भूगोल / Geography

राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर्यावरण जागरूकता के प्रयास | National and international level environmental awareness efforts in Hindi

राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर्यावरण जागरूकता के प्रयास | National and international level environmental awareness efforts in Hindi

राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर्यावरण जागरूकता के प्रयास

सन् 1986 में पर्यावरण शिक्षा केन्द्र अहमदाबाद ने संपूर्ण देश में पर्यावरणीय जागरूकता अभियान चलाया। एक वर्ष की अवधि में सभी राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेश में 45 केन्द्रों पर लगभग 6 हजार शिक्षकों को प्रशिक्षण देकर प्रदेशों को सरकारों के सहयोग से उपजिलों, तहसील स्तर तथा उससे भी नीचे के स्तर के शिक्षकों को पर्यावरणीय प्रशिक्षण दिया गया। निःसन्देह पर्यावरण चेतना एवं जागरूकता का कार्यक्रम संपूर्ण देश को जागृति देने वाला प्रथम अपने प्रकार का एक अनूठा कार्यक्रम था। यह केन्द्र स्कूल बच्चों को पर्यावरण सम्बन्धी जानकारी प्रदान करने के लिए अध्यापकों के लिए अनेकों अध्ययन सामग्री तैयार करता है। सरकार भी विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों, संगोष्ठियों, प्रदर्शनियों, परिस्थितियों, विकास शिविरों आदि के माध्यम से समाज के सभी स्तरों पर पर्यावरण सम्बन्धी शिक्षा की जागरूकता को प्रोत्साहित कर रहीं है । केन्द्र द्वारा देश के नागरिकों के सभी आयु वर्गों में पर्यावरण की शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु अनेक कार्यक्रमों ओर बहुप्रचार माध्यम अभियानों से पर्यावरणीय जानकारी प्रदान करने की मंत्रालय में प्राथमिकता दी जाती है। सेमिनारों, कार्यशालाओं, प्रशिक्षण कार्यक्रमों, पारिस्थितिकीय शिविरों, बहुप्रचार माध्यम अभियानों आदि के माध्यम से अनौपचारिक शिक्षा पर विशेष बल दिया जाता है। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जुलाई (1986) में एक राष्ट्रीय चेतना कार्यक्रम बनाया गया, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरणीय चेतना जाग्रत करना है। इसी अभियान के क्रम में प्रत्येक वर्ष केन्द्रीय पर्यावरण विभाग ने राष्ट्रीय पर्यावरणीय जागरूकता के अन्तर्गत एक बहुत ही ठोस एवं देशव्यापी कार्यक्रम बनाया, जिसमें 19 नवम्बर से 18 दिसम्बर के एक माह की अवधि को ‘पर्यावरण माह’ का नाम दिया गया। निरन्तर यह चेतना का कार्यक्रम राष्ट्रीय पर्यावरण मास इसी अवधि में संपूर्ण देश में मनाया जाता है। इस अभियान में छात्रों, युवाओं, अध्यापकों, महिलाओं, जनजातियों, प्रशासकों, व्यावसायिकों, विद्यार्थियों तथा औद्योगिक श्रमिकों, सशस्त्र सेनाओं एवं जनसामान्य सभी आते हैं।

एक माह की अवधि में इस कार्यक्रम के अन्तर्गत संपूर्ण देश में पर्यावरण के प्रति एक लहर पैदा कर दी गयी तथा शिक्षकों में पर्यावरण चेतना जाग्रत कर इस कार्यक्रम ने देश के करोड़ों लोगों को सचेत कर दिया। इसके बाद प्रत्येक वर्ष इसी अवधि में पर्यावरण जन-चेतक के कार्यक्रम को थोड़े बहुत विषय तथा शिक्षा परिवर्तन के साथ आयोजित किया जाने लगा। इस प्रकार पर्यावरण विभाग अपने उत्कृष्ट विभाग अपने उत्कृष्ट केन्द्रों के माध्यम से पूरे देश में पर्यावरण माह के लिए विस्तृत कार्यक्रम प्रस्तुत करता है। इसके अतिरिक्त दूरदर्शन, आकाशवाणी अपने-अपने माध्यम से पर्यावरण चेतना से संबंधित कार्यक्रम प्रसारित एवं प्रकाशित करते है।

स्वयंसेवी संस्थाएँ, विभिन्न विभाग तथा सभी स्तर के छात्र, सेमिनार, प्रतियोगिताएँ प्रदर्शनियों, सिम्पोजियम, वाद-विवाद, सभाएँ आदि आयोजित कर इस माह की उपादेयता को और सबल बना देती हैं।

पर्यावरण चेतना जाग्रत करने हेतु बहुत सारे पुरस्कार राष्ट्रीय स्तर से व्यक्ति अथवा संस्थाओं के माध्यम से प्रदान करने का प्रवधान है जिसका मुख्य लक्ष्य पर्यावरण के प्रति व्यक्ति समूहों तथा संस्थाओं में रुचि जाग्रत कर पूरे देश में स्पर्धा का वातावरण तैयार करना है जिससे पर्यावरण चेतना को एक अभियान के रूप में चलाया जा सके। जैसे सुल्तान काबू पुरस्कार, महवृक्ष पुरस्कार, वृक्ष मित्र पुरस्कार इत्यादि। सरकारी संगठन जैसे भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण भी जागरूकता के लिए प्रयासरत है। भारतवर्ष में पर्यावरण के प्रति चेतना जाग्रत करने में विभिन्न राष्ट्रीय स्तर के केन्द्र स्थापित किये गये हैं जो लगन के साथ कार्य कर रहे हैं। इसी क्रम में पृथ्वी सम्मेलन 1992 ने विश्व की सरकारों को सतर्क करने के साथ-साथ सामान्य नागरिको को भी जाग्रत किया तथा उनके विचारों को नयी दिशा दी है। जो 21 वीं शताब्दी की पर्यावरण कार्यक्रमों के निर्धारण में महती भूमिका निभायेगी।

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास

संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, प्रकृति एवं प्राकृतिक साधनों के सरक्षण का अन्तर्राष्ट्रीय संघ (I.U.C.M.) और वैज्ञानिक संघों की अन्तर्राष्ट्रीय परिषद (I.C.S.U.) आदि के सहयोग से 1968 में पेरिस में आयोजित ‘जीव मण्डल कांफ्रेंस’ में पर्यावरण के बारे में प्रमुख रूप से वैज्ञानिक विशेषज्ञों ने अपनी राय व्यक्त की तथा विश्व पर्यावरण के बारे में चेतना जैसी धारणा मुखरित हुई। सन् 1972 स्टॉकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र संघ की ‘मानव पर्यावरण कांफ्रेंस’ से इस बात को और भी बल मिला तथा पर्यावरण की समस्या को विश्व स्तर पर राजनीतिक संबल प्राप्त हुआ और अनुभव किया गया कि पर्यावरण चेतना अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विकसित करने हेतु प्रयास करने चाहिए। केन्द्र में भारत सरकार ने भी पर्यावरण से संबंधित एक अलग विभाग की स्थापना 1980 आयोजन एवं समन्वय समिति का पुनर्गठन 1981 में किया गया।

‘मानव पर्यावरण’ पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कांफ्रेंस में 26 सूत्रीय कार्यक्रम का अनुमोदन हुआ। जिसमें पर्यावरण शिक्षा एवं जागरूकता की आवश्यकता पर सम्भावित कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार की गयी। उसी समय :5 जून, को संपूर्ण विश्व में ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाये जाने की घोषणा की गयी। इस कांफ्रेंस का सबसे बड़ा लाभ यह है कि जनसाधारण में मानसिक और व्यावहारिक परिवर्तन आता है और वे प्रत्यक्ष एवं परोक्ष में किसी न किसी प्रकार विश्व चिन्ता में भागीदार बनते हैं और उनके स्तर पर की गयी अपेक्षाओं के प्रति अपने को उत्तरदायी समझते हैं। इन सभी बातों का पर्यावरण से सीधा सम्बन्ध है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत पर्यावरण सुरक्षा को मूलरूप में देखा गया जिसके अन्तर्गत पर्यावरण की चेतना जाग्रत करने की आवश्यकता पर बल दिया गया।

यह चेतना समाज के प्रत्येक वर्ग तथा प्रत्येक स्तर के लोगों में उत्पन्न करायी जानी चाहिए। पर्यावरण शिक्षा को पाठ्यक्रम का एक अभिन्न अंग बनाने पर भी बल दिया जिससे पूरी शैक्षिक प्रक्रिया में समन्वयता लाई जा सके। पर्यावरण के प्रति चेतना करने तथा उसके प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने हेतु पर्यावरण शिक्षा को शैक्षिक कार्यक्रम का महत्वपूर्ण अंग समझा गया है। भारत के विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में पर्यावरण के प्रति चेतना जाग्रत करने के उद्देश्य से पाठ्यक्रम में पर्यावरण को सम्मिलित किया गया है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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