अरस्तू के परिवार सम्बन्धी विचार | Aristotle’s family thoughts in Hindi
अरस्तू के परिवार सम्बन्धी विचार | Aristotle’s family thoughts in Hindi
अरस्तू के परिवार सम्बन्धी विचार
अरस्तू प्लेटो के परिवार के साम्यवाद की कटु आलोचना करता है। अरस्तू के परिवार सम्बन्धी विचारों का हम दो रूपों में अध्ययन कर सकते हैं। एक प्लेटो की आलोचना के रूप में तथा दूसरे व्यक्तिगत परिवार के समर्थन के रूप में।
अरस्तू ने प्लेटो के सम्पत्ति के साम्यवाद की भाँति ही सामूहिक परिवार की भी कटु आलोचना की है जो निम्नलिखित है-
(1) अरस्तू के अनुसार राज्य की इकाई परिवार है| परिवार मानव समाज की प्राकृतिक अवस्था है। आरम्भ में परिवार थे। परिवार से ग्राम, ग्राम से राज्य का विकास हुआ। प्लेटो राज्य को व्यक्तियों का समूह मानता है; अतः अरस्तू के अनुसार जिस परिवार से राज्य का निर्माण होता है, उसी परिवार व्यवस्था की समा्त करके प्लटा राज्य के मूल पर ही कुठाराघात करता है।
(2) मनुष्य के विकास के लिये व्यक्तिगत सम्पत्ति की भाँति परिवार की भी आवश्यकता है। परिवार के अभाव में व्यक्ति जीवन के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता; अंतः अरस्तू का विचार है कि प्लेटो की परिवार सम्बन्धी धारणा अमनोवैज्ञानिक है।
(3) बिना परिवार के अनेक नैतिक गुणों का विकास संभव नहीं है; अतः नैतिक विकास के लिये परिवार आवश्यक है।
(4) परिवार के साम्यवाद से नैतिक पतन होगा क्योंकि पिता-पुत्री, माता-पुत्र एवं भाई-बहन सभी एक दूसरे के साथ सहवास कर सकेंगे । इससे पवित्रता का भाव नष्ट हो जायेगा और समाज में अनैतिकता फैलेगी।
(5) प्लेटो के अनुसार इस व्यवस्था से उत्पन्न बच्चे राज्य की सन्तान होगी परन्तु वस्तु-स्थिति इससे भिन्न होगी। सबकी सन्तान किसी की भी सन्तान न होगी। बच्चे को वह स्नेह नहीं मिलेगा जो व्यक्तिगत परिवार-व्यवस्था से मिलता है और जो उसके संतुलित विकास के लिये अनिवार्य भी है।
(6) यह व्यवस्था केवल शासक वर्ग के लिये ही क्यों है ? यदि यह व्यवस्था अच्छी है तो उत्पादक-वर्ग पर भी लागू होनी चाहिये थी ।
(7) अरस्तू इस व्यवस्था को अव्यावहारिक बतलाता है क्योंकि परिवार एक मनोवैज्ञानिक आवश्यकता का परिणाम है।
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परिवार व्यवस्था का समर्थन –
अरस्तू के अनुसार प्लेटो का साम्यवाद अप्राकृतिक एवं काल्पनिक है। परिवार के साम्यवाद से सीधा-साधा अर्थ होगा कि प्रत्येक व्यक्ति की पत्नी प्रत्येक की पत्नी होगी प्रत्येक पुत्र के हजारों पिता होंगे । अरस्तू के अनुसार बच्चे के योग्य विकास के लिये माता-पिता का वात्सल्य अपेक्षित है जो कि परिवार में ही संभव है। विवाह एक पवित्र संस्था है एवं परिवार राज्य की इकाई है। परिवार व्यक्तित्व के लिये परम अपेक्षित है। यह नैतिक विकास में अति सहायक है। इसलिये परिवार की संस्था को समाप्त नहीं किया जा सकता।
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