भूगोल / Geography

रोमन भूगोलवेत्ता (Roman Geographers in hindi)

रोमन भूगोलवेत्ता (Roman Geographers in hindi)

रोमन भूगोलवेत्ताओं ने ऐतिहासिक भुगोल, गणितीय भूगोल, प्रादेशिक भूगोल और भौतिक भूगोल के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। स्ट्रैबो (Strabo), टालमी (Tolemy), पाम्पोनियस मेला (Pomponiaus Mela), प्लिनी (Plini) आदि रोमन काल के प्रमुख भूगोलवेत्ता थे।

(1) स्ट्रैबो (Strabo)

रोमन भूगोलवेत्ताओं मे स्ट्रैबो (64 ई० पू० से 20 ई०) का अति महत्वपूर्ण स्थान है। स्ट्रैबो का जन्म काला सागर के तट से लगभग 80 किमी० दक्षिण की ओर टर्की (एशिया माइनर) के भीतरी भाग में स्थित अमासिया नगर में हुआ था जहाँ यूनानियों की संख्या अधिक थी। 29 ई० पू० में वे रोम गये और वहाँ कई वर्षों तक रहे। उन्होंने नील नदी में साइने (आस्वान) तक, आरमीनिया से टिरहेनियन सागर (Tyrrhenian sea) तक और युगजाइन सागर से इथोपिया तक यात्राएं की थीं। उन्होंने यूनान के कोरिन्थस, एथेन्स, मेगरा, आर्गोंस आदि स्थानों की भी यात्रा किया था। स्ट्रैबो ने महत्वपूर्ण लेखन कार्य अलेक्जण्डरिया में रहने के पश्चात् किया और अपनी पुस्तक यूनानी भाषा में लिखा। स्ट्रैबो ने अपने से पूर्ववर्ती सम्पूर्ण भौगोलिक ज्ञान को संग्रहीत करके एक सामान्य ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत करने का अग्रगामी और सराहनीय कार्य किया था।

स्ट्रैबो ने ऐतिहासिक इति वृत्त (Historical Memoir) के रूप में लगभग 43 पुस्तकों को लिखा था। उन्होंने ज्ञात संसार के वर्णन को 17 खण्डों वाले भौगोलिक विश्वकोष (Geographical Encyclopedia) में संकलित किया था जिसका नाम ज्योग्राफिया (Geographia) रखा। स्ट्रैबो प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने भूगोल की चारों प्रमुख शाखाओं गणितीय, भौतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक को एक साथ समाहित करके एक सम्पूर्ण भौगोलिक ग्रंथ की कल्पना की थी। स्ट्रैबो के ग्रंथों का महत्व इसलिए भी अधिक है कि उन्होंने अपने ग्रंथों में उन विद्वानों के विचारों और कार्यों को भी उद्घृत किया है जिनकी रचनाएं नष्ट हो गयी हैं और उपलब्ध नहीं हैं। स्ट्रैबो ने ज्योग्राफिया नामक पुस्तक भूगोलवेत्ताओं के लिए नहीं बल्कि राजनीतिज्ञों, राजनेताओं और सामान्य पाठकों के लिए लिखा था। यही कारण है कि इस ग्रंथ में प्रत्येक देश की सामान्य भौगोलिक विशेषताओं, भौतिक आकार एवं घरातलीय बनावट, प्राकृतिक उत्पादनों आदि के साथ ही वहाँ की सांस्कृतिक भिन्नताओं, शासन प्रणालियों तथा रीति-रिवाजों का भी वर्णन किया गया है। ख्ट्रैबो के ज्योग्राफिया नामक विश्वकोश की 17 खण्डों (पुस्तकों) की विषय सामग्री इस प्रकार है-

प्रथम दो खण्डों में विषय की प्रस्तावना दी गयी है जिसमें पुस्तक के लक्ष्य, उद्देश्य तथा मौलिक सिद्धान्तों की चर्चा की गयी है। इसमें लेखक ने इरेटोस्थनीज तथा अन्य पूर्ववर्ती विद्वानों के कार्यों की आलोचनात्मक समीक्षा किया है। तीसरे खण्ड में पश्चिम यूरोप, स्पेन, गाल (फ्रांस) और ब्रिटेन का भौगोलिक वर्णन है। चौथे खण्ड में गाल (फ्रांस), ब्रिटेन और आल्पस का वर्णन है । पाँचवें और छठें खण्डों में इटली और सिसली का वर्णन है। सातवें खण्ड में स्ट्रैबो ने राइन के पूर्व और डेन्यूब के उत्तर में स्थित देशों का संक्षिप्त वर्णन किया है। आठवें, नौवें और दसवें खण्डों में यूनान तथा समीपवर्ती द्वीपों का भौगोलिक वर्णन है। स्ट्रैबो की ग्यारहवीं से लेकर सोलहवीं पुस्तकों में एशिया के देशों का वर्णन है। अंतिम अर्थात् सत्रहवें खण्ड में अफ्रीका का वर्णन है और इसके लगभग दो-तिहाई भाग में मिग्र के भूगोल का वर्णन किया गया है।

स्ट्रैबो ने भूगोल का उद्देश्य बताते हुए ज्योग्राफिया की पहली पुस्तक में लिखा है कि “भूगोल का उद्देश्य केवल सामाजिक जीवन और प्रशासनिक कार्यों में सहायता देना ही नहीं है बल्कि भूगोल एक तंत्र विषय है जिसका उद्देश्य लोगों को इस संसार का, आकाशीय पिण्डों का, स्थल, महासागर, जीवों, वनस्पतियों, फलों तथा वृक्षों का और पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों में देखी जाने वाली अन्य वस्तुओं का ज्ञान उपलब्ध कराना है (H. L. Jones, 1927)।“

प्राचीन यूनानी तथा रोमन भूगोलवेत्ताओं में स्ट्रैबो ही अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने भूगोल की कई शाखाओं-ऐतिहासिक, भौतिक, राजनीतिक, प्रादेशिक आदि का सार्थक वर्णन किया था। उन्होंने रोमन साम्राज्य के उत्थान और शक्ति पर इटली की आकृति, उच्चावच, जलवायु तथा स्थानिक सम्बन्धों के प्रभाव की व्याख्या की थी। उन्होंने यूनान तट के समीप कुछ लघु द्वीपों को आगे बढती हुई तट रेखा में मिलते हुए निरीक्षण किया था और पाया था कि समुद्री तटों और तट के समीप स्थित द्वीपों के मध्य में तलछटी जमाओं के परिणामस्वरूप उनके बीच स्थलीय सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं। उन्होंने भूमध्य सागर में स्थित माउण्ट विसूवियस के ज्वालामुखी विस्फोटों का आँखों देखा वर्णन किया है और विसूवियस को एक जलते हुए पर्वत के रूप में प्रदर्शित किया है। उन्होंने लिखा है कि क्रेटर से बाहर निकलने वाला लावा धीरे-धीरे सघन और कठोर मिलस्टोन के समान कठोर शैल में परिवर्तित हो जाता है। स्ट्रैबो ने यूनान के चूना पत्थर प्रदेश (कार्स्ट प्रदेश) में भूमिगत जल द्वारा निर्मित स्थलाकृतियों के निर्माण का वर्णन भौतिक भूगोलवेत्ता के दुष्टिकोण से किया है।

Stabo's View of the World

Stabo’s View of the World

स्ट्रैबो का सर्वाधिक योगदान प्रादेशिक भूगोल में माना जाता है। उन्होंने अपनी विभिन्न पुस्तकों में अलग-अलग प्रदेशों का भौगोलिक वर्णन किया है। उन्होंने इटली, स्पेन, गाल (फ्रांस), यूनान, उत्तरी एवं पूर्वी यूरोप, एशिया माइनर (टकी), फारस, मेसोपोटामिया, भारत, अरब, सीरिया तथा मिस्र, लीबिया, इथोपिया आदि अफ्रीकी देशों का भौगोलिक वर्णन किया है। स्ट्रैबो की रचनाओं से उस समय तक ज्ञात संसार के विषय में जानकारी प्राप्त होती है यद्यपि दूरवर्ती क्षेत्रों के विषय में जानकारी कही-सुनी बातों पर आधारित होने के कारण त्रुटिपूर्ण थी।

(2) पोम्पोनियस मेला (Pomponius Mela)

पोम्योनियस मेला (प्रथम शताब्दी) दक्षिणी स्पेन के निवासी और रोमन भूगोलवेत्ता थे। उन्होंने भौगोलिक तथ्यों की जानकारी के लिए तत्कालीन ज्ञात कुछ स्थानों की यात्राएं भी किया था। उन्होंने अपनी यात्रा का वर्णन अपनी पुस्तक में किया है। मेला ने पहले भूमध्य सागर के समीपवर्ती क्षेत्रों की यात्रा किया और बाद में इटली, यूनान, स्पेन, फ्रांस, सीरिया आदि देशों के अनेक स्थानों की यात्राएं किया।

पोम्पोनियस मेला ने लैटिन (स्पेनी) भाषा में छोटी-बड़ी कई पुस्तकें लिखा था जिनमें निम्नांकित तीन विशेष महत्वपूर्ण हैं-

(i) ब्रह्मांड विज्ञान (Cosmography)- मेला ने अपनी कास्मोग्राफी नामक पुस्तक में ब्रह्मांड के विषय में विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया है। उन्होंने पृथ्वी को ब्रह्मांड के मध्य में स्थित बताया है। इसमें पृथ्वी के ग्रहीय सम्बन्धों का विवरण है।

(ii) डिकोरोग्राफिया (Dechorographia)-इस पुस्तक में पृथ्वी को पाँच बृहत् कटिबंधों में विभक्त किया गया है-1. उष्ण कटिबंध, 2. उत्तरी शीतोष्ण कटिबंध, 3. दक्षिणी शीतोष्ण कटिबंध, 4. उत्तरी शीत कटिबंध, और 5. दक्षिणी शीत कटिबंध। इस पुरतक में उत्तरी शीतोष्ण कटिबंध का भौगोलिक वर्णन किया गया है। इसमें मेला की भौगोंलिक, यात्राओं का भी वर्णन सम्मिलित है।

(ii) स्काईलैक्स (Skylax) – इसमें भूमण्डल के विभिन्न प्रदेशों का संक्षिप्त भौगोलिक वर्णन है। इसमें मेला ने पृथ्वी के दो ध्रुव – उत्तरी और दक्षिणी बताया है। उन्होंने यह भी लिखा है कि पृथ्वी के पाँच बृहत कटिवंधों में से केवल दो कटिबन्धों-उत्तरी शीतोष्ण कटिबंध और दक्षिणी शीतोष्ण कटिबंध में ही मानव निवास के अनूकूल दशाएं पायी जाती हैं और मानव निवास के लिए उपयुक्त ये कटिबंध चारों ओर से जल (समुद्र) से घिरे हुए हैं। ये जलीय क्षेत्र हैं-भूमध्य सागर, हिन्दमहासागर, सीथियन सागर और अनंत सागर।

(3) प्लिनी (Pliny)

प्लिनी (27-79 ई०) का जन्म उत्तरी इटली के विकोना नामक स्थान पर हुआ था। प्लिनी ने कुशल प्रशासनिक अधिकारी के रूप में नीरो तथा टाइटस के शासनकाल में कई उच्च पदों पर कार्य किया था। प्लिनी एक भूगोलवेत्ता के साथ-साथ महान गणितज्ञ और प्रशासक भी थे। प्लिनी ने पृथ्वी के पिण्डाकार स्वरूप को स्वीकार किया था और बताया था कि पृथ्वी अपने अक्ष (घुरी) पर झुकी हुई है जिसके कारण ऋतु परिवर्तन होता है। उन्होंने विभिन्न भागों के भौगोलिक वर्णन के साथ ही वहाँ की आकाशीय (वायुमंडलीय) दशाओं का भी उल्लेख किया है। इनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक ‘प्राकृतिक इतिहास’ (Historia Naturalis) है जिसमें 37 खण्ड हैं। इसके अतिरिक्त तीन अन्य महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं-जर्मनी में युद्धों का इतिहास, स्वकालीन इतिहास और मौसम विज्ञान।

  1. प्राकृतिक इतिहास (Historia Naturalis)- 37 खण्डों में प्रकाशित इस पुस्तक के प्रारंभिक दो खण्डों में आकाशीय पिण्डों और पृथ्वी के आकार, स्वरूप, धरातल और मौसम आदि का वर्णन है। तीसरे से लेकर छठें खण्ड तक विभिन्न प्रदेशों का भौगोलिक विवरण दिया गया है। सातवें से ग्यारहवें खण्ड तक मानवशास्त्र और जीव विज्ञान सम्बन्धी विवरण मिलता है। शेष खण्डों में वनस्पति विज्ञान सम्बन्धी तथ्यों का विवरण दिया गया है।
  2. जर्मनी में युद्धों का इतिहास (History of Wars in Germany)- बीस खण्डों में प्रकाशित इस पुस्तक में जर्मनी के युद्धों का ऐतिहासिक विवरण दिया गया है।
  3. स्वकालीन इतिहास (History of His Own Times)- साहित्यिक ढंग से लिखा गया यह ग्रंथ इकीस खण्डों में प्रकाशित हुआ था।
  4. मौसम विज्ञान (Meteorology)- प्राकृतिक इतिहास के बाद यह प्लिनी का दूसरा महत्वपूर्ण भौगोलिक ग्रंथ है जिसमें भौतिक भूगोल और जलवायु विज्ञान के तथ्यों का विवरण दिया गया है। इसमें विभिन्न मौसमी दशाओं की उत्पत्ति, सूर्य ग्रहणऔर चन्द्र ग्रहण, ज्वालामुखी प्रस्फोट, भूकम्प आदि का तथ्यपूर्ण वर्णन किया गया है।

(4) टालमी (Ptolemy)

टालमी (90-168 ई०) का पूरा नाम क्लाडियस टालमी (Claudius Ptolemy) था। टालमी के जन्म स्थान और प्रारंभिक जीवन के विषय में बहुत कम जानकारी प्राप्त है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि टालमी का जन्म यूनान के टालेमिस हम्मी नामक नगर में हुआ था तो कुछ का विश्वास है कि उनका जन्म अलेक्जण्डरिया (मिस्र) के समीप टालमी नामक ग्राम में हुआ था। कुछ लोग टालमी का जन्म स्थान पेल्यूसियस नगर को भी मानते हैं। जो भी हो किन्तु इतना तय है कि टालमी ने अपने अध्ययन और लेखन सम्बन्धी कार्य अलेक्जण्डरिया में रहकर ही पूरा किया था। इसीलिए वह अलेक्जण्डरिया का टालमी के रूप में प्रसिद्ध है।

टालमी एक महान खगोलशास्त्री थे जिन्होंने खगोल शास्त्र की प्रसिद्ध पुस्तक ‘अलमाजेस्ट’ (Almagest) की रचना की थी। प्रेक्षण, अन्वेषण तथा लेखन द्वारा टालमी ने गणितीय भूगोल, मानचित्रकला और सामान्य भूगोल के क्षेत्र में अति महत्वपूर्ण योगदान दिया है। प्रचीन काल के समस्त यूनानी और रोमन भूगोलवेत्ताओं में टालमी सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। टालमी के कार्यों का संकलन ‘अलमाजेस्ट’ नामक पुस्तक में किया गया है जो अरबी भाषा में लिखी गयी है। टालमी की अन्य प्रमुख पुस्तकें हैं- ‘ज्योग्राफिया’ (Geographia) ग्रहीय परिकल्पना (Planetary Hypothesis) और ‘एनेलिमा’ (Anaelema)। टालमी के कार्यक्षेत्र का विवरण निम्नांकित हैं।

खगोलिकी (Astronomy)

टालमी की ‘अलमाजेस्ट’ नामक पुस्तक खगोलशास्त्र की प्रसिद्ध पुस्तक है जो दीर्घकाल (कई शताब्दियों) तक आकाशीय पिण्डों की गतिविधियों से सम्बंधित जानकारी के लिए मानक संदर्भ ग्रंथ के रूप में प्रतिष्ठित रही। टालमी ने अपने स्मय तक ज्ञात सभी महत्वपूर्ण स्थानों की गणितीय स्थिति का निर्धारिण किया था जिसके लिए उन्होंने अक्षांश और देशांतर रेखाओं से सम्बंधित हिप्पार्कस द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त को आधार बनाया था।

टालमी ने खगोलिकी के विषय में विस्तृत जानकारी के लिए कई प्रकार के यंत्रों द्वारा प्रेक्षण और अन्वेषण कार्य भी किया था। उनका विश्वास था कि पूृथ्वी ब्रह्माण्ड के मध्य ( केन्द्र) में स्थित है और स्थिर है तथा सभी आकाशीय पिण्ड उसकी परिक्रमा करते हैं । टालमी ने नक्षत्रों का वेध करके 1022 नक्षत्रों की सूची तैयार की थी। इसके पर्व हिप्पार्कस द्वारा निर्मित नक्षत्रों की सूची में 850 नक्षत्र सम्मिलित किये गये थे टालमी ने बताया था कि आकाश में एक स्थिर नक्षत्र मण्डल है। इसके बाहर गतिशील नक्षत्रों का मण्डल है जिसके बाहरी भाग में सबसे अधिक गतिशीलता पायी जाती है। टालमी की ‘ग्रहीय परिकल्पना’ (Planetary Hypothesis ) नामक पुस्तक में आकाशीय पिण्डों के पारस्परिक सम्बन्धों, उनके मध्य की दूरियों तथा उनकी गतियों आदि से सम्बंधित परिकल्पनाओं का विवरण दिया गया है। ‘एनेलिमा’ (Anelema) नामक पुस्तक में नक्षत्र विज्ञान तथा प्रेक्षण की परिकल्पना आदि का सैद्धान्तिक विवरण है। टालमी ने अपने प्रेक्षण और अनुभव के आधार पर नक्षत्रों के उदय तथा अस्त होने, सांध्य प्रकाश (गोधूलि एवं उपाकाल), ऋतु आदि का पंचांग (कैलेण्डर) भी तैयार किया था। टालमी के खगोलीय विचार यूरोपीय देशों में पन्द्रहवीं शताब्दी तक माने जाते रहे किन्तु बाद में नवीन खोजों ने टालमी के विचारों को अशुद्ध और दोषपूर्ण सिद्ध कर दिया।

गणितीय भूगोल और मानचित्र कला (Mathematical Geography and Cartography)

गणितीय भूगोल में टालमी का मुख्य कार्य प्रक्षेपों की रचना से सम्बंधित था। उन्होंने मानचित्र कला के अध्ययन को भूगोल का प्रमुख पक्ष स्वीकार किया था। टालमी हिण्पार्कस के निष्ठावान अनुयायी थे जिसका दृढ़ मत था कि विश्व के सभी महत्वपूर्ण स्थानों के अक्षांश और देशान्तर का सही निर्धारण करके ही विश्व का सही मानचित्र बनाया जा सकता है। किन्तु ऐसे प्रेक्षणों की संख्या कम होने के कारण टालमी को यात्रियों और नाविकों द्वारा निघारित दूरियों पर आश्रित होना पड़ा जिसके कारण मानचित्र में अशुद्धि आना स्वाभाविक था।

ज्योग्राफिया’ (Geographia) नामक ग्रंथमाला के अन्तर्गत टालमी की कुल आठ पुस्तकें प्रकाशित हुई जिनमें गणितीय भूगोल, मानचित्रकला और सामान्य भूगोल से सम्बंधित पुस्तकें सम्मिलित थीं। प्रथम पुस्तक सद्धान्तिक नियमों से सम्बंधित है जिसमें ग्लोब की रचना और मानचित्र प्रक्षेप की रचना विधि का वर्णन है। दूसरी से सातवीं पुस्तकों में लगभग 8000 स्थानों के नाम और उनकी ज्यामितीय स्थिति (अक्षांश-देशांतर) का उल्लेख है। इनमें कुछ स्थानों की स्थिति ही वैज्ञानिक प्रेक्षण पर आधारित थी और अधिकांश स्थानों के अक्षांश और देशांतर यात्रा वर्णनों तथा पुराने मानचित्रों के आधार पर निर्धारित किये गये थे। अठवीं पुस्तक में मानचित्रकला के सिद्धान्तों, प्रक्षेपों तथा खगोलिक वेधों आदि का विवरण दिया गया है।

Ptolemy's world map

Ptolemy’s world map

टालमी ने विश्व मानचित्र के निर्माण विधि का सविस्तार वर्णन किया है। उन्होंने तत्कालीन ज्ञात विश्व के विषय में उपलब्ध जानकारी के आधार पर अपने पूर्ववर्ती विद्वानों के मानचित्रों में महत्वपूर्ण सुधार किया था। टालमी ने विश्व मानचित्र के लिए निर्मित प्रक्षेप में भूमध्य रेखा तथा अन्य अक्षांश रेखाओं को समानांतर वक्रों द्वारा और देशांतर रेखाओं को भूमध्य रेखा पर समकोण पर काटते हुए दिखाया था। देशांतर रेखाओं को सीधी रेखा द्वारा मानचित्र की सीमा से बाहर स्थित ध्रुवों पर मिलती हुई दिखाया गया था जो वास्तविकता के अधिक समीप है। टालमी ने अपने विश्व मानचित्र के लिए हिप्पार्कस के विचार को आधार बनाया था जिसने भूमध्य रेखा को 360 अंशों में विभाजित किया था। उन्होंने पृथ्वी के परिधि की लम्बाई पोसीडोनियस की अनुमानित लम्बाई 18000 मील के बराबर माना। इसके अनुसार प्रत्येक अंश के बीच की दूरी 500 स्टेडिया (50 मील) माना गया था जो वास्तविक दूरी (700 स्टेडिया या 70 मील) से काफी कम थी। इस कारण पृथ्वी का आकार वास्तविक से छोटा तथा बाह्य क्षेत्रों का आकार त्रुटिपूर्ण था। टालमी की ग्रंथमाला ज्योग्राफिया में एक विश्व मानचित्र के अतिरिक्त 26 अन्य मानचित्र भी सम्मिलित हैं।

टालमी ने विश्व मानचित्र की रचना के लिए संशोधित शंक्वाकार पक्षेप (Modified Conical projection ) का निर्माण किया था। इसके लिए पृथ्वी को 360 देशांतरों में विभक्त किया गया है किन्तु ज्ञात संसार (पूर्वी गोलार्द्ध) को प्रदर्शित करने के लिए मानचित्र को 1 80 अंश देशांतरों का बनाया गया था। प्रधान मध्याहून रेखा काल्पनिक सौभाग्य द्वीपों (कनारी द्वीपों) के पास से गुजरती दिखायी गयी थी।

टालमी ने दो नये प्रक्षेपों की रचना विधि का भी विवेचन किया है। इनमें एक है लम्बकोणीय प्रक्षेप (Orthogonal projection) जिसे तीन तलों (Planes) के आधार पर तीन प्रकार से बनाया जा सकता है- (1) क्षैतिज तल (horizontal plane) पर, ( 2) याम्योत्तरीय तल (meridional plane) पर, और (3) ऊर्ध्वाधर तल (vertical plane) पर। इनका दूसरा प्रक्षेप त्रिविम प्रक्षेप (Stereographic projection) है जिसे दक्षिणी ध्रुव को केन्द्र मानकर बनाया गया था।

सामान्य और प्रादेशिक भूगोल (Gcncral and Regional Gcography)

टालमी की आठ खण्डों वाली प्रसिद्ध ग्रंथमाला ज्योग्राफिया मुख्यतः सामान्य भूगोल से सम्बंधित है और भूगोल के विविध पक्षों पर प्रकाश डालती है। इसमें सामान्य सैद्धान्तिक नियमों, स्थानों की स्थितियों, मानचित्र कला की विधियों आदि का वर्णन किया गया है।

टालमी ने पश्चिमी यूगेप के कई प्रदेशों का सविस्तार वर्णन किया है। उन्होंने ज्योग्राफिया के द्वितीय खण्ड में यूरोप के फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, ब्रिटेन, मध्य यूरोप आदि प्रदेशों की विभिन्न प्रादेशिक विशेपताओं का भौगोलक वर्णन किया है। उन्होंने एशिया के भारत, चीन, पश्चिमी और मध्य एशिया की भौगोलिक विविधाओं का भी वर्णन किया है। संभवतः अल्प जानकारी के कारण टालमी ने अफ्रीका के केवल उत्तरी भाग और नील नदी के विषय में ही लिखा है ।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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