प्रसिद्ध वैज्ञानिक / Famous Scientists

डॉ० मेघनाद साहा | Dr. Meghnad Saha in Hindi

डॉ० मेघनाद साहा | Dr. Meghnad Saha in Hindi

भारतीय भौतिक शास्त्री डॉ० मेघनाद साहा। डॉ० मेघनाद साहा का जन्म ढाका (बाग्लादेश) जिले के स्योरताली नामक गांव में 6 अक्टूबर, 1894 की हुआ था। उनके पिता गांव में एक छोटी-सी दुकान चलाते थे। पिता की इष्छा थी कि बेटा थोड़ा पढ़-लिखकर दुकान सभाल ले, परन्तु बालक की रुचि पढने की ओर थी। गांव की प्रारम्भिक पाठशाला के बाद उन्हें वहां से सात मील दूर स्कूल में डाला गया। यह मिडिल स्कूल था । परीक्षा में सर्वप्रथम आने के कारण छात्रवृत्ति मिली और आगे पढ़ाई जारी रही। इस प्रकार आगे बढ़ते हुए उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से 1915 में प्रथम श्रेणी में एम० एस-सी० किया । इन्हीं दिनों कलकत्ता में मेघनाद साहा डॉ० जगदीश चन्द्र वसु और आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय आदि महान वैज्ञानिकों के सम्पर्क में आए । यह दोनों साहा से सीनियर थे। सत्येन बोस साहा के सहपाठी थे। डॉ० जग दीशचन्द्र वसु और आचार्य प्रफुल्लचन्द्र आदि की संगति से विज्ञान में इनकी रुचि और बढ़ी । साहा और सत्येन बोस सहपाठी होने के साथ मित्र भी थे । दोनों ने जर्मन भाषा का अध्ययन इसीलिए किया था कि उन दिनों विज्ञान के श्रेष्ठ ग्रंथ जर्मन भाषा में ही उपलब्ध थे। उन्हीं दिनों प्रसिद्ध जर्मन वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाइन का सापेक्षवाद और क्वांटम सिद्धांत प्रचारित हुआ। बहुत से अंग्रेजी तथा पश्चिमी वैज्ञानिकों को इन सिद्धांतों का पूर्ण परिचय न मिल सका क्योंकि उनका अंग्रेजी अनुवाद उपलब्ध न था। सत्येन बोस और साहा दोनों ने मिल क र सबसे पूर्व आइन्स्टाइन के सिद्धांतों का अंग्रेजी में अनुवाद किया। अंग्रेजी अनुवाद हों जाने से अन्य वैज्ञानिकों ने तो आइन्स्टाइन के सिद्धांतों को समझा, साथ ही इन दोनों का नाम भी प्रचारित हुआ। मेघनाद साहा ने इन दिनों जो अनुसंधान कार्य किए उनके प्रचारित होने पर उन्हें 1918 में डी० एस-सी० की उपाधि प्रदान की गई। 1919 में डॉ० साहा विदेशों में विज्ञान की प्रगति देखने तथा वैज्ञानिकों से सम्पर्क बनाने के लिए जर्मनी गए तथा अन्य यूरोपियंन देशों की यात्रा पर गए । यात्रा से लौटने के बाद उन्होंने परमाणु भौतिकी के संबंध में कार्य किया और परमाणु भौतिकी संस्थान स्थापित किया। उन्होंने गर्मी के प्रभाव से परमाणु के आयनिक होने के सिदधांत का प्रतिपादन भी किया। उन्होंने परमाणु भंजन के लिए साइकलोट्रोन नामक यन्त्र भी बनाया।

डॉ० साहा ने तारा भोतिकी के क्षत्र में भी बहत कार्य किया। उन्होंने सूर्य प्रकाश के भार अथवा दबाव के नापने के लिए यन्त्र बनाया। बस्तुतः अब तक इस दिशा में कार्य नहीं हुआ था। इस संबंध में डॉ० साहा ने जो लेख लिखे उनरे वे विश्व के अग्रणी वैज्ञानिकों में गिने जाने लगे । कलकत्ता विश्वविद्यालय ने इस खोज पर डॉक्टर ऑफ साइन्स की उपाधि से सम्मानित किया।

तारा भौतिकी में तारों – नक्षत्रों के निर्माण तथा उनके ताप और प्रकाश के अन्तर का अध्ययन भी सम्मिलित है । डॉ० साहा ने इस दिशा में काफी खोज की और विभिन्न तारों और नक्षत्रों के तापांश पर ज्ञान गणित के सहारे किया। वह इस संबंध में और अधिक अध्ययन के लिए इंग्लैंड भी गए। इसके अतिरिक्त डाँ० साहा ने न्यूक्लीयर फिजिक्स के नवीन क्षं त्र में भी कार्य किया।

डॉ० साहा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् 1950 ई० में कलकता विश्वविद्यालय में आणविक भौतिक संस्थान की स्थापना की गई और डायरेक्टर साहा नियुक्त किए गए। डॉ० साहा प्रयोगशालाओं में बैठकर कार्य करने वाले कोरे वैज्ञानिक नहीं थे, देश की समस्याओं का उन्हें ज्ञान था और इस दिशा में

प्रयत्नशील भी थे । नेशनल प्लानिग कमेटी के अधीन बनी विजली, ईधन और सिंचाई समिति के वे सदस्य थे। इस दिशा में डॉ० दामोदर नदी घाटी योजना का प्रारूप तैयार किया- जिसका परिणाम था कि लम्बे-चौड़े क्षेत्र में बाढ़ों का प्रकोप समाप्त हुआ, सिचाई सुविधाएं प्राप्त हुईं और बिजली की उपलब्धि हुई ।

1953 में भारत सरकार ने डॉ० साहा को इंडियन साइंस ऐसोसिएशन का डायरेक्टर नियुक्त किया। उन्होंने ‘साइंस एण्ड कल्चर’ नामक पत्रिका का प्रकाशन भी आारम्भ किया। इस पत्रिका द्वारा उन्होंने विज्ञान संबंधी प्रगति सरल भाषा में जनता तक पहुंचाने का प्रयत्न किया। डॉ० साहा के प्रयत्नों से ही ‘एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एस्ट्रानमी’ की स्थापना की गई केलेण्डर सुधार समिति के अध्यक्ष के नाते उनकी सिफारिश पर भारतीय सौर वर्ष और शक संवतू को मान्यता मिली। जनता के आग्रह पर वह निर्दलीय सदस्य के रूप में लोक सभा के चुनाव में खड़े हुए और विजयी हुए। लोकसभा में उनके जाने का ध्येय सरकार को प्ररित करना था कि योजनाओं का उपयोग देशवासियों के लाभ के लिए शीघ्रातिशीघ्र किया जाए। 16 फरवरी, 1956 को जब वह महत्वपूर्ण योजनाओं के साथ लोकसभा जा रहे थे तो राह में ही अचेत होकर गिर पड़े और उनका देहावसान हो गया। वस्तुतः वह पिछले 5-6 वर्ष से अस्वस्थ चल रहे थे परन्तु उन्होंने कभी विश्राम नहीं किया था।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimersarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

 

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!