरों द्वारा प्रस्तुत रोजगार के अवसर, कृषि के व्यापारीकरण की अपेक्षा अधिक व्यापक हैं। गाँवों के अनेक व्यक्ति नगरों में रोजगार या नौकरी करते हैं उनके घर के अन्य सदस्य गाँवों में खेती करते हैं या मजदूरी करते हैं। इस प्रकार नगरीय प्रभावों के परिणामस्वरुप, परम्परागत और आधुनिक व्यवसायों के बीच समन्वय की स्थिति प्रकट होती है।

  1. उपभोग के बदलते प्रतिमान –

नगरीकरण के फलस्वरूप उपभोगों के बदलते प्रतिमानों में परिवर्तन हुआ है। इस तथ्य को नगरीकरण द्वारा प्रभावित गाँवों में देखा जा सकता है। यादवपुर ग्राम के अध्ययन में प्रो0 राव ने यह पाया कि सन् 1957 ई0 तक गाँव वाले अखाद्य वस्तुओं को नगर से खरीद कर लाते थे। सन् 1964 ई0 तक उन वस्तुओं की गाँव के अन्दर ही अनेक दुकानें खुल गयीं। नगरीय प्रभाव के कारण गाँवों में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की खपत में वृद्धि हुई है। लोगों की आमदनी का अधिकांश भाग इन वस्तुओं पर व्यय होता है। विवाह तथा अन्य अवसरों पर घड़ी, रेडियो, ट्रांजिस्टर, सिलाई मशीन आदि देना प्रतिष्ठासूचक बन गया है। ये वस्तुएँ दहेज की प्रमुख अंग बन चुकी हैं। नवीन आर्थिक लाभों का उपयोग सामाजिक स्तर को उच्च करने के लिए किया जाता है। अतः विवाह तथा अन्य उत्सवों के अवसर पर फिजूलखर्ची में वृद्धि हुई है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि नगरीकरण के फलस्वरूप, विभिन्न प्रकार के प्रभाव उत्पन्न हुए हैं। ये प्रभाव नगरों के आंचलिक ग्रामों में मुख्य रूप से स्पष्ट हैं। संक्षेप में आंचलिक ग्राम धीरे-धीरे नगरीय जीवन में समा रहे हैं।

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