राममूर्ति समीक्षा समिति – 1990 | राममूर्ति समीक्षा समिति की अपनी समीक्षा रिपोर्ट

राममूर्ति समीक्षा समिति – 1990 | राममूर्ति समीक्षा समिति की अपनी समीक्षा रिपोर्ट

राममूर्ति समीक्षा समिति, 1990

(Rammurti Review Committee, 1990)

सन् 1986 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा कर दी गयी और उसी वर्ष इसकी कार्य योजना भी प्रकाशित कर दी गयी तथा 1987 से इसका क्रियान्वयन प्रारंभ हो गया। परन्तु उसी बीच 1989 में केन्द्र में राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार सत्ता में आई। सरकार के बदलते ही शिक्षा नीति में परिवर्तन पर विचार किया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 3 वर्ष बाद ही मई, 1990 में इसकी समीक्षा के लिये राममूर्ति कि  अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इसे राममूर्ति समीक्षा समिति 1990 कहा जाता है।

समिति की अपनी समीक्षा रिपोर्ट-

“प्रबुद्ध एंव मानवीय समाज की ओर” (Towards an Enlightened and Human Society) शीर्षक से 26 दिसम्बर, 1990 में प्रस्तुत की। इस समिति की रिपोर्ट के प्रारंभ में ही यह स्वीकार ह्यस किया गया है कि 1986 के बाद देश की स्थिति और अधिक खराब हुई है, सांस्कृतिक मूल्यों में और अधिक ह्यस हुआ है, सामा स्थान पर वर्ग भेद बढ़ा है धार्मिक सहिष्णुता के स्थान पर धार्मिक उन्माद बढ़ा है, और शैक्षिक अवसरों की समानता के स्थान पर शैक्षिक अवसरों में असमानता बढ़ी है। इसके बाद सीमित ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के क्रियान्वयन की समीक्षा प्रस्तुत की और फिर अपने सुझाव दिए हैं। जिनको निम्न प्रकार क्रमबद्ध किया गया है-

पूर्व प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव

समिति ने देखा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के तहत शिशुओं की देखभाल एवं शिक्षा (ECCE) की व्यवस्था की गति बहुत मंद है। उसने सुझाव दिया कि समाज के सुविधाविहीन शिशुओं की देखभाल एवं शिक्षा के लिए आँगनबाड़ी व्यवस्था का विस्तार किया जाये और साथ ही आँगनबाड़ियों के कार्यों को समुन्नत किया जाये।

प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव

समिति ने स्पष्ट किया कि प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण के कार्य को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। उसने यह भी स्पष्ट किया कि ब्लैक बोर्ड योजना के अन्तर्गत 1990-91 तक 50% प्राथमिक विद्यालयों को इसका लाभ पहुँचाया जाना था परन्तु अब तक केवल 30% प्राथमिक विद्यालयों को ही इसका लाभ पहुँचाया जा सका है और इन 30% के भी जो भवन बनाए गए हैं वे अच्छे नहीं है, एकदम घटिया किस्म के हैं और इनमें जो सामग्री भेजी गई है वह भी अच्छी किस्म की नहीं है। उसने सुझाव दिया कि प्राथमिक स्तर पर शत प्रतिशत नामांकन, शत प्रतिशत रुकाव और शत प्रतिशत सफलता के लिए ठोस कदम उठाये जाएँ और ब्लैकबोर्ड योजना का क्रियान्वयन उचित ढंग और सही गति से किया जाये। उसने प्राथमिक को मूल्यपरक बनाने पर बल दिया।

माध्यमिक शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के अनुसार पूरे देश में 10 + 2 + 3 शिक्षा सरंचना लागू होनी थी, अभी तक नहीं हो पाई है। देश में अभी तक जो 261 नवोदय विद्यालय खोले गए हैं उनमें कोई लाभ नहीं हुआ है। +2 पर 1995 केवल 25% छात्र-छात्राओं को व्यावसायिक धारा में लाने का लक्ष्य है परन्तु अभी (1990) तक पहले 2.5% छात्रों को ही इस धारा में लाया जा सका है। इस संदर्भ में समिति ने पहला सुझाव तो यह दिया कि इस स्तर पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति का ईमानदारी से क्रियान्वयन किया जाये और दूसरा सुझाव यह दिया कि सार्वजनिक स्कूल प्रणाली (Common School System) को ईमानदारी से लागू किया जाये। उसने यह भी सुझाव दिया कि शिक्षा मूल्यपरक होना आवश्यक है।

उच्च शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में उच्च शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने हेतु खुले विश्वविद्यालयों की स्थापना की बात कही गई थी और 1986 में इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना भी की गई है और इसमें अनेक पाठ्यक्रम भी प्रारंभ किये गए हैं परन्तु इससे उच्च शिक्षा के स्तर में गिरावट आयी है। उच्च शिक्षा के  स्तर को उठाने के लिये प्रवेश पर नियंत्रण की बात कही गई थी, वह भी केवल औपचारिकताओं की पूर्ति ही सीमित रहा।  उच्च शिक्षा संस्थानों को अधिक आर्थिक सहायता देने का वायदा किया गया था, वह भी झूठा सिद्ध हुआ। परिणाम यह है कि उच्च शिक्षा का प्रसार अनियोजित ढंग से हुआ है और उसका स्तर गिरा है। सबसे अधिक चिंता का विषय यह है कि उच्च शिक्षा मे अंग्रेजी का वर्चस्व अभी तक बना हुआ है। समिति ने उच्च शिक्षा के स्तर को उन्नत बनाने के लिये महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों पर कठोर नियंत्रण और प्रवेश के लिये चयन प्रणाली के पालन का सुझाव दिया।

व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा की उचित व्यवस्था की बात कही गई थी, कम्प्यूटर शिक्षा पर बल दिया गया था और निम्न स्तर की तकनीकी शिक्षा संस्थाओं को बन्द करने की बात कहीं गई थी। इस बीच कम्प्यूटर शिक्षा में तो काफी सुधार हुआ है, शेष सब यथावत चल रहा है, कोई सुधार हुआ । इस संदर्भ में समिति ने शिक्षा को रोजगार परक बनाने पर बल दिया और साथ ही रोजगारपरक शिक्षा की व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा संस्थाओं के स्तर को उन्नत बनाने की बात कहीं। उसने सुझाव दिया कि अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) को संवैधानिक दर्जा दिया जाये और उसके क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित किये जाएँ जो तकनीकी शिक्षा के उन्नत बनाने के लिए उत्तरदायी हों।

प्रौढ़ शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव

समिति ने स्पष्ट किया कि प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम उचित ढंग से नहीं चलाए जा रहे हैं। उसने सुझाव दिया कि प्रौढ़ शिक्षा का उत्तरदायित्व मानव संसाधन मंत्रालय के शिक्षा विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय और श्रम मंत्रालय, तीनों के ऊपर होना चाहिए।

शिक्षक-शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव

समिति ने देखा कि शिक्षक शिक्षा सैद्धांतिक अधिक है। उसने सुझाव दिया कि यह दक्षतापरक होनी चाहिये।

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