अरस्तु के राज्य सम्बन्धी विचार | Aristotle’s State Related Thoughts in Hindi
अरस्तु के राज्य सम्बन्धी विचार | Aristotle’s State Related Thoughts in Hindi
राज्य की उत्पत्ति एवं स्वरूप (Nature and Origin of State)
अरस्तु के राज्य सम्बन्धी विचार – अरस्तू महान विचारक था। उसके राज्य की प्रकृति, उत्पत्ति तथा उसके कार्यों के विषय में व्यक्त किये गये विचार राजनीतिक चिन्तन की महान् देन है । अरस्तू के पश्चात् राज्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक विचारधाराएँ आई। इन विचारधाराओं में से कोई भी विचारधारा सर्वमान्य नहीं हुई। परन्तु अरस्तु द्वारा राज्य के सम्बन्ध में व्यक्त किये गये विचारों का नैतिक तथा मनोवैज्ञानिक आधार इतना मजबूत है कि आज भी उनका सम्मान, किया जाता है।
अरस्तू सर्वप्रथम विचारक था जिसने राज्य को स्वाभाविक संस्था बताया। अरस्तू ने राज्य की स्वाभाविकता तथा उसकी प्राकृतिकता पर बल भी दिया। उसके अनुसार राज्य का अस्तित्व मनुष्य के नैतिक जीवन के लिये है। इस भाँति वह राज्य को सुदृढ़ मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक आधार प्रदान करते हैं।
अरस्तु के अनुसार राज्य का उदय
प्लेटो की भाँति अरस्तू भी राज्य को स्वाभाविक एवं प्राकृतिक संस्था मानता है। वह यह मानकर चलता है कि राज्य का जन्म परिवारों से हुआ। परिवार भी एक स्वाभाविक संस्था है क्योंकि इसके सदस्यों के सम्बन्ध प्राकृतिक हैं। परिवार का निर्माण सर्वप्रथम आर्थिक आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिये हुआ परिवार के पश्चात् व्यक्ति राज्य के रूप में संगठित हुआ। परिवार से राज्य के रूप में लोग किस प्रकार संगठित हुये इसे अरस्तू ने इन शब्दों में व्यक्त किया है, “परिवार प्रकृति द्वारा स्थापित वह समुदाय है जो मनुष्यों की प्रतिदिन की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है लेकिन जब अनेक परिवार संगठित हो जाते हैं तथा उस संगठन का उद्देश्य दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति से कुछ अधिक हो तो गाँव का उदय होता है। कई गाँव एक समुदाय के रूप में संगठित हो जाते हैं तथा वह समुदाय पूर्ण वर्ग एवं आत्मनिर्भर होता है तो राज्य का उदय होता है। इसका उदय मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये होता है तथा अच्छे जीवन के लिए इसका अस्तित्व रहता है।” इस भाँति ने राज्य को एक प्राकृतिक संस्था माना है।
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अरस्तु के राज्य का लक्ष्य और कार्य
अरस्तू यह मानकर चलता है कि मनुष्य मूल रूप से अच्छा है तथा राज्य का उद्देश्य उसकी अच्छी प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने तथा उनका विकास करना है। उसका विश्वास था कि प्रत्येक समुदाय का उद्देश्य व्यक्ति का हित करना है और चूंकि राज्य सर्वोच्च समुदाय है; अतः उसका उद्देश्य व्यक्ति का सर्वोच्च कल्याण है। अरस्तू के अनुसार राज्य का कार्य ‘सकारात्मक’ (Positive) है न कि नकारात्मक (Negative) । उसका अस्तित्व नागरिकों को वाह्य आक्रमणों से रक्षा तथा आन्तरिक व्यवस्था स्थापित ‘करना नहीं है वरन् उसे नागरिकों को आत्म-निर्भर बनाना चाहिये । इसका कार्य सद्जीवन का निर्माण करना है। उसे अपने नागरिकों की बुराइयों से रक्षा ही नहीं करनी चाहिये वरन् उन्हें सद्जीवन की ओर प्रेरित भी करना चाहिये। राज्य को अपने नागरिकों के लिये ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करनी चाहिये जिससे उनकी भौतिक तथा नैतिक क्षमता की वृद्धि हो।
अरस्तू राज्य को प्लेटो की भाँति स्वाभाविक संस्था तो मानता है साथ ही वह व्यक्ति तथा राज्य के मध्य सम्बन्ध भी निश्चित करता है। अरस्तू ने राज्य तथा व्यक्ति के मध्य ‘सावयवी’ सम्बन्ध स्थापित करके राज्य की उत्कृष्टता को सिद्ध करने का प्रयास किया है। अरस्तू के अनुसार राज्य का उद्देश्य व्यक्ति के जीवन की रक्षा करना मात्र ही नहीं है वरन् उसे सद्जीवन की ओर प्रेरित करना
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