समाज शास्‍त्र / Sociology

अर्नाल्ड टायनबी का चक्रीय सिद्धान्त | पैरेटो का चक्रीय सिद्धान्त

अर्नाल्ड टायनबी का चक्रीय सिद्धान्त | पैरेटो का चक्रीय सिद्धान्त

अर्नाल्ड टायनबी का चक्रीय सिद्धान्त

अर्नाल्ड टायनबी का विचार- टायनबी एक ब्रिटिश इतिहासकार थे। इन्होंने विश्व की 21 सभ्यताओं का अध्ययन किया और अपनी पुस्तक (A Study of History, 10 Vols.) में इसका उल्लेख किया। उन्होंने स्पेंग्लर की तरह यह विचार व्यक्त किया कि हर सभ्यता की एक चक्रीय रीति से जन्म एवं मृत्यु होती हैं उनका चक्रीय सिद्धांत चुनौती एवं प्रत्युत्तर के सिद्धांत 0 पर आधारित है। किसी भी सभ्यता को चुनौती दो क्षेत्रों में मिलती है एक भौगोलिक परिस्थिति एवं दूसरी सामाजिक परिस्थिति।

प्रत्येक सभ्यता के आरंभ में लोगों को भौगोलिक परिस्थितियों के चलते प्राकृति आपदाओं को झेलना पड़ता है। इन चुनौतियों को झेलना कोई आसान काम नहीं होता है। समाज और प्रकृति के बीच जो एक चुनौतीपूर्ण स्थिति होती है उसका सामना करने के लिए मनुष्य को विभिन्न प्रकार की क्षमताओं की आवश्यकता होती है।

दूसरी चुनौती का स्वरूप सामाजिक होता है इस चुनौती का स्रोत आंतरिक व बाह्य दोनों होता है। टायँनबी का आंतरिक स्रोत से तात्पर्य स्वदेशी सर्वहारा वर्ग है जो ज्यादा लंबे समय तक अपने ही समाज के सृजनशील अल्पसंख्यकों (Creative Minorities) के इशारे पर काम नहीं करना चाहता है। फलस्वरूप दोनों के बीच संघर्ष उत्पन्न हो जाता है बाह्य स्रोत के अंतर्गत उन्होंने बाहरी आक्रमणकारी बर्बर जाति के लोगों को रखा है जिसे बाह्य सर्वहारा वर्ग भी कहा गया है। जब इस प्रकार की कलह और तत्व की स्थिति किसी सभ्यता के सामने उत्पन्न हो जाती है, तो वह पतन और बिखराव की ओर बढ़ने लगता है। इस प्रकार टायनबी ने अपने सिद्धांत को चुनौती एवं प्रत्युत्तर का सिद्धांत कहना उचित समझा।

पैरेटो का चक्रीय सिद्धान्त

विलफ्रेड पैरेटो :- पैरेटो के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त को ‘विशिष्ट या संभ्रांत वर्ग का परिभ्रमण’ (Circulation of Elites) कहा जाता है।

Elites शब्द का प्रयोग पैरेटो ने दो अर्थों में किया है। विस्तृत और संकीर्ण। विस्तृत अर्थ में विशिष्ट वर्ग समाज के सभी क्षेत्रों में पाये जाते है। जो कोई भी व्यक्ति किसी क्षेत्र में समाज में सबसे आगे है उसे परेटों विशिष्ट वर्ग की श्रेणी में रखा है। उदाहरणस्वरूप, लेखक, कलाकार, खिलाड़ी प्रोफेसर, वकील, चोर, ठग इत्यादि। संकीर्ण अर्थ में विशिष्ट वर्ग का तात्पर्य मात्र शासी या शासक वर्ग से है। सामान्यतः सभ्रांत वर्ग को उन्होंने दो भागों में बांटा है।पहला शासक संभ्रांत वर्ग तथा दूसरा गैर-शासक संभ्रात वर्ग। शासी संभ्रात वर्ग में वे लोग आते हैं जो सरकार या प्रशासन में हैं। प्रशासन के बाहर समाज के विभिन्न क्षेत्रों में दक्षता या लोकप्रियता प्राप्त विशिष्ट लोग गैर-शासी संभ्रांत वर्ग की श्रेणी में आते हैं।

ध्यातव्य है कि शासी संभ्रांत वर्ग (Ruling Elites) की अवधारणा सर्वप्रथम जी. मोस्का ने दिया था।

परेटों का कहना है कि इन दोनों वर्गों के बीच परिवर्तन ही संभ्रांत वर्ग के परिभ्रमण का सिद्धांत कहलाता है। इस सिद्धांत का वर्णन अपनी पुस्तक “Mind and Society” में करते है। उनका कहना है कि समाज में दो प्रकार के वर्ग पाये जाते हैं-निम्न वर्ग व उच्च वर्ग (अभिजात्य वर्ग) ये दोनों वर्ग स्थिर नहीं हैं निम्न वर्ग के लोग अपनी गुणों एवं कुशलता में वृद्धि करके उच्च वर्ग में सम्मिलित हो जाते हैं जबकि उच्च वर्ग के लोगों की कुशलता व योग्यता में धीरे-धीरे हास्स होने लगता है जिससे वे निम्न वर्ग की ओर बढ़ते हैं।

परेटो अपने सिद्धांत को तीन क्षेत्रों में अभिव्यक्त करते हैं- राजनीतिक, आर्थिक तथा आदर्शात्मक क्षेत्र।

राजनीतिक क्षेत्र में पेरेटो का कहना है कि दो वर्ग है-शेर और लोमड़ी। परेओं का कहना है कि व्यक्ति अपनी योग्यता एवं गुणों के द्वारा उच्च वर्ग में सम्मिलित होता है, जिसे वह शेर की श्रेणी में रखते हैं। लेकिन अपनी सर्वोच्चता को बनाए रखने के लिए वह लोमड़ियों जैसे धूर्तता को अपनाने लगता हैं इसी प्रकार जो निम्न श्रेणी में योगय व कुशल लोग हैं वे अपनी योग्यता एवं कुशलता के बदौलता उच्च श्रेणी में शामिल होते है और उच्च श्रेणी के अयोग्य निम्न श्रेणी में आ जाते हैं इस प्रकार शेर और लोमड़ी के बीच परिवर्तन की प्रक्रिया चलती रहती है।

आर्थिक क्षेत्र में भी परेटो ने दो वर्गों का उल्लेख किया है-सट्टेबाज (Speculators) तथा निश्चित आय वर्ग वाले लोग (Rentiers) सट्टेबाज और निश्चित आय वन वाले लोग के बीच भी परिवर्तन की प्रक्रिया चलते रहती है जिसे सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।

इसी प्रकार पेरेटो ने आदर्शात्मक क्षेत्र में भी परिवर्तन की प्रक्रिया का उललेख किया है- पहला, विश्वासवादी एवं दूसरा अविश्वासी। कीी-कभी समाज में विश्वासवादियों का प्रभुत्व होता है, किन्तु जब वे यढ़िवादी हो जाते हैं तो उनका पतन हो जाता है और उनका स्थान दूसरे वर्ग के लोग ले लेते है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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