निबंध / Essay

आतंकवाद पर निबंध | आतंकवाद से तात्पर्य | भारत में आतंकवादी गतिविधियाँ

आतंकवाद पर निबंध

प्रस्तावना

मानव-मन में विद्यमान भय प्रायः उसे निष्क्रिय और पलायनवादी बना देता है। इसा भय की सहारा लेकर समाज का व्यवस्था-विरोधी वर्ग अपने दषित और निम्नस्तरीय स्वा्थो की सिद्धि के लिए समाज में आतंक फैलाने की प्रयोस करता है। स्वार्थसिद्धि के लिए यह वर्ग हिंसात्मक साधनों का प्रयोग करने से भी नहीं चुकता। इसी स्थिति से आतंकवाद का उदय होता है। आतंकवाद विश्व के लिए एक गम्भीर समस्या है। इस समस्या का वास्तविक व अंतिम सभाधान अहिंसा द्वारा ही सभव है। आतंकवाद को परिभाषित करना सरल नहीं है। क्योंकि यदि कोई पराजित देश स्वतंत्रता के लिए शस्त्र उठाता है तो वह विजेता के लिए आतंकवाद होता है। स्वतंत्रता के लिए भारतीय क्रांतिकारी प्रयास अंग्रेजों की दृष्टि में आतंकवाद था।

आतंकवाद के मूल में सामान्यतः असंतोष एवं विद्रोह की भावनाएं केन्द्रित रहती है। धीरे-धीरे अपनी बात मनवाने के लिए आतंकवाद का प्रयोग एक हथियार के रूप में किया जाना सामान्य सी बात हो गयी है। तोड़-फोड़, अपहरण, लूट-खसोट, बलात्कार, हत्या आदि करके अपनी बात मनवाना इसी में शामिल है। असंतुष्ट वर्ग चाहे वह राजनीतिक क्षेत्र में हो या व्यक्तिगत क्षेत्र में अपनी अस्मिता प्रमाणित करने के लिए यही मार्ग अपनाता है। आज देश के कुछ स्वार्थी तत्वों ने क्षेत्रवाद को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है इससे सांस्कृतिक टकराव, आर्थिक विषमता, भ्रष्टाचार तथा भाषायी मतभेद को बढ़ावा मिल रहा है। ये सभी तत्व आतंकवाद को पोषण करते हैं। भाषायी राज्यों के गठन में भारत में आतंकवाद को पनाह दी। इन प्रदेशों के नाम पर जमकर खून-खराबा हुआ। मिजोरम समस्या, गोरखालैण्ड आन्दोलन, कथक उत्तराखंड, खालिस्तान की मांग जैसे कई आन्दोलन थे जिन्होंने क्षेत्रवाद को बढ़ावा दिया।

आतंकवाद से तात्पर्य

आतंकवाद को सरल शब्दों में समझने की कोशिश करें तो ज्ञात होता है कि यह एक प्रकार से हिंसा की क्रिया है। शांति को अशांति में परिवर्तित करती है। आतंकवाद एक ऐसी विचारधारा है, जो राजनैतिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए शक्ति अस्त्र-शस्त्र के प्रयोग में विश्वास रखती है। अस्त्र शस्त्रों का ऐसा घृणित प्रयोग प्रायः विरोधी वर्ग, दल, समुदाय सम्प्रदाय को भयभात करने और उस पर विजय प्राप्त करने की दृष्टि से किया जाता है। अपने राजनैतिक स्वार्थों की पर्ति के लिए; आतंकवादी गैरकानूनी ढंग से अथवा हिसा के माध्यम से सरकार को गिराने तथा शासनतन्त्र पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास भी करते हैं। इस प्रकार “आतंकवाद उस प्रवृत्ति को कह सकते हैं, जिसमें कुछ लोग अपनी उचित अथवा अनुचित माँग मनवाने के लिए घोर हिंसात्मक और अमानवीय साधनो का प्रयाग करने लगते है।”

विश्व में व्याप्त हिंसा की प्रवृत्तियाँ और आतंकवाद

वर्तमान में आतंकवाद हमारे देश के लिए ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक समस्या बन गया है। आतंकवाद से अभिप्राय अपने प्रभुत्व व शक्ति से जनता में भय की भावना का निर्माण कर अपना उद्देश्य सिद्ध करने की नीति ही आतंकवाद कहलाती है।

आज लगभग पुरा विश्व आतंकवाद की चपेट में है। राजनैतिक स्वा्थों की पूर्ति के लिए सार्वजनिक हिंसा और हत्याओं का रास्ता अपनाया जा रहा है। संसार के भौतिक दृष्टि से सम्पन्न देशों में आतंकवाद की यह प्रवृत्ति और भी ज्यादा पनप रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ० केनेडी और भारतीय प्रधानमन्त्रियों श्रीमती इन्दिरा गांधी तथा श्री राजीव गांधी की नृशंस हत्या, अमेरिका के हवाई जहाज में बम विस्फोट, भारत के हवाई जहाज का पाकिस्तान में अपहरण आदि घटनाएँ अन्तराष्ट्रीय आतंकवाद के कुछ उल्लेखनीय उदाहरण हैं।

 सन् 2001 में 1 सितम्बर को विश्व के सबसे खतरनाक आतंकवादी ओसामा बिन लादेन ने विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर को धराशायी कर दिया। इसके अलावा विश्व की सबसे सुरक्षित इमारत समझी जाने वाले पेन्टागन पर भी अपहृत विमान को गिरा दिया। घटना में हजारों लोग मारे गये घटना के बाद कई माह तक अमेरिका ओसामा बिन लादेन को ढूढता रहा लेकिन वह उसके हाथ नही चढ़ सका परंतु बाद में अमेरिकी सैनिकों ने पाकिस्तान में छिप के बैठे ओसामा बिन लादेन को मार दिया। अब तक की विश्व इतिहास में आतंकवाद की यह सबसे बड़ी घटना थी।

भारत में आतंकवादी गतिविधियाँ

हमारा देश भारत सबसे अधिक आतंकवाद की चपेट में है। पिछले दस-बारह वर्षों में हजारों निर्दोष लोग इसके शिकार हो चुके हैं। अब तो जनता के साथ-साथ सरकार को भी आतंकवाद का सामना करना पड़ रहा है। वर्तमान शासन प्रणाली तथा शासकों को हिसात्मक हथकंडे अपनाकर समाप्त करना या उनसे अपनी बातें मनवाना ही आतंकवाद का मुख्य उद्देश्य है ।

भारत में आतंकवाद की शुरुआत बंगाल के उत्तरी छोर पर नक्सलवादियों ने की थी। 1967 में शुरू हुआ यह आतंकवाद तेलंगाना, श्री काकूलम में नक्सलियों ने तेजी से फैलाया। 1975 में लगे आपातकाल के बाद नक्सलवाद खत्म हो गया।

विगत दो दशाब्दियों में भारत के पंजाब, बिहार, असम, बगाल, जम्मू-कश्मीर आदि कई प्रान्तों में आतंकवादियों ने व्यापक स्तर पर आतंकवाद फैलाया। 10 मार्च, 1975 इं० को भारत के भूतपूर्व न्यायाधीश श्री ए० एन० राय की हत्या का प्रयास किया गया। पूर्व रेलवे मन्त्री श्री ललितनारायण मिश्र पं० दीनदयाल उपाध्याय, श्रीमती इन्दिरा गांधी, श्री राजीव गांधी, श्री लोगोवाल, भूतपूर्व सेनाध्यक्ष श्री अरुण श्रीधर वैद्य, पंजाब-केसरी’ के सम्पादक लाला जगतनारायण, कश्मीर विश्वविद्यालय के कुलपति श्री मुशीर-उल-हक आदि देश के अनेक गणमान्य व्यक्तियों को आतंकवादियों ने मौत के घाट उतार दिया। पंजाब और कश्मीर में पाकिस्तान-प्रशिक्षित आतंकवादियों द्वारा कई वर्षों से निर्दोष लोगों की हत्याओं का सिलसिला जारी है और आज भी वे ऐसा करने से नहीं चूक रहे हैं।

वर्तमान में कश्मीर समस्या आतंकवाद का कारण बनी हुई है। हालांकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही कश्मीर में घुसपैठिये हथियारों की समस्या उत्पन्न हो गयी थी। भारत पाक सीमा पर आतंकवादियों से सेना की मुठभेड़ आम बात हो गयी थी। अंततः यह समस्या कारगिल युद्ध के रूप में सामने आई । आज वर्तमान में भी पाकिस्तान की सीमा पार से आतंकवादी गतिविधियां जारी हैं। कथित पाक प्रशिक्षित आतंकवादियों द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में बम विस्फोटों की घटनायें देखने को मिल रही हैं। भारतीय संसद पर हमला, गुजरात का अक्षरधाम मंदिर हमला, कश्मीर के रघनाथ मंदिर पर हमले की कार्यवाही आतंकवाद का ही हिस्सा है।

इसी तरह 13 दिसम्बर 2001 को 11 बजकर 40 मिनट पर भारत के संसद भवन भी आतंकवादियों ने हमला किया। इसमें हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिल पायी और संसद भवन के सुरक्षाकर्मियों के साथ हुई मुठभेड़ में हमले को अंजाम देने आये आतंकवादियों को मार गिराया गया। आतंकवादी ए. के. 47 राइफलों और ग्रेनेडों से लैस थे। ये उग्रवादी एक सफेद एम्बेसडर कार से संसद परिसर में घुसे थे। कार में भारी मात्रा में आर. डी. एक्स था। ससद भवन में घुसंते समय इन्होंने उपराष्ट्रपति के काफिले में शामिल एक कार को भी टक्कर मारी थी। सुरक्षाकर्मियों तथा आतंकवादियों के बीच करीब आधे घंटे तक गोलीबारी जारी रही। इस दौरान संसद भवन परिसर में दहशत और अफरातफरी का माहौल था। यदि आतंकवादी अपने मकसद में सफल हो जाते तो कई केन्द्रीय मंत्रियों सहित सैकड़ों सांसदों को जान से हाथ धोना पड़ता।

10 अगस्त, 1986 ई० को आतंकवादियों द्वारा इण्डियन एयरलाइन्स का एक हवाई जहाज गिरा दिया गया, जिसके फलस्वरूप 829 यात्रियों की तत्काल मृत्यु हो गई। सन् 1995 ई० में जम्मू में आतंकवादियों द्वारा गणतन्त्र दिवस समारोह के अवसर पर किया गया विस्फोट, तिनसुकिया मेल में बम विस्फोट; चरारे -शरीफ दरगाह अग्निकाण्ड; इत्यादि तथा कुछ निम्नलिखित हैं –

  • 7 मार्च, 1997 ई० को फिल्म निर्माता- निर्देशक मुकेश दुग्गल की हत्या;
  • 22 मार्च, 1997 ई० को 7 कश्मीरी पण्डितों की हत्या;
  • 29 मार्च, 1997 ई० को जम्मू में भीषण बम-विस्फोट में 25 लोगों की मृत्यु: 7 मई,
  • 1997 ई० को त्रिपुरा में 16 जवानों की हत्या;
  • 12 अगस्त, 1997 ई० को टी-सीरिज के मालिक गुलशन कुमार की हत्या;
  • 19 नवम्बर, 1997 ई० को हैदराबाद में एक कार बम विस्फोट में टी० वी० कैमरा दल के 6 सदस्यों एवं एक पत्रकारसहित 23 लोगों की हत्या;
  • 2 दिसम्बर, 1997 ई० को रणवीर सेना के हमलावरों द्वारा बिहार में 65 व्यक्तियों की हत्या;
  • 14 फरवरी, 1998 ई० को कोयम्बदूर में भाजपा अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी की हत्या का प्रयास;
  • 20 जून, 1999 ई० को अनन्तनाग में 15 हिन्दू मजदूरी की हेत्या;
  • 28 जून 1999 ई० को पूंछ में 17 लोगों की हत्या;
  • 24 दिसम्बर, 1999 ई० को इण्डियन एयरलाइन्स के विमान का अपहरण;
  • 20 फरवरी, 2000 ई० को बारूदी सुरंग फटने से जगदलपुर में 28 पुलिसकर्मियों का शहीद होना;
  • 28 फरवरी, 2000 ई० को जम्मू में 5 हिन्दुओं की निर्मम हत्या;
  • 8 मार्च, 2000 ई० को जम्मू से आ रही बस में विस्फोट होने से 9 यात्रियों की दर्दनाक मौत;
  • 20 मार्च, 2000 ई० की रात्रि की अनन्तनाग जिले में सिक्खों की आबादी वाली बस्ती चिट्रीसिंहपुर में 35 सिक्खों की सामूहिक हत्या, इत्यादि।

आतंकवाद के कारण

  1. उपनिवेशवाद – आधुनिक आतंकवाद का जन्म प्राय: औपनिवेशिक प्रशासनों (देशों) में शासन द्वारा वर्षों तक अपनाई गयी दमनकारी गतिविधियों से है जिसे आतंकवादी गतिविधियां भी कहा जा सकता है और उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप वह जन्में स्वतन्त्रता आंदोलनों को माना जाता है। जिसके फलस्वरूप ही वे इतने उग्र तथा असहनशील हो गए हैं आउर आतंकवादी गतविधियों को अपने लिए उचित मार्ग समझ रहे हैं।
  2. राष्ट्रीयता की पहचान – स्वतंत्र राष्ट्र में कुछ विशेष जातीयता एवं धार्मिक समूह अपनी पहचान के लिए पृथक राष्ट्रों की मांग करने लगे जिसके लिए इन समूहों नें संगठित एवं सुनियोजिय आंदोलन प्रारम्भ किया। इस प्रकार के आतंकवाद युद्ध आजा भी श्रीलंका, चेचन्या (रूस), भारत इत्यादि देशों में जारी हैं। वर्तमान समय में हम यदि किसी जाती तथा धर्म की उनकी इस प्रवित्ति को ले जिसमें वे अपनी जाती या धर्म के ही लोगो का राष्ट्र या समुदाय बनाना चाह रहे हैं उसकी वजह से भी ये आतंकवाद को बढ़ावा मिल रहा है क्योकि ये लोग आतंकवाद द्वारा ही अपने इस जातीय या धार्मिक का प्रभुत्व स्थापित करना चाहते हैं।
  3. आतंकवाद गतिविधियों को राष्ट्र का प्रोत्साहन – आतंकवाद को बढ़ावा देने में कुछ राष्ट्र एवं देश अपने राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक हितों की वृद्धि के लिए रुचि लेते हैं तथा सुनियोजित तरीके से संघर्षरत गुटों को आतंकवादी गतिविघियों को करने के लिए प्रेरित एवं सहायता करते हैं जिससे भी आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा मिल रहा है।
  4. साधनों एवं संसाधनों कि कमी – यहा पर किसी देश के नागरिकों को यदि किसी प्रकार के साधन की आवश्यकता है तथा उन्हे उनकी पूर्ति हेतु उनके राष्ट्र द्वारा कोई भी उपयुक्त कदम नहीं उठाए जाते तो उनके देश के ही कुछ लोग राष्ट्र के खिलाफ हिंसा कि गतिविधियां करने लगते हैं यहाँ संसाधनों की मांग को पूरी करना उनका उद्देश हो जाता है। राष्ट्र के अंदर महंगाइ या किसी और प्रकरी की समस्या होने पे जेएन शासन वर्ग उनकी समस्याओं को नहीं सुनता तो भी लोग आतंकवादी गतिविधिओं में संलगन हो जाते हैं।
  5. नीति – निर्धारकों की अवहेलना – राष्ट्रीय सरकारों द्वारा किसी जातीय विशेष या क्षेत्र विशेष की उपेक्षा करना भी है। राजनीतिक, आर्थिक, एवं नागरिक अधिकारों से उन्हें वंचित किए जाने पर उनमें कुंठा जन्म लेलेती है जो विद्रोह, हिंसा और अलगाववाद प्रवृति को जन्म देती है। उदाहरण में भारत के उत्तर पूर्व राज्य का आतंकवाद।
  6. संचार साधनों का विकास – सूचना तकनीक (इन्टरनेट, फैक्स, फोन, सैटेलाइट) एवं वैज्ञानिक अनुसन्धानों ने आतंकवाद को जन्म तो नहीं दिया लेकिन इसे सुगम बनाकर नयी दिशाएँ प्रदान की हैं आतंकवाद की, किसी भी प्रकार की सूचना का आदान प्रदान बड़ी तीव्र गति से होने लगता है तथा जहां किसी बात को लेके लोगो में असंतोष होता है वो वही पर नकारात्मक गतिविधियों को अंजाम देने लगते हैं।
  7. शोषण और अन्याय कि प्रवित्ति – साम्राज्यवाद के द्वारा अविकसित और निर्धन देशों का शोषण किया गया यह भी अंतकवाद कि प्रवित्ति को बढ़ावा देकर आतंकवाद विकसित करता है। यहाँ पर किसी भी प्रकार के वर्ग के शोषण को लेके सकते हैं क्योकि यहा स्वाभाविक है की जब लोगो का अत्यधिक शोषण होगा तो वो किसी न किसी रूप में उसका विरोध करेंगे जो की आतंकवाद का ही एक रूप है।
  8. युवाओं में तीव्र असंतोष – बेरोजगारी, गरीबी, बीमारी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद आदि अनेक कारणों से महत्वाकांक्षी युवाओं में असंतोष है इसलिए यह तस्करी, नशीले पदार्थों का व्यापार और आतंकवाद से जुड़ जाता है। आतंकवाद के उत्पन्न होने का यह एक मूल कारक है क्योकि असंतोष ही हिंसा का रूप लेती है बाद में आगे चल के।
  9. अवैध शस्त्र व्यापार – जब लोगो को अवैध रूप से शस्त्रों की प्राप्ति सरलता से होने लगती है टीबी भी आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है।
  10. आतंकवाद को विदेशी सहायता – विदेशी देशों या कंपनियों द्वारा जब देश के लोगो को आर्थिक, सामाजिक या और किसी प्रकार की सहायता प्राप्त होने लगती है तब इनके अंदर का असंतोष अपने देश या समाज के प्रति इनके अंदर आतंकवादीय प्रवित्ति को बढ़ावा देता है। कभी कभी तो दूसरे राष्ट्र के लोग जन बुझ के किसी राष्ट्र की आंतरिक शांति को भंग करने हेतु भी उस राष्ट्र के लोगो को भड़काते है था सहता देते हैं की वे वह आतंकवादी गतिविधियों को पूर्ण करें।
  11. भ्रष्टाचार – किसी देश के सरकारी पदों पे बैठे लोगों के अंदर भ्रष्टाचार कि प्रवित्ति जब बढ़ जाती है तो लोगो के अंदर असंतोष की भावना आतंकवाद को बढ़ती है |
  12. न्याय व्यवस्था में देरी – न्याय का ठीक प्रकार या सही समय पर न होना भी जनता में अपने देश तथा न्याय व्यवस्था से भरोसा खत्म करती जाती है जो अंत में आतंकवाद का कारण बनता है |
  13. दलीय राजनीति –राजनीतिक दल यहा ये दल सत्ता में आने के लिए या सत्ता में बने रहने के लिए वोटो के लालच में कुछ भी गलत से गलत काम करने को तैयार हो जाते हैं |
  14. अन्य कारण – गुप्तचर सेवाओं और प्रशासन की विफलता 2. नैतिक शिक्षा का अभाव 3. नैतिक मूल्यों में गिरावट आदि |

आतंकवाद का समाधान

आतंकवाद का स्वरूप या उद्देश्य कोई भी हो, इसका भौगोलिक क्षेत्र कितना ही सीमित या विस्तृत क्यों न हो, किन्तु यह तो स्पष्ट ही है कि इसने हमारे जीवन को अनिश्चित और असुरक्षित बना दिया है। आतंकवाद मानव-जाति के लिए कलंक है, इसलिए इसका कठोरता से दमन किया जाना चाहिए।

भारत सरकार ने आतंकवादी गतिविधियों को बड़ी गम्भीरता से लिया है और इनकी समाप्ति के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। भारत की संसद ने ‘आतंकवाद-विरोधी विधेयक’ पारित कर दिया है, जिसके अन्तर्गत आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रहनेवाले व्यक्तियों को कठोर-से-कठोर दण्ड देने की व्यवस्था की गई है।

आतंकवाद की समस्या का समाधान मानसिक और सैनिक दोनों हो स्तरों पर किया जाना चाहिए। जिन लोगों को पीड़ा हुई अथवा जिनके परिवार अथवा सम्पत्ति को नुकसान हुआ है तथा जिनके सम्बन्धिंयों और रिश्तेदारों की मृत्यु हुई है; उन्हें भरपूर मानसिक समर्थन दिया जाना चाहिए, जिससे उनके घाव हरे न रहें और वे मानसिक पीड़ा के बोझ को सह न सकने की स्थिति में स्वयं भी आतंकचादी न बन जाएँ।

आतंकवाद और अलगाववाद की समस्या से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए आवश्यक है कि सरकार के प्रति जनता में विश्वास जगाया जाए। इसके अतिरिक्त जहाँ एक ओर आतंकवादियों के साथ कठोर व्यवहार करना होगा, वहीं गुमराह युवकों- को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश भी करनी होगी। आतंकवादियों को पकड़ने तथा उन्हें दण्डित करने के लिए आधुनिक साधनों तथा तकनीकों का प्रयोग किया जाना चाहिए। इसके लिए जंनता को शिक्षित करने की भी आवश्यकता जिससे जनता आतंकवादियों से लड़ने में भय का अनुभव न करें।

आतंकवाद से निपटने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रयास किए जाने चाहिए। आवश्यकता इस बात की है कि सभी देश एकमत से आतंकवाद को समाप्त करने की दृढ़ संकल्प लें। विश्व की सभी सरकारों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के विरुद्ध पारस्परिक सहयोग करना चाहिए, जिससे कोई भी आतंकवादी गुट किसी दूसरे देश में शरण या प्रशिक्षण न पा सके।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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