राजनीति विज्ञान / Political Science

प्रजातंत्र का अर्थ एवं परिभाषा | प्रजातंत्र का व्यापक अर्थ | प्रजातंत्र के प्रकार | विशुद्ध प्रजातंत्र | प्रत्यक्ष प्रजातंत्र | प्रतिनिधित्यात्मक प्रजातंत्र | अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र

प्रजातंत्र का अर्थ एवं परिभाषा | प्रजातंत्र का व्यापक अर्थ | प्रजातंत्र के प्रकार | विशुद्ध प्रजातंत्र | प्रत्यक्ष प्रजातंत्र | प्रतिनिधित्यात्मक प्रजातंत्र | अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र

प्रजातंत्र का अर्थ एवं परिभाषा

(The meaning and definition of Democracy)

“प्रजातंत्र’ शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘डेमोक्रेसी’ (Democracy) का हिन्दी-रूपान्तर है। अंग्रेजी यह ‘डेमोक्रेसी’ शब्द दो ग्रीक शब्दों ‘डिमॉस’ (demos) और ‘क्रेटिया’ (kratia) से बना है। इन दोनों शब्दों का अर्थ क्रमशः ‘जनता’ और ‘शासन’ होता है। इसलिए व्युत्पत्ति की दृष्टि से  प्रजातन्त्र का अभिप्राय जनता के शासन से है।

परिभाषा (Definition)-

प्रजातंत्र की विविध परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं:-

  1. हिरोडोट्स- “प्रजातंत्र उस शासन का नाम है, जिसमें राज्य की सर्वोच्च शक्ति सम्पूर्ण जनता में निवास करती है।”
  2. प्राइस- “प्रजातन्त्र शब्द का प्रयोग हिरोडोट्स के समय से ही ऐसे शासनतंत्र के लिए किया जा रहा है, जिसमें शासन-शक्ति किसी एक व्यक्ति और वर्ग विशेष में सीमित न होकर सम्पूर्ण जनता में स्थित रहती है।”
  3. डायसी- “प्रजातंत्र वह शासन-व्यवस्था है, जिसमें राष्ट्र का अधिकतर भाग शासक हो।”
  4. डांल- “प्रजातंत्र राजनीतिक संगठन का वह स्वरूप है, जिसमें जनमत का नियंत्रण रहता है।”
  5. स्ट्रॉग- “प्रजातंत्र का अभिप्राय एक ऐसी सरकार से है, जो शासितों की सक्रिय स्वीकृति पर आधृत हो।”
  6. लिंकन- “प्रजातंत्र का अर्थ जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा बनाई गई सरकार है।”
  7. इर्नशॉ- “प्रजातंत्र केवल सरकार का ही स्वरूप नहीं है, बल्कि वह एक राज्य और समाज का भी स्वरूप है।”
  8. मैक्सी- “यह एक ऐसी जीवन पद्धति की खोज है, जिसमें कम-से-कम बल प्रयोग के दबाव से व्यक्ति की स्वत श्रेरित स्वतंत्र बुद्धि और उसके कार्यपालन का मेल बैठाया जा सके और यह विश्वास है कि ऐसी जीवन-पद्धति समस्त मानवता के लिए आदर्श पद्धति होगी, जो मनुष्य की प्रकृति और विश्व की प्रकृति के साथ सर्वाधिक सम्बन्ध स्थापित करेगी।”
  9. डीवी- “प्रजातंत्र का आधार मानव-प्रकृति की क्षमता, मानवीय बुद्धि एवं संचित तथा सहकारी अनुभव की शक्ति में विश्वास है।”

प्रजातंत्र की उपर्युक्त परिभाषाओं से यह प्रतीत होता है कि इसकी अनेक परिभाषाएँ हैं। इन तमाम परिभाषाओं में अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की परिभाषा अधिक व्यापक और उपयुक्त है। यह कहना बिल्कुल सत्य है कि प्रजातंत्र प्रजा का, प्रजा के लिए और प्रजा के द्वारा शासन है। यदि हम निष्कर्ष के रूप में यह स्वीकार करें तो स्पष्ट होगा कि सचमुच में प्रजातंत्र राज्य और समाज का एक स्वरूप, जीवन का एक रूप तथा नैतिक और सामाजिक दर्शन भी है। इसीलिए, कुमारी फॉलेट ने कहा है कि “प्रजातंत्र एक अध्यात्मिक आदर्श है। यह एक संगठन तथा जीवनमार्ग है, जहाँ व्यक्तित्व तथा मानवता का पूर्ण विकास संभव है।”

प्रजातंत्र का व्यापक अर्थ

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम जनतंत्र के व्यापक स्वरूप पर विचार कर सकते हैं। अपने व्यापक अर्थ में प्रजातंत्र के निम्नलिखित विभिन्न स्वरूप होते हैं:-

  1. शासन का स्वरूप (A form or Government)- प्रजातंत्र को आम तौर से एक शासनतंत्र के रूप में स्वीकार किया गया है। इस संदर्भ में प्रजातंत्र सरकार का एक संगठन है, जो जनता द्वारा निर्मित, नियंत्रित एवं संचालित होता है। जनता अपनी सत्ता का प्रयोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ढंग से करती है। यहाँ प्रजातंत्र का एकमात्र उद्देश्य सम्पूर्ण जनता का हित है।
  2. राज्य का स्वरूप (A Form of State)- प्रजातन्त्र राज्य के रूप में वह व्यवस्था है, जिसमें सम्प्रभुता जनता में निवास करती है। शासन व्यवस्था पर अंतिम अधिकार एवं निर्णय जनता के हाथ में रहता है। इसीलिए इर्नशॉ ने लिखा है कि इसमें राज्य का समस्त जनसमूह संप्रभुता का अधिकारी होता है। शासक एवं शासितों में कोई भेद नहीं होता।
  3. समाज का स्वरूप (A Form of Society)- समानता प्रजातंत्र की आत्मा इसलिए प्रजातांत्रिक समाज में सााजिक विभेद का लोप हो जाता है। इसमें लोग बिना किसी जाति-पाँति के भेद के समान अधिकारों का उपयोग करते हैं। इसमें वर्गगत विशेषाधिकारों का अंत करके सामाजिक तथा सांस्कृतिक समानता की स्थापना की जाती है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास का समान अवसर दिया जाता है। इसलिए आशीर्वादम् . कहा है कि “प्रजातांत्रिक समाज वह है, जिसमें समानता और भ्रातृत्व की भावना स्वभावतः विद्यमान रहती है।” क्रोजियर के विचारानुसार- “मनुष्य की भौतिक एवं सामाजिक दशाओं की समानता प्रजातंत्र का सार है।” अतः हम प्रजातांत्रिक समाज में अधिकारों, परिस्थितियों, विचारों, भावनाओं एवं आदर्शों की समानता पाते हैं।
  4. नैतिक स्वरूप (Ethical aspect)- इस दृष्टिकोण से प्रजातंत्र एक नैतिक एवं आध्यात्मिक आदर्श के रूप में स्वीकार किया जाता है। प्रजातंत्र न केवल जीवन की एक कल्पना है वरन् यह एक मंजिल है, जहाँ पहुँचने पर मानव अपने व्यक्तित्व की पूर्णता प्राप्त कर ले सकता है। जनतांत्रिक व्यवस्था में मनुष्य साध्य होता है, साधन नहीं। इसीलिए, जैफरसन ने कहा है कि प्रजातांत्रिक शासन इस विश्वास पर आघृत है कि जनता का अधिकतर भाग स्वशासन की योग्यता रखता. है तथा साधारण व्यक्ति के भीतर भी इतनी योग्यता होती है कि वह ऐसे शासकों का निर्वाचन करे, जो सामाजिक हित के संदर्भ में कार्य कर सके।
  5. आर्थिक स्वरूप (Economic aspect)- राजनीतिक स्वरूप से कम महत्त्वपूर्ण प्रजातंत्र का आर्थिक पहलू नहीं है। आर्थिक स्वतंत्रता और समानता ही प्रजातंत्र के वास्तविक आधार हैं, क्योंकि एक भूखे व्यक्ति के लिए प्रजातंत्र का कोई महत्त्व नहीं हो सकता है। आर्थिक प्रजातंत्र का अर्थ ऐसी व्यवस्था से है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपनी भौतिक तथा सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उचित साधन उपलब्ध हों और किसी तरह का शोषण न हो। जहाँ कहीं भी आर्थिक विषमता है, वहाँ प्रजातंत्र का कोई मूल्य नहीं है, इसीलिए यह ठीक ही कहा जाता है कि “आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता एक भ्रम है।”
  6. जीवन का एक रूप (A way of life)- प्रजातंत्र जीवन का एक रूप भी है। जीवन के प्रति यह एक विशिष्ट दृष्टिकोण अपनाता है। इसमें मनुष्य के व्यक्तित्व का सम्मान होता है तथा उसकी नैतिक एवं आध्यात्मिक क्षमता में विश्वास किया जाता है। इसत व्यक्ति की गरिमा बढ़ती है और उसका नैतिक स्तर ऊँचा उठता है। प्रजातंत्र सहमति पर आधृत है। सबके हृदय में क्षमा, सहिष्णुता, सेवा, परोपकार, विरोधी दृष्टिकोण के प्रति आदर-भाव, समझौता इत्यादि प्रजातंत्र के विशिष्ट भाव है।

उपर्युक्त विभिन्न व्यापक दृष्टिकोणों से यह स्पष्ट है कि प्रजातंत्र एक ऐसी शासन-प्रणाली और सामाजिक व्यवस्था का सिद्धान्त है, जिसकी एक विशेष प्रकार की मनोवृत्ति होती है और जिसका एक आर्थिक आधार होता है। इसके अंतर्गत राजनीतिक, सामाजिक और दैनिक व्यवहार के समस्त सामाजिक एवं सांस्कृतिक मापदंड समाहित हैं।

प्रजातंत्र के प्रकार

(Kinds of Democracy)

आज की 20वीं शताब्दी में प्रजातंत्र के दो भेद होते हैं-

  1. विशुद्ध या प्रत्यक्ष प्रजातंत्र (Direct Dennocracy), और
  2. प्रतिनिधित्यात्मक या अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र (Representative or Indirect Democracy)

प्रत्यक्ष प्रजातंत्र (Direct Democracy)

प्रत्यक्ष प्रजातंत्र शासन का वह रूप है, जहाँ संपूर्ण जनता स्वयं शासन का संचालन करती है। इस प्रजातंत्र में संपूर्ण जनता एक सभा या परिषद् होकर अपनी इच्छा प्रकट करती है और स्वयं कानूनों का निर्माण करती है। प्रजातंत्र के इस रूप का दर्शन हमें प्राचीन काल के भारत, चीन, रोम और यूनान में होता है। चूँकि, प्राचीन काल के राज्य बहुत छोटे होते थे, इसलिए उस समय प्रत्यक्ष प्रजातंत्र की व्यवस्था संभव थी। आज के विशाल और व्यापक राज्यों में हम प्रत्यक्ष प्रजातंत्र की आशा नहीं कर सकते । फिर भी, आज स्विट्जरलैण्ड के कुछ कैंटनों और संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ राज्यों में प्रत्यक्ष प्रजातंत्र के उदाहरण पाये जाते हैं।

अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र (Indirect Democracy)

आज का युग अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र का है। इस प्रजातंत्र में जनता शासन में प्रत्यक्ष रूप से भाग न लेकर अपने द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों से शासन का संचालन करती है; इसीलिए इसे प्रतिनिध्यात्मक प्रजातंत्र भी कहते हैं। इसके अंतर्गत कानून का निर्माण जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा होता है। जे० एस० मिल ने अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र के सम्बन्ध में कहा है कि “इसमें सारी की सारी जनता या फिर उसका बहुसंख्यक भाग शासन सत्ता का अपने नियत काल पर प्रतिनिधियों द्वारा प्रयोग करता है।”

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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