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प्रयोजनमूलक हिन्दी | प्रयोजनमूलक हिन्दी की प्रमुख प्रयुक्तियाँ

प्रयोजनमूलक हिन्दी | प्रयोजनमूलक हिन्दी की प्रमुख प्रयुक्तियाँ

प्रयोजनमूलक हिन्दी

सामान्य हिन्दी की नीव पर प्रयोजनमूलक हिन्दी का भवन निर्मित होता है। अब तो साहित्यिक हिन्दी के समानान्तर प्रयोजनमूलक हिन्दी के पठन-पाठन की अनिवार्यता को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग भी स्वीकृति दे रहा है। असंख्य विश्वविद्यालयों का महाविद्यालयों में प्रयोजनमूलक हिन्दी के पाठ्यक्रम पढ़ाये भी जा रहे हैं। मात्र हिन्दी ही नहीं संस्कृत, अंग्रेजी तथा अन्यान्य प्रान्तीय भाषाओं से भी सम्बन्ध पाठ्यक्रम प्रारम्भ किये जा रहें हैं। ये पाठ्यक्रम महत्वपूर्ण भी है, क्योंकि पढ-लिखकर युवकों-युवतियों को किसी-न-किसी क्षेत्र में काम करना पड़ता है। मात्र साहित्यिक अथवा सामान्य भाषा ज्ञान उनकी सहायता नहीं कर पायेगा। अतः उनके लिए भाषा के प्रयोजनमूलक स्वरूप का ज्ञान आवश्यक है। भारत में सबसे अधिक नौकरियों दफ्तरों में मिलती है। इनके कामकाज का एक तरीका होता है और इस तरीके की अभिव्यक्ति करने वाली एक अलग प्रकार की भाषा भी होती है जो सामान्य भाषा पर आधारित होते हुए भी अपनी निजी विशिष्टताएँ रखती है।

मशहूर भाषा वैज्ञानिक डॉ० भोलनाथ तिवारी ने उसी गोष्ठी में जो विचार व्यक्त किया, उसे लेख रूप में बांधा ‘प्रयोजनमूलक हिन्दी’ शीर्षक से (पृ0 95-98)। इस लेख में तिवारी ने हिन्दी के मुख्य प्रयोजनमूलक रूप सात बताये है-

  1. बोलचालीय हिन्दी
  2. व्यापारी हिन्दी- इसमें भी मन्डियों की भाषा, सर्राफे के दलालों की भाषा, सट्टाबाजार की भाषा आदि कई उपरूप हैं।
  3. कार्यालयी हिन्दी- कार्यालय भी कई प्रकार के होते है और उनमें भी भाषा के स्तर पर कुछ अन्तर है।
  4. शास्त्रीय हिन्दी- विभिन्न शास्त्रों में प्रयुक्त भाषाएँ भी शब्द के स्तर पर कुछ अलग हैं। इसमें संगीत शास्त्र, काव्यशास्त्र, भाषाशास्त्र, दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, विधिशास्स आदि की भाषाएँ हैं।
  1. तकनीकी हिन्दी- इंजिनियरी, बढ़ईगिरी, लुहारी, प्रेस, फैक्टरी, मिल आदि की तकनीकी भाषा।
  2. समाजी हिन्दी- इसका प्रयोग सामाजिक कार्यकर्ता करते हैं।
  3. साहित्यिक हिन्दी- इसमें कविता, कला साहित्य, तथा नाटक की भाषा में अन्तर होता है।

प्रयोजन मूलक हिंदी की प्रमुख प्रयुक्तियाँ

कार्यालयी हिन्दी- ‘कार्यालयी हिन्दी’ से तात्पर्य प्रशासनिक क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी से है। इसे कार्यालयी हिन्दी इसलिए कहा जाता है कि सरकारी तथा सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यालयों में उसी में काम होता है। वैसे तो कार्यालय भी कई प्रकार के होते हैं, जैसे सरकारी, अर्थ सरकारी या निजी और हर कार्यालय की अपनी अलग पहचान होती है लेकिन प्रायः सभी कार्यालयों में टिप्पणी लिखे जाते हैं। पत्राचार होता है। फाइलों पर नोटिंग की जाती है। टिप्पणियाँ लिखी जाती हैं। निविदायें आमंत्रित की जाती हैं लेकिन इन सब में जो हिन्दी लिखी जाती है, वह कुछ हटकर होती है। उसका एक बँधा-बंधाया ढाँचा होता है और उसी के अनुसार वह चलती है। चाहकर भी उसे आप तोड़ नहीं सकते। उसकी एक तय शब्दावली होती है और विन्यास भी।

विधिक हिन्दी- विधि या कानून के क्षेत्र में या अदालती कामकाज में जो भाषा इस्तेमाल होती है, उसकी अपनी विशेषता होती है। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में तथा अधिनियमों एवं विधेयकों आदि में निम्न प्रकार की हिन्दी लिखी जाती है।

अनुच्छेद 348-(1) इस भाग के पूर्ववर्ती उपबन्धों में किसी बात के होते हुए, भी, जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबन्ध न करे तब तक (क) उच्चतम न्यायालय में तथा प्रत्येक उच्च न्यायालय में सब कार्यवाहियाँ, (ख) जो-

(i) विधेयक, अथवा उन पर प्रस्तावित किये जाने वाले जो संशोधन, संसद के प्रत्येक सदन में पुनः स्थापित किये जायं उस सब में प्राधिकृत पाठ,

(ii) अधिनियम, संसद द्वारा या राज्य के विधानमण्डल द्वारा पारित किये जायँ, तथा जो अध्यादेश राष्ट्रपति या राज्यपाल या राजप्रमुख द्वारा प्रख्यापित किये जायें, उन सब के प्राधिकृत पाठ, तथा

वाणिज्यिक हिन्दी- वाणिज्यिक हिन्दी से मतलब वाणिज्य एवं व्यापार के क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी से है। जैसे-

  1. डॉलर के लड़खड़ाने से सोना चमका।
  2. शेयर बाजार में रौनक। सेंसेक्स 215 और निफ्टी 67 अंक चढ़ा।
  3. आम आदमी से दूर हुआ खाद्य तेल। दस दिनों में 4 रुपए भाव बढ़े, रियायती दर पर वितरण की योजना फाइलों तक सिमटी।
  4. ऑडी की ए 4 कार बाजार में लांच हुई।
  5. सट्टेबाजी से बढ़ा कच्चे तेल का दाम।
  6. अभी और महँगी होगी दालें।

वैज्ञानिक हिन्दी- विज्ञान के क्षेत्र में जो हिन्दी प्रयुक्त की जाती है, उसे वैज्ञानिक हिन्दी कहा जाता है। इसके अन्तर्गत भौतिकी, रसायन, वनस्पतिशास्त्र, जीवविज्ञान और चिकित्सा विज्ञान आदि की भाषा आती है जिसमें विज्ञान की अपनी शब्दावली, वाक्य संरचना तथा विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ शामिल हैं। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं।

  1. Syphilis (उपदंश) के बारे में हाईस्कूल की पुस्तक विज्ञान भाग 3 में लिखा है-‘यह रोग एक सर्पिल दण्डाणु ट्रीपोनेमा पैलिडम के कारण उत्पन्न होता है।’

तकनीकी हिन्दी- तकनीकी क्षेत्र में यानी इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में लिखी जाने वाली हिन्दी अलग है। इसके पूर्व विज्ञान में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी के कुछ उदाहरण दिये जा चुके हैं। उसी प्रकार इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में जो हिन्दी लिखी जा रही है, वह भी आसान नहीं जटिल है। इसका कारण भी अनुवाद ही है। एक तो शब्द सामर्थ्य, दूसरे उसके प्रचलन की समस्या है। शब्दकोश भी हैं, शब्दावलियां भी लेकिन पढ़ने-पढ़ाने वाले कहते हैं कि अंग्रेजी माध्यम में पढ़ना-पढ़ाना सरल है, हिन्दी में कठिन।

बैंकिंग हिन्दी– बैंकिंग के क्षेत्र में जिस हिन्दी का प्रचलन है, वह आमतौर पर अंग्रेजी से अनुदित हिन्दी है। अपने बचत खाते से रुपए निकालने की पर्ची हो, उसमें रुपए जमा करने की पर्ची हो, पास बुक हो, चेक बुक हो, बैंक ड्राफ्ट हो, एफडी हो, उन सभी पर जिस प्रकार की हिन्दी लिखी होती है, उसकी प्रकृति हिन्दी वाली होती ही नहीं, सीधे-सीधे अंग्रेजी का तर्जुमा होता है। आम आदमी की तो बात ही छोड़ दीजिए उसे अच्छा-खासा लिखा आदमी नहीं समझ पाता। वह भी पूछ-पूछ कर उसे भरता है।

जनसंचार माध्यमों में प्रयुक्त हिन्दी- जनसंचार माध्यमों में इस्तेमाल हो रही हिन्दी की जब बात करते हैं तो उसमें प्रिन्ट, आडियो और आडियो वीडियो सभी माध्यम शामिल होते हैं। इनमें न्यूज में प्रयुक्त हिन्दी प्रायः सभी माध्यमों में एक सी है, कुछ में अंग्रेजी की मिलावट नाममात्र को है तो कुछ में ज्यादा। प्रिन्ट मीडिया में सबसे ज्यादा साहित्य सृजित होता है, उसकी हिन्दी साहित्यिक होती है तो आडियो में रेडियो की साहित्यिक कार्यक्रमों की हिन्दी उससे जुलती है विजुअल मीडिया में फिल्मों में प्रयुक्त हिन्दी बहुत साहित्यिक तो नहीं लेकिन रोजमर्रा वाली हिन्दी से बेहतर होती है। इलेक्ट्रानिक मीडिया पर आने वाले रियलिटी शो की हिन्दी अलग होती है तो धारावाहिकों की अलग। गीत-संगीत पर आधारित कार्यक्रमों में प्रयुक्त हिन्दी अलग होती है तो पैनल डिस्कसंस और बातचीत की हिन्दी अलग।

विज्ञापन में प्रयुक्त हिन्दी- हिन्दी जब से बाजार की भाषा हुई है, तब से उत्पादों के ज्यादातर विज्ञापन हिन्दी में आने लगे हैं। जनसंचार के जितने साधन हैं, प्रायः सभी में विज्ञापन भी दिये जा रहे हैं। एक तरह से हिन्दी ने अंग्रेजी को धीरे-धीरे पछाड़ दिया है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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