जेट प्रवाह | Jet Streams in Hindi
जेट प्रवाह | Jet Streams in Hindi
पश्चिम से पूर्व दिशा में तेज गति से क्षोभ सीमा की ऊंचाई (लगभग 12 किलोमीटर) पर चलने वाली परिध्रुवीय विसर्पी पवन धारा को जेट प्रवाह कहते हैं। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, “जेट प्रवाह तेज व संकरी पवन धारा है जो ऊपरी वायुमंडल अथवा समताप मंडल में अद्द्धक्षेतिज अक्ष के साथ केंद्रित है और जिसमे तीव ऊर्ध्वाधर एवं क्षैतिज पवन अपसरण तथा एक या एक से अधिक स्थान पर अधिकतम गति होती है।” निमियास के अनुसार लगभग 12,000 मीटर (40,000 फुट) की ऊंचाई पर पछुआ पवनें दोनों गोलाद्धों के अधिकांश भाग को घेरती हैं। उनकी गति ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर बढ़ती जाती है और 30° अक्षांश पर अधिकतम हो जाती है। अधिकतम गति के पवन प्रवाह भाग को जेट प्रवाह कहते हैं (चित्र 2.42 )। यद्यपि जेट प्रवाह तरंगित अथवा विसपी (sinuous) मार्ग पर चलती है तथापि इसका अधिकांश विकास 30° से 35° अक्षांशों के बीच होता है। इसका संबंध तीव्र तापमान एवं दाब प्रवणता वाली संकरी पट्टी से है।
रीले तथा सपोल्टन (Riley and Spolton) ने बताया कि जेट प्रवाह क्षोभ सीमा पर तीव्र गति से चलने वाली पवन है जो ध्रूव वायु तथा उष्ण कटिबंधीय वायु के बीच क्षोभ सीमा (लगभग 12 किमी. की ऊंचाई) पर प्रवाहित होती है। इस प्रकार यह वाताग्र क्षेत्र (Frontal zone) से संबंधित है और 200 से 500 मिलीबार के बीच इसकी गति 120 से 300 किलोमीटर प्रति घंटा होती है । नामियास के अनुसार जेट प्रवाह मुख्य रूप से परिध्रुवीय (Circumpolar) है और विसर्प मार्ग का अनुसरण करते हुए दोनों गोलाद्धों में पूरे ग्लोव का चक्कर लगाती है। कहीं-कहीं पर यह कई उप-भागों में विभाजित होती है। परंतु कुछ अन्य परिस्थितियों में विभिन्न भाग आपस में मिलकर अविच्छिन्न जेट-स्ट्रीम की रचना करते हैं। इसके कंद्र में गति अधिकतम होती है और बाहर की ओर गति मंद होती जाती है। अधिकतम गति 10 से 12 किलोमीटर की ऊंचाई पर होती है।
सामान्यत: जेट प्रवाह की लम्बाई हजारों किलोमीटर, चौडाई 150 से 450 किलोमीटर, गहराई 900 से 2150 मीटर होती है और इसके क्रोड में वायु की गति 500 किलोमीटर प्रति घंटा से भी अधिक होती है। ग्रीष्म ऋतु में जेट प्रवाह की गति लगभग 110 किमी. प्रति घंटा होती है जो शीत ऋतु में बढ़कर 190 किमी. प्रति घंटा हो जाती है। ऋतु के अनुसार जेट प्रवाह की स्थिति में भी परिवर्तन होता है। ग्रीष्म ऋतु में जेट प्रवाह 35 से 45 अक्षांश पर होता है परंतु शीत ऋतु में यह भूमध्य रेखा की ओर खिसक कर 20° से 25° अक्षांशों पर स्थापित हो जाता है।
जेट प्रवाह की खोज
19वीं शताब्दी के अंतिम चरण में उच्चच स्तरीय बादलों का अध्ययन करते समय ऊपरी वायुमंडल में तेज हवाओं का पता चला था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब अमेरिका के बमवर्षक जेट विमान जापान पर बम गिराने के लिए गए तो विमान चालकों ने 7 से 10 किलोमीटर की ऊंचाई पर पाया कि पश्चिम से पूर्व की ओर इतनी तेज हवाएं चलती हैं कि वायुयानों की भौमिक गति (ground speed) लगभग शुन्य हो गई, जबकि उनके गति सूचक लगभग 250 मील (400 किमी. प्रति घंटा) की गति दर्शा रहे थे। परंतु जब वे वायु की दिशा में उड़ान भरते थे तो उनकी भौमिक गति लगभग दो गुनी हो जाती थी। अत: मौसम वैज्ञानिकों ने पाया कि उच्च वायुमंडल में पश्चिम से पूर्व की ओर तेज हवाएं चलती हैं जो संकरी पट्टिका में प्रवाहित होती हैं। पहले जेट प्रवाह शब्दावली का कुछ महासागरीय धाराओं के लिए प्रयोग किया जाता था परंतु 1944 में इस शब्दावली का प्रयाग उच्च वायुमंडल में चलने वाली वायु धारा के लिए किया गया और शीघ्र ही मौसम विज्ञानियों में लोकप्रिय हो गया। आज विश्व के समी भागों में इन उच्च वायुमंडलीय तीव्र वायु धाराओं को जेट प्रवाह के नाम से जाना जाता है।
जेट धाराओं की विशेषताएँ
- सामान्यतः जेट धाराएँ हजारों किमी लम्बी, सैकडों किमी चौड़ी और कुछ किमी मोटी होती हैं।
- सामान्यतः जेट धाराएँ वायुमण्डल में पश्चिम से पूर्व की ओर चलती हैं।
- जेट धाराएँ शीत ऋतु में सदैव तीव्र चलतीं हैं क्योंकि इस समय ही तापमान में भिन्नता सबसे अधिक होती है।
- जेट धाराएँ कभी भी सीधी रेखा के रूप में नहीं चलती। यह विसर्पण करती हुई चलती हैं जिन्हें रॉस्बी धारा कहते हैं। ये धाराएँ चार चरणों के एक चक्र में चलती हैं। जिसे अभिसूचक चक्र कहते हैं। ।
- जेट धाराएँ क्षोभमण्डल या समतापमण्डल में चलती हैं।
- जेट धाराओं की गति कभी भी समान नहीं होती। कभी ये तीव्र तो कभी धीमी गति से चलती हैं।
- इनकी सबसे अधिक गति 10,000 से 13,000 मी की ऊँचाई पर होती है।
- जेट धाराएँ वायु कर्त्तन करती हैं। ऊर्ध्वाधर वायु कर्त्तन का मान 5-10ms” प्रति किमी और क्षैतिज वायु कर्त्तन 5 ms-‘ प्रति 100 किमी होता है।
जेट धाराओं के प्रकार
स्थिति के अनुसार वायुमण्डल में चार जेट धाराएँ प्रवाहित होती हैं। इनमें से तीन उत्तरी गोलार्द्ध में तथा एक दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित हैं।
(i) धुवीय रात्रि जेट यह धारा समतापमण्डल की निचली परतों में ध्रुवीय भागों में प्रवाहित होती है।
(ii) ध्रुवीय सीमाग्र जेट मध्य अक्षांशों में बहने वाली यह जेट 3,000 मी से अधिक ऊँचाई पर पश्चिम-पूर्व दिशा में प्रवाहित होती हैं।
(iii) उपोष्ण कटिबन्धीय पश्चिमी जेट इस जेट का 80° से 85° अक्षांशों के मध्य मुख्यत: परिध्रुवीय क्षेत्र में प्रवाह पश्चिम–पूर्व दिशा में होता है।
(iv) उष्णकटिबन्धीय पूर्वी जेट तिब्बत पठार के गर्म होने के कारण निर्मित पश्चिम-पूर्व दिशा में प्रवाहित होने वाली यह जेट मौसमी जेट है। इसका प्रवाह 8° से 30° अक्षांशों के मध्य होता है।
(v) स्थानीय अथवा क्षेत्रीय जेट प्रवाह – इनका जन्म मध्य तथा ऊपरी क्षोभमंडल में स्थानीय रूप में तापीय एवं गतिकीय परिवर्तनों के कारण होता है। इनकी तेज हवाएं केवल स्थानीय स्तर पर ही प्रभावशाली होती हैं। ये आर्कटिक वृत्त से भूमध्य रेखा तक कहीं भी बन सकती है और धरातलीय मौसम में परिवर्तन ला सकती है।
जेट प्रवाह का महत्व
जेट प्रवाह का स्थानीय एवं प्रादेशिक मौसम पर गहरा प्रभाव पड़ता है यद्यपि इस विषय के संबंध में अभी अनुसंधान जारी है और स्पष्ट जानकारी का अभाव है।
- शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की सक्रियता जेट प्रवाह पर निर्भर करती है। जब धरातलीय शीतोष्ण चक्रवातों के ऊपर क्षोभमंडल के ऊपरी भाग में जेट प्रवाह सक्रिय होता है तो ये चक्रवात अधिक शक्तिशाली और तूफानी हो जाते हैं। इस स्थििति में ये सामान्य से अधिक वर्षा करते हैं। उत्तर- पश्चिमी भारत में जेट प्रवाह ही शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों को आकर्षित करती है, जिससे यहां पर शीतकालीन वर्षा प्राप्त होती है।
- जेट प्रवाह के पैदा होने से धरातलीय चक्रवातों एवं प्रति चक्रवातों का स्वरूप परिवर्तित हो जाता है, जिससे स्थानीय मौसम में बड़े पैमाने पर परिवर्तन होते हैं।
- जेट प्रवाह से ऊपरी क्षोभमंडल में अभिसरण तथा अपसरण (Convergence and divergence) शुरू हो जाता है, जिससे क्षोभमंडल के ऊपरी भाग में चक्रवातों एवं प्रति चक्रवातों का निर्माण होता है।
- जेट प्रवाह वर्षा की मात्रा तथा उसके वितरण को भी प्रभावित करता है। सामान्यत: अधिकतम वर्षा उन क्षेत्रों में होती है जो जेट प्रवाह के नीचे स्थित होते हैं। चक्रवातों का अधिकतम विकास भी इन्हीं इलाकों में होता है। इसके अतिरिक्त हजार किलोमीटर दूर स्थित स्थानों की दैनिक वर्षा पर जेट प्रवाह का प्रभाव देखा जा सकता है। उदाहरणतया उत्तरी प्रशांत महासागर के पश्चिमी भाग में 41° उत्तरी अक्षांश पर जेट प्रवाह का प्रभाव हवाई द्वीप (20° उत्तरी अक्षांश) की वर्षा पर पड़ता है। जब जेट प्रवाह 41° उत्तरी अक्षांश के दक्षिण में है तो हवाई द्वीप में शीतकालीन वर्षा सामान्य से कम होती है, परंतु जब यह जेट 41° उत्तरी अक्षांश के उत्तर मे होती है तो वर्षा सामान्य से काफी अधिक होती है।
- जेट प्रवाह से मानव जनित प्रदूषकों का क्षोभमंडल से समतापमंडल मे परिवहन होता। उदा० मानवीत क्रियाओं से पैदा होने वाली क्लोरोप्लोरों कार्बन को जेट प्रवाह क्षोभमंडल से समतापमंदल मे ले जाता है, जिससे ओज़ोन गैस का विनाश होता है।
- दक्षिणी एशिया की मानसून पवनों पर जेट प्रवाह का प्रवाह पड़ता है।
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