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प्रतिवेदन से अभिप्राय | प्रतिवेदन का स्वरूप | प्रतिवेदन के प्रकार

प्रतिवेदन से अभिप्राय | प्रतिवेदन का स्वरूप | प्रतिवेदन के प्रकार

प्रतिवेदन से अभिप्राय

किसी व्यक्ति, वस्तु, पटना के सोद्देश्य सूक्ष्य निरीक्षणोपरांत तैयार किया गया यह सम्पूर्ण विवरण प्रतिवेदन कहलाता है, जो उस व्यक्ति, वस्तु एवं घटना की वास्तविक स्थिति प्रस्तुत करने के साथ-साथ उपादेयता का भी परीक्षण प्रस्तुत कर रहा हो।

विभिन्न संस्थाओं, संगठनों समितियों की सामूहिक या इनके अंतर्गत आने वाले विभागों/ एककों (इकाइयों), एकांशों की साधारण या विशेष बैठके समय समय पर होती रहती है। इन बैठकों में जो कुछ भी विचार विमर्श होता है अथवा इन संस्थाओं, संगठनों, समितियाँ या इनके विभागों उपविभागों द्वारा किसी खास आयोजन में जो कुछ भी क्रिया-कलाप किए जाते है उनका प्रविवेदन तैयार करना कई कारणों से आवश्यक होता है- कभी विचार-विमर्श के बाद लिए नए निर्णयों के क्रियान्वयन के लिए, कभी आगामी बैठक में एवं बैठकों का ब्यौरा प्रस्तुत करने के लिए और कभी बैठक या आयोजन का ही लेखा-जोखा प्रस्तुत करने के लिए।

कभी-कभी किसी संस्थान, संगठन या उसकी एक इकाई या व्यक्ति विशेष के क्रियाकलापों की जांच-पड़ताल या छानबीन करने के लिए उसकी कार्य-पद्धति में सुधान लाने के लिए, उसके कार्य-क्षेत्र के विस्तार के लिए उसकी उपयोगिता या उपादेयता की परख के लिए जाँच समिति या जांच अधिकारी नियुक्त किए जाते है। ऐसी जाँच समिति या ऐसे जांच अधिकारी पूरी जाँच-परख करने के बाद अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हैं।

इस प्रकार सिद्धान्त प्रतिवेदन विभिन्न प्रकार के सोद्देश्य प्रस्तुत किए गए विवरणात्मक लेखे- जोखे का समेकित नाम है, जिसका उपयोग चालू व्यवस्था की समीक्षा करके उसे और कारगर बनाने के लिए किया जाता है।

प्रतिवेदन का स्वरूप

1. समाचार पत्रों में प्रकाशन हेतु तैयार किये गये प्रतिवेदन पूर्णतया सूचनापरक होते है। इसके प्रारम्भ में प्रतिवेदन जिस स्थान विशेष पर तैयार किया जाता है उसका उल्लेख एवं प्रतिवेदन जिस दिन प्रकाशनार्थ भेजा जाता है उस तारीख का उल्लेख किया जाता है। प्रतिवेदन के अन्त में प्रतिवेदक का नाम भी प्रकाशित किया जाता है।

2. कार्यालयीन कार्यों के लिए तैयार किये जाने वाले सामान्य प्रतिवेदन को प्रारम्भ करते समय तिथि एवं स्थान के उल्लेख में विकल्प होता है। सामान्य प्रतिवेदन उतना निवैयक्तिक संक्षिप्त एवं सूचनापरक नहीं होता, जितना समाचार पत्रों में प्रकाशनार्थ तैयार किया गया प्रतिवेदन हुआ करता है। ऐसे प्रतिवेदनों में प्रतिवेदन को थोड़ी छूट रहती है।

3. किसी आदेश के अन्तर्गत बंधकर जब कोई व्यक्ति जाँच आयोग या तथ्यान्वेषण समिति के सदस्य के रूप में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है, तो ऐसे प्रतिवेदन पत्र शैली में तैयार किये जाते हैं। इन्हें जाँच आयोग या तथ्यान्वेषण समिति के नियुक्त कर्ता को सम्बोधित करते हुए प्रस्तुत किया जाता है।

उदाहरण-

दंगे की घटना की जाँच के लिए गठित समिति द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन

विगत 14 दिसम्बर 1986 महीने कपलज में हुए जातीय दंगे के कारणों की जाँच के लिए राज्यपाल महोदय ने तीन सदस्यों की एक समिति गठित की थी और आदेश दिया था कि समिति 20 दिनों में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करे। समिति में निम्नलिखित तीन सदस्य थे-

  1. न्यायमूर्ति श्री ईश्वरी प्रसाद, भूतपूर्व न्यायाधीश
  2. श्री डेसमंड बाकर, प्रसिद्ध वकील एवं संसद-सदस्य
  3. श्री अजहर मोहम्मद, शिक्षा शास्त्री एवं मनोवैज्ञानिक

सामति के तीनों सदस्यों ने पूरे कपलज का दौरा किया और हर प्रकार के दंगे के कारणों का पता लगाया।

सम्मिति के तीनों सदस्यों ने अपने जाँच कार्य में निम्नलिखित प्रक्रिया को अपनाया।

(क) दंगे बे बारे में विभिन्न इलाकों में रहने वाले 150 लोगों का साक्षात्कार लिया।

(ख) दंगा पीड़िता लोगों से भेंट करके दंगे के कारणों एवं स्थितियों के बारे में पूछताछ की।

(ग) पुलिस विभाग के लोगों से वस्तुस्थिति के बारे में पूछताछ की।

(घ) दंगा-पीड़ित इलाकों से दंगे के दौरान पकड़े गए लोगों के ब्यान लिए।

(ड.) दंगे के घोषित एंव अघोषित कारणों से संबद्ध व्यक्तियों के पूछताछ की।

साक्षात्कार, पूछताछ और बयानों से प्राप्त हुए सूत्रों के आधार पर निर्धारित कारणों से सत्यापन हेतु पुनः एक बार पूछताछ, साक्षात्कार एवं बयानों की प्रक्रिया अपनाई गई। इस बार कुछ ऐसे लोगों से भी पूछताछ की गई जो प्रत्यक्ष रूप से दंगे संबद्ध न होकर परोक्ष रूप में इससे गहराई के साथ जुड़े हुए रहे हैं।

इन समस्त प्रयासों के फलस्वरूप जो तथ्य सामने आए हैं ये इस प्रकार है-

(i) श्री फिलिप टकर, 14 वां मकान, सत्ताइवा रास्ता और श्री नसीरुद्दीन अहमद छब्बीसवाँ मकान, 17 वाँ रास्ता, कभी हमपेशे और दोस्त थे। तीन वर्ष पहले श्री टकर की पुत्री मारिया और श्री नसीरुद्दीन के पुत्र एजाज के बीच पैदा हुए प्रेम-सम्बन्ध के कारण दोनों व्यक्तियों में आपसी तनाव पैदा हो गया। छ महीनों तक दोनों पक्ष गुप्त रूप से एक दूसरे को हानि पहुंचाने का प्रयास करते रहे। इसमें श्री टकर का पलड़ा भारी रहा और उन्होंने व्यावसायिक नाकाबंदी कर श्री नसीरुद्दीन के कारोबार को लगभग चौपट कर दिया। आर्थिक दबाव के कारण एजाज को कुवैत जाना पड़ाँ, जहाँ उसे काफी अच्छी नौकरी मिल गई। इस तरह मामला दब-सा गया।

साल भर बाद एजाज छुट्टियां मनाने आया और वापसी में मारिया को भी कुवैत ले गया तो श्री टकर विफर उठे। उन्होंने श्री नसीरुद्दीन के ऊपर हर प्रकार से धावा बोल दिया, गुण्डों से उन्हें बुरी तरह पिटवाया और उनकी दुकान में आग लगवा दी। अंततोगत्वा श्री नसीरुद्दीन को शहर छोड़कर भागना पड़ा।

सात माह पहले एजाज ने कुवैत से तीन लाख रुपये अपने पिता को भेजे। धनबल के आते ही श्री नसीरुद्दीन में बदला लेने की भावना जाग पड़ी। उन्होंने बाहर से बड़ी संख्या में एकत्रित किया और एक दिन श्री टकर के ऊपर पुरजोर हमला बोल दिया। इस प्रकार दो व्यक्तियों की रंजिश दो संप्रदायों के झगड़े के रूप में उभर आई।

(ii) इधर नगरपालिका के चुनाव में श्री नसीरुद्दीन के नेतृत्व में उनके संप्रदाय के लोग एक पार्टी के साथ मैदान में उतरे तो श्री टकर के नेतृत्व में दूसरे सम्प्रदाय वाले दूसरी के साथ सामने आए। सांप्रदायिकता ने राजनैतिक पार्टियों की आड़ ले ली और दंगे को राजनैतिक रंग मिल गया।

(iii) दो संप्रदायों, फिर दो पार्टियों के विद्वेष में दोनों संप्रदायों से संबद्ध विदेशी राष्ट्रों ने भी योगदान दिया। कुवैत से एजाज ने जोड़ा तो टकर ने अमेरिका से गुहार की। दोनों संप्रदायों के लिए गोपनीय ढंग से आर्थिक सहायताएं आने लगीं। चूंकि विदेशी मुद्रा का आगमन हमारी आर्थिक व्यवस्था के लिए वरदान है, अत: सरकारी नीतियाँ भी इस टकराव को धार देने में सहायक रहीं। इस प्रकार दो व्यक्तियों का झगड़ा दो राष्ट्रों के बीच चलने वाले शीतयुद्ध के रूप में बदल गया, जिसकी अभिव्यक्ति इस दंगे के रूप में हुई है।

(iv) दंगे में जिन ओजारों का प्रयोग हुआ, उनमें अधिकांश देशी ही थे विदेशी औजारों में केवल पिस्तौल का प्रयोग हुआ है, जिसकी तस्करी आसानी से हो सकती है।

(v) दंगे में कुल मिलाकर 7 आदमी मरे 25 घायल हुए। मृतकों में 5 और घायलों में 17 स्थानीय नहीं थे, बल्कि बाहर से आए थे। इससे सिद्ध होता है कि दंगा करने वाले अधिकांश लोग भाड़े पर बाहर से लाए गए और दंगा सुनियोजित रूप में करवाया गया।

उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में निम्नलिखित सिफारिशें की जाती हैं-

(क) दोनों संप्रदायों में सद्भाव बढ़ाने के लिए वरिष्ठ लोगों की आगे आना चाहिए। सबसे पहले श्री टकर एवं श्री नसीरुद्दीन को मिलाना चाहिए।

(ख) विदेशों से पैसे की आमद को नियंत्रित करना चाहिए।

(ग) व्यक्तिगत मामलों को हल करने के लिए पुलिस को प्रारंभ में ही ठोस कदम उठाना चाहिए था। अब पुलिस को सतर्क रहना चाहिए और कानून तथा व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पैसे और राजनीति के दबाव में नहीं आना चाहिए।

(घ) दंगा-पीड़ित लोगों की सरकारी स्तर पर कोई सहायता नहीं करना चाहिए। इससे लोगो दंगा करने वाले और कराने वाले दोनों को भूलकर सरकार को दोष देने लगते है। जनता को जागृत करना चाहिए कि वह दंशा करने वालों और कराने वालों के प्रति प्रतिरोधात्मक रुख अपनाए, सामूहिक रूप से इनका बहिष्कार करें।

उम्मीद है सरकार उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उचित कार्यवाही करेगी।

प्रतिवेदक

  1. श्री ईश्वरी प्रसाद
  2. श्री डेसमंड बाकर
  3. श्री अजहर मोहम्मद

प्रतिवेदन के प्रकार

विषय-वस्तु की दृष्टि से प्रतिवेदन तथ्यों के आधार पर विचारपरक होते हैं। आवश्यकता के अनुकूल प्रबन्धित-निबन्धित एवं अनुबन्धित रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं। इस आधार पर उन्हें विस्तृत प्रतिवेदन एवं संक्षिप्त प्रतिवेदन कहते हैं।

अवधि के आधार पर-

अवधि के आधार पर प्रतिवेदन दो प्रकार के होते हैं- 1. नियमित प्रतिवेदन 2. सामायिक प्रतिवेदन।

  1. नियमित प्रतिवेदन- कर्मचारियों की गोपनीय चरित्रावली (कॉन्फिसडेंशियल रिपोर्ट) विभाग के सालाना प्रतिवेदन, किसी स्वायत्तशी संस्था के वार्षिक प्रतिवेदन नियमित प्रतिवेदन कहलाते हैं।
  2. सामयिक प्रतिवेदन- किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सामायिक तौर पर माँगें गये प्रतिवेदन सामयिक प्रतिवेदन कहलाते हैं।

प्रतिवेदनों की संख्या के आधार पर-

संख्या के आधार पर प्रतिवेदन दो प्रकार के होते है-1. सामूहिक प्रतिवेदन 2. वैयक्तिक प्रतिवेदन।

  1. सामूहिक प्रतिवेदन- इसमें प्रतिवेदन समूह के सभी सदस्यों की धारणाओं, विचारों की समुचित जरूरी होता है जिससे कि प्रतिवेदन की एकरूपता में किसी प्रकार की कोई बाधा उत्पन्न न हों।
  2. वैयक्तिक प्रतिवेदन- यह व्यक्ति विशेष का होता है इस प्रतिवेदन में सामूहिक प्रतिवेदन की रचना प्रक्रिया वाली कठिनाई नहीं होती है।

प्रसारण की दृष्टि से- प्रसारण की दृष्टि से प्रतिवेदन दो प्रकार के होते हैं- 1. गोपनीय प्रतिवेदन, 2. प्रकाशित प्रतिवेदन।

प्रारूप के आधार पर-

प्रारूप के आधार पर प्रतिवेदन दो प्रकार के होते हैं-

(अ) निश्चित प्रारूप वाले प्रतिवेदन- ऐसे प्रतिवेदन प्रायः मुद्रित प्रपत्रों में प्रस्तुत करने होते हैं। इनमें आकलन किसी निश्चित मुद्दे पर किया जाता है।

(ब) मुक्त प्रारूप वाले प्रतिवेदन- ऐसे प्रतिवेदनों में आकलन अनिश्चित होता है और प्रतिवेदन को कुछ छूट होती है।

व्यक्ति, वस्तु एवं घटना के आधार पर-

ऐसे प्रतिवेदन निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं-

  1. व्यक्ति विशेष का गोपनीय प्रतिवेदन।
  2. किसी संस्था का प्रतिवेदन।
  3. किसी समारोह, संगोष्ठी या कार्यशाला का प्रतिवेदन।
  4. किसी जाँच समिति अथवा तथ्यान्वेषण समिति का प्रतिवेदन।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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