भूगोल / Geography

अरब भूगोलवेत्ता (Arab Geographers in hindi)

अरब भूगोलवेत्ता (Arab Geographers in hindi)

अनेक अरब लेखकों और विद्वानों ने भूगोल के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान किया है। उनमें से कुछ प्रमुख विद्वानों के योगदान की संक्षिप्त चर्चा यहाँ की जा रही है।

(1) मोहम्मद अब्दुल कासिम (Mohammad Abdul Qasim)

मेसोपोटामिया के नासिबिन नगर में जन्में मोहम्मद कासिम बगदाद के निवासी थे। इन्हें इब्न-हाकल-अबू-अल-मोहम्मद कासिम के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने पैदल ही अनेक देशों की यात्राए की थी। 943 ई० में यात्रा आरंभ करके उन्होंने उत्तरी अफ्रीका, मिस्त्र, सीरिया, आरमेनिया, अजरबेजान, अल जजीरा, ईराक, ईरान, ट्रांसोजानिया, सिसली आदि की यात्राएं की थी। उन्होंने अपनी यात्रा वर्णन से संबंधित एक पुस्तक लिखा था जिसका नाम है ‘मार्गों और परिमंडलों की पुस्तक’ (A Book of Routes and Realms)। इसमें विभिन्न देशों एवं प्रदेशों की सीमाओं, नदियों, जलाशयों, मार्गों, संसाधनों, व्यापारिक वस्तुओं, नगरों आदि का वर्णन सम्मिलित है।

मोहम्मद कासिम ने यूरोपीय देशों का भी भौगोलिक वर्णन किया है। उनके विवरण के अनुसार कैस्पियन सागर उत्तरी सागर से जुड़ा नहीं है। उन्होंने यूरोप को एक द्वीप बताया था उन्होंने विभिन्न प्रदेशों की कृषि प्रणालियों तथा कृषि उपजों आदि का भी वर्णन किया था।

(2) अल-मसूदी (Al-Masudi)

अल-मसूदी का जन्म दसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध (985 ई०) में बगदाद में हुआ था। अल-मसूदी एक भूगोलवेत्ता ही नहीं बाल्कि इतिहासकार और प्रसिद्ध लेखक भी थे उन्होंने एशिया और अफ्रीका के अनेक दूरस्थ भागों की यात्राएं किया था। उन्होंने यूनानी और रोमन विद्वानों की रचनाओं का गहन अध्ययन किया था और यात्राओं द्वारा पर्याप्त भौगोलिक सूचनाओं को संग्रहीत किया था। अल-मसूदी ने कई पुस्तकें लिखा था जिनमें से केवल एक ही पुस्तक उपलब्ध है जिसका नाम है-‘किताब-मुराज-अल-दहाब’

अल-ममूदी ने पूथ्वी की गोलाभ आकृति की पुष्टि की थी। उन्होंने अरब सागर को बृहत्तम सागर बताया था और साथ ही अरब से चीन तक के जलीय मार्ग में सात सागरों का वर्णन किया था। उन्होंने भौतिक भूगोल में महत्वपूर्ण कार्य किया था। उनके अनुसार नदियां अपना मार्ग परिवर्तन करती रहती हैं। और अनेक प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण करती हैं। उनके अनुसार ‘पृथ्वी का कोई ऐसा स्थान नहीं है जो हमेशा जलाच्छादित रहा हो और ऐसा भी नहीं है कि कोई भूमि हमेशा स्थल ही रही हो । हमेशा परिवर्तन होता रहता है। उन्होंने बंगाल की खाड़ी (हेरकेन्द सागर) की मानसूनी हवाओं का वर्णन एक मौसम विज्ञानी की दृष्टि से किया है। अल-मसूदी ने मनुष्य और पर्यावरण के पारस्परिक संबंध स्थापित करने का भी उल्लेखनीय प्रयास किया था।

अल-मसूदी का योगदान प्रादेशिक भूगोल में भी था। उन्होंने सीरिया (अलशाम), फारस, मध्य एशिया, मेसोपोटामिया तथा अन्य यात्रा विये गये देशों की प्रादेशिक विशेषताओं का वास्तविक वर्णन किया है। उन्होंने विश्व को 14 जलवायु प्रदेशों में विभक्त किया था।

(3) अल-बरूनी (Al-Beruni)

अल-बरूनी (973-1039) का जन्म मध्य एशिया में उजबेकिस्तान के खारिज्म नगर के समीप सरदरिया (नदी) के तट पर स्थित ‘बीरून’ नामक स्थान पर हुआ था। इनका बचपन का नाम अबू रिहान मोहम्मद था। उस समय ख्वारिज्य नगर शैक्षिक केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध था। अल-बरूनी ने यहीं से शिक्षा ग्रहण की धी। अल-बरूनी उजबेकिस्तान से गजनी आये थे वहाँ से उन्होंने भारत की भी यात्रा की थी। उन्होंने धर्म, दर्शन, गणित, ज्योतिष, इतिहास, औषधि (चिकित्सा) विज्ञान की शिक्षा प्रहण की थी। बाद में उन्होंने अरबी के अतिरिक्त फारसी, यूनानी, संस्कृत आदि भाषाओं को भी सीखा और उन भाषाओं में लिखित प्रमुख पुस्तकों का गहन अध्ययन किया अल-बरूनी एक महान विद्वान और बहु-आयामी प्रतिभा के धनी थे। उनकी मृत्यु गजनी में हुई थी।

बहु-आयामी लेखक अल-बरूनी ने अनेक पुस्तकें लिखी और विभिन्न विषयों पर अपने विचार प्रकट किये। अल-बरूनी के प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार हैं-1) किताब-अल-हिन्द, (2) तारीखे-अल-हिन्दू, अल-कानून-अल-मसूदी (बादशाह मसूद के कानून), (4) अथर -अल-बगिया, (5) किताब- अल-जमाकीर, (6) किताब-अल-सैयदना, (7) अल-तहदीद आदि। उन्होंने पतंजलि के प्रसिद्ध संस्कृत ग्रंथ ‘महाभाष्य’ का अरबी भाषा में अनुवाद भी किया था। अल-बरूनी ने भूगोल संबंधी 27 पुस्तकें लिखा था जिनमें से 12 पुस्तकें मानचित्र कला, भूगणित और जलवायु विज्ञान (प्रत्येक पर चार-चार पुस्तकें) पर थीं। अन्य पुस्तकें धूमकेतुओं, उल्काओं, सर्वेक्षण आदि से सम्बन्धित थीं अल-बरूनी का प्रमुख योगदान खगोल विज्ञान, गणितीय भूगोल और प्रादेशिक भूगोल में था।

(i) खगोल विज्ञान में योगदान- अल-बरूनी ने टालमी की पुस्तक ‘अलमाजेस्ट’ के अनुरूप खगोल विज्ञान की पुस्तक ‘कानून-अल-मसूदी’ लिखा था जिसमें महत्वपूर्ण खगोलीय सिद्धान्तों का विवेचन किया गया है। इस पुस्तक में सूर्य और चन्द्रमा का विस्तृत वर्णन किया गया है। अल-बरूनी ने पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच की अधिकतम और न्यूनतम दूरियों को भी नापा था। उन्होंने यह भी बताया था कि ज्वार की अधिकतम और न्यूनतम ऊँचाई चन्द्रमा की अवस्थाओं (कलाओं) में अंतर का परिणाम होती है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि अल-बरूनी खगोल विद्या के प्रति समर्पित थे ।

(ii) गणित में योगदान- अल-बरूनी एक महान गणितज्ञ थे। ज्यामिति और अंकगणित पर उन्हें पूर्ण अधिकार प्राप्त था। वे बीजगणित के भी विशेषज्ञ माने जाते थे। अल-बरूनी ने गोलीय त्रिकोणमिति के साथ-साथ भारतीय अंकगणित के सिद्धान्तों को भी अपनाया था।

(iii) भौतिक भूगोल में योगदान- भूआकृति विज्ञान और जीवाश्म विज्ञान (Paleontology) में अल-बरूनी ने महत्वपूर्ण कार्य किया था। उन्होंने नदियों के बाढ़ क्षेत्रों तथा जल स्रोतों (springs) की विवेचना की थी।

(iv) प्रादेशिक भूगोल में योगदान- अल-बरूनी ने एशिया, अफ्रीका और यूरोप के बहुत से देशों की प्रादेशिक विशेषताओं का वर्णन किया है।

(v) औषध विज्ञान- अल-बरूनी ने औषधियों के निर्माण से संबन्धित औषध विज्ञान (Medicine science) पर भी पुस्तक लिखी थी इसमें वनस्पतियों, पशुओं, खनिजों आदि से द्वाएं बनाने और उनसे रोगों के उपचार की विधियों का वर्णन किया गया है।

उपर्युक्त विवरणों से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अल-बरूनी खगोल विज्ञान, दर्शन, भुगोल, भूगर्भशाख्त्र, गणित, भू-आकृति विज्ञान, औषद विज्ञान तथा कई भाषाओं के ज्ञाता थे। अपनी यात्राओं, पूर्ववर्ती यूनान, रोमन, भारतीय विद्वानों की पुस्तकों के अध्ययन, खुले मस्तिष्क और कठोर परिश्रम तथा विशिष्ट लेखन द्वारा अल-बरूपी मध्यकाल के महत्वपूर्ण भूगोलवेत्ता बन गये थे।

(4) अल इदरीसी (Al-drisi)

अल- इदरीसी ( 1099 1180 ई०) बारहवीं शताब्दी के अग्रणीय भूगोलवेत्ता थे जिनका मौलिक नाम ‘अबू-अबद-अल्लाह मोहम्मद’ था। उनका जन्म मोरक्को (अफ्रीका) के उत्तर में स्थित क्वेटा स्थान पर हुआ था| ये स्पेन स्थित कारडोबा के खलीफा इदरिस के वंशज थे। इसी आधार पर वे अल-इदरीसी के नाम से जाने जाते थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा कारडोबा नगर में हुई थी। कारडोबा में शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् अस- इदरीसी सिसली के शासक रोजर द्वितीय के आमंत्रण पर पालेरमों नगर (सिसली) पहुँचे और चहाँ लम्बे समय तक रहे । उन्होंने अपने जीवन के प्रारंभिक काल में ही भूमध्य सागर के तटवरती अपेक स्थानों की यात्राएं की थी। अल-इदरीसी ने लिस्बन, स्पेन, फ्रांस, इंग्लैण्ड, मोरक्को, सिसली, एशिया माइनर, कुसतुनतुनीया और अफ्रीका के कुछ आंतरिक भागों की यात्रा किया था। पालेरमों में रहते हुए उन्होने भूगोल पर कई पुस्तकें लिखा । अपने अनुभव तथा ज्ञात तथ्यों के आधार पर अल-इदरीसी ने एक विश्व मानचित्र भी बनाया था जिसको समझने के लिए एक संदर्भ पुस्तक भी लिखी गयी थी। उनकी “विश्व भ्रमण के इच्छुकों के लिए मनोरंजन’ नामक पुस्तक अत्यंत रोचक और ज्ञान दायिनी है।

Al Idrisi World Map

Al Idrisi World Map

अल-इदरीसी ने हिन्द महासागर, कैस्पियन सागर, कई यूरोपीय तथा एशियाई नदियों के विषय में फैली पुर्ववर्ती भ्रांतियों को दूर किया और नाइजर, डेन्यूब आदि अनेक नदियों के मार्गों की स्पष्ट व्याख्या की। उन्होंने अपने विश्व मानचित्र में भूमण्डल को सात बृहत् जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया और प्रत्येक को प्राकृतिक विशेषताओं के आधार पर उप प्रदेशों में विभाजित किया था । उन्होंने प्रत्येक उप प्रदेश की भूआकृतियों, नदियों, वनस्पतियों, कृषि उपजों आदि का अलग-अलग वर्णन किया था।

अल-इदरीसी द्वारा तैयार किया गया विश्व मानचित्र भुगोल जगत् के लिए उनकी विशिष्ट देन है। उन्होंने टालमी की रचनाओं का गेभीरता से अध्ययन किया था और उससे वे बहुत प्रभावित थे। उन्होंने उस समय के ज्ञात क्षेत्रों के लिए छोटे-छोटे मानचित्रों का निर्माण करके एक मानचित्रावली (Atlas) का भी निर्माण किया था। उनके मार्चित्रों में वास्तविक रूप से ज्ञात तथ्यों एवं विवरणों को ही प्रदर्शित किया गया था अरब सागर और कैस्पियन सागर की सही स्थिति पहली बार अल-इदरीसी के मानचित्र में ही प्रदर्शित की गयी थी। संक्षेप में, अल-इदरीसी ने अपनी यात्राओं तथा अनुभव के आचार पर ज्ञात देशों और प्रदेशों का प्रादेशिक वर्णन किया था जो लगभग वास्तविक थे।

(5) इब्नबतूता (Ibn Battuta)

इब्नबतूता (1304 1377 ई०) का जन्म उत्तरी आफ्रीका के टेंजियर्स नगर में एक मुस्लिम न्यायाधीश (काजी) परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय में हुई थी। उनमें भ्रमण और विश्व के विषय में अधिक से अधिक जानने की इच्छा बचपन से ही थी। वे अध्ययन के अध्ययन से मिस्र, सीरिया और हेजाज में कई तर्षों तक रहे और वहाँ के प्रमुख सूफिसों (संतों) और विद्वानों से मिले । उन्होने तीर्थयात्रा के उद्देश्य से 2। वर्ष की आयु में मक्का की हजयात्रा की थी। हजयात्रा के पश्चात् उन्होंने मिस्र, सीरिया, मेसोपोटामिया (इराक), अरब, फारस एशिया माइनर, मध्य एशिया कुस्तुनतुनिया, बुखारा, भारत, लंका, मालदीव, सुमात्रा, इथोपिया, चीन आदि प्रदेशों की सफलतापूर्वक यात्राए की थी।

इब्नबतूता ने अफ्रीका के पूर्वी तट के सहारे दक्षिण की ओर समुद्री मार्ग से भूमध्य रेखा से 10° दक्षिण में स्थित किलवा स्थान तक यात्रा की थी। पश्चिमी एशिया से अनादतूलिया, कुस्तुनतुनिया, कीव (मध्य एशिया), बुखारा, समरकन्द और अफगानिस्तान होते हुए हिन्दूकुश पर्वत के दर्रे से होकर 1333 ई० में इब्नबतूता भारत पहुँचे थे । भारत में तत्कालीन बादशाह मोहम्मद बिन तुगलक ने उन्हें काजी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर लिया। इस प्रकार वे भारत में 8 वर्ष तक रहे और भारत की विस्तृत यात्राएं की। भारत से वे मालदीव, श्रीलंका, मलाया होते हुए समुद्री मार्ग से चीन के कैन्टन नगर गये थे और वहाँ से पुनः मोरको वापस चले आये थे। यह यात्रा लगभग 30 वर्ष में पूरी हुई थी। कुछ वर्षों बाद उन्होंने सहारा को पार करके नाइजर के तट पर स्थित टिम्बकटू तक की यात्रा किया था। इस प्रकार उनका अधिकांश जीवन यात्राओं में ही बीता था।

इब्नबतूता ने अपनी यात्राओं के अनुभवों तथा विभिन्न स्थानों, नगरों, प्रदेशों आदि की विशेषताओं, इमारतों आदि का विस्तृत वर्णन अपनी रचनाओं में किया है। उन्होंने ‘रिहलाह’ (Rihlah) नामक पुस्तक लिखी थी जिसमें अनेक इस्लामिक (मुस्लिम) देशों की मिट्टियों, कृषि अर्थव्यवस्था, राजनीतिक इतिहास आदि का वर्णन किया गया है। वास्तव में वे एक भ्रमणशील भूगोलवेत्ता थे जिनका उद्देश्य विश्व के विभिन्न स्थानों और देशों की यात्रा करना और वहाँ के प्राकृतिक, आर्थिक, सामाजिक-सांस्कृतिक तथा राजनीतिक दशाओं से परिचित होना और उनका वर्णन करना था।

(6) इब्न खाल्दून (Ibn Khaldun)

इब्न खाल्दून (1332-1406) को अंतिम अरब विद्वान माना जाता है जिन्होंने भूगोल के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया था। उनका जन्म संभवतः अल्जीरिया (उत्तरी अफ्रीका) में हुआ था । वे अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, स्पेन और मिस्त्र में रहे थे। उन्होंने 1377 ई० में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘मुकद्दीमा’ (Muqaddimah) को पूरा कर लिया था। यह पुस्तक छः खण्डों में विभाजित है -(1) सभ्यता, भूगोल और मानव विज्ञान, (2) चलवासी और स्थायी संस्कृति, (3) राजवंश और राज्य, (4) प्रामीण और नगरीय जीवन, (5) जीवन यापन के साधन और (6) विज्ञानों का वर्गीकरण ।

इब्न खाल्दून को एक कुशल इतिहासकार और समाजशास्त्री के रूप में जाना जाता है किन्तु उन्होंने एक पर्यावरणवादी भूगोलवेत्ता के रूप में मानवीय क्रियाओं और उसकी जीवन शैली पर प्राकृतिक पर्यावरण के प्रभावों की तार्किक व्याख्या की है। उन्होंने आपनी पुस्तक में विभिन्न सामाजिक संगठनों की विकास अवस्थाओं की व्याख्या के साथ ही मरुस्थल के चलवासी जीवन को सर्वाधिक आदिम और पवित्र बताया है। उन्होंने विभिन्न शासन प्रणालियों का भी विवेचन किया है और राजनीतिक शक्ति के रूप में राजवंशों के उत्थान की क्रमिक अवस्थाओं का भी वर्णन किया है।

जनरसंख्या वितरण के संदर्भ में इब्न खाल्दून का विचार था कि उत्तरी गोलार्द में दक्षिणी गोलार्द्ध की तुलना में जनसंख्या सघन है और भूमध्यरेखा के सहारे जनसंख्या अत्यंत विरल है। समय के साथ जनसंख्या में वृद्धि होती है और बस्ती बढती हुई आगे चलकर नगर का रूप ले लेती है। बड़े नगरों का आरंभ पहले लघु बस्तियों के रूप में होता है।

मानव पर पर्यावरण के प्रभाव का विवेचन करते हुए इब्न खाल्दून ने लिखा है कि भूमध्य रेखा के निकट निवास करने वाले लोग तेज धूप के कारण काले हो जाते हैं। उनके अनुसार मनुष्य के गुणों और अभिरुचियों पर प्राकृतिक पर्यावरण का निर्णायक प्रभाव पाया जाता है। इस प्रकार मनुष्य और पर्यावरण के मध्य सम्बंध स्थापित करते हुए पर्यावरण को अधिक महत्वपूर्ण बताने वाले इब्न खादून को विश्व का प्रथम पर्यावरणीय नियतिवादी (Environmental determinist) कहा जा सकता है।

(7) अन्य प्रमुख अरब भूगोलवेत्ता (Other Arab Geographers)

ऊपर बताये गये प्रमुख अरब भूगोलवेत्ताओं के अतिरिक्त वहाँ कम से कम एक दर्जन ऐसे विद्वान हुए थे जिन्होंने भौगोलिक ज्ञान को बढाने में महत्वपूर्ण योगदान किया था। इनके नाम इस प्रकार है-

  1. इन-सीना (Ibn-Sina) को अरब भूगोल का जनक माना जाता है। उन्होंने पर्वत निर्माण और अपरदन के कारकों का अध्ययन किया था और अरबी भाषा में भौगोलिक ज्ञान कोश की रचना की थी।
  2. सूलेमान और अबूजैद (Suleman and Abuzaid) ने भारत, हिन्द महासागर के द्वीपों और चीन का भूगोल लिखा था।
  3. इ्न खुरदादबेह (Ibn Khurdadbch) ने अरब, फारस, मलाया, पूर्वी द्वीप समूह के द्वीपों (हिन्देशिया), जापान, कोरिया आदि का भौगोलिक वर्णन विद्या था। उन्होंने ‘रास्ते और मुमालिक’ नामक पुस्तक लिखी थी।
  4. अल-याकूबी (Al-Yaqubi) ने भूमध्य सागरीय अफ्रीका, मिस्र, अरब, सीरिया, ईराक और ईरान के नगरों का भौगोलिक वर्णन लिखा था।
  5. अल-इस्तखरी (Al-Istakhri) ने दो पुस्तकें लिखी थी। एक में विभिन्न देशों की जलवायु का वर्णन है, और दूसरी में विभिन्न देशों के उच्चावच, आर्थिक क्रियाओं और नगरों तथा मार्गों का वर्णन है।
  6. अलमग्दिजी (Al-Magdizi) ने विश्व की जलवायु और सामान्य भूगोल पर दो खण्डों वाली पुस्तक लिखी थी। इसके प्रथम खण्ड में विश्व का सामान्य भूगोल और दूसरे खण्ड में विश्व के चौदह बृहत् प्रदेशों का भौगोलिक वर्णन था।
  7. इब्ने-युनुस (Ibne-Yunus) ने हिपार्कस और टालमी के दोषों को बताते हुए अक्षांश-देशांतर ज्ञात करने की पद्धति को समझाया था और खगोलिकी पर पुस्तक लिखी थी।
  8. अल-जरकली (Al-Zargali) ने स्पेन में रहकर खगोल विज्ञान पर तीन पुस्तकें लिखी थी जिनमें नक्षत्रों की सारणी तथा खगोलीय सिद्धान्त दिये गये हैं।
  9. अल-बाकरी (Al-Bakri) ने उत्तरी अफ्रीका और स्पेन का भूगोल लिखा था।
  10. इखवान-अल-सेफा (Ikhwan-Al-Sefa) ने खगोलिकी, भू विज्ञान और भूगोल के विभिन्न विषयों को समाहित करते हुए विज्ञान कोश की रचना की थी।
  11. रमहुर मुजी (Rumhur Muzi) ने भारत (हिन्द के करिश्मे), चीन और जापान का भूगोल लिखा था।
  12. अल-जहानी ( Al-Jahani) ने अरब देशों और मध्य एशिया के मार्गों का वर्णन किया था।
  13. अबू-जैद-बलखरी (Abu-Zaid-Balkhari) ने मानचित्रों की सहायता से खुरासान की जलवायु का वर्णन किया था।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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