पश्चिमीकरण | भारतीय सामाजिक जीवन पर पश्चिमीकरण का प्रभाव | पश्चिमीकरण के परिणाम | पश्चिमीकरण के कारण अस्पृश्यता तथा विवाह में परिवर्तन | पश्चिमीकरण के कारण | पश्चिमीकरण के आधारभूत विशेषताएँ
पश्चिमीकरण | भारतीय सामाजिक जीवन पर पश्चिमीकरण का प्रभाव | पश्चिमीकरण के परिणाम | पश्चिमीकरण के कारण अस्पृश्यता तथा विवाह में परिवर्तन | पश्चिमीकरण के कारण | पश्चिमीकरण के आधारभूत विशेषताएँ
पश्चिमीकरण
डॉ. एम.एन. श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण के सन्दर्भ में लिखा है कि, “मैंने पश्चिमीकरण शब्द को ब्रिटिश राज्य के डेढ़ सौ वर्ष के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज की संस्कृति में उत्पत्र हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है, और यह शब्द विभिन्न स्तरों जैसे प्रौद्योगिकी, संस्थाओं, विचाराधाराओं, मूल्य आदि में घटित होने वाले परिवर्तनों का द्योतक है।”
भारत में ब्रिटिश शासन व्यवस्था के कायम हो जाने के उपरान्त से ही हमारा सम्पर्क पश्चिमी संस्कृति से स्थापित हुआ और यह दिन-प्रतिदिन घनिष्ठ होता गया। अंग्रेज शासक वर्ग के थे और उनका उद्देश्य भारतीयों को भी अपने सांस्कृतिक माया जाल में फँसाना था अतः हमारे लिए स्वयं को उनकी संस्कृति के प्रयासों से विमुक्त रखना सम्भव नहीं हुआ। साथ ही उस पश्चिमी संस्कृति में कुछ अच्छाइयाँ, अनेक आधुनिक व प्रगतिशल तत्व एवं असंख्य प्रलोभन भी थे। साथ ही अंग्रेजों का दबाव व प्रभाव भी हमारे ऊपर था। अतः हमने उनकी संस्कृति को अपनाया। जाति एवं प्रथा, संयुक्त परिवार, विवाह, धर्म, कला, प्रथा, परम्परा, साहित्य, संगीत, विचार, आदर्श, लक्ष्य तथा मूल्य सभी पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित हुईं। परिवर्तन की इस प्रक्रिया को ही ‘पश्चिमीकरण’ कहते हैं।
भारतीय सामाजिक जीवन पर पश्चिमीकरण का प्रभाव
अथवा
पश्चिमीकरण के परिणाम
हिन्दू धर्म की पुनः व्याख्या- पश्चिमी आदर्शों, सिद्धान्तों व मूल्यों से प्रेरणा पाकर ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन आदि धार्मिक संस्थाओं का जन्म व विकास हुआ जिन्होंने हिन्दू धर्म की फिर से व्याख्या की इसमें उत्पन्न गन्दी को दूर करने के लिए क्रियात्मक कदम उठाये। इस कार्य में राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, विश्व कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर, श्री अरविन्द, महात्मा गाँधी, आदि ने उल्लेखनीय प्रयत्न किये। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप धार्मिक आडम्बर, जाति-पांति का भेद-भाव, छुआछूत की भावना आदि को लोग बुरा समझने लगे।
मूल्यों में परिवर्तन (Change in Values) – पश्चिमीकरण के फलस्वरूप जहाँ एक ओर व्यक्तिवादी मूल्यों को बढ़ावा मिला है वहाँ दूसरी ओर समानता, लोकतन्त्र व लौकिकवाद से सम्बन्धित मूल्यों का भी महत्व बढ़ता गया है। कानून के सामने सब समान हैं-यह वास्तव में सामाजिक मूल्य पश्चिमीकरण की ही देन है। सती प्रथा व बाल विवाह के विपरीत तथा अन्तर्जातीय विवाह, प्रेम-विवाह, विधवा-पुनर्विवाह के अनुकूल मूल्यों का भी विकास पश्चिमीकरण के परिणामस्वरूप ही हुआ है। शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार सबको है, धर्म तथा जाति के आधार पर भेद-भाव या छुआछूत की भावना अर्थहीन है, स्त्रियों को दासी समझना एक सामाजिक अन्याय है तथा भाग्यवादी बने रहना अपने ही साथ धोखा करना है-आदि अनेक परिवर्तित सामाजिक मूल्यों का विकास पश्चिमीकरण का ही फल है।
पश्चिमीकरण के कारण अस्पृश्यता तथा विवाह में परिवर्तन
अथवा
पश्चिमीकरण के कारण
विवाह- सह-शिक्षा, स्त्री-पुरुषों का एक साथ काम करने का अवसर, राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन में स्त्री-पुरुषों का बढ़ता हुआ सम्पर्क पाश्चात्य आदर्शों एवं मूल्यों के प्रभाव के कारण जाति-प्रथा का अन्तर्विवाह (Indogramy) का नियम दिन-प्रतिदिन निर्बल होता गया और देर से विवाह, प्रेम विवाह और अन्तर्जातीय विवाह के अनुकूल वातावरण की सृष्टि होने लगी। साथ ही, बहुपत्नी विवाह, बाल-विवाह आदि की बुराइयों के प्रति जागरूकता बढ़ती गयी। उसी प्रकार विधवा पुनर्विवाह के सम्बन्ध में किये गये प्रयत्न भी पाश्चात्य मूल्यों एवं आदर्शों द्वारा प्रेरित थे।
अस्पृश्तया- पाश्चात्य शिक्षा एवं मूल्यों ने समानता के सिद्धान्त को भारत के सामाजिक वातावरण में उत्पन्न किया। नगरों में इस प्रकार के पर्यावरण की सृष्टि हुई कि छुआछूत के नियमों का पालन न हो सका। दूसरी ओर यातायात के साधनों में उत्रति एवं नगरों की उत्रत सामाजिक परिस्थितियों ने अछूतों को उनके अधिकार के सम्बन्ध में सचेत किया। इस जागरूकता को आर्य समाज, ब्रह्म समाज, रामकृष्ण मिशन और महात्मा गाँधी ने सक्रिय किया। इन सबके ऊपर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट था।
पश्चिमीकरण के आधारभूत विशेषताएँ
(1) चेतन-अचेतन प्रक्रिया- पश्चिमीकरण की प्रक्रिया द्वारा भारत में सामाजिक परिवर्तन केवल सचेत रूप में ही हुआ है, ऐसी बात नहीं है। अंग्रेजों द्वारा लाये गये अनेक पश्चिमी ‘सांस्कृतिक तत्वों’ (Cultural Traits) को हमने अनायास ही कब ग्रहण कर लिया है यह शायद हमें भी मालूम नहीं। वे तो अचेतन रूप में भारतीय जन-जीवन में समा गये हैं और परिवर्तन को घटित किया है।
(2) अंग्रेजों द्वारा लायी गयी पश्चिमी संस्कृति – पश्चिमीकरण के अन्तर्गत उन तत्वों का समावेश होता है जिन्हें कि अंग्रेज शासक अपने साथ लाये थे और और जिन्हें इस देश में प्रचलित किया था। उदाहरणार्थ, ईसाई धर्म की उत्पत्ति एशिया में हुई, दशमलव पद्धति भारतवर्ष में उत्पन्न हुई, और अरब होते हुए यूरोप पहुँची। बारूद, छापाखाना और कागज का आविष्कार चीन में हुआ। ये सब पाश्चात्य संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग हैं, किन्तु यह पश्चिम की उपज नहीं हैं। फिर भी इन्हें भारतीय समाज में लोकप्रिय बनाने का श्रेय अंग्रेजों को ही है। उसी प्रकार ‘पश्चिमी देश’ शब्द से जिन अनेक देशां का जैसे अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली आदि का बोध होता है उनमें स्वयं आपस में भारी सांस्कृतिक अन्तर है। भारतवर्ष में सामाजिक परिवर्तन के एक कारक के रूप में पश्चिमीकरण, की जो प्रक्रिया क्रियाशील है, वह वास्तव में पाश्चात्य संस्कृति के उस स्वरूप का प्रभाव है जिसे अंग्रेज शासक अपने साथ लाये और भारतवासियों को उससे परिचित कराया।
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