अर्थशास्त्र / Economics

WTO के मौलिक सिद्धांत (Fundamental Principles)

WTO के मौलिक सिद्धांत (Fundamental Principles):

WTO के बारे में जानना हमारे लिए काफी जरूरी है, क्योंकि जिस प्रकार के नियम और समझौते इसके अंतर्गत लिए जाते हैं उसका असर सीधे हमारे देश, उसके लोग, उसकी अर्थव्यवस्था और हमारी जिंदगी के ऊपर पड़ता है। जो हम खाते हैं, पहनते हैं और खरीदते-बेचते हैं- यह सब कुछ इससे जुड़ा हुआ है।

WTO क्या है ? विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization)

(1) “सबसे पसंदीदा राष्ट्र” व्यवहार {Most Favoured Nation (MFN) treatment} :

WTO के सदस्य देश अपने किसी भी व्यापारिक साझेदार के साथ कोई भेदभाव नहीं कर सकेंगे। सभी को बराबरी का दर्जा दिया जाएगा और सबके साथ ‘सबसे पसंदीदा देश के रूप में व्यवहार किया जाएगा। उदाहरण के तौर पर, अगर कोई देश किसी दूसरे देश को कोई विशेष छुट देता है (जैसे किसी उत्पाद पर आयात प्रशुल्क पर छुट) तो उसे यह छुट WTO के सभी सदस्य देशों को देना होगा। इस सिद्धांत के अनुसार जब भी कोई देश किसी विशिष्ट सामान या सेवा के लिए अपना बाजार खोलेगा तो वह सभी सदस्यों पर लागू होगा। यह सिद्धांत GATS (Article 2) और TRIPS (Article 4) में भी लागू होता है।

हालांकि इस सिद्धांत में कहीं-कहीं छुट दी गई है, जैसे मुक्त व्यापार क्षेत्र, करटम यूनियन और विशेशाधिकारों वाली व्यवस्था । कुछ देश एक समूह बनाकर आपस में ‘मुक्त ब्यापार समझौता’ (Free Trade Agreement) कर सकते हैं। ऐसे में दूसरे देशों के उत्पादों या माल के साथ भेद -भाव किया जा सकता है। इसके अलावा ऐसा भी हो सकता है कि सिर्फ विकासशील देशों को अपने बाजार तक विशेष प्रवेश दिया जाए: या सिर्फ उन देशों के प्रति व्यापार अवरोध खड़ा किया जाए जो अनुचित तरीके से व्यापार करते हैं।

(2) राष्ट्रीय व्यवहार (National Treatment) :

WTO का दूसरा मौलिक सिद्धांत है कि आयातित और स्थानीय उत्पादों या सेवाओं में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। आयातित सामान के बाजार में पहुंचने के बाद, दोनों तरह के उत्पादों को समान दर्जा दिया जाएगा। आयात करते वक्त लगाए गए सीमा-प्रशुल्कों को इस सिद्धांत का उल्लंघन नहीं माना जाएगा बावजूद इसके कि स्थानीय उत्पादों के ऊपर इस तरह का कोई शुल्क नहीं लगता है। पर एक बार उत्पाद देश में प्रवेश कर जाए तो आयातित उत्पादों के ऊपर ऐसा कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आंतरिक कर या शुल्क नहीं लगाया जाएगा जो वहां के स्थानीय उत्पादों पर नहीं लगते हों। यह सिद्धांत विदेशी और घरेलू रोवाओं और स्थानीय ट्रेडमार्क, कापीराइट और पेटेंट (जैसे एकाधिकार के कानून जो TRIPS में आते हैं) पर भी लागू होता है।

(3) विमुक्त व्यापार (Freer Trade):

WTO का तीसरा महत्वपूर्ण सिद्धांत विमुक्त व्यापार है – अर्थात् व्यापार अवरोधों को धीरे-धीरे कम करते हुए व्यापार को और मुक्त बनाना। व्यापार अवरोधों से आशय है – सीमा शुल्क (या प्रशुल्क), गैर -प्रशुल्क अवरोध (Non- Tariff Barrier) के साथ-साथ आयात निशेध या कोटा जिनसे मात्राओं पर प्रतिबनध लगता हो।

(4) पूर्वकथनीयता और पारदर्शिता (Predictability and Transparency) :

यह सिद्धांत विदेशी कम्पनियों, निवेशकों और सरकारों को यह आश्वस्त करता है कि व्यापार अवरोधों को मनमाने ढंग से नहीं बढ़ाया जाएगा तथा सभी व्यापार संबंधित नीतियों और विनियमन ढांचों को विदेशियों के लिए पारदर्शी रखा जाएगा। व्यापार व्यवस्था को टिकाऊ और पारदर्शी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि सरकारें अपनी नीतियों और पद्धतियों को अपने देश में सार्वजनिक करें या कम से कम WTO को सूचित करें।

(5) निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा (Promotion of Fair Competition):

इस सिद्धांत के अनुसार प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए व्यापार के अनुचित तरीकों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए जैसे निर्यात में सब्सिडी या विदेशी बाजार में उत्पादों की डम्पिंग। ‘डम्पिंग’तब होती है जब बाजार को अत्यधिक राब्सिडी वाले रास्ते उत्पादों से भर कर घरेलू बाजार से कम दाम में बेचा जाए । इस तरह विदेशी बाजार के उद्योगों को काफी नुकसान पहुंचता है। WTO का मौलिक सिद्धांत होने के बावजूद विकसित देश इसका ठीक तरह से पालन नहीं करते हैं और वे अपने देश के अत्यधिक साब्सिडी वाले उत्पादों से विकासशील देशों के बाजार को भर देते हैं और उन्हें काफी कम कीमत पर बेचते हैं।

(6) विकास और आर्थिक सुधार को प्रोत्साहन (Encouragement of Development and Economic Reform) :

बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था में इस बात को स्वीकार किया गया है कि सभी देश बराबर नहीं हैं और इसलिए कम विकसित देशों के लिए विशेष प्रावधान होने चाहिए । उदाहरण के तौर पर, प्रशुल्क में कटौती के अनुरूप अपने आप को ढालने के लिए स्थानीय उद्योगों को ज्यादा वक्त मिलना चाहिए। इस तरह विकासशील देशों को WTO के जटिल प्रावधानों को अपनाने के लिए थोड़ा वक्त दिया जाता है। कम विकसित देशों को और भी ज्यादा वक्त दिया जाता है। उरुग्वे दौर में यह भी कहा गया है कि सक्षम देशों को कम विकसित देशों द्वारा निर्यात किए गए उत्पादों के लिए बाजार प्रवेश को सरल और सुगम बनाना चाहिए । इसके साथ-साथ इन देशों के लिए तकनीकी सहायता भी बढ़ाना चाहिए। इसीलिए कुछ विकसित देशों ने कम विकसित साझेदार देशों के उत्पादों के आयात को शुल्क-मुक्त और कोटा-मुक्त रखा है। हालांकि इस सिद्धांत का भी पूरी तरह से पालन नहीं हो रहा है। कम विकसित देश अभी भी अपने उत्पादों को विकसित देशों में शुल्क मुक्त, कोटा मुक्त (Duty free, quota free) करवाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसके साथ-साथ वर्ष 2001 में दोहा दौर के दौरान विकासशील देशों को ‘विशेष और विभिन्न व्यवहार’ देने का निर्णय लिया गया था जिसको पाने के लिए अभी तक ये देश संघर्ष कर रहे हैं।

(7) एकमात्र प्रतिज्ञा (Single Undertaking) :

इस सिद्धांत के अनुसार WTO के समझौते का प्रत्येक विषय एक बड़े और अविभाज्य पैकेज का हिस्सा है जिसे अलग-अलग नहीं किया जा सकता। “जब तक सब कुछ रवीकार न किया जाए तब तक कुछ भी रवीकार नहीं होता” – अर्थात WTO के साभी समझौतों को एक साथ एक ही प्रतिज्ञा के रूप में देखा जाता है। कोई भी सदस्य देश यह चयन नहीं कर सकता की वह किसी एक विशेष समझौते के साथ ही जुड़ेगा । WTO और उसके सभी समझौते एक ही पैकेज हैं जिसे सदस्य देश या तो पूरा स्वीकार करें या फिर जरा भी नहीं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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