यूनानी भूगोलवेत्ता (Greek Geographers in hindi)
यूनानी भूगोलवेत्ता (Greek Geographers in hindi)
पृथ्वी के विभिन्न भागों के पर्यावरण और उनके निवासियों की जीवन पद्धति पर वर्णनात्मक लेखन का आरंभ यूनान में नौवीं शताब्दी ईसा पूर्व में हो गया था । तत्कालीन महाकवि होमर (Homer) की दो काव्य रचनाओं में महत्वपूर्ण भौगोलिक वर्णन मिलते हैं। इसके पश्चात् के वर्षों में थेल्स (Thales), अनेग्जीमैण्डर (Anaximander), हेकैटियस् (Hecataeus), हेरोडोटस (Herodotus), अरस्तू (Aristotle), थियोफ्रेस्टस (Theophrastus), इरेटोस्थनीज (Eratosthenes), पोलीबियस (Polybius), हिप्पारचुस (Hipparchus), पोसिडोनियस (Posidoneus) आदि प्रमुख यूनानी विद्वानों ने भौगोलिक ज्ञान को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अग्रांकित पंक्तियों में इन यूनानी विद्वानों के योगदानों की संक्षिप्त चर्चा की गयी है।
(1) होमर (Homer)
यूनानी महाकवि होमर ने ईसा पूर्व नौवीं शताब्दी में दो महाकाव्यों — इलियड (Iliod) और ओडिसी (Odysey) की रचना की थी। छन्दबद्ध इन ग्रंथों में स्थान-स्थान पर स्थानों, जनपदों, पर्यावरणीय दशाओं, मानव वर्गों आदि के भौगोलिक वर्णन मिलते हैं। होमर के ‘ओडिसी’ नामक महाकाव्य में तत्कालीन यूनानी विद्वानों को ज्ञात विश्व की परिधि पर स्थित विभिन्न स्थानों और प्रदेशों का सजीव चित्रण मिलता है। इस महाकाव्य का नायक ओडेसस है। इसमें ट्राय (राज्य) के पतन के पश्चात् ओडेसस की इथाका (स्वदेश) वापसी का वृत्तांत हैं। इस यात्रा की अवधि में उसकी नौका तूफान में फंस जाने से उसकी दिशा बदल गयी और वह 20 वर्ष बाद स्वदेश पहुँच पाया। इस लम्बी यात्रा में उसे जिन-जिन स्थानों से गुजरना पड़ा, उसका काव्यमय रोमांचक वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है। होमर के विचार से पृथ्वी के सभी ओर समुद्र है और सूर्य प्रतिदिन प्रातः समुद्र से निकलता है और सायंकाल पुनः उसी समुद्री जल में डूब जाता है।
(2) थेल्स या थालेस (Thales)
प्रसिद्ध दार्शनिक और गणितज्ञ थेल्स या थालेस (640-546 ई० पू०) एजियन सागर के पूर्वी तट पर स्थित मिलेटस (Miletus) नगर का निवासी थे थेल्स को प्रथम यूनानी विद्वान माना जाता है जिन्होंने पृथ्वी के तल पर विभिन्न स्थानों की स्थिति निर्धारण की दिशा में सार्थक प्रयत्न किया था। वे स्वयं एक व्यापारी थे और उन्होंने व्यापार हेतु मिग्र की यात्रा की। वे मिग्र वासियों द्वारा स्थानों की लम्बाई-चौड़ाई की माप तथा क्षेत्रफल ज्ञात करने की ज्यामितीय प्रणाली से बहुत प्रभावित हुए थे। स्वदेश लौटने पर उन्होनें अपने देशवासियों को उन विधियों से परिचित कराया। उन्होंने कई समीपवर्ती देशों की यात्राएं कीं और उस दौरान अनेक खोजें भी कीं।
थेल्स ने बताया था कि नील नदी दो नदियों बाहेल गजल (श्वेत नील) और बाहेल अजरक (नीली नील) के मेल से बनी है। थेल्स का मानना था कि पृथ्वी का स्वरूप चपटी गोलाकार तस्तरी के समान है। जो जल पर तैरती रहती है। वे पृथ्वी को ब्रह्माण्ड के मध्य स्थित मानते थे उन्होंने विश्व की उत्पत्ति और नक्षत्रों के सम्बन्ध में एक पुस्तक भी लिखा था और समस्त भूमण्डल को पाँच जलवायु प्रदेशों में विभक्त करने का अग्रणीय कार्य किया था।
(3) अनेग्जीमैण्डर (Anaximander)
अनेग्जीमैण्डर (611-547 ई० पू०) प्रसिद्ध दार्शनिक थेल्स के शिष्य थे और इनका भी जन्म टर्की के तटवर्ती नगर मिलेटस में हुआ था। वे ब्रहूमांड विद्या (cosmology) के अच्छे ज्ञाता थे और उन्होंने अनेक खगोलीय अन्वेषण भी किया था। उन्होंने पृथ्वी की उत्पत्ति, आकृति तथा क्षेत्रफल आदि के विषय में विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया था। उन्होंने बताया था कि पृथ्वी एक ठोस पिण्ड है। इसकी आकृति गोलाकार है और यह ब्रह्मांड के मध्य में स्थित है। उन्होंने एक विश्व का मानचित्र भी बनाया था।
अनेग्जीमैण्डर ने यूनानवासियों को नोमोन (Gnomon) नामक धूप घड़ी (sun dial) से परिचित कराया था। इस यंत्र में समतल भूमि पर एक छड़ी गाड़ दी जाती है। घड़ी की छाया की लम्बाई दोपहर को (12 बजे) न्यूनतम होती है और इस छाया रेखा को उस स्थान का शुद्ध याम्योत्तर (meredian) माना जाता है। यूनानी ‘भौगोलिक चिन्तन तथा लेखन की ज्यामितीय पद्धति को स्थापित करने का श्रेय अनेग्जीमैण्डर को ही दिया जाता है।
पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय में अनेग्जीमैण्डर ने लिखा है कि सूृष्टि के आरंभ में ब्रह्मांड में आद्य पदार्थ फैले हुए थे जो कालांतर में संगठित होकर गोलाकार रूप धारण कर लिए। उस गोले का केन्द्रीय भाग शीतल और आर्द्र था जबकि बाहरी भाग उष्ण था। केन्द्रीय भाग ठोस होकर पृथ्वी बन गया और बाहरी उष्ण भाग वायुमंडल और धुंध में बदल गया। इसी प्रकार अन्य नक्षत्रों , सूर्य, चंद्रमा आदि आकाशी पिण्डों की भी रचना हुई। उनके अनुसार अन्य आकाशी पिण्ड ऊष्मा और प्रकाश का उत्सर्जन करते हुए पृथ्वी का चक्कर लगाते रहते हैं।
अनेग्जीमैण्डर अग्रगामी मानचित्रकार थे। उन्होंने विश्व का मानचित्र तैयार करने में मापक का प्रयोग किया था। उन्होंने अपने विश्व मानचित्र में यूनान को मध्य में रखा था। यह मानचित्र गोलाकार था जिसके चारों ओर सागर सरिता प्रदर्शित की गयी थी अनेग्जीमैण्डर को गणितीय भूगोल का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने भूमध्य सागर के तटीय देशों का भी मानचित्र बनाया था।
(4) हिकैटियस (Hecatacus)
मिलेटस नगर के निवासी हिकैटियस एक महान राजनेता और अग्रगामी भूगोलवेत्ता थे। वे छठीं शताब्दी ईसा पूर्व के यूनानी भूगोलवेत्ता थे जिन्होंने कई पुस्तकें लिखी थी जिनमें से अधिकांश प्राप्य नहीं हैं। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘पीरिओडस’ (Periodus) दो खण्डों में 520 ई० पू० में प्रकाशित हुई थी। इसका अर्थ है ‘पृथ्वी का वर्णन’ । पीरिओडस विश्व भूगोल का प्रथम क्रमबद्ध वर्णन है और इसी आधार पर कुछ लोग हिकैटियस को भूगोल का संस्थापक भी मानते हैं। इस पुस्तक के प्रथम खण्ड में यूरोप का और दूसरे खण्ड में अफ्रीका और एशिया का वर्णन किया गया था। हिकैटियस ने अपनी पुस्तकों में सात विश्व का सामान्य सर्वेक्षण प्रस्तुत किया था और भूमध्य सागर विशेषरूप से एजियन सागर के समीपवर्ती स्थानों और प्रदेशों का तथ्यपूर्ण वर्णन किया था।
हिकैटियस ने अपने नगर मिलेटस का मानचित्र भी बनाया था किन्तु पृथ्वी की आकृति के विषय में उनकी धारणा आयोनियन दार्शनिकों की मरम्परागत विचारधारा से प्रभावित थी। वे पृथ्वी को गोलाकार और सागर सरिता से घिरा हुआ मानते थे जिसके मध्य में यूनान की स्थिति है। उन्होंने पृथ्वी को दो भागों में विभक्त किया था उत्तर की ओर यूरोप महाद्वीप और दक्षिण की ओर अफ्रीका एवं एशिया महाद्वीप।
(5) हेरोडोटस (Herodotus)
हेरोडोटस (485-425 ई० पू०) एक प्रसिद्ध यूनानी भूगोलवेत्ता थे जिन्होंने भूमध्य सागर और काला सागर के समीपवर्ती देशों की यात्राएं किया था और उनका भौगोलिक वर्णन किया था। हेरोडोटस प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने अफ्रीका और एशिया महाद्वीपों को लाल सागर द्वारा विभाजित बताया था । हेरोडोटस की प्रसिद्धि एक इतिहासकार के रूप में है। उन्होंने फारसी साम्राज्य का इतिहास लिखा है जिसमें इतिहास पर भूगोल के प्रभाव को दर्शाया गया है । यात्रा करते समय हेरोडोटरा का ध्यान प्राकृतिव दृश्यों पर केन्द्रित रहता था और वे उन दृश्यों से इतने प्रभावित होते थे कि उन्होंने भौगोलिक द्वश्य सत्ता का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।
हेरोडोटस ने तत्कालीन यूनानियों को ज्ञात संसार का मानचित्र तैयार किया था। इसमें भूमध्य सागर बीच में दिखाया गया है और उसके चारों और भुभाग प्रदर्शित है इस मानचित्र में ‘भूमध्य सागर से संलग्न यूरोप, अफ्रीका और एशिया के समीपवर्ती ‘मूछेत्र दिखाये गये हैं। मानचित्र का विरतार पूर्व दिशा में अधिक है और इसमें भारत को भी दिखाया गया है।
हेरोडोटस की अभिरुचि गणितीय अध्ययन पद्धति में नहीं थी उन्होंने होमर द्वारा चर्णित पूर्वी के समतल और गोलाकार स्वरूप को स्वीकार कर लिया था। उनकी धारणा थी कि पृथ्वी के ऊपर आकाश में सूर्य एक चापाकार पथ पर पूर्व से पश्चिम की ओर यात्रा करता है।
(6) प्लेटो (Plato)
प्लेटो (428-348 ई० पू०) यूनान के शीर्षथ्थ दार्शनिकों में से एक थे। भौगोलिक विचारों के इतिहास में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे निगमनात्मक वैचारिक पन्धति के समर्थक थे। उन्होंने पृथ्वी को ईश्वरीय रचना माना और बताया कि पूथ्वी का आकार एक सम्पूर्ण पिण्ड होना स्वाभाविक है। प्लेटो के विचार से ईश्वर ने विश्व की रचना मनुष्य के उपयोग के उद्देश्य से की है और पृथ्वी का निर्माण मनुष्य के कार्य स्थल और उसके गृह प्रदेश के रूप में हुआ है। उनके अनुसार पृथ्वी ईश्वरी योजना का केन्द्र है जिसके चारों ओर आकाशीय पिण्ड चक्कर लगाते हैं। पृथ्वी की गोलाकार आकृति के विषय में प्लेटो का ज्ञान पूर्ववर्ती प्रचलित धारणाओं पर आधारित श्रा और इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हेतु उन्होंने कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया था।
(7) अरस्तू (Aristotle)
प्रख्यात यूनानी विद्वान अरस्तू (384-322 ई० पू०) एक महान दार्शनिक होने के साथ ही एक राजनीतिशास्त्री, जीवविज्ञानी और भुगोलवेत्ता भी थे। प्लेटो के शिष्य अरस्तू ने प्लेटो से भिन्न आगमनात्मक अध्ययन पद्धति का समर्थन किया। वे तथ्यों के प्रत्यक्ष दर्शन के आधार पर सिद्धान्त प्रतिपादन को सर्वोत्तम पद्धति मानते थे। प्लेटो की भांति अरस्तू का भी विश्वास था कि संसार एक सोदुदेश्य ईश्वरीय रचना है और विश्व में होने वाले सभी परिवर्तन ईश्वरीय नियोजन के ही परिणाम होते हैं। इस प्रकार अरस्त सोद्देश्यवाद विचारधारा के पोषक थे।
अरस्तू ने गणितीय भूगोल के विकास में भी उल्लेखनीय योगदान दिया था। उन्होंने पृथ्वी की आकृति तथा पृथ्वी के कटिबंधों का तथ्यपूर्ण और सोदाहरण वर्णन किया है। ध्यातव्य है कि उच्च स्तरीय विचारक होते हुए भी प्लेटो और अरस्तू की पहचान भौगोलिक ज्ञान के प्रवर्तक के रूप में नहीं है।
(৪) थियोफ्रेस्टस (Theophrastus)
थियोफ्रेस्टस (जन्म 370 ई० पू०) अरस्तू के शिष्य थे । उन्होंने भूतल पर वनस्पतियों के भौगोलिक वितरण का तुलनात्मक वर्णन किया था। उन्होंने वनस्पति और जलवायु के अंतर्सबंधों का परीक्षण किया और मेसीडोनिया के मैदान, उसके समीपवर्ती पर्वतीय भागों और क्रीट द्वीप की वनस्पतियों का तुलनात्मक वर्णन किया था। इस प्रकार थियोफ्रेस्टस का मुख्य कार्य वनस्पति (पादप) भूगोल से सम्बन्धित था।
(9) इरेटोस्थनीज (Eratosthenes)
इरेटोस्थनीज (276-194 ई०पू०) तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में एक ख्यातिप्राप्त गणितज्ञ और खगोल विज्ञानी थे। अधिकांश इतिहासकार मानते हैं कि अध्ययन की एक पृथक् शाखा के रूप में भूगोल की स्थापना इरेटोस्थनीज ने ही की थी। इसीलिए इरेटोस्थनीज को भूगोल का जनक (Father of Geography) भी कहा जाता है। उन्होंने ही सर्वप्रथम ‘ज्योग्राफी’ (भूगोल) शब्द का प्रयोग किया था जिसका अर्थ है पृथ्वी का वर्णनात्मक अध्ययन। उन्होंने ‘ज्योग्राफिका’ (Geographica) नामक पुस्तक लिखी थी जो प्रथम शास्त्रीय पुस्तक मानी जाती है। इरेटोस्थनीज मिस्र के अलेक्जण्डरिया (सिकन्दरिया) स्थित विश्व के बृहत्तम संग्रहालय के पुस्तकालयाध्यक्ष थे जिन्होंने उस पद पर निरन्तर चालीस वर्षों तक कार्य किया। उनके कुशल नेतृत्व में यह संग्रहालय खगोलीय अध्ययन का एक प्रतिष्ठित केन्द्र बन गया था इरेटोस्थनीज ने अपनी पुस्तक में पृथ्वी को पाँच जलवायविक कटिबंधों में विभक्त किया है- (1) उष्ण कटिबंध, (2) उत्तरी शीत कटिबंध, (3) दक्षिणी शीत कटिबंध, (4) उत्तरी शीतोष्ण कटिबंय, और (5) दक्षिणी शीतोष्ण कटिबंध।
इरेटोस्थनीज ने सूर्य की उत्तरायण और दक्षिणायन स्थितियों का वेध करके सूर्य के क्रांतिवृत्त तल (plane of eclliptic) की तिर्यकता की माप की थी। इन्होंने पृथ्वी के परिधि की गणना का उल्लेखनीय प्रयास किया था। अलेक्जण्डरिया से 5000 स्टेडिया (500 मील) दक्षिण में क्क रेखा के समीप साइने (syene) नामक नगर था जहाँ एक कुआँ था जिसकी तली पर सूर्य की किरणें वर्ष में केयल एक या दो दिन (20 से 22 जून) को पहुँचती थीं इरेटोर्थनीज ने उसी तिथि (21 जून) को ठीक मध्याह्न (12 बजे) सूर्य का कोणिक मान लिया जो लम्बवत् से 7° 12′ (वृत्त का 50वाँ माग) झुका हुआ था इसी आधार पर उन्होंने साइने और अलेक्जेण्डरिया के बीच की दूरी में 50 का गुणा करके (5000 स्टेडिया x 50 = 250,000 स्टैडिया = 25000 मील) पृथ्वी के परिधि की गणना थी। पृथ्वी की परिधि लगभग 24,840 मील है। इस प्रकार इरेटोस्थनीज की गणना लगभग सही थी।
तत्कालीन ज्ञात सूचनाओं के आधार पर इरेटोस्थनीज ने विश्व का एक मानचित्र भी बनाया था जिसमें 7 अक्षांश और सात देशातर रखाओं को दिखाया गया था जो असमान दूरी पर और दोषपूर्ण थीं। इस मानचित्र में यूरोप, एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों को प्रदर्शित किया गया था किन्तु इसमें अफ्रीका और एशिया को बहुत छोटा दिखाया गया था।
(10) पोलीबियस (Polybius)
पोलीबियस (210-128 ई० पू०) ने भौतिक भूगोल के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया था। इन्होंने नदियों के अपरदन और निक्षेपण कार्यों तथा उनसे उत्पन्न कई स्थलरूपों यथा बाढ़ के मैदान, टेल्टा आदि के निर्माण का वर्णन किया था।
(11) हिप्पार्कस (Hipparchus)
हिप्पार्कस (जन्म 150 ई० पू०) इरेटोस्थनीज के पश्चात् अलेक्जण्डरिया संग्रहालय के पुस्तकालयाध्यक्ष नियुक्त हुए थे। वे मूलतः एक खगोलशास्त्री थे और उन्होंने नक्षत्रों के वेध के लिए एक चक्रयंत्र का निर्माण किया था जिसका नाम एस्ट्रोलैब (Astrolabe) था उन्होंने प्रथम बार बराबर दूरी पर खींची गयी अक्षांश और देशांतर रेखाओं के जाल पर मानचित्र बनाया था। सर्वप्रथम हिप्पार्कस ने ही वृत्त को 360 अंशों में विभक्त किया था । उन्होंने विषुवत रेखा को पृथ्वी का बृहुत वृत्त (great circle) बताया और यह भी स्पष्ट किया कि भूमध्य रेखा से उत्तर और दक्षिण की ओर अक्षांश वृत्तों की लम्बाई क्रमशः घटती जाती है।
(12) पोसीडोनियस (Posidonius)
पोसीडोनियस (135-50 ई० पू०) मुख्यतः एक भौतिक भूगोलवेत्ता थे जिन्होंने स्पेन के बंदरगाह गेडीज के तट पर ज्वार-भाटा की खोज की थी और सारडीनिया द्वीप से दूर समुद्र की गहराई को नापने का अग्रणीय कार्य किया था । उन्होंने मैदानों के निर्माण और क्राउन क्षेत्र (दक्षिणी फ्रांस) में बजरियों (gravels) के निर्माण प्रक्रिया का भी अन्वेषण किया था । उन्होंने ज्वार-भाटा का प्रेक्षण बड़ी सावधानी से किया था और निष्कर्ष निकाला था कि ज्वार की सर्वोच्च ऊंचाई पूर्णिमा और अमावश्या के आस-पास पायी जाती है। उन्होंने समुद्र विज्ञान की एक पुस्तक (The Ocean) भी लिखा था।
पोसीडोनियस ने पृथ्वी की परिधि का परिकलन किया था। उन्होंने रोड्स (Rhodes) और अलेक्जण्डरिया स्थानों पर कोनोपस (Conopus) नामक तारे की क्षितिज पर ऊँचाई का प्रेक्षण किया था। उनके अनुसार ये दोनों स्थान एक ही याम्योत्तर (meridian ) पर स्थित थे। जलयान की यात्रा में लगने वाले समय के आधार पर उन्होंने दोनों स्थानों के बीच की दूरी का अनुमान लगाया था । उनके परिकलन के अनुसार पृथ्वी की परिधि 18000 मील थी जो वास्तविक परिधि की मात्रा 2/3 थी। अपने आकलन द्वारा उन्होंने यह भी अनुमान लगाया था कि यूरोप के पश्चिमी तट से पश्चिम की ओर जलयान द्वारा यात्रा करने पर भारत के पूर्वी तट पर पहुँचा जा सकता है। इसी आकलन के आधार पर कोलम्बस ने भारत की खोज में पश्चिम की ओर यात्रा की थी किन्तु पाया उसने अमेरिका। पोसीडोनियस की माप के आधार पर ही टालमी ने विश्व का मानचित्र बनाया था जिसमें पृथ्वी का आकार वास्तविक से छोटा दिखाया गया था।
प्राचीन भारत के भूगोलवेत्ता (Geographers of Ancient India in hindi)
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