अल्बर्ट डिमांजियाँ – फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता (Albert Demangeon – French Geographer)
अल्बर्ट डिमांजियाँ – फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता (Albert Demangeon – French Geographer)
जीवन परिचय
अल्बर्ट डिमांजियाँ (1872-1940) ब्लाश के प्रमुख शिष्य थे। उन्होंने पेरिस के प्रख्यात् शिक्षण संस्थान ‘इकोल नार्मल सुपीरियर’ से ब्लाश के निर्देशन में इतिहास और भूगोल विषय के साथ 1895 में स्नातक की शिक्षा पूर्ण कर ली थी। वे प्रसिद्ध फ्रांसीसी भौतिक भूगोलविद् डी मार्तोन के सहपाठी और सहयोगी थे उन्होंने 1905 में पिकार्डी के एक माध्यमिक विंद्यालय में शिक्षक के रूप में कार्य आरंभ किया और उसी वर्ष उन्होंने पिकार्डी क्षेत्र का प्रादेशिक अध्ययन प्रकाशित किया जो एक उत्कृष्ट ग्रंथ प्रमाणित हुआ। डिमांजियां के उत्कृष्ट कार्य को देखते हुए उन्हें लिले (Lille) विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति मिल गयी जहाँ वे 1911 तक कार्य करते रहे। उस समय पेरिस के सारबोन विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष पद पर आसीन डी मार्तोन ने पिकार्डी के अध्ययन को फ्रांस के प्रादेशिक भूगोल की उत्तम पुस्तक के रूप में स्वीकार किया और 1911 में डिमांजियाँ को आअपने विभाग में प्राध्यापक नियुक्त कर लिया जहाँ वे मृत्यु पर्यन्त (1940) कार्यरत रहे।
डिमांजियाँ की रचनाएं
डिमांजियाँ ने 1905 से 1940 के मध्य अनेक शोध लेख प्रकाशिन किये लिले विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य करते समय ‘एनाल्स डी ज्योग्राफी’ (Annales de Geographie) नामक पत्रिका में दो लेख प्रकाशित किए जिसमें एक मानव भूगोल से सम्बंधित था और दूसरा भौतिक भूगोल (अपरदन चक्र द्वारा भू आकृतियों का विकास) से। इसके पश्चात् डिमांजियाँ ने मानव भूगोल की समस्याओं के अध्ययन पर ध्यान केन्द्रित किया। डिमांजियां की प्रमुख रचनाओं का विवरण निम्नांकित हैं।
(1) पिकार्डी का प्रादेशिक भूगोल- डिमांजियां ने 1905 में ‘ला पिका्डी एटलेस रीजन्स वेसिनस’ (La Picardie et les Regions Veisines) नामक शोघ प्रबंध (मोनोग्राफ) प्रस्तुत किया था जिसे अत्यधिक सम्मान प्राप्त हुआ था।
(2) एनाल्स डी ज्योग्राफी (Annales de Geographie) नामक विख्यात भौगोलिक पत्रिका का डिमांजियां ने 1920 से 1936 तक सम्पादन किया और इस पत्रिका के लिए उन्होंने 31 लेख और 89 टिप्पणियाँ लिखा था। इस पत्रिका में प्रकाशित लगभग सभी लेख निवास गृहों के वसाव, ग्रामीण अधिवास, कृषि प्रणाली आदि मानवीय पक्षों से संबंधित थे।
(3) औपनिवेशिक भूगोल (Colonial Geography) 1923 में प्रकाशित।
(4) पेरिस नगर का अध्ययन (The Study of Paris City), 1923 में प्रकाशित।
(5) मानव भूगोल की समस्याएं (Problems de Geographie Humaine)- यह डिमांजियाँ की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसका प्रकाशन उनके मरणोपरांत 1942 में हुआ था।
(6) फ्रांस का आर्थिक भूगोल (Economic Geography of France) नामक पुस्तक उनकी मृत्यु के पश्चात् 1946 में प्रकाशित हुई थी।
डिमांजियाँ की विचारधारा
डिमांजियाँ ब्लाश की विचारधारा के प्रबल समर्थक और अनुयायी थे। वे मानव भूगोल के सिद्धान्तों में पार्थिव एकता के सिद्धान्त और क्रियाशीलता या परिवर्तन के सिद्धान्त को प्रमुख मानते थे। डिमॉजिया ने जर्मन विचारधारा नियतिवाद को पूर्णतया अस्वीकृत कर दिया था और सम्भववाद का जोरदार शब्दों में समर्थन किया। फ्रांस के ग्रामीण अधिवासों के अध्ययन में उनकी विशेष रुचि थी। उन्होंने फ्रांस के ग्रामों का अध्ययन किया और उनसे सम्बंधित अनेक विद्वतापूर्ण लेख तथा पुस्तकें लिखा। डिमांजियों ने लघु प्रदेशों (Pays) के आधार पर मानव भूगोल के अध्ययन को उपयुक्त माना। ‘मानव भूगोल की समस्याएं’ नामक पुस्तक में मानव भूगोल के सम्बंध में डिमांजिया ने लिखा है कि ‘मानव भूगोल मानव समूहों तथा समाजों का उनके प्राकृतिक पर्यावरण से पारस्परिक सम्बंधों का अध्ययन है।‘
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