भारतीय त्योहार / Indian Festival

होली पर निबंध | होली-रंग और उमंग का त्यौहार

होली पर निबंध

होली-रंग और उमंग का त्यौहार

होली पर निबंध – होली-रंग और उमंग का त्यौहार – त्यौहार जीवन की एकरसता को तोडने और उत्सव के द्वारा नई रचनात्मक स्फूर्ति दासिल करने के निर्मित्त हुआ करते हैं। संयोग से मेल-मिलाप का अनूठा त्यौहार होने के कारण होली में यह स्फूर्ति हासिल करने और साझेपन की भावना को विस्तार देने के अवसर ज्यादा हैं। देश में मनाये जाने वाले धार्मिक व सामाजिक त्यौहारों के पीछे कोई न कोई घटना अवश्य जुड़ी हुई होती है। शायद ही कोई ऐसी महत्वपूर्ण तिथि हो, जो किसी न किसी त्यौहार या पर्व से संबंधित न हो । दशहरा, रक्षाबन्धन, दीपावली, रामनवमी, वैशाखी, बसंत पंचमी, मकर संक्रांति, बुद्ध पूर्णिमा आदि बड़े धार्मिक त्यौहार हैं। इनके अलावा कई क्षेत्रीय त्यौहार भी हैं। भारतीय तीज त्यौहार साझा संस्कृति के सबसे बंड़े प्रतीक रहे हैं। रंगों का त्यौहार होली धार्मिक त्यौहार होने के साथ-साथ मनोरंजन का उत्सव भी है। यह त्यौहार अपने आपं में उल्लास, उमंग तथा उत्साह लिए होता हैं। इसे मेल व एकता का पर्व भी कहा जाता है।

बसंत ऋतु में मनाया जाने वाला भारतीय त्योहार है। यह अत्यंत प्राचीन पर्व है। और साल के फाल्गुन महीने में मनाया जाता है। इस दिन सभी बड़े और युवा रंगो से खेलते है। होली रंगों का त्योहार है जिसे हर साल फागुन के महीने में (मार्च) हिन्दू धर्म के लोग बड़ी धूमधाम से मनाते है। उत्साह से भरा ये त्योहार हमारे लिये एक दूसरे के प्रति स्नेह और निकटता लाती है। इसमें लोग आपस में मिलते है, गले लगते है और एक दूसरे को रंग और अबीर लगाते है।

हसी ठिठोली के प्रतीक होली का त्यौहार रंगों का त्यौहार कहलाता है। इस त्यौहार में लोग पुराने बैरभाव त्याग एक दूसरे को गुलाल लगा कर बधाई देते हैं और गले मिलते हैं। इसके पहले दिन पूर्णिमा को होलिका दहन और दूसरे दिन प्रतिपदा को धुलेंडी कहा जाता है। होलिका दहन के दिन गली-मौहल्लों में लकड़ी के ढेर लगा होलिका बनाई जाती है और शाम के समय महिलायें-युवतियां उसकी पूजन करती है। इस अवसर पर महिलाएं श्रृंगार आदि कर सजधज कर आती है। बृज क्षेत्र में इस त्यौहार का रंग करीब एक पखवाड़े पूर्व चढ़ना शुरू हो जाता है।वृंदावन में फूलों की होली भी खेली जाती है यह त्योहार सच में सौहार्द का त्यौहार है क्योंकि इस दिन सभी लोग अपने देश में भूलाकर दोस्ती कर लेते है।

होली भारत का एक ऐसा पर्व है जिसे देश के सभी निवासी सहर्ष मनाते हैं। हमारे तीज त्यौहार हमेशा साझा संस्कृति के सबसे बड़े प्रतीक रहे हैं। यह साझापन होली में हमेशा दिखता आया है। मुगल बादशाहों की होली की महफिलें इतिहास में दर्ज होने के साथ यह हकीकत भी बया करती हैं कि रंगों के इस अनूठे जश्न में हिन्दुओं के साथ मुसलमान भी बढ-चढ़कर शामिल होते हैं। मीर, जफर और नजीर की शायरी में होली की जिस धूम का वर्णन है, वह दरअसल लोक परंपरा और सामाजिक बहुलता का ही रग है।

हिंदू धर्म का होली का त्योहार विश्व प्रसिद्ध है यह त्यौहार मार्च के महीने में मनाया जाता है हिंदू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन मास में इस त्यौहार को मनाया जाता है। इस त्यौहार को मनाया जाने के पीछे एक पौराणिक कथा  प्रसिद्ध है । इस संबंध में कहा जाता है कि दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने अपनी प्रजा को भगवान का नाम न लेने का आदेश दे रखा था। किन्तु उसके पुत्र प्रहलाद ने अपने पिता के इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया। उसके पिता द्वारा बार – बार समझाने पर भी जब वह नहीं माना तो दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के अनेक प्रयास किए, किन्तु उसका वह बाल भी बांक न कर सका।

प्रहलाद जनता में काफी लोकप्रिय भी था । इसलिए दैत्यराज हिरण्यकश्यप को यह डर था कि अगर उसने स्वयं प्रत्यक्ष रूप से प्रहलाद का वर्ध किया तो जनता उससे नाराज हो जाएगी। इसलिए वह प्रहलाद को इस तरह मारना चाहता था कि उसकी मृत्य एक दुर्घटना जैसी लगे। दैत्यराज हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में जलेगी नहीं। मान्यता है कि होलिका नित्य प्रति कुछ समय के लिए अग्नि पर बैठती थी और अग्नि का पान करती थी। हिरण्यकश्यप ने होलिका की मदद से प्रहलाद को मारने की ठानी। उसने योजना बनाई कि होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ जाए तो प्रहलाद मारा जाएगा और होलिका वरदान के कारण बच जाएगी। उसने अपनी उस योजना से होलिका को अवगत कराया। पहले तो होलिका ने इसका विरोध किया लेकिन बाद में दबाव के कारण उसे हिरण्यकश्यप की बात माननी पड़ी।

योजना के अनुसार होलिका प्रहलाद को गोद मे लेकर लकड़ियों के ढेर पर बैठ गई और लकड़ियों में आग लगा दी गई। प्रभु की कृपा से वरदान अभिशाप बन गया। होलिका जल गई, मगर प्रहलाद को आंच तक न पहुंची। तब से लेकर हिन्दू फाग से एक दिन पहले होलिका जलाते हैं। इस त्यौहार को ऋतुओं से संबंधित भी बताया जाता है। इस अवसर पर किसानों द्वारा अपने खेतों में उगाई फसलें पककर तैयार हो जाती हैं। जिसे देखकर वे झूम उठते हैं। खेतों में खड़ी पकी फसल की बालियों को भून कर उनके दाने मित्रों व सगे-संबंधियों में बांटते हैं।

होलिका दहन के अगले दिन धुलेंडी होती है । इस दिन सुबह आठ बजे के बाद से गली-गली में बच्चे एक-दूसरे पर रंग व पानी डाल कर होली की शुरूआत करते है। इसके बाद तो धीरे-धीरे बड़ों में भी होली का रंग चढ़ना शुरू हो जाता है और शुरू हो जाता है होली का त्योहार। अधेड़ भी इस अवसर पर उत्साहित हो उठते हैं। दस बजते-बजते युवक-युवतियों की टोलियां गली-मौहल्लों से निकल पडती हैं। घर-घर जाकर व एक दूसरे को गुलाल लगा व गले मिल होली की बधाई देते हैं। गलियों व सड़कों से गुजर रही टोलियों पर मकानों की छतों पर खडे लोगों द्वारा रंग मिले पाना की बाल्टियां उंडेली जाती हैं। बच्चे पिचकारी से रंगीन पानी फेंककर व गुब्बारे मारकर होली का आनन्द लेते हैं। चारों ओर चहल-पहल दिखाई देती है। जगह-जगह लोग टोलियों में एकत्र हो ढोल की थाप पर, होली है! भई होली है! की तर्ज पर गाने गाते हैं। वृद्ध लोग भी इस त्यौहार पर जवान हो उठते हैं। उनके मन में भी उमंग व उत्सव का रंग चढ़ जाता है। वे आपस में बैठ गप-शप व ठिठोली में मस्त हो जाते है और ठहाके लगाकर हसते है। अपराहन दो बजे तक फाग का खेल समाप्त हो जाता है । घर से होली खेलने बाहर निकले लोग घर लौट आते हैं। नहा-धोकर शाम को फिर बाजार में लगे मेला देखने चल पड़ते हैं या फिर अपने सगे संबंधियों से मिलने जाते हैं।

हमारे भारत देश में कुछ ऐसी जगह है जहां पर होली का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है यहां की होली जो भी एक बार वे दूसरी बार यहां पर जरूर आना चाहता है इनमें से कुछ जगह इस प्रकार हैं

वृंदावन की होली – यहां के लोग रंगों की वजह फूलों से होली खेलते हैं सभी लोग एक दूसरे पर रंग बिरंगे फूल उड़ाते है। भगवान श्री कृष्ण भी यहां पर होली खेला करते थे और वृंदावन भी उन्हीं की नगरी है इसीलिए लोगों में उत्साह है और बढ़ जाता है। यहां की होली देखने कई विदेशों से पर्यटक आते हैं जो कि यहां पर आकर बहुत ही धूमधाम से होली खेलते है।

बरसाने की होली यह माता राधा का जन्म स्थान है यहां पर भगवान श्री कृष्ण अपने दोस्तों के साथ नंद गांव से बरसाने में होली खेलने आते थे। उसी तरह आज भी लोग नंद गांव से बरसाने में होली खेले जाते हैं यहां की होली इसलिए प्रमुख है क्योंकि यहां पर महिलाएं पुरुषों पर रंगो की वजह लकड़ी की लाठियों से उन्हें पीटती है। यह देखने में बहुत ही सुंदर लगता है इसीलिए यहां की होली को लठमार होली भी कहा जाता है। कुछ इसी तरह की होली हरियाणा राज्य में भी खेली जाती है जहां भाभी देवर पर लाठियां बरसाती है। इसमें किसी को चोट नहीं आती क्योंकि पुरुषों के पास बचाव के लिए ढाल होती है।

राजस्थान की होली राजस्थान की होली हमारे देश के साथ साथ विदेशों में भी प्रसिद्ध है क्योंकि यहां पर होली का त्यौहार आने से महीनों पहले ही ढप और चंग की ताल पर पौराणिक होली के प्रसिद्ध गीत गाए जाते है। यहां पर लोग मोहल्लों में इकट्ठा हो जाते हैं और पूरी रात रात भर गीत गाते हैं और नाचते है। राजस्थान की होली जो भी एक बार देख लेता है उसका मन यहां पर आने काम दूसरी बात भी करता है।

मुगल शासन काल मे भी होली अपना एक अलग महत्व रखती थी जहांगीर ने अपने रोजनामचे तुजुक-ए-जहांगीरी में कहा है कि यह त्यौहार हिंदुओं के संवत्सर के अंत में आता है। इस शाम लोग आग जलाते हैं जिसे होली कहते हैं। अगली सुबह होली की राख एक-दूसरे पर फेंकते व मलते हैं। अल बरुनी ने अपने यात्रा वृत्तांत में होली का बड़े सम्मान के साथ उल्लेख किया है। ग्यारहवीं सदी की शुरूआत में जितना वह देख सका, उस आधार पर उसने बताया कि होली पर अन्य दिनों से अलग हटकर पकवान बनाए जाते है। इसके बाद इन्हे ब्राह्मणों को देने के बाद आपस में आदान-प्रदान किया जाता है। अतिम मुगल बादशाह अकबरशाह सानी और बहादुरशाह जफर खुले दरबार में होली खेलने के लिए प्रसिद्ध थे। बहादुरशाह ज़फर ने अपनी एक रचना में होली को लेकर उन्होंने कहा है कि –

क्यों मोपे रंग की डारे पिचकारी

देखो सजन जी दूंगी मैं गारी

भाग सकू मैं कैसे मोसो भागा नहिं जात

ठाड़ी अब देखें और तो सनमुख गात

इस दिन में अपने आप में एक बुराई लिए हुए भी है। लोग मदिरापान आदि कर आपस में ही लड़ पड़ते हैं। वे उमंग व उत्साह के इस त्यौहार को विवाद में बदल देते हैं। कुछ सामाजिक संस्थाओं द्वारा इस दिन शाम को हास्य सम्मेलन, कवि गोष्ठियां आदि आयोजित की जाती हैं। व मूर्ख जुलूस निकाले जाते हैं।

होली का त्यौहार हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार है। होली का त्यौहार भारत के साथ-साथ नेपाल बांग्लादेश अमेरिका ऑस्ट्रेलिया कनाडा जैसे कई देशों में भी प्रसिद्ध है। यह खुशियां बांटने वाला त्यौहार है इस दिन सभी लोग एक दूसरे से गले मिलकर खुशी खुशी इस त्योहार को मनाते है इस त्यौहार में ऐसी शक्ति है कि वर्षों पुरानी दुश्मनी भी इस दिन दोस्ती में बदल जाती है। इसीलिए होली को सौहार्द का त्यौहार भी कहा गया है।

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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