आग्नेय चट्टान | आग्नेय चट्टानों की विशेषताएँ | आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण | आग्नेय चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)
आग्नेय चट्टान | आग्नेय चट्टानों की विशेषताएँ | आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण | आग्नेय चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)
‘आग्नेय’ शब्द लैटिन भाषा के Igneous शब्द का रूपान्तरण है, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘अग्नि’ से होता है। भूगोलवेत्ताओं का विचार है कि प्रारम्भ में सम्पूर्ण पृथ्वी आग का तपता हुआ गोला थी, यह धीरे-धीरे ठण्डी होकर द्रव अवस्था में परिणत हुई है। द्रव अवस्था से ठोस तथा इस ठोस अवस्था से अधिकांशत: आग्नेय चट्टानें बनी हैं। जब भूगर्भ का गर्म एवं द्रवित लावा ज्वालामुखी क्रिया द्वारा धरातल पर फैलने से ठण्डा होकर ठोस बनने लगा, तभी आग्नेय चट्टानों का निर्माण हुआ। ज्वालामुखी क्रिया द्वारा इन चट्टानों का निर्माण आज भी होता रहता है, क्योंकि ये प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अन्य चट्टानों को भी जन्म देती हैं।
आग्नेय चट्टानों की विशेषताएँ
आग्नेय चट्टानों में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं।
- इन चट्टानों का निर्माण ज्वालामुखी से निकले गर्म एवं तप्त मैग्मा द्वारा
- होता है।
- ये अत्यन्त कठोर होती हैं और इनमें जल प्रवेश नहीं कर सकता। जल का इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, परन्तु ये विखण्डन के कारण टूट जाती हैं।
- इन चट्टानों के रवे बड़े ही महीन होते हैं। इन रवों का कोई आकार तथा क्रम नहीं होता।
- इन चट्टानों का स्वरूप कभी गोलाकार स्थिति में नहीं मिलता है।
- ये चट्टानें सघन होती हैं। इनमें परतों का अस्तित्व देखने को भी नहीं मिलता, परन्तु ज्वालामुखी उद्गार के क्रमश: होते रहने से परतों की भ्रान्ति हो सकती है। इन चट्टानों के वर्गकार जोड़ों पर ही ऋतु-अपक्षय का प्रभाव पड़ता है।
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आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण
विश्व में प्राचीनतम आग्नेय चट्टानों की आयु लगभग 15 अरब वर्ष ऑकी गयी है। इस प्रकार की चट्टाने प्रायद्वीपीय भारत में अधिक पायी जाती हैं। राजस्थान का अरावली पर्वत, छोटा नागपुर की गुम्बदनुमा पहाड़ियाँ, राजमहल की श्रेणी और राची का पठार इस प्रकार की चट्टानों के बने हैं। अजन्ता की गुफाएँ इन्हीं चट्टानों को काटकर बनायी गयी हैं। स्थिति के अनुसार आग्नेय चट्टानों को दो भागों में बॉटा गया है।
(अ) आभ्यान्तरिक या आन्तरिक आग्नेय चट्टानें एवं ( ब) बाह्य आग्नेय चट्टाने।
(अ) आभ्यान्तरिक या आन्तरिक आग्नेय चट्टानें
जब गर्म एवं तप्त लावा अत्यधिक ताप एवं एकत्रित गैस के माध्यम से भूगर्भ की चट्टानों को तोड़कर ऊपर आने का प्रयास करता है तो लावे का अधिकांश भाग भूगर्भ में नीचे की परतों में ही रह जाता है। यह लावा वहीं ठण्डा होकर आग्नेय चट्टानों में परिवर्तित हो जाता है, जिन्हें आभ्यान्तरिक या आन्तरिक चट्टानें कहते हैं। लावे के शीतल होने की अवधि के आधार पर इन चट्टानों को निम्नलिखित दो उप-विभागों में बाँटा जा सकता है।
- पातालीय आग्नेय चट्टानें
जब भूगर्भ का गर्म एवं तप्त लावा बाहर न निकलकर अन्दर-ही-अन्दर जमकर ठोस हो जाता है तो पातालीय आग्नेय शैल का निर्माण होता है। इनमें मोटे रवे पाये जाते हैं। ग्रेनाइट शैल इसका प्रमुख उदाहरण है।
- अर्द्ध-पातालीय आग्नेय
चट्टानें इन्हें मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानें या अधिवितलीय आग्नेय चट्टानें भी कहते हैं। जब भूगर्भ का गर्म एवं तप्त लावा पृथ्वी की ऊपरी पपड़ी पर आने में असमर्थ रहता है तथा मार्ग में पड़ने वाली सन्धियों एवं दरारों में पहुँचकर जम जाता है तब यही लावा बाद में ठण्डा होकर चट्टानों का रूप धारण कर लेता है। इन्हें अर्द्ध- पातालीय आग्नेय चट्टानों के नाम से पुकारते हैं। इनमें रवे छोटे आकार के होते हैं। लैकोलिथ, लैपोलिथ, फैकोलिथ, सिल, डाइक आदि इसके प्रमुख उदाहरण है।
(ब) बाह्य आग्नेय चट्टानें
जब भूगर्भ का तप्त एवं तरल लावा किसी कारणवश ज्वालामुखी उद्गार द्वारा धरातल के ऊपर ठोस रूप में जम जाता है तो वह चट्टान का रूप धारण कर लेता है। इससे जिन चट्टानों का निर्माण होता है, उन्हें बाह्य आग्नेय चट्टानें कहते हैं। इनमें रवे नहीं होते। गैब्रो तथा बेसाल्ट ऐसी ही शैलें हैं।
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आग्नेय चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)
आग्नेय चट्टानों में विभिन्न प्रकार के खनिज पाये जाते हैं। अधिकांश खनिज व धातु-अयस्क इसी प्रकार की चट्टानों में पाये जाते हैं। लौह-अयस्क, सोना, चाँदी, सीसा, जस्ता, ताँबा, मैंगनीज आदि महत्त्वपूर्ण धातु खनिज आग्नेय चट्टानों में पाये जाते हैं।
ग्रेनाइट जैसी कठोर चट्टानों का उपयोग भवन-निर्माण में व उसके सजाने में किया जाता है। भारत के छोटा नागपुर के भागों में आग्नेय चट्टानों में अधिकांश खनिज पाये जाते हैं।
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