संस्कृति की विशेषताएँ | संस्कृति की प्रकृति (Nature of Culture in Hindi | Characteristics of Culture in Hindi)
संस्कृति की विशेषताएँ | संस्कृति की प्रकृति (Nature of Culture in Hindi | Characteristics of Culture in Hindi)
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किसी समाज की संस्कृति से तात्पर्य उस समाज के व्यक्तियों के रहन-सहन एवं खान-पान की विधियों, व्यवहार प्रतिमानों, आचार-विचार, रीति-रिवाज, कला-कौशल, संगीत-नृत्य, भाषा-साहित्य, धर्म-दर्शन, आदर्श विश्वास और मूल्यों के उस विशिष्ट रूप से होता है जिसमें उसकी आस्था होती है और जो उसकी अपनी पहचान होते हैं।
संस्कृति की प्रकृति एवं विशेषताएँ (Nature and Characteristics of Culture)
यद्यपि सैद्धान्तिक रूप में संस्कृति के सम्प्रत्यय के सम्बन्ध में सभी विद्वान एक मत नहीं हैं। उसके व्यावहारिक पक्ष के संबन्ध में सब एक मत हैं। यहाँ हम उसी को उसकी प्रकृति एवं विशेषताओं के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।
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संस्कृति मानव की विशेषता है
संस्कृति को हम चाहे भौतिक एवं अभौतिक दोनों रूपों में लें और चाहे केवल अभौतिक रूप में लें, यह केवल मानव पाणियों में ही पाई जाती है। यूँ संसार के पशु-पक्षियों की भी अपनी अपनी भाषाएँ हैं और अपने अपने रहन सहन की विधियाँ हैं परन्तु प्रथम बात तो यह है कि इनकी ये सब कियाएं केवल आत्मरक्षा तक सीमित हैं और दूसरी बात यह है कि यह आज भी पूर्णतया प्रकृति पर निर्भर है। ये कोई वैचारिक उपलब्धियाँ नहीं कर पाए हैं। इसलिए इनकी इन क्रियाओं को संस्कृति नहीं कहा जा सकता।
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संस्कृति मानव समाज की युग-युग की साधना का परिणाम है
किसी भी मानव समाज की संस्कृति का विकास होने में एक लम्बा समय लगा है। कभी मनुष्य भी संसार के अन्य पशुओं की तरह जीवन जीते थे। उन्होंने अपनी इस विशेष शारीरिक रचना और बुद्धि के प्रयोग से अपने जीवन-स्तर को निरन्तर ऊपर उठाया और भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में बसे मनुष्यों ने अपनी-अपनी तरह की वस्तुओं का निर्माण किया, अपनी-अपनी भाषाओं का विकास किया और अपनी-अपनी जीवन शैलियों का विकास किया और एक दिन वे साहित्य, धर्म एवं दर्शन का विकास करने में सफल हुए। इनमें से जो उनकी भावना एवं आस्था से जुड़ता चला गया वही उनकी संस्कृति बनता चला गया।
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संस्कृति सांस्कृतिक तत्वों का एक विशेष संगठन है
अधिकतर विद्वान संस्कृति को समाज विशेष के व्यक्तियों के रहन-सहन एवं खान-पान की विधियों, व्यवहार प्रतिमानों, आचार-विचार, रीति-रिवाज, कला-कौशल, संगीत-नृत्य, भाषा-साहित्य, धर्म-दर्शन, आदर्श-विश्वास और मूल्यों के उस विशिष्ट रूप में लेते हैं जिसमें उस समाज के व्यक्तियों की आस्था होती है और जो उस समाज विशेष की पहचान होते हैं। परन्तु संस्कृति इन सब तत्वों का योग नहीं, एक विशिष्ट संगठन होती है। जिस प्रकार ईंट, सीमेन्ट एवं लोहे आदि का योग अपने में भवन नहीं होता अपितु उनके द्वारा एक विशिष्ट प्रकार की रचना भवन होता है टीक उसी प्रकार संस्कृति भी विभिन्न सांस्कृतिक तत्वों का एक विशिष्ट संगङ्गन होती है।
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भिन्न-भिन्न समाजों की भिन्न-भिन्न संस्कृतियाँ हैं
प्रारम्भ में संसार के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में बसे मनुष्यों ने अपनी-अपनी संस्कृतियाँ विकसित की। वर्तमान में आवागमन के इतने साधन होने और सम्पर्क क्षेत्र बढ़ जाने के बाद भी इनकी अपनी-अपनी रहन-सहन एवं खान-पान की विधियाँ हैं, अपनी-अपनी भाषाएँ हैं, अपने-अपने रीति-रिवाज हैं और अपने अपने धर्म, दर्शन एवं मूल्य हैं और इनकी अपनी अलग पहचान है।
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संस्कृति समाज विशेष के लिए आदर्श होती है
किसी भी समाज के व्यक्तियों में अपने समाज की संस्कृति में गहरी आस्था होती है, वह उनके लिए आदर्श होती है, वे उसी को सीखकर अपने समाज में समायोजन करते हैं और उसकी को अंगीकार कर समाज विशेष के सम्मानित सदस्य बनते हैं। यह बात दूसरी है कि वर्तमान में वे दूसरे समाज के व्यक्तियों के साथ समायोजन करने के लिए उनकी भाषा एवं व्यवहार प्रतिमान जैसे कुछ तत्व ग्रहण कर लेते हैं।
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संस्कृति समाज के व्यक्तियों को एक सूत्र में बाँधती है
मनुष्य जिस समाज में पैदा होता है उसी की सामाजिक क्रियाओं में भाग लेकर उसकी संस्कृति को सीखता है। इस प्रकार किसी एक संस्कृति के व्यक्तियों में भावात्मक सम्बन्ध होता है, वे एक सूत्र में जुड़े-बँधे होते हैं।
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संस्कृति मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण करती है
व्यक्तित्व निर्माण की नींव शिशुकाल में रखी जाती है, यह वह अवस्था है जब बच्चे अपने समाज के व्यक्तियों के बीच रहकर उनका अनुकरण कर समाज विशेष की और संस्कृति समाज विशेष की विशिष्टता होती है, परिणामतः किसी संस्कृति विशेष में विशिष्ट प्रकार के व्यक्तित्व के निर्माण की नींव रखी जाती है।
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संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती है
मनुष्य जिस समाज में पैदा होता है, उसे उस समाज में समायोजन करने के लिए उसकी संस्कृति को सीखना होता है। दूसरी तरफ हर समाज अपने-अपने वाली पीढ़ी को अपने साहित्य, धर्म-दर्शन एवं मूल्यों का ज्ञान कराने हेतु शिक्षा की व्यवस्था करता है। इस प्रकार किसी समाज की संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती रहती है।
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संस्कृति परिवर्तन एवं विकासशील होती है
सामान्यतः काई भी समाज अपनी पूर्व विकसित संस्कृति में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहता परन्तु ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में विकास होने और एक-दूसरी संस्कृतियों के व्यक्तियों के एक दूसरे के सम्पर्क में आने और एक दूसरे से व्यवहार करने से उनकी संस्कृति में कुछ परिवर्तन एवं विकास अवश्य होता है, यह बात दूसरी है कि इस परिवर्तन एवं विकास की गति बहुत मन्द होती है।
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