पर्यावरण संरक्षण का अभिप्राय

पर्यावरण संरक्षण का अभिप्राय | पर्यावरण संरक्षण में विभिन्न अभिकारणों का योगदान एवं भूमिका

पर्यावरण संरक्षण का अभिप्राय | पर्यावरण संरक्षण में विभिन्न अभिकारणों का योगदान एवं भूमिका

पर्यावरण संरक्षण का अभिप्राय

उत्तर विश्व स्तर पर पर्यावरण समस्या को दूर करने के स्थान पर आरोप प्रत्यारोप अधिक लगते हैं जहाँ विकसित देश तृतीय विश्व के देशों पर आरोप लगाते हैं कि उनकी अध्यात्मिक जनसंख्या गरीबी के कारण निरन्तर पर्यावरण की समस्या बढ़ती ही जा रही है, वही तृतीय विश्व के देशों का कहना है कि, भारी औद्योगिकरण के कारण वनों का विनाश विकसित देशों ने किया है, आज पर्यावरण संरक्षण के नाम पर तृतीय विश्व के वनों पर कब्जा करना चाहते हैं। यहाँ तक कि पर्यावरण संरक्षण के नाम पर करोड़ों रूपयों का व्यय, पुरस्कार गोष्ठियाँ व सम्मेलन होते हैं। तथा मंचों पर पर्यावरण सन्तुलन की समस्या के बारे में चिल्ला-चिल्ला कर भाषण बाजी की जाती है, किन्तु मंचों के भाषण से किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता। क्योंकि स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद मैचों से गरीबी हटाओ, साक्षर बनाओ, पर्यावरण बचाओ आदि की घोषणायें सुनते-सुनते, सुनाते-सुनाते, कान पक गये हैं, परन्तु व्यवहार में कोई भी घोषणायें आज तक पूरी नहीं हुई।

अमरीकी राष्ट्रपति ने (1980) में विश्व 2000 नामक एक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था जिसमें कहा था कि यदि पर्यावरण प्रदूषण को नियन्त्रित नहीं किया गया तो सन् (2030 ई.) तक तेजाबी वर्षा, भूखमरी और महामरी का ताम्डव नृत्य होगा और मानवता का भविष्य खतरे में पड़ जायेगा। सफलता की चका-चौध में फलस्वरूप विकास तथा सभ्यता के बढ़ने के साथ-साथ प्रकृति पर मानव का प्रभाव बढ़ता गया है जो आज पर्यवरण के मुख्य आधार वायु, जल, भूमि आदि को प्रदूषित कर मानव जीवन के लिये अभिशाप बन गया है।

पर्यावरण संरक्षण में विभिन्न अभिकारणों का योगदान एवं भूमिका

वर्तमान में हमने पर्यावरण के विविध पहलुओं पर विषद चर्चा की हैं, और हर प्रकार से यह बताने का प्रयास किया है कि पर्यावरण की समस्याओं की जानकारी एवं उनका समाधान केवल आज और अभी के लिये नहीं है बल्कि अब यह भविष्य के आगे कई सौ वर्षों तक सोचने और समझने की समस्या है।

अतः समाज में बच्चों से लेकर बड़ी आयु तक के लिये पर्यावरण संरक्षण की नियमित जानकारी मिलती रहना और उसके आधार पर व्यक्तिगत लोगों की भागीदारी और उनके कर्त्तव्य का बोध कराना बहुत सामाजिक हो गया है। इस सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण अभिकरणों की महती भूमिका और उनके सम्भावित योगदान की चर्चा अत्यन्त आवश्यक है जो निम्न हैं

  1. 1. स्कूली महाविद्यालयी विद्यार्थियों की भूमिका
  2. घरों की भूमिका।
  3. सामाजिक संस्थाओं की भूमिका।
  4. संचार माध्यमों की भूमिका।
  5. शोध संस्थाओं की भूमिका।
  6. विभिन्न विशिष्ट संस्थानों की भूमिका।

पर्यावरण संरक्षण के लिए शिक्षा

पर्यावरण संरक्षण के लिए शिक्षा- पर्यावरण संरक्षण एवं प्रबन्ध के लिए जन- सामान्य को पर्यावरण सम्बन्धी शिक्षा देना आवश्यक है । पर्यावरण शिक्षा का अर्थ है-पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से पर्यावरण के बारे में एवं पर्यावरण के लिए शिक्षा।

पर्यावरण की शिक्षा देने के निम्न उद्देश्य हैं-

  1. समस्याओं के निराकरण के लिए वचनबद्धता का विकास करना ।
  2. पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं के प्रति जन-जागरुकता एवं संवेदनशीलता उत्पन्न करना।
  3. समस्याओं के निदान के लिए जन-सामान्य में समूचित उपायों एवं क्रियान्वयन की दक्षता उत्पन्न करना।
  4. बहुआयामी समस्याओं के समाधान में विविध पक्षों की विश्लेषण क्षमता का विकास करना।

पर्यावरण शिक्षा में मूल्यांकन की आवश्यकता

  1. इससे पर्यावरण शिक्षा के विभिन्न कार्यक्रमों की उपयोगिता मानी जा सकती है।
  2. इससे लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरुकता के स्तर का पता चल सकता है।
  3. पर्यावरण शिक्षा द्वारा लोगों में व्यक्तिगत आचरणों के परिवर्तन को मापा जा सकता है।
  4. विभिन्न स्तरों के लिए निर्मित पर्यावरणीय पाठ्यक्रम की विश्वसनीयता और वैधता को जाँचा जा सकता है।
  5. यह पर्यावरण शिक्षा के लिए सन्दर्भ व्यक्ति के चयन में सहायक हो सकता है।
  6. पर्यावरण शिक्षा के विविध कार्यक्रमों की वस्तुनिष्ठ तुलना कर सकता है।
  7. पर्यावरण प्रदूषण की सही जानकारी इससे मिल सकती है।
  8. यह लोगों में अच्छी आदतों के निर्माण में प्रेरक हो सकता है।
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