राजनीति विज्ञान / Political Science

प्लेटो के आदर्श राज्य की विशेषताएँ | आदर्श राज्य की समीक्षा

प्लेटो के आदर्श राज्य की विशेषताएँ | आदर्श राज्य की समीक्षा

प्लेटो के आदर्श राज्य की विशेषताएँ (Characteristics of Platonic Ideal State)

प्लेटो के आदर्श राज्य में निम्नलिखित विशेषतायें परिलक्षित होती हैं-

  • (1) दार्शनिक शासक का शासन
  • (2) विशेष कार्य का सिद्धांत
  • (3) प्रशासन एक कला
  • (4) सम्पत्ति एवं परिवार का साम्यवाद
  • (5) शिक्षा का सिद्धांत
  • (6) आदर्श राज्य में न्याय
  • (7) नर-नारियों को समान अधिकार
  • (8) कला एवं साहित्य पर प्रतिबंध
  • (9) स्वेच्छाचारी शासन का अभाव
  • (10) ‘सत्य’ के विचार पर आधारित राज्य
  • (11) सभी राज्यों के लिए आदर्श
  • (12) सर्वाधिकारपूर्ण राज्य
  • (13) यथार्थवादी कल्पना
  • (14) राज्य का ऐतिहासिक विकास अमान्य
  • (15) प्लेटो का आदर्श राज्य का आदर्श
  • (16) विशेष योग्यताओं का राज्य
  • (17) आदर्श राज्य में कर्तव्य निष्ठा ही न्याय

(1) दार्शनिक शासक का शासन- आदर्श राज्य की स्थापना में सर्वोच्च स्थान दार्शनिक शासक का है। प्लेटो को यह आभास था कि शासन सत्ता अज्ञानियों के पास होने से ही शासन में अव्यवस्था उत्पन्न होती है।

(2) विशेष कार्य का सिद्धांत- प्लेटो विशेष कार्य के सिद्धान्त को प्रस्तुत करता है जिसके अनुसार वह श्रम विभाजन के सिद्धान्त को मान्यता देता है। वह भारतीय दर्ण-व्यवस्था की भाँति कामों का बँटवारा समाज के लिए आवश्यक मानता है। उसके अनुसार आदर्श राज्य के लिये यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन पूर्ण योग्यता से करें। प्रत्येक व्यक्ति वही कार्य करेगा जिसके लिए वह उपयुक्त होगा| तभी समाज में न्याय की स्थापना होगी।

(3) प्रशासन एक कला (Government is an Art) – प्लेटो का विश्वास है कि जिस प्रकार कला में दक्षता पाने के लिये विशेष ज्ञान और लम्बे अनुभव की आवश्यकता होती है उसी प्रकार शासन में दक्षता पाने के लिये विशेष ज्ञान और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। प्लेटो प्रशासन को बहुत ऊँची कला मानते हैं जिसे बिना प्रशिक्षण के सुचारु रूप से नहीं चलाया जा सकता ।

(4) सम्पत्ति एवं परिवार का साम्यवाद- प्लेटो शासक वर्ग के लिए सम्पत्ति एवं पत्नियों के साम्यवाद का सिद्धांत प्रस्तुत करता है। इसके अनुसार शासक वर्ग की कोई व्यक्तिगत सम्पत्ति नहीं होगी। उनकी सभी आवश्यकताओं की पूर्त्ति राज्य करेगा । राज्य में उत्तम सन्तान पैदा करने की दृष्टि से स्थायी विवाह न होंगे। सन्तानों को अपने माता-पिता का ज्ञान नहीं होगा; अतः उनके विकास में सबकी ही रुचि होगी। परन्तु यह साम्यवाद केवल सैनिक एवं शासक वर्ग के लिये ही होगा, यह उत्पादक वर्ग के लिये नहीं होगा।

(5) शिक्षा का सिद्धांत- व्यक्ति को अपने कर्तव्य का ज्ञान शिक्षा के द्वारा ही सम्भव है। प्लेटो की शिक्षा-योजना राज्य द्वारा संचालित होगी जो प्रारम्भिक व्यवस्था में अनिवार्य होगी। उसने अपनी शिक्षा योजना में स्त्री-पुरुषों को समान अधिकार दिया है।

(6) आदर्श राज्य में न्याय- प्लेटो का न्याय व्यक्तिगत एवं सामाजिक दोनों प्रकार का है। व्यक्तिगत रूप से मनुष्य अपने कर्तव्य का पालन करता रहे तथा दूसरों के कार्य में हस्तक्षेप न करे तो आदर्श राज्य स्थापित हो सकेगा। प्लेटो ने इसको दृष्टि में रखकर आदर्श राज्य में कानून को स्थान नहीं दिया है, न ही उसका रिपब्लिक में वर्णन किया; अतः उसके न्याय का विचार आदर्श राज्य की स्थापना में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।

(7) नर-नारियों को समान अधिकार- प्लेटो स्त्री-पुरुषों में शारीरिक बनावट के अतिरिक्त और कोई भेद नहीं मानता है। वह खियो को समाज में वही स्थान देता है जो पुरुष को; अतः वह स्त्रियों की दशा में सुधार की आवाज उठाता है। वह पुरुषों की तरह स्त्रियों को भी शिक्षा की समान सुविधाएँ देता है। वह उन्हें भी शासक वर्ग में स्थान देता है; अतः प्लेटो इस बात में पूर्ण विश्वास करता था कि ख्रिया का समानाधिकार प्रदान करने में ही राज्य का हित निहित है।

(8) कला एवं साहित्य पर प्रतिबंध- प्लेटो की शिक्षा योजना में कला एवं साहित्य. पर राज्य का कड़ा नियन्त्रण रहेगा। वह इस प्रकार क अश्लील साहित्य एवं कला-कृतियों का विरोधी है जो नवयुवकों पर बुरा प्रभाव डालें। वह कला एवं साहित्य पर राज्य का नियन्त्रण लगाता है। उसके अनुसार यह इसलिए आवश्यक है कि नवयुवकों का इससे नैतिक पतन न हो। उसके अनुसार उपयोगी साहित्य एवं कलाकृतियों का अध्ययन होना चाहिए।

(9) स्वेच्छाचारी शासन का अभाव- यद्यपि दार्शनिक शासक की कल्पना में निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी शासक की कल्पना सम्मुख आती है क्योंकि उस पर किसी प्रकार का अंकुश नहीं होता । वह न कानून की चिन्ता करता है, न परम्पराओं की, न जनमत की, तथापि प्लेटो का आदर्श शासक वस्तुतः निरंकुश नहीं है।

(10) ‘सत्य’ के विचार पर आधारित राज्यप्लेटो आदर्श राज्य की स्थापना ‘सद्गुण ही ज्ञान’ के आधार पर करता है। उसके अनुसार यह जो दिखाई देने वाला जगत् है सत्य नहीं है। विचार ही वास्तविक है; अतः वह राज्य के विचार को ही मुख्य मानता है।

(11) सभी राज्यों के लिए आदर्श- प्लेटो के आदर्श राज्य की कल्पना केवल एथेन्स के लिए ही नहीं है वरन् वह किसी भी राज्य पर लागू हो सकती है, जो अपने राज्य की बुराइयों को दूर करना चाहता है; अतः वह दूसरे राज्यों के लिए भी आदर्श हो सकती है।

(12) सर्वाधिकारपूर्ण राज्य (Totalitarian State) – प्लेटो एक ऐसे आदर्श राज्य का विचार रखता है जो सर्वोपरि एवं प्रधान है जहाँ व्यक्ति राज्य का अंग है। राज्य व्यक्ति के सभी पहलुओं पर अपनी छाप डालता है। परन्तु यह विचारणीय है कि वह आदर्श राज्य की कल्पना करता है जिस पर सर्वोच्च बुद्धि का शासन होगा।

(13) यथार्थवादी कल्पना- प्लेटो के आदर्श राज्य की स्थापना पूर्णतः काल्पनिक नहीं वरन् यथार्थ रूप में व्यावहारिक है।

(14) राज्य का ऐतिहासिक विकास अमान्य-प्लेटो राज्य के ऐतिहासिक विकास में विश्वास नहीं करते। वे राज्य के आत्मिक आधार को ही स्वीकार करते हैं। प्लेटो एक सावयव सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं जिसके अनुसार राज्य के तीन वर्ग, आत्मा के तीन अंग और राज्य आत्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति है। शासक, सैनिक और उत्पादक वर्ग आत्मा के विवेक, शौर्य और तृष्णा के प्रतीक हैं और पूरे सामाजिक व्यक्तित्व के अभिन्न अंग हैं।

(15) प्लेटो का आदर्श राज्य का आदर्श- प्रोफेसर सेबाइन के अनुसार प्लेटो का राज्य वास्तव में एक आदर्श राज्य ही है। वह किसी सामान्य राज्य का वर्णन नहीं है। प्लेटी ने तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार ही राज्य का आदर्श प्रस्तुत कर परिस्थितियों में सुधार की प्रेरणा दी। प्लेटो के ‘अति नागरिक’ और ‘अति प्रशासक’ महामानव नहीं थे वरन् विशेष सामाजिक कार्यों और परिस्थितियों के लिये चुने हुए विशेष वातावरण में पाले गये सामान्य व्यक्ति ही थे।

(16) विशेष योग्यताओं का राज्य- प्लेटो ने आदर्श राज्य में श्रम विभाजन पर बल दिया तथा पेशे में विशेष योग्यता को आवश्यक माना। प्रो० सेवाइन के मत में यह खोज प्लेटो की मौलिक खोज है और उसके सामाजिक दर्शन की महत्त्वपूर्ण चीज है।

(17) आदर्श राज्य में कर्तव्य निष्ठा ही न्याय- प्लेटो ने आदर्श राज्य में कर्तव्य-पालन को सर्वोच्च स्थान दिया है। कर्तव्य-पालन ही न्याय है जो इस आदर्श राज्य का आधार है। सेवाइन के अनुसार “प्लेटो एक ऐसे राज्य का निर्माण करते हैं जिसमें तृष्णा प्रधान वर्ग समाज रूपी मानव का पद और जंघा है, शौर्य प्रधान वर्ग उसकी भजायें और छाती है, प्रेम व विवेकपूर्ण वर्ग उसके हृदय और सिर हैं।” प्लेटो की यह दार्शनिक रचना ऋग्वेद में वर्णित समाज पुरुष से कितनी मिलती है।

आदर्श राज्य की समीक्षा

कुछ राजनैतिक विचारकों ने प्लेटो के आदर्श राज्य की कड़ी आलोचना की है। प्रोफेसर सेबाइन ने भी उसकी कटू-आलोचना की है । उसने उसे कल्पनावादी (Utopian) कहा है। जीनेट प्लेटो के ग्रन्थों को आंशिक रूप से काल्पनिक मानता है।

परन्तु विचार करने पर विदित होता है कि प्लेटो का सिद्धान्त कोरा आदर्शवाद नहीं है। इसमें व्यावहारिकता भी है । वस्तुतः प्लेटो कोई कोरा आदर्शवादी नहीं जो केवल बादलों में रहता है। उसके पाँव धरती पर हैं। यह एक राजनैतिक यथार्थवादी है, उसका यथार्थवाद कई बातों से सिद्ध हो सकता है-

(1) प्लेटो के यथार्थवाद का पहला उदाहरण उसके द्वारा उस काल के एर्थन्स एवं यूनान के अन्य राज्यों का वर्णन है। वह यूनान की तत्कालीन अवस्था व उसके दोषों को हमारे समक्ष रखता है। उसका आदर्श समाज यूनान की परिस्थितियों के गम्भीर अध्ययन की देन है। उसका समाज का वर्गीकरण, शिक्षा, साम्यवाद आदि का सिद्धांत वस्तुतः उस काल की परिस्थितियों की देन है ।

(2) उसकी योजना ऐसी न थी जो पूर्णतः असम्भव हो, हाँ, कठिन अवश्य थी। उसके लिये उसने आदर्श राजा का विचार रखा था जो शिक्षा-योजना द्वारा सम्भव था। साथ ही उसका साम्यवाद एवं शिक्षा-योजना केवल दो वर्गों के लिए ही थी, जो अधिक व्यावहारिक थी।

(3) प्लेटो अनिवार्य तथा स्त्री-पुरुषों के लिये समान शिक्षा-पद्धति की चर्चा करता है जो आज भी सभी जगह प्रचलित है। वह अपनी शिक्षा में व्यायाम एवं संगीत को अधिक महत्व देता है, जो आज भी शिक्षा के प्रमुख अंग के रूप में माने जाते हैं; अतः यह कहा जा सकता है कि रिपब्लिक का आदर्श राज्य भले ही काल्पनिक हो पर इसके सिद्धांत शाश्वत हैं। ये किसी भी राज्य के लिये मार्ग-दर्शक हो सकते हैं।

राजनीतिक शास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!