भूगोल / Geography

प्राचीन भारत के भूगोलवेत्ता (Geographers of Ancient India in hindi)

प्राचीन भारत के भूगोलवेत्ता (Geographers of Ancient India in hindi)

विश्व का प्राचीनतम ज्ञान भारतीय प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है । रामायण और महाभारत काल से लेकर बारहवीं शती ईस्वी तक अनेक भारतीय विद्वानों ने विभिन्न भौगोलिक पक्षों का वर्णन अपने-अपने ग्रंथों में किया है। प्राचीन काल में भूगोल नाम का कोई अलग विषय नहीं था किन्तु धरातलीय तथा आकाशीय पिण्डों से सम्बंधित अध्ययन क्षेत्रशास्त्र के रूप में प्रचलित था। इसीलिए भूगोल और खगोल को एक-दूसरे से सम्बद्ध माना जाता था। गणितीय भूगोल और खगोलीय भूगोल प्राचीन भूगोल के प्रमुख पक्ष थे। इसके साथ ही भौतिक तथा मानवीय तथ्यों के प्रादेशिक वर्णन भी इसके अन्तर्गत समाहित होते थे। प्राचीन भारत के प्रमुख विद्वान निम्नांकित हैं जिन्होंने अपने ग्रंथों में भूगोल के विभिन्न पक्षों की व्याख्या और वर्णन किये हैं।

(1) कौटिल्य (चाणक्य)

कौटिल्य जिन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, चौथी शती ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त (322-298 ई० पू०) के गुरु और प्रधानमंत्री थे। कौटिल्य ने ‘अर्थशास्त्र’ नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की थी जिसमें उत्तरी और दक्षिणी भारत के व्यापारिक तथा राजनीतिक सम्बंधों की भौगोलिक विवेचना की गई है। इस ग्रंथ में प्राचीन भारत की कृषि व्यवस्था, औद्योगिक प्रगति, व्यापार तथा व्यापारिक मार्गों आदि का वर्णन किया गया है। ‘अर्थशास्त्र’ में राजनीतिक भूगोल से सम्बद्ध महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इसमें पाटलिपुत्र, उज्जैन, तक्षशिला आदि कई नगरों का भौगोलिक एवं राजनीतिक वर्णन किया गया है।

कौटिल्य (चाणक्य)

कौटिल्य (चाणक्य)

(2) आर्यभट्ट

प्राचीन भारत (चौथी शताब्दी) के प्रसिद्ध खगोल विज्ञानी आर्यभट्ट का जन्म पाटलिपुत्र में हुआ था। आर्यभट्ट ने पृथ्वी की आकृति गोलाभीय (spherical) बताया और पृथ्वी के व्यास और परिधि का परिकलन किया। उन्होंने पृथ्वी की परिधि लगभग 24835 मील बताया था जो वर्तमान आकलन (24901 मील) के लगभग बराबर है। उन्होंने सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण का कारण सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी के बीच बदलती स्थितियों को बताया और प्रतिपादित किया कि पूर्णिमा की रात में चन्द्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ने पर चन्द्रग्रहण दिखायी पड़ता है। आर्यभट्ट की प्रमुख कृति ‘आर्यभट्टीयम्’ है। सर्वप्रथम उन्होंने ही खोज की थी कि सूर्य स्थिर है और पृथ्वी अपनी धुरी पर धूमती है।

आर्यभट्ट

आर्यभट्ट

(3) वाराहमिहिर

वाराहमिहिर चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (शासन काल 375-415 ई०) के समकालीन थे और गुप्तकाल के दूसरे प्रसिद्ध खगोल विज्ञानी थे उन्होंने ‘पंचसिद्धानिका’ नामक ग्रंथ लिखा जिसमें खगोलिकी की पाँच पद्धतियों की व्याख्या की गयी है। वे पृथ्वी के किसी बिन्दु के अक्षांश ज्ञात करने की विधि से परिचित थे। उन्होंने गणित में दशमलव के प्रयोग और महत्व से भारतीयों को अवगत करा दिया था । ‘बृहजातक’, ‘बृहत्संहिता’ और ‘लघुजातक’ वाराहमिहिर के अन्य प्रमुख ग्रंथ हैं । वाराहमिहिर ने सिद्ध किया था कि चन्द्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाता है और पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है। उन्होंने ग्रहों के संचालन तथा अन्य खगोलीय समस्याओं के अध्ययन के लिए अनेक यूनानी कृतियों का भी सहारा लिया था।

वाराहमिहिर

वाराहमिहिर

(4) ब्रह्मगुप्त

गुप्तकाल के तीसरे प्रमुख खगोलवेत्ता ब्रह्मगुप्त वाराहमिहिर के समकालीन थे उन्होंने ‘व्रह्म सिद्धांत’ और ‘खण्डखाद्य’ नामक ग्रंथ लिखे जिनमें खगोलिकीय भूगोल सम्बन्धी तथ्य और सिद्धान्त दिये गये हैं। उन्होंने तेल, जल और पारा से घूमने वाले कुछ यंत्रों का भी वर्णन किया है। ब्रह्मगुप्त ने पृथ्वी का व्यास 1581 योजन (7905 मील) बताया था जो पृथ्वी के वास्तविक व्यास (7925 मील) के लगभग समान है।

ब्रह्मगुप्त

ब्रह्मगुप्त

(5) कालिदास

संस्कृत साहित्य के महाकवि कालिदास को चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (शासन काल 375 ई०-415 ई०) का समकालीन माना जाता है। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार में नौ विद्वानों की एक मण्डली थी जिसे ‘नवरत्न’ कहा गया है। कालिदास उन नवरत्नों में अग्रगण्य थे । कालिदास ने 7 ग्रंथों की रचना की है जो इस प्रकार हैं-रघुवंश, कुमारसंभव, मेघदूत, ऋतुसंहार, मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम् और अभिज्ञान शाकुंतलम्। इनमें प्रकृति चित्रण के साथ ही साथ स्थानों और मार्गों का विवरण मिलता है। ऋतुसंहार में षड्ऋतु का वर्णन है। मेघदूत में मेघ पथ का भौगोलिक वर्णन मिलता है।

कालिदास

कालिदास

(6) धन्वन्तरि

धन्वतरि प्रमुख आयुर्वेदाचार्य और चिकित्सा विज्ञान के प्रसिद्ध विद्वान थे। ये चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की राज्यसभा के नौ रत्नों में से एक थे। इन्होंने चिकित्सा के उद्देश्य से विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों की विशेषताओं और उनकी उपयोगिता का वर्णन किया है।

धन्वन्तरि

धन्वन्तरि

 (7) भास्कराचार्य

बारहवीं शताब्दी (1114 ई०) में एक महान गणितज्ञ और खगोलवेत्ता हुए थे जिन्हें भास्कराचार्य के नाम से जाना जाता है। उन्होंने ‘सिद्धांत शिरोमणि’ और ‘करणकुतूहल’ नामक दो प्रसिद्ध ग्रंथ लिखे थे। प्रथम ग्रंथ में अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति और ज्योतिषशास्त्र सम्बन्धी जानकारी दी गयी है। दूसरे ग्रंथ में कुछ प्रमुख अन्वेषणों का विवरण दिया गया है । भास्कराचार्य ने बताया था कि पृथ्वी गोल है और उसमें गुरुत्वाकर्षण शक्ति विद्यमान है जिसके कारण वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। उन्होंने पृथ्वी को 360° में विभाजित किया और अक्षांश तथा देशांतर रेखाओं द्वारा नगरों की अवस्थित निर्धारित करने में उनका उपयोग किया। भास्कराचार्य ने पृथ्वी को गोल मानकर ही सारी गणनायें की हैं।

भास्कराचार्य

भास्कराचार्य

यूनानी भूगोलवेत्ता (Greek Geographers in hindi)

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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