विक्रय नियोजन प्रक्रिया

विक्रय नियोजन प्रक्रिया | विक्रय नियोजन का महत्त्व | विक्रय नियोजन के प्रकार

विक्रय नियोजन प्रक्रिया | विक्रय नियोजन का महत्त्व | विक्रय नियोजन के प्रकार | Sales Planning Process in Hindi | Importance of sales planning in Hindi | types of sales planning in Hindi

विक्रय नियोजन प्रक्रिया

विक्रय नियोजन में एक विक्रय कार्यक्रम बनाया जाता है, जिसमें उन तरीकों का चयन किया जाता है जो विक्रय कार्य में अपनाये जाने हैं तथा विक्रय के लिए निश्चित लक्ष्य एवं उद्देश्य निर्धारित किये जाते हैं। विक्रय नियोजन के लिए यह आवश्यक है कि कुछ आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त कर ली जायें और फिर उनकी सहायता से आगामी अवधि के लिए एक विक्रय योजना बना ली जाय। यह सूचनाएँ बाजार अनुसंधान करके या पिछले वर्ग के परिणामों, प्रवृत्तियों एवं व्यावसायिक दशाओं की जानकारी प्राप्त करके या विभिन्न विक्रय क्षेत्रों के विक्रयकर्ताओं से सम्मतियाँ प्राप्त करके की जा सकती हैं।

विक्रय नियोजन का महत्त्व

किसी भी व्यावसायिक उपक्रम में विक्रय नियोजन अपनाने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं—

  1. पूर्वानुमान लगाना– पूर्वानुमान विक्रय नियोजन का सार है। वास्तव में विक्रय नियोजन का प्रमुख उद्देश्य भावी बिक्री पूर्वानुमान के आधार पर विक्रय योजनाएँ बनाना है।
  2. भावी कार्यों में अनिश्चितता लाना- नियोजन के द्वारा विक्रय क्रियाओं का भावी गतिविधियों में अनिश्चितता लाने का प्रयास किया जाता है।
  3. विशिष्ट दिशा प्रदान करना- विक्रय नियोजन विक्रय के समस्त कार्यों की रूपरेखा तैयार करके उनको विशिष्ट दिशा प्रदान करता है।
  4. महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करना- विक्रय नियोजन के माध्यम से उपक्रम के भीतरी एवं बाहरी व्यक्तियों को उपक्रम के लक्ष्यों तथा उन्हें प्राप्त करने की विधियों के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की जाती है।
  5. जोखिमों को परखना- विक्रय नियोजन के माध्यम से भविष्य के सम्बन्ध में पूर्व कल्पनाएँ की जाती हैं, परिणामों का पूर्वानुमान लगाया जाता है एवं जोखिमों को परखा जाता है।
  6. समन्वय स्थापित करना- विक्रय नियोजन माध्यम से विपणन प्रबंध की नीतियों, उद्देश्यों, कार्यविधियों एवं कार्यक्रमों में समन्वय स्थापित किया जाता है।
  7. स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा बनाये रखना- विक्रय नियोजन की क्रियाओं के परिणामस्वरूप विक्रय संगठन में एक स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का वातावरण बन जाता है।
  8. स्वस्थ मोर्चाबन्दी- विक्रय नियोजन के माध्यम से प्रतिद्वन्द्वियों की योजनाओं का सामना करने के लिए मोर्चाबन्दी की जाती हैं एवं प्रतियोगिता की जाती है तथा प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त की जाती है।
  9. प्रबंध में मितव्ययता लाना- विक्रय नियोजन के द्वारा विक्रय की भावी गतिविधियों की योजना बन जाने से प्रबंध का ध्यान उन योजनाओं को क्रियान्वित करने की ओर केन्द्रित हो जाता है जिसके फलस्वरूप विक्रय क्रियाओं में अध्ययन के स्थान पर मितव्ययता आती है।
  10. लक्ष्य प्राप्त करना- विक्रय नियोजन का प्रमुख उद्देश्य योजना के अनुसार कार्य करके उपक्रम के लक्ष्यों को प्राप्त करना है।

विक्रय नियोजन के प्रकार

विक्रय विभाग के अधीन विभागों के प्रबंधकों द्वारा पृथक्-पृथक् उपयोजनाएँ तैयार की जाती हैं और फिर उनको एकत्रित करके विक्रय विभाग के लिए एक समग्र विक्रय योजना बनायी जाती है। विक्रय नियोजन के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-

  1. विक्रय लक्ष्य योजना- इस योजना के अन्तर्गत विक्रय को सफल बनाने के लिए विक्रय की जाने वाली वस्तुओं के सम्बन्ध में एक निश्चित अवधि के लिए लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं। ये लक्ष्य मात्रा, मूल्य, किस्म, क्षेत्र आदि दृष्टियों से तय किये जाते हैं। यह योजना लाभप्रद विक्रय परिणाम के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करती है।
  2. विक्रय शक्ति नियोजन- इस योजना के अन्तर्गत संस्था के विक्रय कर्मचारियों के प्रयत्नों को प्रभावकारी बनाने के लिए विभिन्न उपायों को स्पष्ट किया जाता है। इस योजना में मुख्यतः विक्रय क्षेत्रों का पुनर्गठन, विक्रय कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि या कमी एवं विक्रेता को प्रशिक्षण देने के कार्यक्रमों से सम्बन्धित निर्णय लिये जाते हैं।
  3. 3. विज्ञापन एवं विक्रय संगठन नियोजन- इस योजना के अन्तर्गत भावी विज्ञापन एवं विक्रय संवर्द्धन नीति निर्धारित की जाती है। इस योजना में विज्ञापन के माध्यम का चयन, विज्ञापन का संदेश, विक्रय संवर्द्धन के तरीकों का चयन किया जाता है। इसके अतिरिक्त विज्ञापन एवं विक्रय संवर्द्धन व्ययों का उत्पादों, बाजार खण्डों (Market Segments) में बंटवारा किया जाता है।
  4. उत्पाद – अभिमुखी विक्रय नियोजन- इस प्रकार के नियोजन के अन्तर्गत संस्था की सभी उत्पादों के लिए पृथक्-पृथक् विक्रय योजनाएँ बनायी जाती हैं। इसमें प्रत्येक उत्पाद के लिए लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं और इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विस्तृत कार्यक्रम बनाये जाते हैं। इन योजनाओं में प्रत्येक उत्पाद के सम्बन्ध में विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन, उत्पाद सुधार, विपणन अनुसंधान पर व्यय की जाने वाली राशि निर्धारित की जाती है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक उत्पाद के लिए मूल्य, वितरण वाहिका आदि के सम्बन्ध में निर्णय लिए जाते हैं।
  5. बाजार-अभिमुखी विक्रय नियोजन- बाजार अभिमुखी विक्रय नियोजन का प्रयोग करने वाली संस्थाएं प्रत्येक क्षेत्र के लिए पृथक् विक्रय योजना बनाती है। इन योजनाओं में प्रत्येक क्षेत्र के लिए विक्रय लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं और इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विस्तृत कार्यक्रम बनाये जाते हैं। क्षेत्रीय विक्रय योजना तैयार करते समय सम्भावित प्रतिस्पर्द्धा क्षेत्र की विशेषताओं को ध्यान में रखकर, विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन, वितरण वाहिका, मूल्य आदि के सम्बन्ध में निर्णय लिए जाते हैं। प्रत्येक क्षेत्र के लिए अलग-अलग बजट बनाये जाते हैं।
  6. ग्राहक अभिमुखी विक्रय नियोजन- इस प्रकार के नियोजन के अन्तर्गत विक्रय संगठन का निर्माण ग्राहकों की विशेषताओं के आधार पर किया जाता है। अतः इस प्रकार में प्रत्येक के ग्राहकों के लिए पृथक्-पृथक् विक्रय योजनाएँ तैयार की जाती हैं। इस प्रकार की योजनाएँ तैयार करते समय ग्राहकों की विशेषताओं को ध्यान में रखकर विपणन लक्ष्य निश्चित किये जाते हैं और विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन, मूल्य निर्धारण, वितरण वाहिका के चयन के सम्बन्ध में निर्णय लिए जाते हैं।
  7. विक्रय मूल्य निर्धारण नियोजन- इस योजना के अन्तर्गत नियोजन अवधि में मूल्य नीति से सम्बन्धित सिद्धांत निर्धारित किये जाते हैं। इस योजना के अन्तर्गत संस्था के उत्पादों के भावी मूल्य परिवर्तन के सम्बन्ध में भी नीति निर्धारित की जा सकती है।
  8. विक्रय अनुसंधान योजना – इस योजना के अन्तर्गत विक्रय प्रयासों की बाजारों में सप्रभाविकता का अध्ययन करने के लिए विभिन्न योजनाएँ बनायी जाती हैं, ताकि संस्था बाजारों के अनुकूल अपने विपणन प्रयासों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर सके।
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